सूत्र : 18 , 19 , 20 चित्त और पुरुष संबंध
कैवल्य पाद सूत्र 18 , 19 और 20 का सार
त्रिगुणी जड़ प्रकृति और निर्गुण शुद्ध चेतन पुरुष के संयोग से प्रसवधर्मी जड़ प्रकृति विकृत होती है जिसके फलस्वरूप बुद्धि की उत्पत्ति होती है । बुद्धि से अहंकार , अहंकार से 11 इंद्रियों एवं 5 तन्मात्रो की निष्पति होती है और तन्मात्रों से उनके अपनें - अपनें महाभूतों की उत्पत्ति होती है ।
ऊपर व्यक्त प्रकृति से उत्पन्न 23 तत्त्वों में प्रथम तीन को अंतःकरण या चित्त कहते हैं । इस प्रकार त्रिगुणी , प्रसवधर्मी एवं जड़ प्रकृति के 23 तत्त्व भी त्रिगुणी एवं जड़ होते हैं और जड़, अग्यानी होते हैं जिन्हें स्वयं का भी पता नहीं होता , जबकि पुरुष शुद्ध चेतन है।
# चित्त बिना पुरुष ऊर्जा , निष्क्रिय है लेकिन पुरुष ऊर्जा के प्रभाव में ,विषय धारण करता है ।
# चित्त एक समय में एक से अधिक विषयों पर चिंतन नहीं कर सकता ।
अब सूत्रों को देखते हैं ….
पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र : 18
सदा ज्ञाताश्चित्तयस्तत्प्रभो: पुरुषस्यपरिणामित्वात्
# चित्त परिणामी ( परिवर्तनीय ) होता है ।
# पुरुष अपरिणामी ( अपरिवर्तनीय ) होता है ।
# चित्त वृत्तियों का स्वामी , पुरुष है ।
# पुरुष को सदैव चित्त वृत्तियों का ज्ञान रहता है ।
पतंजलि कैवल्यपाद सूत्र - 19
न तत् स्वाभासम् दृष्यत्वात्
# चित्त न स्वयं को जानता है और न दूसरों को ।
पतंजलि कैवल्यपाद सूत्र - 20
एकसमये च उभयानवधारणम्
# एक समय में चित्त एक विषय को ही पकड़ता है ।
~~ ॐ ~~
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