Sunday, August 3, 2014

पुरानी आँख और नया आयाम

पुरानी आँख और नया आयाम ( भाग - 1 )
● लाख कोशिश करलें पर असफलता और हमारा रिश्ता टूट नहीं पाता ,क्या कारण हो सकता है ?
°° पुरानी आँख और नया आयाम ; यह समीकरण हमारी असफलताका एक मजबूत कारण है ।
^^ दूसरा कारण है कि हम अपनें को इतना कमजोर बना रखे हैं कि अपनें पर इतबार कम करते हैं और औरों पर अधिक ।आइये ! अब देखते हैं इन पर आधारित कुछ पहलुओं को :---
1- नया आयाम -पुरानी आँख समीकरण क्या है ?
* वर्तमान ( present ) का अर्थ है नया , जीवंत । वर्तमान में हमारा जीवन है और हमारा मन भूत काल की घटनाओं में समय गुजारता है इस परिस्थिति में हमारा वर्तमान बेहोशी में सरक रहा होता है और जहाँ बेहोशी है वहाँ असफलता तो होगी ही । आपको ताजुब होगा यह जानकर कि हमारी क्रियाएं मन से नियंत्रित हैं और मनका स्वाभाव है भूतकाल की घटनाओं में भ्रमण करते रहना अर्थात वर्तमान से दूर रहना फिर ऐसी परिस्थिति में जो हमसे हो रहा है , उसका परिणाम क्या हो सकता है ?
* मन बिषयों में ऐसे भ्रमण करता है जैसे भौरा फूलों में लेकिन भौरा बाहरी आकर्षण में न उलझ कर सार को चूसता है और मन बाहरी आकर्षण से आगे सार की ओर रुख भी नहीं कर पाता ।भौर सत्य की खोज में कहाँ कहाँ नहीं पहुँचता ; एक फूल पर भी मडराता है और गन्दगी के ढेर पर भी और दोनों जगहों से सार को पकड़ने में सफल होता है और मन ?
* नया आयाम ( New Frame of Action ) :मनुष्यका हर पल उसके लिए नया पल है जो चाहता है नयी सोच पर मनुष्य का मन इस नए कैनवास पर पुरानी तस्बीर बना देता। है और ज्यों ही तस्बीर तैयार होती है , मन में उसके प्रति ऊब आजाती है और वह पुनः चल पड़ता है , नए की तलास पर लेकिन अपनें स्वभाव के कारण हर बार धोखा खाता हैं।
* जिस समय नए आयाम को नयी आँखे देखती है , उस घडी सत्य कहीं दूर नहीं होता , वही आयाम सत्य का आयाम होता है और तब :---
● मन की दौड़ रुक जाती है ....
● मन उस आयाम में रम जाता है ....
● मन गुण उर्जा से बनें पिजड़े से मुक्त हो जाता है ... और :---
स्थिर मन सत्य को ढूढ़ता नहीं ,वह स्वयं प्रज्ञा में रूपांतरित होकर सत्य हो गया होता है ।
और :---
* ऐसे मन वाले को गीता ब्रह्म् वित् कहता है । ~~~ ॐ ~~~

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