Friday, March 28, 2025

पतंजलि अष्टांगयोग का आठवां अंग समाधि


पतंजलि अष्टांग योगका 

आठवां अंग समाधि 

पतंजलि योग सूत्र दर्शन में अष्टांगयोग का आठवां अंग समाधि है और तीन प्रकार की समाधियों ( संप्रज्ञात , असंप्रज्ञात और धर्ममेघ ) की भी चर्चा की गई है । इन टी8न प्रकार की समाधियों में संप्रज्ञात समाधि आलंबन आधारित समाधि  है जिसे सविकल्प समाधि या सालंबन समाधि या साकार समाधि भी कहते हैं । दूसरी समाधि असंप्रज्ञात समाधि है जिसे निर्विकल्प समाधि या निराकार समाधि भी कहते हैं। वितर्क , विचार , आनंद और अस्मिता , ये चार चरण संप्रज्ञात समाधि के हैं , दूसरे शब्दों में संप्रज्ञात समाधि की अनुभूति इन चार चरणों में होती है। यहां ध्यान रखना होगा कि अष्टांगयोग की समाधि संप्रज्ञात समाधि है , जिसकी अनुभूति किसी सात्त्विक आलंबन के माध्यम से होती है । धर्ममेघ समाधि कैवल्य का द्वार खोलती है । अब अष्टांगयोग की समाधि की परिभाषा को देखते हैं …

तत् एव अर्थ मात्र निर्भासं स्वरुप शून्यम् इव समाधि 

 ( पतंजलि योग दर्शन विभूतिपाद सूत्र  - 3 )

अब सूत्र शब्दार्थ को देखते हैं …

तदेव > तत् एव > ध्यान की सिद्धि में स्थित योगी …

अर्थमात्र > नाम मात्र अर्थात अति सूक्ष्म रूप में ….

निर्भाषम् > प्रकाशित होता रहता है …..

स्वरूप > ध्यान आरूढ़ योगी का स्थूल स्वरूप ( देह ) 

शून्यम् > शून्य …

इव > इसे…..

समाधि > अष्टांगयोग की समाधि कहते हैं 

अब ऊपर दिए गए शब्दार्थ के आधार पर सूत्र भावार्थ को समझते हैं …..

“ ध्यान में डूबे योगी के लिए जैसे - जैसे ध्यान की गहराई बढ़ती जाती है ध्यान आलंबन वैसे - वैसे सूक्ष्म होता चला जाता और इसके साथ - साथ योगी का स्थूल शरीर शून्य होता चला जाता है । जब ध्यान में योगी का स्वरूप शून्य हो जाता है उस अवस्था में उसके लिए ध्यान आलंबन सुक्ष्म होते - होते एक प्रकाश कण के रूप में प्रकाशित होता हुआ भासने लगता है । जब ऐसी स्थिति आती है तब वह योगी अष्टांगयोग समाधि में स्थित होता है “ ।

इस सूत्र भावार्थ को ठीक से समझने के लिए  निम्न बातों को भी ठीक - ठीक समझ होगा ….

1- धारणा , ध्यान और समाधि , अष्टांगयोग के आखिरी तीन अंग हैं जिन्हें अंतरंग कहते हैं और प्रारंभिक पांच अंगों -  यम , नियम ,आसन ,प्राणायाम और प्रत्याहार को बाह्य अंग कहते हैं ।

2- अष्टांगयोग साधना आलंबन आधारित साधना है । यम साधना में अहिंसा , सत्य , अस्तेय , ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह आलंबन होते हैं । नियम साधना में शौच , संतोष , तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान आलंबन होते हैं । आसन में समग्र स्थूल शरीर आलंबन होता है। प्राणायाम में श्वास , प्रश्वास एवं श्वास की अनुपस्थिति आलंबन होता है और प्रत्याहार में इंद्रिय विषय आलंबन होते हैं । 

धारणा , ध्यान और समाधि अर्थात अष्टांगयोग के अंतरंगों की साधना में योगी को साधना प्रारंभ करने से पूर्व किसी एक सात्त्विक आलंबन का चयन करना पड़ता है जो कोई स्थूल या सूक्ष्म आलम्बनों में से कोई  एक हो सकता है । 

3- अष्टांगयोग के अंतरंगों की साधना अभ्यास में धारणा सिद्धि के बाद योगी ध्यान में स्वतः पहुंच जाता है और ध्यान सिद्धि के बाद वह समाधि में प्रवेश करता है। समाधि की सिद्धि जब मिल जाती है तब एक आसान में आसीन रहते हुए योगी के अंदर धारणा , ध्यान एवं समाधि की सिद्धियां एक साथ घटित होने लगती है जिसे संयम कहते हैं। संयम सिद्धि का निरंतर अभ्यास करते रहने से योगी चाहे तो पतंजलि योगसूत्र में वर्णित 45 प्रकार की सिद्धियों में से कुछ सिद्धियों की प्राप्ति कर सकता है जैसा पतंजलि विभूति पाद 

सूत्र  : 16  - 49 में स्पष्ट किया गया है ।

पतंजलि आगे कहते हैं - इन सिद्धियों से आकर्षित योगी की आगे की योग यात्रा रुक जाती है और उसकी साधना का रुख आगे की ओर न हो कर पीछे की ओर हो जाता है और ऐश्वर्य के सम्मोहन में यह पतित होता चला जाता है । जो योगी कैवल्य के जिज्ञासु होते हैं वे सिद्धियों से अप्रभावित रहते हुए अपनी संयम सिद्धि साधना को आगे बढ़ाते हुए कैवल्य तक की यात्रा करने में सफल होते हैं ।

4- आलंबन के तीन तत्त्व होते हैं ; शब्द , अर्थ और ज्ञान। आलंबन का स्थूल स्वरूप शब्द कहलाता है जो कोई शब्द , कोई मंत्र या कोई स्थूल मूर्ति आदि हो सकता है और यह ज्ञान इंद्रियों के माध्यम से पकड़ा जाता है । आलंबन का अर्थ सूक्ष्म आलंबन है जो मन से पकड़ा जाता है । इसी तरह आलंबन का ज्ञान अंग  बुद्धि माध्यम से पकड़ा जाता है । 

4- धारणा , ध्यान और समाधि योगाभ्यास में ग्राह्य, ग्रहण और ग्रहीता को भी समझना चाहिए । आलंबन को ग्राह्य कहते हैं । पांच ज्ञान इंद्रियों से चित्त केंद्रित पुरुष इंद्रिय विषय से जुड़ता है अतः पांच ज्ञान इंद्रियों को ग्रहण कहते हैं और चित्त स्वरूपाकार पुरुष को ग्रहीता कहते हैं जो ज्ञान इंद्रियों के माध्यम से ग्राह्य से जुड़ा होता हैं।

5- अब पुनः अष्टांगयोग समाधि की परिभाषा पर लौटते हैं … ,

जब ध्यान साधना में डूबे योगी का स्वरूप शून्य हो जाता है और ध्यान आलंबन सूक्ष्म होते - होते केवल एक प्रकाश कण के रूप में प्रकाशित होता हुआ आभासित हो रहा होता है तब वह योगी समाधिस्थ होता है । 

यहां समझना होगा कि जब योगी का स्वरूप शून्य हो गया है तब प्रकाश कण के रूप में आलंबन के होने की अनुभूति करनेवाला कौन होता है ! जितने भी भाष्यकार हैं , सभी इस विषय पर चुप हैं लेकिन यह एक बुनियादी विषय अवश्य है । इस विषय की स्पष्टता के लिए सांख्य दर्शन में झांकना होगा । सांख्य दर्शन पतंजलि योग दर्शन का तत्त्व मीमांसा  है जो मैं कौन हूं ? का उत्तर देता है जो कुछ निम्न प्रकार है …

 त्रिगुणी , प्रसवधर्मी , सनातन जड़ प्रकृति एवं निर्गुणी , सनातन  शुद्ध चेतन पुरुष के संयोग से हमारा अस्तित्व है। प्रकृति के 23 त्रिगुणी एवं जड़ तत्त्व ( बुद्धि , अहंकार , 11 इंद्रियां , 05 तन्मात्र एवं 05 महाभूत ) चित्त स्वरूकापार पुरुष को उसके अपनें मूल स्वरूप में लौट आने में मदद करने के हेतु हैं । जब पुरुष अपनें मूल स्वरूप में लौट आता है तब प्रकृति के 23 तत्त्व अपने - अपनें कारणों में लीन हो जाते हैं और अंततः विकृत हुई प्रकृति भी ज्ञान प्राप्ति से 07 प्रकार के बंधनों ( धर्म , अधर्म , राग , वैराग्य , 

ऐश्वर्य - अनैश्वर्य एवं अज्ञान ) से मुक्त हो कर अपने मूल स्वरूप में लौट आती है जो निष्क्रिय तीन गुणों की साम्यावस्था होती है । पुरुष का अपने मूल स्वरूप ने लौटना ही कैवल्य है । 

अष्टांगयोग समाधि की परिभाषा में कहा गया है कि योगी का स्वरूप शून्य हो जाता है अर्थात योगी प्रकृति और पुरुष दो तत्त्वों से है जिनमें उसका स्थूल देह प्रकृति है और देही शुद्ध चेतन पुरुष है । समाधि अवस्था में प्रकृति के ऊपर बताए गए 23 जड़ एवं त्रिगुणी तत्त्व शून्य हो जाते हैं और समाधि की अनुभूति पुरुष को होती है। 

इस संदर्भ में समाधि पाद सूत्र - 19 को देखें ⤵️

भव प्रत्ययो विदेहप्रकृतिलयानाम्

ऐसा योगी जिसे वितर्क , विचार और आनंद माध्यमों से संप्रज्ञात समाधि की अनुभूति हुई होती है उसे प्रकृतिलय योगी कहते हैं और यही स्वरूप शून्य की अवस्था होती है जिसे ऊपर विभूतिपाद सूत्र - 3 के माध्यम से अष्टांगयोग की समाधि की परिभाषा में कहा गया है । इसी तरह जब अस्मिता का लय योगी की विदेहलय योगी बना देता है । इस संदर्भ में पतंजलि योगसूत्र समाधिपाद सूत्र - 17 को देखे जो निम्न प्रकट है …

अर्थात संप्रज्ञात समाधि की अनुभूति चार चरणों में घटित होती है और वे चरण है - वितर्क , विचार , आनंद और अस्मिता । 

🌹 आज पतंजलियोग सूत्र दर्शन के अष्टांगयोग साधना के आठवें अंग , समाधि के साथ अष्टांगयोग की साधना पूरी होती हैं 🌹

।।। O ।।। 

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