Thursday, September 1, 2022
पतंजलि योग साधना के 05 चरण
पतंजलि योग साधना के 05 चरण जो कैवल्य के मार्ग हैं 👇
ऊपर व्यक्त 05 पतंजलि योग सिद्धि के चरणों में उनके आपसी संबंधों को समझ लेना चाहिए ।
जब आसन - सिद्धि मिल जाती है तब उस आसन का प्रयोग आगे के चरणों की सिद्धियों में भी प्रयोग करना होता है । आसन सिद्धि उसे कहते हैं जब योगी पूरे दिन एक ही देह मुद्रा में बैठे - बैठे समयातीत की स्थिति में पहुंच जाता है अर्थात उसे लंबे समय बीत जाने का पता तक नहीं लग पाता ।
आसन सिद्धि में प्राणायाम की साधना प्रारंभ होती है । श्वास - प्रश्वास का द्रष्टा बन कर दोनों श्वासों को देखते रहने का अभ्यास जब गहरा जाता है तब दोनों श्वासें स्वतः रूक जाती हैं जिसे प्राणायाम (प्राण + आयाम ) कहते हैं ।
जब प्राणायाम - अभ्यास सिद्ध हो जाता है तब धारणा का द्वार खुल जाता है । आसन - अभ्यास में स्थूल देह आलंबन था , प्राणायाम में श्वास - प्रश्वास आलंबन थे और अब धारणा में कोई सात्त्विक आलंबन पर चित्त को एकाग्र करना होता है । महर्षि पतंजलि धारणा को परिभाषित करते हुए कहते हैं , किसी सात्त्विक आलंबन पर चित्त का टिक जाना , धारणा है । जब धारणा सिद्ध होती है तब ध्यान का द्वार स्वतः खुल जाता है । धारणा की अखंडित देर तक बने रहना , ध्यान है । ध्यान सिद्धि से सम्प्रज्ञात समाधि में प्रवेश मिलता है । साकार समाधि को सम्प्रज्ञात समाधि कहते हैं ।
धारणा , ध्यान और साकार समाधि का एक आसन में स्थित रहते हुए एक साथ जब सिद्ध होते हैं तब उसे संयम कहते हैं । संयम से सिद्धियाँ मिलती हैं जो पतंजलि योग साधना के अवरोध हैं । जो सिद्धियों से विचलित नहीं होते , वे सम्प्रज्ञात समाधि से असम्प्रज्ञात समाधि , असम्प्रज्ञात समाधि से धर्ममेघ समाधि और धर्ममेघ समाधि से कैवल्य की यात्रा करते हैं जहां पुरुषार्थ शून्य हो जाता है , तीन गुण प्रतिप्रसव अवस्था में होते हैं और इस स्थिति में यदि शरीर छूट जाए तो वह योगी आवागमन से मुक्त हो जाता है जिसे मोक्ष कहते हैं । आगे चल जरं साधना के इन 05 चरणों को देखा जा सकेगा ।
।। ॐ ।।
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