Saturday, June 29, 2013

इसे समझो

1- सत्य में रहते हुए सत्य से इतना दूर क्यों ? 2- किसी को अपना सहारा बनानें की कोशिश को त्यागो , स्वयं किसी का सहारा बन कर देखो । 3- क्या कारण है की आलोचकों की उम्र छोटी होती है ? 4-जितना समय दूसरों में कमी खोजनें में लगाते हो उसका एक अंश ही सही अपनीं कमीं को समझनें में लगा कर देखो । 5-यदि देखना होशमय हो तो वहाँ सोच के लिए कोई गुंजाइश नहीं होती और जहां देखनें पर सोच उठती है , वहाँ होश का होना संभव नहीं । 6- हम लोग भी अजीब हैं ; सुदूर स्थित तालाब को तीर्थ समझते हैं और पास बह रही गंगा में भैस नहलाते हैं । 7- शरीर गंगा में धोनें से मन निर्मल होगा , संदेहप्रद है । 8- संसार को जब तुम अपनें मन से देखते हो तब यह अपना रंग बदलता हुआ दिखता है । 9-चलो , खूब चलो लेकिन कामना के साथ नहीं , कामना का वज़न उठा कर चलनें का अभ्यास एक दिन कहीं गिरा देगा । 10-प्यार का गुण सभीं गाते हैं पर प्यार की खुशबू किसी - किसी को मिलपाती है । ~~~ ॐ ~~~

Wednesday, June 19, 2013

कौन नहीं चाहता ---


  • संगीत सुनना कौन नहीं चाहता ?
  • नृत्य देखना कौन नहीं चाहता ?
  • कौन प्रभु के समीप है ; कंश जो सोते - जागते हर पल कृष्ण को देखता रहता था
  •  या
  •  फिर वह जो अपनें को भक्त जैसा दिखाना तो चाहता है पर कभीं स्वप्न में भी कृष्ण को नहीं देखा ?
  • ऐसा कौन होगा जिसकी नजर राह के किनारे बनें गुरुद्वारा , मंदिर , मस्जिद एवं चर्च पर न  टिकती हों ?
  • ऐसा कौन होगा जिसके दिल की धडकन किसी मौत की खबर सुन कर न बढ़ती हो ?
  • ऐसा कौन होगा जो अपनें को अपनें दिल से किसी से  छोटा समझता हो ?
  • ऐसा कौन होगा जो अपनें बेटी - बेटे का गुण न गाता हो ?
  • ऐसा कौन बेटा होगा जो अपनी माँ के सामनें न झुकता हो ?
  • ऐसा कौन होगा जिसकी मूंछें उसकी पत्नी के सामनें आनें पर न झुकती हों ?
  • ऐसे कितनें होंगे जो प्रभु को कामना रहित मनोभाव से देखते हों ?
  • कोई खोनें को तैयार नहीं और पानें के लिए कोई कसर नहीं छोड़ता , क्या यह संभव भी है ?
  • मनुष्य दो दुखों के बीच के अंतराल को सुख क्यों समझता है ?
  • ऐसे कितनें हो सकते हैं जिनके लिए  सुख - दुःख नाम की कोई गणित न हो ?

=== ओम् ========

Wednesday, June 12, 2013

गीता अध्याय -01 ( सार )

Title :गीता अध्याय - 01 Content: गीता - अध्याय - 01 श्लोकों की स्थिति : * ध्रिष्ट्र राष्ट्र ....... 01 * कृष्ण .......... 00 * अर्जुन ......... 27 * संजय ......... 19 ----------------- योग = 47 ----------------- इस अध्याय में दो बातें हैं : (क) श्लोक - 01 (ख) श्लोक - 1.26 से 1.47 तक * श्लोक -01 धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः । मामकाः पाण्डवा : च एव किं अकुर्वत संजय ।। 1- श्लोक धृतराष्ट्र का है अतः धृत राष्ट्र कुरुक्षेत्र को धर्म क्षेत्र क्यों कह रहे हैं ? > आदि शंकर से गाँधी जी तक की गीता के इस सूत्र की ब्याख्या कुछ तर्क आधारित कमजोर दिखती हैं , इस सम्बन्ध में अब कुछ आगे :--- (क) कुछ लोग प्रभु श्री कृष्ण के वहाँ होने की वजह से धर्म क्षेत्र कहते हैं , और (ख) धर्म आधारित युद्ध हो रहा है इसलिए इसे धर्म क्षेत्र कहते हैं , लेकिन धृत राष्ट्र क्यों धर्म क्षेत्र कह रहे , उनके लिए न कृष्ण प्रभु हैं न यह युद्ध धर्म आधारित है ।अब कुरूक्षेत्र के संबंध कुछ और बातें :---- 1- वेद कुरुक्षेत्र को स्वर्ग में जो रहते हैं उनका तीर्थ कहते हैं । 2- 52 शक्तिपीठों में से एक, यहाँ शिव मंदिर में है । 3- यहाँ का शिव मंदिर कई बार मुस्लिमों के हाथों लूटा गया है जैसे मुहम्मद गज़नी ( 11वीं शताब्दी) 4- अर्जुन दोनों पक्षों के वीरों को युद्ध पूर्व देखना चाहते हैं , क्या उन्हें पता नहीं की इस युद्ध में कौन किसका साथ दे रहा है ? भागवत कहता है की कृष्ण बिपक्षी योद्धाओं की शक्ति क्षीण करने हेतु दोनों सेनाओं के मध्य अर्जुन के रथ को ले गए थे । 5- श्लोक - 1.26 से 1.47 तक को देखिये जहां दो बातें हैं ---- (अ) मोह की पहचान ( 1.28 - 1.30 तक ) के लक्षणों को बताया गया है । (ब) जाति धर्म और कुल धर्म की बातों का जिक्र है जो पूर्ण रूप से जेनेटिक्स से सम्बंधित है ।इस सम्बन्ध में अर्जुन की बातों का गीता में कोई जबाब नहीं है । : मोह के लक्षण : * अंगों का सिथिल होना.... * मुह सूखना ..... * शरीर में कम्पन ... * शरीर में रोमांच का होना .... * त्वचा में जलन ...... * भ्रमित मन ..... > अर्जुन की कुछ और बातें < + कुटुंब को मार कर मैं सुख से किस तरह रह पाऊंगा ? + जिनके लिए मुझे राज्य चाहिए वे सभीं यहाँ मरनें - मारनें को तौयार हैं , फिर क्या फायदा युद्ध से ? + कुल की स्त्रियाँ दूषित होंगी ... + वर्णसंकर उत्पन्न होंगे ... + वर्णसंकर कुल का नाश करेंगे >>>> ॐ <<<<

Tuesday, June 11, 2013

सरस्वती सरिता

Title :कुछ कथाएं भागवत से :--- Content: कुछ कथाएं भागवत से कलि युग के आगमन तक.... महाभारत युद्ध के समापन तक.... प्रभु श्री कृष्ण के परम धाम यात्रा तक... द्वारका का समुद्र में विलीन होने तक ... परीक्षित के पुत्र जनमेजय के समय तक.... हिमालय से चल कर प्रभास क्षेत्र में पश्चिम मुखी हो कर अरब सागर में अपनें को अर्पित करनें वाली परम पवित्र नदी सरस्वती एक निर्मल उर्जा क्षेत्र की जननी थी । सरस्वती के दोनों तटों पर द्वापर युग के लगभग सभीं परम सिद्ध योगियों के आश्रम हुआ करते थे । भागवत के आधार पर सरस्वती ब्रह्मावर्त क्षेत्र में पूर्व मुखी बहती थी । ब्रह्मावर्त महाराजा मनु का क्षेत्र था जो यमुना के तट पर शूरसेन एवं कुरुक्षेत्र (कुरुक्षेत्र नगर नहीं , क्षेत्र ) के मध्य का भाग था । ब्रह्मावर्त में प्रभु विष्णु भगवान वाराह अवतार में पृथ्वी को रसातल से निकाल कर लाया था । सूकर के रूप में पृथ्वी के भार से प्रभु की देह में कुछ कम्पन हुआ और फल स्वरुप उनके कुछ रोम झड गए थे जो कुश और काश के रूप में उगे । कुश का पयोग धार्मिक कार्यों में नकारात्मक शक्तितों से बचाव के लिए किया जाता है । ब्रह्मावर्त के सम्राट मनु अपनीं पुत्री देवहूति का ब्याह कर्मद ऋषि के किया जिसके गर्भ से विष्णु अवतार रूपमेंकपिलमुनिकाजन्महुआ।विन्दुसरोवर पर कर्मद ऋषि का आश्रम हुआ करता था । सरस्वती नदी के पश्चिमी तट पर जहाँ बेर का जंगल हुआ करता था , वहाँ शम्याप्रास आश्रम था जहां हर समय यज्ञ हुआ करते थे । शाम्याप्रास के साथ वेदव्यास जी का भी आश्रम था जहाँ भागवत की रचना हुयी और व्यास ही सर्वप्रथम भागवत की कथा अपने पुत्र शुकदेव जी को सुनाया था । कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध के समय पांडवो की सेना सरस्वती के पश्चिमी तट पर रुकी थी अर्थात शम्याप्रास एवं जहाँ महाभारत युद्ध हुआ ( कुरुक्षेत्र ) दोनों जगह सरस्वती का रुख उत्तर से दक्षिण की ओर रहा होगा जब की ब्रह्मावर्त में इनका रुख पश्चिम से पूर्व की ओर था । जिस समय प्रभास क्षेत्र में ब्रिष्णी , भोज , अन्धक बंशीलोग वारुणी मदिरा पी कर आपस में लड़ रहे थे उस समय सूर्यास्त हो चला था और प्रभु सरस्वती नदी - तट पर मैत्रेय के साथ एक पीपल पेड़ के नीचे वैठे थे । :::: ॐ ::::::