Saturday, April 26, 2014

जीवन इसका नाम है

1- कुछ ऐसी जीवन की घटनाएँ होती हैं जो रह -रह कर ह्रदय -मंथन करती रहती हैं ; न उनको चैन है और न हमें चैन से रहनें देती , आखिर उनका मुझसे कुछ तो सम्बन्ध होगा ही ।
2 - शरीर में जब अथाह उर्जाका संचार हो रहा होता है तब बिना सोचे कदम उठते रहते हैं और इस स्थिति में उठा हर कदम आपको मुसीबतोंमें उलझा सकता
है ।
3- जीवनमें बश एक कदम भी अगर सही न पडा तो जीवन का रुख ही बदल सकता है और एक हम हैं जो हर कदम गलत रख रहे हैं ।
4- मनुष्य हो और जी रहे हो पशु जैसा ? आखिर इस जीवन से क्या मिलनें वाला है ? कुछ घडी अपनें मूल जीवन में गुजार कर देखो ,क्या पता वहाँ ज्यादा सकून मिले ।
5- सबको अपना बनाना संभव नहीं और वनाया हुआ अपना दों कौड़ी का होता है । अगर किसी को तुम अपना बना लिया है तो उसे कोई और अपना बना लेगा फिर क्या करोगे ? क्योंकि दूसरों का बनना उसका स्वभाव बन चूका है । वह अपना है और रहेगा जो बिनु बनाए बन गया हो ।
6- जबतक ' मेरा ' शब्द है , ' तेरा ' शब्द भी रहेगा और ज्योंही मेरा की जगह उसका ले लेता है , तेराका स्वतः अंत हो जाता है । तेरा और मेरा दोनों उसका सागर में विलीन हो जाते हैं ।
7- कठपुतलियों का खेल देखे हो ? वे आपस में प्यार करते हैं और लड़ते भी हैं लेकिन वे स्वयं कुछ नहीं कर सकते , उनका ओपरेटर कोई और बाहर होता है । हम सब भी कठपुतलियाँ हैं और हम सबका ओपरेटर हम सब के अन्दर ही बैठा है ,मात्र उनमें और हम में इतना सा फर्क है ; उनका ओपरेटर दिखता है और हमें अपनें ओपरेटरको देखनें केलिए ध्यान से गुजरना पड़ता है ।
8- पप्पू कब पापा बन गए , पता न चला और पापा कब दादा बन गए यह भी सोचनें का बिषय है और इसके आगे दादा जी कब और कैसे अपनें से पराये हो गए ,यह भी समझनें की बात है ।है एक पर समयांतर में वह बदलता रहा या देखनें वाला बदलता रहा ,इस पर आप सोचें !
9- वह कौन इंसान है जो प्रभु की ओर पीठ किये जी रहा है ? शायद कोई नहीं है ; ऐसा इन्सान पाना कठिन है जिसके अन्दर प्रभु की सोच न हो ।
10- जीवन का केंद्र दो हो नहीं सकते , इंसान एक केंद्र पर टिकता नहीं और यही कारण है की मनुष्य सम्राट होते हुए भी हसते -हसते रो पड़ता है ।
~~~ रे मन कहीं और चल ~~~

No comments: