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सूक्ष्म शरीर का अलग - अलग देह धारण करना
कारिका - 42
💐 जैसे नट अलग - अलग कपड़े धारण कर कभीं राजा तो कभीं विदूषक इत्यादि बनता रहता है , उसी तरह सूक्ष्म शरीर भी मोक्ष हेतु निमित्त तथा नैमित्तिक (धर्म आदि तथा उर्धगमन आदि ) ,के प्रसंग से प्रकृति का विभु ( प्रकाशित करनेवाला , स्वामी ) होने के कारण अलग - अलग शरीर धारण करके अलग - अलग बनता रहता है ।
सार : लिङ्ग शरीर प्रकृति को प्रकाशित करता है । यह मोक्ष प्राप्ति हेतु अलग - अलग शरीर धारण करता रहता है । कारिका : 21 में बताया गया है , " पुरुष , प्रकृति दर्शनार्थ और प्रकृति पुरुष को कैवल्यार्थ एक दूसरे से जुड़ते हैं । "
सांख्य दर्शन में लिङ्ग शरीर
1- लिङ्ग शरीर नित्य और सनातन है जबकि माता - पिता से मिला स्थूल शरीर अनित्य है । सूक्ष्म शरीर , माता - पितासे मिला शरीर और प्रभूत ( सुख , दुःख और मोह ) , ये 03 प्रकारके विशेष हैं
( कारिका - 39 )
2 - महत् , अहंकार , 11 इन्द्रियाँ तथा 05 तन्मात्र लिङ्ग शरीर के अंग हैं । सुक्ष्म शरीर और लिंग शरीर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं।
3 - लिङ्ग शरीर निर्मल , सनातन और नित्य है ( कारिका - 40 ) ।
4 - बिना पञ्च भूत आश्रय लिङ्ग शरीर स्थिर नहीं रहता ।
5 - लिङ्ग शरीर पुरुष मोक्ष प्राप्ति हेतु अलग - अलग शरीर धारण करता रहता है।
6 - लिङ्ग शरीर प्रकृति का स्वामी है ।
( कारिका : 41 - 42 )
7 - लिङ्ग शरीर के माध्यम से आवागमन है ।
8 - लिङ्ग शरीर 08 भावों से अधिवासित ( सुगन्धित ) रहता है ।
08 भाव क्या हैं ?
देखें कारिका : 44 - 45 ) 👇
1 - धर्म 2 - अधर्म 3 - ज्ञान 4 - अज्ञान
5 - वैराग्य 6 - राग 7 - ऐश्वर्य 8 - अनैश्वर्य
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