सांख्य दर्शन और पतंजलि योग दर्शन में
प्रकृति - पुरुष ⬇️
यहां प्रकृति - पुरुष संबंधित सांख्य दर्शन की 14 कारिकाओं और पतंजलि योग दर्शन के 18 सूत्रों के सार को दिया जा रहा है।
द्वैत्यबादी सांख्य दर्शन और उस पर आधारित पतंजलि योग दर्शन में सृष्टि रचना सिद्धांत पुरुष और तीन गुणों की साम्यावस्था वाली मूल प्रकृति के संयोग के फल रूप में व्यक्त की गई है । मूल प्रकृति कारण है , इसके कार्य 23 तत्त्व हैं ( बुद्धि , अहँकार , 11 इन्द्रियाँ , 5 तन्मात्र और 5 महाभूत ) लेकिन पुरुष न कारण है और न ही कार्य जबकि इसकी ऊर्जा से मूल प्रकृति विकृत होती है ।
पुरुष और प्रकृति दो सनातन क्रमशः चेतन एवं अचेतन
(जड़ ) तत्त्व हैं । पुरुष ऊर्जा के प्रभाव में तीन गुणों की साम्यावस्था वाली मूल प्रकृति विकृत हो जाती है और फलस्वरूप 23 तत्त्व उत्पन्न होते हैं । इन 23 तत्त्वों में 7 कारण - कार्य हैं और 16 तत्त्व केवल कार्य हैं। पुरुष प्रकृति संयोग से उत्पन्न 23 तत्त्वों से 14 प्रकार की सृष्टियां उत्पन्न हुई हैं । प्रकृति विकृत का अर्थ है - इसके तीन गुणों का सक्रिय हो जाना ; इन तीनों गुणों में हर पल बदलाव होता रहता है ।
सांख्य सृष्टि रचना सिद्धांत को श्रीमद्भागवत पुराण में ब्रह्म , मैत्रेय ,कपिल और प्रभु श्री कृष्ण के द्वारा भी व्यक्त किया गया है , लेकिन भागवत में दिए गए सृष्टि सिद्धांत सांख्य दर्शन के सिद्धांत से कुछ भिन्न हैं ।
अब सांख्य दर्शन और पतंजलि योग दर्शन में प्रकृति - पुरुष को समझते हैं ⬇️
प्रकृति और पुरुष संबंधित
14 सांख्य कारिकायें और 18 पतंजलि योग सूत्र
क्र. सं. | सांख्य कारिकायें | पतंजलि योग सूत्र |
1 | 3 | समाधिपाद सूत्र 3,4,16,19 |
2 | 7 , 8 | साधनपाद सूत्र 6,17 - 21, 23 |
3 | 10 , 11 | विभूतिपाद सूत्र > 55 |
4 | 14 - 22 ( 09 कारिकाएँ ) | कैवल्यपाद सूत्र 14,18 - 20, 22-23 |
योग | 14 | 18 |
भाग - 01
प्रकृति - पुरुष संबंधित 04 सांख्य कारिकाओं
और 05 पतंजलियोग सूत्रों के सार ⤵️
सांख्य कारिकाओं के सार ⬇️ | पतंजलि योग सूत्रों के सार ⬇️ |
कारिका : 3 , 7, 8 ,10 ◆ पुरुष प्रकाश से विकृत हुई प्रकृति से ◆ 7 कार्य - कारण (बुद्धि , अहँकार , 5 तन्मात्र ) और ◆16 कारणों ( 11 इन्द्रियाँ , 5 महाभूत ) की उत्पात्ति है ◆ प्रकृति - पुरुष अति सूक्ष्म तत्त्व हैं ◆ तीन गुणोंकी साम्यावस्था को मूल प्रकृति एवं अव्यक्त भी कहते हैं और इसके 23 कार्यों को व्यक्त कहते हैं | समाधिपाद सूत्र 3 ,4 ,16 ,17,19 ■ योग से बिषयाकार पुरुष अपने मूल स्वरूप में आ जाता है। ■ वैराग्य से चित्ताकार पुरुष अपनें मूल स्वरूप को प्राप्त करता है । ■ वितर्क , विचार , आनंद और अस्मिता इन 4 प्रकार की संप्रज्ञात समाधियों में से पहले तीन की सिद्धि वाला योगी प्रकृति लय और अस्मिता सिद्धि वाला विदेह लय योगी होता है |
भाग - 02
प्रकृति -पुरुष संबंधित 10 कारिकाओं और 07 पतांजलि योग सूत्रों के सार ⤵️
सांख्य कारिकाओं के सार ⬇️ | पतंजलि योग सूत्रों के सार ⬇️ |
कारिका : 11,14 - 22 ◆ प्रकृति त्रिगुणी ,अविवेकी , उपभोग करने योग्य, सामान्य , अचेतन और प्रसव धर्मी है । पुरुष इसके विपरीत है । ◆ व्यक्त - अव्यक्त ( मूल प्रकृति और उसके 23 कार्य ) अविवेकी गुणों से युक्त हैं। अव्यक्तके बिना व्यक्त का होना संभव नहीं । पुरुष भोक्ता , अनेक , साक्षी और अकर्ता है । पुरुष प्रकृति दर्शनार्थ और प्रकृति पुरुष कैवल्यार्थ एक दूसरे से जुड़ते हैं । पुरुष पंगु जैसा और प्रकृति अंधे की तरह है । पुरुष प्रकृति को उसके कन्धे पर बैठ कर मार्ग दिखाता है । | साधनपाद सूत्र : 6 , 17- 21,23 ■ द्रष्टा पुरुष का स्वयं को चित्त समझना अस्मिता है ◆ प्रकृति - पुरुष संयोग दुःख की जननी है ■ 11 इन्द्रियाँ और 5 महाभूत विशेष कहलाते हैं और 5 तन्मात्र अविशेष ◆ पुरुष चित्त माध्यम से देखता और समझता है ◆ कृतार्थ प्रकृति - पुरुष का बोधी होता है ◆ तीन गुण , 11 इन्द्रियाँ , भोग और अपवर्ग अर्थ (मोक्ष ) पुरुष स्वरूप के अंग हैं # प्रकृति - पुरुष संयोग भोग - कैवल्य दोनों का हेतु हैं |
भाग - 03
प्रकृति -पुरुष संबंधित कारिकाओं और पतांजलि योग सूत्रों के सार ⤵️
सांख्य कारिकाओं के भावार्थ | पतंजलि योग सूत्रों के भावार्थ |
कारिका : 3 , 7, 8 , 10 , 11 और 14 - 22
^ ऊपर व्यक्त सभीं कारिकाओं के भावार्थ भाग : 1 और भाग : 2 में दिए जा चुके हैं | विभूतिपाद सूत्र :55
प्रकृति - पुरूष भिन्न - भिन्न हैं लेकिन अविद्या के कारण एक दूसरे से मिले हुए से भाषते हैं ।
कैवल्य पाद सूत्र : 14 18 - 20 , 22 , 23 प्रकृति के कार्य त्रिगुणी हैं । चित्त वृत्तियों का स्वामी पुरुष अपरिवर्तनीय है । अज्ञानी चित्त , ज्ञानी पुरुष माध्यम से विषय धारण करता है । ● पुरुष स्वभावतः चेतन और निष्क्रिय है । ● चित्त , प्रकृति - पुरुष संयोग भूमि है । |
प्रकृति - पुरुष संबंधित 14 सांख्ययोग की कारिकाओं और 18 पतंजलि योग दर्शन के सूत्रों का सार ⤵️
3,7,8,10,11,14 - 22 14 कारिकाओं का सार
⬇️
| स.3,4,16,19 ,सा.6,17-21,23 वि. 55 , कै. 14,18-20,22,23 स>समाधिपाद , सा>साधनपाद वि>विभूतिपाद, कै>कैवल्यपाद 18 पतंजलि योग सूत्रों का सार ⬇️ |
प्रकृति त्रिगुणी , अचेतन ,जड़ निष्क्रिय , उपयोग करने योग्य और प्रसवधर्मी है । तीन गुणों की साम्यावस्था को मूल प्रकृति कहते हैं जो पुरुष ऊर्जा के कारण विकृत होती है। पुरुष प्रकृति के विपरित है । प मूल प्रकृति के विकृत होने से 7 कारण - कार्य और 16 कार्य तत्त्व उत्पन्न होते हैं । इन 23 तत्त्वों से 14 प्रकार की सृष्टियां उत्पन्न हुई हैं । मूल प्रकृति को अव्यक्त और इसके 23 तत्त्वों को व्यक्त कहते हैं । 23 तत्त्वों में बुद्धि , अहंकार और 5 तन्मात्र कारण - कार्य हैं और 11 इंद्रियां तथा 5 महाभुत कार्य हैं । प्रकृति - पुरुष सूक्ष्म और सनातन एवं स्वतंत्र तत्त्व हैं । पुरुष भोक्ता , अनेक , साक्षी और अकर्ता है । पुरुष प्रकृति दर्शनार्थ और प्रकृति पुरुष कैवल्यार्थ एक दूसरे से जुड़ते हैं । पुरुष पंगु जैसा और प्रकृति अंधे की तरह है । पंगु पुरुष अंधी प्रकृति के कन्धे पर बैठ कर उसे मार्ग दिखाता है । प्रकृति -पुरुष को एक।दूसरे से अलग करना संभव नहीं । तत्त्व ज्ञान सिद्ध योगी दोनों को अलग -अलग देखता है | # योग सिद्धि एवं वैराग्य से बिषयाकार पुरुष अपने मूल स्वरूप में आ जाता है । ■ वितर्क , विचार , आनंद और अस्मिता - 4 संप्रज्ञात समाधियों में से पहले तीन की सिद्धि वाला योगी प्रकृति लय और अस्मिता सिद्धि वाला विदेह लय योगी होता है। द्रष्टा पुरुष का स्वयं को चित्त समझना अस्मिता है।◆ प्रकृति - पुरुष संयोग दुःख की जननी है । 11 इन्द्रियाँ और 5 महाभूत विशेष कहलाते हैं और 5 तन्मात्र अविशेष । पुरुष चित्त माध्यम से देखता और समझता है ।◆ कृतार्थ प्रकृति - पुरुष का बोधी होता है । तीन गुण , 11 इन्द्रियाँ , भोग और अपवर्ग अर्थ (मोक्ष ) पुरुष स्वरूप के अंग हैं। प्रकृति - पुरुष संयोग से भोग - कैवल्य दोनों मिलते हैं । प्रकृति - पुरूष भिन्न - भिन्न हैं लेकिन अविद्या के कारण एक दूसरे से मिले हुए से भाषते हैं । प्रकृति के कार्य त्रिगुणी हैं । चित्त वृत्तियों का स्वामी पुरुष अपरिवर्तनीय है । अज्ञानी चित्त , ज्ञानी पुरुष माध्यम से विषय धारण करता है।● पुरुष स्वभावतः चेतन और निष्क्रिय है । ● चित्त प्रकृति - पुरुष की संयोग भूमि है । |
~~ ॐ ~~
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