तन्मात्र , महाभूत और ज्ञान इंद्रियाँ एक दूसरे से संबंधित हैं ⬇️
# शब्द तन्मात्र से आकाश की उत्पत्ति हुई है । आकाश से आत्मा का बोध होता है । शब्द का अनुभव कान से होता है ।
# स्पर्श तन्मात्र से वायु की निष्पत्ति हुई है । स्पर्श की अनुभूति त्वचा से होती है ।
# रूप तन्मात्र से तेज की उत्पत्ति हुई है । रूप की अनुभूति आंख से होती है ।
# रस तन्मात्र से जल की उत्पत्ति हुई है। रस की अनुभूति जिह्वा से होती है ।
# गंध तन्मात्र से पृथ्वी की उत्पत्ति हुई है । गंध की अनुभूति नासिका के होती है ।
श्रीमद्भागवत पुराण स्कंध : 2 , 3 और 11 में क्रमशः ब्रह्माजी , मैत्रेय एवं कपिल मुनि एवं प्रभु श्री कृष्ण द्वारा सर्ग उत्पति के संबंध में प्रकाश डाला गया है । ब्रह्म जी महाभूतों से तन्मात्रों की उत्पत्ति की बात करते हैं और शेष तत्त्व ज्ञानी तन्मात्रों से महाभुतों की उत्पत्ति की बात बताते हैं । सांख्य दर्शन में तन्मात्रों से महाभूतों की उत्पत्ति बताई गई है ।
त्रिगुणी प्रभु की माया से काल के प्रभाव में बुद्धि की उत्पति हुई है , बुद्धि से सात्त्विक , राजस एवं तामस अहंकारों की उत्पत्ति बताई गई है । तामस अहंकार से पञ्च तन्मात्रों की उत्पति हुई है और तन्मात्रों से उनके अपनें - अपनें महाभूतों की उत्पत्ति हुई है ।
सात्त्विक एवं राजस अहंकरों से उत्पन्न तत्त्वों के संबंध में सब की अपनी - अपनी अलग - अलग सोच है अतः इस संबंध में अलग से बाद में विचार किया जाएगा ।
~~ ॐ ~~
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