पतंजलि विभूति पाद सूत्र : 1
अष्टांगयोग का छठवां अंग धारणा
देश बंधश्चित्तस्य धारणा
" देश (आलंबन ) से चित्तका बधे रहना , धारणा है "
सूत्र - भावार्थ में उतरने से पहले अष्टांग योग के पिछले 05 अंगों के सार तत्त्व को एक बार पुनः देख लेते हैं । ऐसा करने से धारणा को समझना सरल हो जायेगा । धारणा के बाद अगला सातवां अंग ध्यान है और आखिरी आठवां अंग संप्रज्ञात समाधि है । धारणा , ध्यान और संप्रज्ञात समाधि क्रमशः एक दूसरे के बाद घटित होते हैं । प्रत्याहार की सिद्धि के साथ धारणा में प्रवेश मिलता है , यहां देखे साधनपाद सूत्र - 53 । प्रत्याहार की सिद्धि के लिए इसके पहले के अंग प्राणायाम की सिद्धिभप्राप्त करना पड़ता है। साधनपाद सूत्र 49 - 55 में प्राणायाम एवं प्रत्याहार के संबंध में बताया जा चुका है । प्राणायाम में इसके अंग पूरक , रेचक, और कुंभक ( भयंतर एवं बाह्य कुंभक ) की सिद्धि से अज्ञान का नष्ट होना , ज्ञान की किरण का फूटना तथा वैराग्य भाव का जागृत होना एक साथ घटित होते हैं । जब प्राणायाम की सिद्धि मिल जाती है तब इंद्रियों का रुख विषय की ओर से चित्त की ओर हो जाता है और धारणा में प्रवेश करने की योग्यता मिल जाती है , जैसा ऊपर साधनपाद सूत्र -53 में पहले बताया जा चुका है । प्रत्याहार सिद्धि अवस्था में चित्त में राजस एवं तामस गुणों की वृत्तियों का आवागमन रुक जाता है और राजस - तामस गुण मुक्त चित्त में केवल सात्त्विक गुण की वृत्तियों का आवागमन बना रहता है ।
चित्त में सात्त्विक गुण की वृत्तियों का जब आवागमन प्रारंभ हो जाय तब उन वृत्तियों में से किसी एक के साथ चित्त को बांधने के अभ्यास को धारणा अभ्यास कहते हैं ।
धारणा का अभ्यास जब गहरा जाता है तब चित्त अष्टांग योग के सातवे अंग ध्यान में रहने लग जाता है । इसी तरह ध्यान की गहराई में चित्त स्वतः संप्रज्ञात समाधि में उतर जाता है ।
राजस एवं तामस गुणों की वृत्तियों से चित्त को मुक्त करने में यम , नियम , आसन , प्राणायाम एवं प्रत्याहार की साधनाओं की सिद्धि पाना आवश्यक होता है । जब इन 05 तत्त्वों की सिद्धि मिल जाती है तब चित्त सात्त्विक गुण केंद्रित रहते हुए धारणा में धारणा से आगे की योग - यात्रा करता है ।
।।। ॐ ।।।
No comments:
Post a Comment