अभ्यास - वैराग्य क्या है ?
चित्त - वृत्ति निरोध का एक प्रमुख विधि अभ्यास - वैराग्य है । पतंजलि अपनें योगसूत्र के समाधि पाद में चित्त शांत करने जे निम्न 08 उपाय बताते हैं जिनमें से अभ्यास - वैराग्य शेष 07 की बुनियाद है।
अब आगे ⬇️
🕉️ गीता अध्याय : 6 में कुल 47 श्लोक हैं , इन 47 श्लोकों में प्रभु श्री कृष्ण के 42 श्लोक हैं और अन्य शेष 05 श्लोक अर्जुन के हैं ।
अर्जुन प्रभु श्री कृष्ण के प्रारंभिक श्लोक : 1 - 32 तक को सुनने के बाद श्लोक : 33 - 34 के माध्यम से पूछते हैं , "
हे प्रभु ! जो योग आप समभाव से कहा है उसे मैं मन की चंचलता के कारण नहीं समझ पा रहा हूँ । मनको बश में करना ऐसा है जैसे मानो वायुको बश में करना है ।"
अर्जुन की बात सुनने के साथ प्रभु श्लोक : 36 के माध्यम से कहते हैं , "
अर्जुन तुम थीक कह रहे हो लेकिन अभ्यास - वैराग्य से मन को शांत करना संभव है । "
गीता श्लोक : 6.35 में प्रभु कह रहे हैं..
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चस्लाम् ।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गुह्यते ।।
" हे महाबाहो ! निःसंदेह मन चंचल है और कठिनता से बश में होने वाला है परंतु अभ्यास - वैराग्य से यह बश में होता है । "
गीता श्लोक : 6.33 और 6.34 में अर्जुन कह रहे हैं ,
" हे मधुसूदन ! जो यह योग आप समभाव से कहा है उसे मैं अपनें मन की चंचलता के कारण नहीं पकड़ पा रहा हूँ । मनको बश में करना ऐसे है मानो वायु को बश में करना हो । '
अब देखिये , प्रभु श्री कृष्ण मन की चंचलता को नियंत्रित करने के लिए अभ्यास - वैराग्य की बात कह रहे हैं और पतंजलि चित्त की वृत्तियॉं को नियंत्रित करने के लिए अभ्यास - वैराग्यकी बात कह रहे हैं , मूलतः दोनों एक ही बात कह रहे है।
यह अभ्यास - वैराग्य क्या है ? इस प्रश्न को न अर्जुन पूछते हैं और न प्रभु बताते हैं लेकिन इसका उत्तर पतंजलि योगसूत्र समाधि पाद सूत्र : 12 - 22 में दिया गया है ।
अब आगे ⬇️
अभ्यास - वैराग्य क्या है ?
अभ्यास - वैराग्य को समझने के लिए पतंजलि योगसूत्र समाधि पाद सूत्र 12 - 22 तक को देखते हैं 👇
पतंजलि समाधि पाद सूत्र : 12👇
अभ्यास - वैराग्य से चित्त वृत्तियों का निरोध होता है ।
अब अभ्यास - वैराग्य की परिभाषा को देखते हैं ⬇️
पतंजलि समाधि पाद सूत्र : 13 - 14
" तत्र स्थितौ यत्न : अभ्यासः "
👉 वृत्तिस्वरूपाकार पुरुष को अपने मूल स्वरूप में आने के लिए जो यत्न किया जाय उसे अभ्यास कहते है ।
सूत्र : 14 अभ्यास का दृढ होना
" स तु दीर्घकाल नैरंतर्य सत्कारा सेविती दृढ़भूमि : "
👉 लगन , श्रद्धा और पूर्ण समर्पण भाव में बिना किसी रुकावट निरंतर लंबे अवधि तक अभ्यास करने से दृढ भूमि मिलती है ।
➡️ श्रद्धा क्या है ?
ऋग +धा = श्रद्धा
अर्थात सत्यको धारण करना , श्रद्धा है । असत्यको धारण करना श्रद्धा नहीं लेकिन गीता अध्याय : 17 में गुणों के आधार पर 03 प्रकार की श्रद्धा बतायी गयी है ।
गीता श्लोक : 2 - 3 को देखते हैं ⬇️
● अनंत जन्मों में किये हुए कर्मों के संचित संस्कारों से उत्पन्न श्रद्धा स्वभावजा श्रद्धा कही गयी है । यह गुण आधारित 03 प्रकार की होती है ।
◆ सभीं मनुष्यों की श्रद्धा उनके अपने -अपनें अंतःकरण के अनुरूप होती है ।
पतंजलि योगसूत्र समाधि पाद सूत्र : 15👇
द्रष्ट + अनुश्रविक + विषय + वितृष्णास्य
+ वशीकार + संज्ञा + वैराग्यम्
➡️ वेद आदि में वर्णित इन्द्रिय - विषय संयोग अर्थात भोग एवं पञ्च ज्ञान इंद्रियों में अपनें - अपनें विषयों के प्रति वितृष्णा - भाव का
होना , वैराग्य है ।
पतंजलि योगसूत्र समाधि पाद सूत्र - 16👇
" अपर वैराग्य घटित होने पर पर वैराग्य में प्रवेश मिलता है "
पर वैराग्य में तीन गुणों का आकर्षण समाप्त हो जाता है और चित्त पूर्ण समभाव में द्रष्टा बन जाता है ।
➡️ सूत्र - 15 में अपर वैराग्य की बात बताई गयी और अब यहाँ सूत्र - 16 में पर वैराग्य की बात बताई जा रही है ।
⚛️ दोनों सूत्रों को एक साथ देखने से निम्न सार मिलता है ⬇️
चित्तमें बिषय - वितृष्णा का भाव जागृत होना , अपर वैराग्य है और गुणातीत की अवस्था में होंना , पर वैराग्य है ।
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पतंजलि समाधि सूत्र : 17 - 22
का सार ⬇️
चित्त वृत्ति निरोध की सिद्धि से सम्प्रज्ञात समाधि मिलती है जो निम्न 04 प्रकार की होती है ⬇️
👌सूत्र - 17 सम्प्रज्ञात समाधि
वितर्क , विचार , आनंद और अस्मिता
सम्प्रज्ञात समाधि को सगुण - साकार - सबीज समाधि भी कहते हैं ।
सूत्र - 18 सम्प्रज्ञात समाधि क्रमशः
विराम +प्रत्यय + अभ्यास + पूर्व +संस्कार + शेष + अन्य :
॥वैराग्य , अभ्यास का फल है ॥
जब अभ्यास से चित्त की वृत्तियाँ शांत हो जाती हैं तब बिषय - वितृष्णा के उदय के साथ वैराग्य की ऊर्जा अन्तःकरण में भरने लगती है । वैराग्य की सिद्धि मिलने पर योगी सम्प्रज्ञात समाधि की अनुभूति में होता है । सम्प्रज्ञात समाधि तक संस्कार शेष बच रहते हैं ।
इस अवस्था तक जो योगी योग साधना की यात्रा की सिद्धि प्राप्त कर चुका होता है और उसकी मृत्यु हो जाती है तब उसके संचित संस्कार के आधार पर उसे अगले जन्म में इस स्थिति से आगे की साधना करनी पड़ती है । जब संस्कार के बीज भी निर्मूल हो जाते हैं तब वह साधक निर्बीज समाधि या असम्प्रज्ञात समाधि में पहुँचता है । असम्प्रज्ञात समाधि कैवल्य में पहुँचाती है ।
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पतंजलि समाधि पाद सूत्र - 19 विदेहलय - प्रकृतिलय योगी
सूत्र में निम्न 04 शब्द है ⤵️
भव ( जन्म ) , प्रत्यय ( आधार या कारण ) , विदेहलय और प्रकृतिलय
🕉️ विदेहलय और प्रकृतिलय सम्प्रज्ञात समाधि सिद्ध योगी का वर्तमान का जन्म केवल असम्प्रज्ञात समाधि सिद्धि के लिए ही होता है ।
समाधि पाद सूत्र - 19 के साथ निम्न सूत्र - 17 और सूत्र - 41 को भी देखें ⤵️
★ सूत्र - 17 में वितर्क , विचार , आनंद और अस्मिता सम्प्रज्ञात समाधि के भेद बताये गए हैं ।
★ सूत्र - 41 में चित्त पर एकाग्रता साधने के
ग्राह्य , ग्रहण और ज्ञान , ये 03 आलंबन बताते हैं ।
ग्राह्य आलंबन स्थूल और सूक्ष्म दो में से कोई एक हो सकता है । ग्रहण आलंबन में इंद्रियाँ और मन हैं और
ग्रहीता आलंबन चित्त आलंबन है ।
इसे और समझते हैं ⤵️
धारणा , ध्यान और समाधि की साधना - अभ्यास में कोई एक आलंबन होता है ।
समाधि पाद में 08 ऐसे आलंबन बताए गए हैं जिनसे चित्त को बाध कर रखने का अभ्यास चित्त - वृत्ति निरोध हेतु किया जाता है (यह प्रारम्भ में एक टेबल में दिखाया गया है )। इस आलंबन आधारित योग - अभ्यास में तीन तत्त्व होते हैं - पहला तत्त्व मूल आलंबन होता है जो स्थूल या सूक्ष्म हो सकता है और जिसे ग्राह्य कहते हैं । दूसरा तत्त्व है ग्रहण अर्थात वे जो ग्राह्य से ग्रहीता को जुड़ते हैं अर्थात 05 ज्ञान इन्द्रियाँ और मन । तीसरे तत्त्व को ग्रहीता कहते हैं जो ग्राह्य को ग्रहण माध्यम से उपयोग कर रहा होता है अर्थात चित्तस्वरूपाकार पुरुष ।
अब प्रकृतिलय - विदेहलय को देखते हैं ⬇️
ऊपर समाधि सूत्र : 17 में प्रारंभिक तीन सम्प्रज्ञात समाधियों (वितर्क , विचार और आनंद ) में सिद्धि प्राप्त योगी प्रकृतिलय योगी होता है और अस्मिता सम्प्रज्ञात समाधि सिद्ध योगी को विदेहलय योगी कहते हैं ।
पतंजलि समाधि पाद सूत्र : 20
कैवल्य प्राप्ति के उपाय
1 - श्रद्धा (ऋग +धा = सत्य को धारण करना ) ,
2 - वीर्य ( कठिन श्रम ) ,
3 - स्मृति ( दैवी वृत्तियों को धारण करना ) ,
4 - समाधि ( निरंतर संयम में लगे रहना ) और
5 - प्रज्ञा अर्थात ऐसी बुद्धि जो सत्य -असत्य के अंतर को समझती हो ।
ऊपर समाधि पाद सूत्र : 20 में व्यक्त 05 ऐसे उपाय हैं जिनको धारण करने से एक ही जन्म में भोग से कैवल्य तक की यात्रा की जा सकती है ।
पतंजलि समाधि पाद सूत्र - 21
तेज गति के साधक
" तीव्र संवेगानाम् आसन्न : "
" तेज गति से चलनेवाले शीघ्र पहुँच जाते हैं "
➡️ जब साधक श्रद्धा - समर्पण भाव से नित्य अपनी साधना की अवधि बढ़ाता चला जाए तो उसे सिद्धि शीघ्र मिल जाती है ।
पतंजलि समाधि सूत्र : 22
# साधकों की श्रेणियाँ ⬇️
साधक निम्न 03 प्रकार के होते हैं ⬇️
1 - मृदु (धीमी गति वाले )
2 - मध्य ( मध्यम गति वाले )
3 - अधिमात्र ( तेज गति वाले )
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वैराग्य से सम्बंधित राग को समझते हैं ⬇️
अब वैराग्य के सम्बन्ध में राग को भी देखते हैं , जिसके सम्बन्ध में पतंजलि कह रहे हैं ⬇️
पतंजलि साधन पाद : सूत्र - 7
" सुख अनुशयी रागः "
अर्थात
जो सुख के पीछे चले , सुख अनुरक्त हो और सुख आसक्त हो , उसे राग कहते हैं ।
यहाँ भौतिक संसारिक भोग - सुख की बात हो रही है जो क्षणिक होता है और जो दुःख की भूमि है ।
गीता श्लोक : 5.22 को यहाँ देखते हैं ⬇️
" इन्द्रिय - विषय संयोग , भोग की जननी है । ऐसे सुख दुःख के हेतु हैं और अनित्य हैं ।
यहाँ गीता सूत्र : 3.5 , 18.11 और 18.38 को भी देखना चाहिए
~~◆◆ ॐ ◆◆~~
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