Sunday, November 25, 2012

गुरु प्रसाद - 1


श्री ग्रन्थ साहिब जी परम ज्ञान सागर हैं जिसमें …
...
  • दस गुरुओं के साधनाओं का फल है
  • सत्रह भक्तों की अनुभूतियों का रस है
  • पंद्रह परम भक्तों की वाणियों का सुर है
  • भाई मरदाना जैसे परम भक्त की धुनें है
  • 1जो चौदह सौ तीस पृष्ठों में फैला हुआ है
  • तीसरे गुरु श्री अमर दास की नौ सौ चौहत्तर वाणियों का संग्रह है
  • दूसरे गुरु श्री अंगदजी साहिब की तिरसठ वाणियों की गंगा प्रवाहित होती हैं
  • आखिरी गुरु श्री गोबिंद जी साहिब का निर्देशन है और भाई मणि सिंह की बुद्धि है जिनके द्वारा यह लिपिबद्ध हुआ
  • सन चौदह सौ से सत्रह सौ के मध्य के संतों फकीरों की वाणियों का संग्रह है
  • दस गुरुओं सत्तरह भक्तों एवं पन्द्रह परम सिद्धों की ऊर्जा है
  • ऐसे परम पवित्र को छोड़ कर आप और कहाँ और क्या खोज रहे हैं
  • एक ओंकार

Friday, November 23, 2012

कोई तो सुनता ही होगा


  • कौन क्या बोल रहा है , यह महत्वपूर्ण नहीं , आप क्या सुन रहे हैं , यह महत्वपूर्ण है 
  • बोलनें वाला कभी यह नहीं समझता कि सुननें वाला क्या सुन रहा है 
  • सुननें वाला कभी यह नहीं सोचता की बोलनें वाला क्या बोलना चाह रहा 
  • बुद्धि स्तर की समझ बहुत कमजोर समझ होती है 
  • ह्रदय की समझ , गहरी समझ है 
  • जिस से हमारा कोई खास मतलब होता है उसकी हर बात हमें स्वीकार होती है 
  • जिससे  हमारा कोई मतलब नहीं उसकी बात को सुननें के हमारे कान और होते हैं 
  • प्रकृति अब सिकुड़ने लगी है और मनुष्य का अहंकार फ़ैल रहा है 
  •  विज्ञान के आविष्कारों का प्रकृति को सिकोड़ने में हो रहे प्रयोग घातक हो सकते हैं 
  • विज्ञान संदेह आधारित है और संदेह की रोशनी में सत्य को देखना संभव नहीं 
  • संदेह जब श्रद्धा में बदलता है तब उस ऊर्जा से सत्य दिखता है 

विज्ञान का केन्द्र मन - बुद्धि हैं और ज्ञान का केन्द्र है ह्रदय 
निर्विकार मन - बुद्धि का सीधा सम्बन्ध ह्रदय से होता है 
ह्रदय में चेतना की ऊर्जा तब प्रभावी होती है जब मन - बुद्धि निर्विकार हो जाते हैं
हमेशा औरों के सम्बन्ध में ही क्यों सोचते रहते हो कभीं अपनें बाते में भी सोचा करो

  • आज औरों के ऊपर कफ़न डाल रहे हो एक दिन और तुम पर कफन  डालेंगे 

==== ओम् ======


Saturday, November 17, 2012

हम इनके मध्य हैं - - - - -


  • एक परमात्मा ......
  • अनेक देवता ........
  • एक माया ............
  • अनेक जीव .........
  • दो प्रकृतियाँ ........
  • ऊपर आकाश .....
  • नीचे एक काल्पनिक संसार , पाताल .....
  • सप्त सिंधु ......
  • सप्त ऋषि .....
  • सप्त दिन [ सप्ताह ] .....
  • नौ ग्रह .......
  • देव - दानव .....
  • सच - झूठ ......
  • अपना - पराया .....
  • सास - ससुर , पति - पत्नी , पुत्र - पुत्री , समाज 
  • समाज की जरूरतें और स्वयं की चाह 
  • स्वर्ग - नर्क का भय 

हमारे रहनें के आयाम तो अनेक हैं , हम उनमे कैसे रहते हैं , यह हमारे जीवन की दिशा को तय करता है 
जीवन वह है जो न अपनें लिए जीया जाए , न पराये  के लिए ,जीवन  चाह  रहित एक दरिया की धार जैसे बहते रहना चाहिए जहाँ किसी अवरोध की कोई फ़िक्र न रहे और धीरे - धीरे ऐसा जीवन जहाँ पहुँचता है उसी का नाम है.........
 परम धाम 
==== ओम् ======

Saturday, November 10, 2012

मनुष्य और पशु

भोग से भोग में मनुष्य और पशु दोनों पैदा होते हैं 
भोग - भोजन की खोज में पशु आखिरी श्वास भरता है 
मनुष्य भोग में होश उठा कर परम गति प्राप्त करता है 
परम गति अर्थात जहाँ समय की छाया नहीं पड़ती 
जहाँ सूर्य - चन्द्र - अग्नि प्रकाश का श्रोत नहीं 
जो स्व प्रकाशित है 
पशु का मूल स्वभाव है भोग और ....
मनुष्य का मूल स्वभाव है अध्यात्म
गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं [ श्लोक - 8.3 ] .....
स्वभावः अध्यात्मं उच्यते 
पशु कभीं आकाश नहीं देखता और मनुष्य आकाश में भी घर बननें को सोच रहा है
वह जो काम को न समझा , वह जो कामना को नहीं समझा , वह जो क्रोध को नहीं समझा ...
वह जो मोह को नहीं समझा , वह जो अहँकार  को नहीं समझा .....
वह पशु है और वह भी भोग - भोजन की तलाश में कहीं मध्य मार्ग  के चौराहे पर दम तोड़ देगा और पुनः पशुवत योनि में पैदा हो कर भोग - भोजन में भागता रहेगा ,
 लेकिन ----
जो  काम से राम की यात्रा कर लिया , जो भोग में भगवान की छाया देख ली , वह आवागमन से मुक्त हो कर प्रभु में बसेरा बना  लेता है /
=== ओम् =====

Saturday, November 3, 2012

होश में या बेहोशी में ----

लोग कहते हैं ------
 मैनें अमुक पराये को अपना लिया है , क्या  यह सत्य है ?
क्या पराये  को अपनाया जा सकता है ?
क्या अपनों को पराया बनाया जा सकता है ?

अपनों को पराया बनाना ------
परायों को अपना बनाना ------
दोनों बातों में समान वजन है ; जो एक को कर लिया दूसरा उसके लिए कठिन नहीं
जो यह कहता है कि हमनें अमुक को अपना लिया लेकिन उसनें मुझे धोखा दिया ,
यह बात दिल की बात नहीं बाहर - बाहर की बात है ----
जो दिल से किसी  को अपनाता है उसके पास मैं और तूं दो नहीं रहते , अपनानें के साथ ही मैं तूं में बिलीन हो जाता है , फिर कौन बचा रहता है जो यह कहे कि , उसको मैं अपना लिया था लेकिन उसनें मुझे धोखा दिया ?
अपनाना कोई कृत्य नहीं , यह एक घटना है जो स्वतः घटती ,  पता तक नहीं चल पाता और जब यह पता चलता है कि  मैनें  अपना लिया है उसी घडी उसमें अपनानें  की ऊर्जा बदल जाती है / अपनाना एक प्रकार की साधना का फल है जिस पर कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय एवं अहँकार की छाया तक नहीं पड़ती और जहाँ ऐसा आयाम हो वह स्थान तीर्थ होता है और वहाँ प्रभु को खोजा नहीं जाता , वहाँ सर्वत्र प्रभु ही  प्रभु दिखता है /
आप न कुछ अपनानें की  कोशिश करे न त्यागानें की , आप मात्रा उसे देखें जो आप के  साथ घटित हो रहा हो और ----
आप का जब यह अभ्यास सघन होगा तब आप कुछ और हो गए होंगे , मेरे जैसे बैठ कर ब्लॉग नहीं लिखेंगे , ब्लॉग में स्वय को घुला दिए होंगे जैसे गंगा गंगा सागर में स्वयं को घुला कर मुक्त हो जाती है /
==== ओम् ======