Wednesday, February 9, 2011

ज़रा सुननें का अभ्यास तो करें -----

सुननें से देखनें की ज्योति बढती है

बात तो कुछ टेढ़ी सी दिखती है और आप सोचेंगे की , यह कौन सा विज्ञान है और .....
सुननें - देखनें में क्या सम्बन्ध हो सकता है ?
हमें विज्ञान की राय क्या है यह तो पता नहीं ,
लेकीन मुझे इस बात का जरुर अनुभव है की .....
पांच ज्ञानेन्द्रियों का आपस में गहरा सम्बन्ध है
और ------
जब एक ज्ञानेन्द्रिय कमजोर पड़ती है तो कोई और
उसी अनुपात में और अधिक कार्य कुशलता बढ़ा देती है ॥
आप कभी किसी ऐसे ब्यक्ति के संपर्क में आना जो जन्म से अंधा हो ,
आप देखेंगे की उसकी स्पर्श करके पहचाननें की अद्भुत क्षमता होती है
या ....
उसकी सूंघनें की क्षमता अत्याधीक तेज होती है ।
एक और बात -----
आप कभी आँख बंद करके बैठना , जैसे ध्यान में बैठते हैं .......
आप पायेंगे की आप का मन अति तीब्र गति से भाग रहा होगा , ऐसा क्यों होता है ?
बहुत ही आसान बात है , आप यदि कोई गाड़ी चला रहे हो तो ध्यान देना .....
एक गियर हो -----
एक्सीलरेटर की एक ही सेटिंग हो .....
और गाड़ी में यदि पचास लोग हो .....
तब गाड़ी जिस स्पीड से चल रही होती है तब
और .....
जब सवारियों की संख्या बीस हो जाए तब .....
उसकी स्पीड एक दम बढ़ जाती है , अर्थात .....
लोड गाड़ी के स्पीड को प्रभावित करता है ,
सक्रीय ज्ञानेन्द्रियाँ मन पर लोड का काम करती हैं , जब लोड कम है
तब सोचनें की चाल बढ़ जाती है और जब लोड बढ़ता है तब , सोच कमजोर पड़ती जाती है ।
सुननें वाला कभी सोच नहीं सकता और ....
सोचेनें वाला कभी सोच नहीं सकता ।
श्रोतापंन से प्रभु को पाना अति आसान है
और ...
संदेह को आधार बना कर जो चलते हैं वे जितना चलते हैं प्रभु भी उतना और दूर हो जाता है ।
बुद्धि मार्ग से बहुत कम लोग परम की यात्रा कर पाते हैं लेकीन ...
ऐसे लोगों की संख्या बहुत अधिक है जो सुन - सुन कर परम ग्यानी हुए हैं ॥

===== ॐ ======

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