पतंजलि योग दर्शन में …..
सात्त्विक आलंबन पर एकाग्रता सिद्धि से 14 प्रकार की योग साधना की बाधाओं से मुक्ति मिलती है , कैसे ? देखें यहां ⤵️
समाधि पाद सूत्र : 30 - 33
समाधि पाद सूत्र : 32
“ तत् प्रतिशोध अर्थम् एक तत्त्व अभ्यास: “
यहां तत् सूत्र 30 और सूत्र 31 में बताई गई 14 बाधाओं को संबोधित कर रहा है ।
सूत्र - 32 के माध्यम से ऋषि कह रहे हैं , एक तत्त्व अभ्यास से बाधाओं का नाश होता है । एक तत्त्व अर्थात एकाग्रता ।
एकाग्रता क्या है ?
क्षिप्ति , मूढ़ , विक्षिप्त , एकाग्रता और नीरू - चित्त की 05 भूमियों में चौथी भूमि एकाग्रता है ।चित्त की भूमियों को चित्त की अवस्थाएं भी कहते हैं । चित्त माध्यम से चित्ताकार पुरुष की यात्रा भोग से वैराग्य , वैराग्य में समाधि और समाधि से कैवल्य की है । पुरुष की इस यात्रा में चित्त की भूमियों की प्रमुख भूमिका होती है अतः इन्हें ठीक से समझना होगा ।
1- क्षिप्ति : चित्त की यह भूमि योगमें एक बड़ी रुकावट
है । विचारों का तीव्र गति से बदलते रहना , चित्त की क्षिप्त अवस्था होती है । यह अवस्था तामस गुण प्रधान होती है शेष दो गुण दबे हुए रहते हैं ।
2 - मूढ़ : मूर्छा या नशा जैसी अवस्था मूढ़ अवस्था होती है । यह अवस्था राजस गुण प्रधान अवस्था होती है जिसमें ज्ञान - अज्ञान , धर्म - अधर्म , वैराग्य - राग और ऐश्वर्य - अनैश्वर्य जैसे 08 भावों से चित्त बधा रहता है । आसक्ति , काम , कामना , क्रोध , लोभ , भय आदि जैसी रस्सियों से चित्त जकड़ा हुआ होता है ।
3 - विक्षिप्त : इस भूमि में चित्त सतोगुण में होता है पर रजो गुण भी कभीं - कभीं सतोगुण को दबाने की कोशिश करता रहता है। इस प्रकार रजोगुण के प्रभाव से उत्पन्न होने वाली चित्त की चंचलता अवरोध उत्पन्न करती रहती है लेकिन इस अवस्था में भी कभीं - कभीं सम्प्रज्ञात समाधि लग जाया करती है ।
4 - एकाग्रता : एकाग्रता भूमि में चित्त में निर्मल सतगुण की ऊर्जा बह रही होती है । किसी एक सात्त्विक आलंबन पर चित्त का समय से अप्रभावित रहते हुए स्थिर रहना , एकाग्रता है । एकाग्रता में चित्त तो एक सात्त्विक आलंबन पर टिक तो जाता है पर चित्त में उस आलंबन से सम्बंधित नाना प्रकार की वृत्तियाँ बनती रहती हैं और बन - बन कर समाप्त भी होती रहती हैं अर्थात विभिन्न प्रकार की सात्त्विक वृत्तियों का आना - जाना होता रहता है।
5 - निरु : एकाग्रता का गहरा रूप निरु है जो समाधि का द्वार है । जब सम्प्रज्ञात समाधि के बाद असम्प्रज्ञात समाधि मिलती है तब चित्त निरु भूमि में होता है । सम्प्रज्ञात समाधि आलंबन आधारित होती है और असम्प्रज्ञात समाधि आलंबन मुक्त समाधि होती है । असम्प्रज्ञात समाधि को ही निर्विकल्प या निर्बीज समाधि भी कहते हैं ।
समाधिपाद सूत्र 33
बाधा मुक्त योगाभ्यास बनाए रखने के लिए निम्न का अभ्यास करते रहना चाहिए ….
1 - सुखी ब्यक्ति से मैत्री रखें …
2 - दुखीके साथ करुणा का भाव रखें ….
3 - पुण्य आत्माओं की संगति करें ( मुदिता ) ।
4 - पापियों से उपेक्षा का भाव रखें ।
अब 14 प्रकार की बाधाओं से परिचय करते हैं ….
समाधिपाद सूत्र : 30 - 31
1 - व्याधि > व्याधि का तात्पर्य है , कष्ट , रोग और असामान्य स्थिति को शारीरिक एवम मानसिक हो सकती है ।
2 - अकर्मण्यता > साधना करने में अरुचि का होना ।
3 - संशय > साधना के प्रति संदेह का बने रहना ।
4 - प्रमाद > प्रमाद मानसिक रोग है जिसमें मन - बुद्धि का संतुलन बिगड़ जाता है और इस कारण जो होता है उसमें मद की ऊर्जा होती है । बुद्ध प्रमाद को बड़ी बाधा मानते हैं ।
5 - आलस्य > आलस्य तामस गुण का तत्त्व है जिससे नकारात्मक ऊर्जा मिलती है और जो हो रहा होता है , वह पूरा नहीं हो पाता या उसकी गुणवत्ता थीक नहीं होती ।
व्याधि > शारीरिक - मानसिक व्याधि। व्याधि का तात्पर्य है , कष्ट , रोग और असामान्य स्थिति ।
2 - अकर्मण्यता > साधना करने में अरुचि का होना।
3 - संशय > साधना के प्रति संदेह का बने रहना ।
4 - प्रमाद > प्रमाद मानसिक रोग है जिसमें मन - बुद्धि का संतुलन बिगड़ जाता है और इस कारण जो होता है उसमें मद की ऊर्जा होती है । बुद्ध प्रमाद को बड़ी बाधा मानते हैं।
5 - आलस्य > आलस्य तामस गुण का तत्त्व है जिससे नकारात्मक ऊर्जा मिलती है और जो हो रहा होता है , वह पूरा नहीं हो पाता या उसकी गुणवत्ता थीक नहीं होती ।
6 - अविरति > वैराग्य का अभाव ।
7 - भ्रम > दृढ संदेह ।
8 - अलब्ध चित्त भूमिकत्व
( चित्त का उच्च भूमियों पर न पहुँच पाना )
9 - साधना की कुछ उच्च भूमियों पर चित्त का देर तक स्थिर न होना
10 - दुःख > दुःख शारीरिक और मानसिक हो सकता है ।
11 - बुरे भाव से मिलने वाले दुःख।
12 - अंगों में कंपन का होना ।
13 - श्वास लेने में कठिनाई का होना।
14 - श्वास - प्रश्वास प्रक्रिया का सामान्य न होना ।
।।।। ॐ ।।।
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