भाग - 01
दो शब्द
पतंजलि योग दर्शन में पतंजलि योग सूत्र के 04 पादों से समाधि सम्बंधित 48 सूत्रों के आधार पर पतंजलि के शब्दों में समाधि को व्यक्त करने का यहाँ असफल प्रयाश किया जा रहा है । असफल इसलिए क्योंकि समाधि - अनुभूति को शब्दों में कैद करना असंभव है । यह प्रयाश असंभव को संभव बनाने की गहरी सोच रखने वाले श्रद्धावान जिज्ञासुओं के लिए एक पतली पगडण्डी का कार्य कर सकता है ।
🌷 पतंजलि योग सूत्रों में समाधि की यात्रा पर निकलने से पूर्व पहले इन चंद बातों को भी देख लेते हैं ⏬
1881 - 1882 में नरेंद्र नाथ (1863 - 1902 ) जो आगे चल कर विवेकानंद हुए , स्कॉटिश चर्च कॉलेज में 11 वीं - 12 वीं के विद्यार्थी थे । अंग्रेजी अध्यापक william Hostie , William Wordsworth की कविता excursion के trance शब्द को समझाते हुए बोले , तुम सब अगर इसे समझना और देखना चाहते हो तो दक्षिणेश्वर मंदिर जाओ और वहां रामकृष्ण को देखो । विवेकानंद अपने दो मित्रों के संग वहां गए लेकिन परमहंस रामकृष्ण से प्रभावित नहीं हुए और लौट आये ।
अब trance शब्द के अर्थ को यहां देखें 👇
परमहंस रामकृष्ण माँ काली के सिद्धि प्राप्त परम भक्त थे । भक्त का केंद्र हृदय होता है । भक्त भावों में बहते हुए भावातीत की अनुभूति में डूबा रहता है जिसे पतंजलि संप्रज्ञात समाधि कहते हैं ।
श्रुति और स्मृति आधारित प्राप्त ज्ञान , उधार का ज्ञान परोक्ष ज्ञान होता है और समाधि में उतरे योगी का ज्ञान मूल ज्ञान होता है ।
नरेंद्र नाथ (विवेकानंद ) बुद्धि केंद्रित 19-20 वर्ष के युवा क्षात्र थे । उस समय तक विवेकानंद का ज्ञान
श्रुति - स्मृति आधारित ही था ,ऐसी स्थिति में विवेकानंद भला परमहंस जी से कैसे प्रभावित हो सकते थे !
राजस - तामस गुणों से प्रभावित बुद्धि कभीं भी तर्क के आधार पर सत्य को नहीं पकड़ सकती लेकिन यही बुद्धि जब सात्त्विक गुण की वृत्तियों में डूब जाती है तब इसे सत्य को खोजना नहीं पड़ता , वह सत्य से परिपूर्ण हो ही गयी होती है ।
🌷सत्य वह है जिसे शब्दों में तो न बाधा जा सके लेकिन जिसकी अनुभूति हृदय में होती हो।
🌷समाधि वह आयाम है जहाँ सत्य हथेली पर रखे एक आंवले की भांति दिखता है पर व्यक्त नहीं किया जा सकता ।
अब आगे ⤵️
भाग - 02
हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा अन्य सभी धार्मिक मान्यताओं में समाधि सर्व मान्य सत्य है । यही वह अवस्था है जहाँ धीरे - धीरे नष्ट हो रहे देह को सनातन देही की अव्यक्तातीत अनुभूति होती है ।
सामान्यतया जब साधक ध्येय वस्तु के ध्यान में पूरी तरह से डूब जाता है और अपने होने के आभाष समाप्त हो जाता है तब उस ध्यान की समायातीत अवस्था को समाधि कहते हैं । समाधि की अवस्था ही वह अवस्था है जहाँ वेदांत दर्शन में ध्यानी माया का द्रष्टा बन गया होता है और पतंजलि एवं सांख्य दर्शन के ध्यानी के देह में स्थित चित्त स्वरूपाकार पुरुष को यह आभाष होने लगता है कि वह चित्त नहीं है ।
समाधि ध्यान की उच्चतम अवस्था है ।
➡️पतंजलि अष्टांगयोग (1 - यम 2 - नियम 3 - आसन 4 - प्राणायाम 5 - प्रत्याहार 6 - धारणा 7 - ध्यान और 8 - समाधि ) में समाधि आखिरी आठवाँ अंग है ।
अष्टांगयोग की समाधि साकार या सबीज या सम्प्रज्ञात समाधि होती है जो किसी आलंबन के माध्यम से धारणा - ध्यान सिद्धि के बाद की अनुभूति होती है।
➡️पतंजलि कहते हैं , सम्प्रज्ञात समाधि प्राप्त के थीक बाद जिस योगी का शरीर छूट जाता है , उसका वर्तमान का जन्म केवल निर्वीज या असम्प्रज्ञात समाधि के लिए ही हुआ होता है । समाधि के बाद प्रज्ञा उदित होती है जो योग - सिद्धि का संकेत है ।
➡️ हठयोग साधना में अंतिम एवं सातवां साधन , समाधि है । जब ध्याता, ध्यान से ध्येय विषय में मिलकर लय हो जाता है तब उस चित्त वृत्ति निरोध की अंतिम अवस्था को समाधि कहते हैं ।
☸ सामान्यतया हठ योग अथवा प्राणायाम क्रिया निम्न तीन भागों में पूरी की जाती है ⬇️
🌷पूरक 🌷कुम्भक 🌷 रेचक
(1) पूरक > अर्थात श्वास को सप्रयास अन्दर खींचना।
(2) कुम्भक > अर्थात श्वास को सप्रयास रोके रखना। कुम्भक निम्न दो प्रकार से संभव है ⬇️
(क ) बाह्य कुम्भक
अर्थात श्वास को बाहर निकालकर बाहर ही रोके रखना।
(ख ) अन्तःकुम्भक
अर्थात श्वास को अन्दर खींचकर श्वास को अन्दर ही रोके रखना ।
(3) रेचक
अर्थात श्वास को सप्रयास बाहर छोड़ना।
⚛️ इस प्रकार सप्रयास प्राणों को अपने नियंत्रण से गति देना हठयोग है।
~~क्रमशः अगले अंक में देखें ~~
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