सिद्ध योगी अपने संकल्प मात्र से अनेक शरीर धारण कर सकता है ….
~ पतंजलि योगसूत्र कैवल्य पाद सूत्र - 02 ~
सिद्धि प्राप्ति के 05 श्रोत हैं ; जन्म , औषधि , मंत्र , तप और समाधि ( पतंजलि कैवल्यपाद - 01 ) । कोई जन्म से सिद्ध योगी होता है , कोई औषधि से कोई मंत्र अभ्यास से , कोई तप सिद्धि से और कोई योगाभ्यास से समाधि सिद्धि से सिद्ध योगी बनता है ।
सिद्ध योगी अपने संकल्प मात्र से अनेक शरीर धारण कर सकता है । योगी को ऐसा करने में प्रकृति से उन्हें सहयोग मिलता है ( कैवल्यपाद - 2 +3 ) ।
जब एक से अधिक शरीर होंगे तो उनके अपनें - अपनें चित्त ( बुद्धि , अहंकार एवं मन ) भी होंगे क्योंकि प्रत्येक शरीर की अपनी - अपनी प्रवृत्ति अलग - अलग होने से उनके कार्य भी अलग - अलग होंगे अतः उनके चित्त भी अलग - अलग ही होने चाहिए । यदि ऐसा है तो फिर एक से अधिक चित्ताें का निर्माण कैसे होता होगा ? और इन चित्तो का संचालन कैसे होता होगा ?
इस प्रश्न के संबंध में महर्षि पतंजलि कहते हैं , “ अस्मिता से चित्तो का निर्माण होता है और ऐसे चित्तो को निर्माण चित्त कहते हैं ( कैवल्यपाद - 04 ) और इनका संचालन मूल चित्त से होता है ( कैवल्यपाद - 05 ) ।
अस्मिता क्या है ? प्रकृति और पुरुष को अलग - अलग न देखना , उन्हें एक देखना , अस्मिता के कारण होता है (साधनपाद - 06 ) ।
वितर्क , विचार , आनंद और अस्मिता - 04 प्रकार की संप्रज्ञात समाधि होती है (समाधिपाद - 17 ) ।
~~ ॐ ~~
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