Monday, November 29, 2021

गीता अध्याय - 14 हिंदी भाषान्तर

 


अध्याय : 14 का सार …

★ गीता अध्याय : 12 श्लोक : 1 के मध्यमसे अर्जुन जानना चाहते है , साकार एवं निराकार भक्तोंमें उत्तम योगवित् कौन होता है ? इस प्रश्नके सन्दर्भमें गीता अध्याय : 14 के प्रारंभिक 20 श्लोक हैं और श्लोक : 14.21 में अर्जुन गुणातीतके सम्बन्धमें जानना चाहते हैं । 

गीता अध्याय : 2 श्लोक : 54 में अर्जुन स्थिरप्रज्ञ योगीकी पहचान जानना चाहते हैं और यहाँ गुणातीत की पहचान पूछ रहे हैं जबकि स्थिरप्रज्ञ योगी का योग जब सिद्ध हो जाता है तब वह गुणातीत हो जाता है । गुणातीत योग की मोक्ष से ठीक पहले की स्थिति होती है गुणातीत को पतंजलि योग में निम्न प्रकार बताया गया है ⤵️

🐧 पतंजलि योग सूत्र समाधि पाद सूत्र : 17 में 04 प्रकारकी संप्रज्ञात समाधि बतायी गयी है - वितर्क , विचार , आनंद और अस्मिता ।  

🌷वितर्क , विचार और आनंद सम्प्रज्ञात समाधियों की सिद्धि प्राप्त योगी प्रकृतिलय सिद्ध योगी होता है और अस्मिता 

(अहं ) सम्प्रज्ञात समाधि सिद्धि प्राप्त योगी विदेहलय योगी होता है । प्रकृति लय योगी गुणातीत योगी होता है।

★ सात्विक गुणकी ऊर्जा अंतःकरणको प्रभुसे जोड़ती है ।

● राजस गुणकी ऊर्जासे मनुष्य आसक्ति , काम , कामना , क्रोध , लोभ से जुड़ता है और तामस गुणकी ऊर्जासे मनुष्य अज्ञान , मोह , भय और आलस्यसे जुड़ता है ।

● श्लोक : 14.5 > देहमें देहीको 03 गुण बाध कर रोके हुए हैं । श्लोक : 14.10 में गुण समीकरण बताया गया हैं ; एक गुण अन्य दो को दबा कर प्रभावी होता है अर्थात जब एक गुण प्रभावी होता है तब अन्य दो अप्रभावी रहते हैं । अब आगे देखें⤵️

गीतामें अर्जुनका पहला प्रश्न ( गीता श्लोक : 2.54 ) निम्न प्रकार से है …

हे केशव ! समाधिमें स्थित स्थिरप्रज्ञकी भाषा कैसी होती है ?

वह कैसे बोलता है ? कैसे बैठता है ? और कैसे चलता है ?

अर्जुन के ये दोनों प्रश्न  मूलतः दो नहीं हैं , दोनों  लगभग एक ही पुरुष से संबंधित हैं ।

अर्जुन के प्रश्न : 14 से यह बात तो स्पष्ट है कि अर्जुन यह तो जानते हैं कि  गुणातीत पुरुष , समाधि की अनुभूति वाला होता  है । यदि ऐसी बात है तो फिर अर्जुन यह भी जानते ही होंगे कि समाधि क्या है ? और यदि ऐसी बात है तो अर्जुन समाधि प्राप्त योगी की पहचान भी जानते ही होंगे ! फिर वे क्यों गुणातीत और स्थिर प्रज्ञ की पहचान जानना चाहते हैं ? इस बिषय पर किया गया गहरा मनन प्रभु से एकत्व स्थापित करा सकता है ।

✡ गीता अध्याय : 14 के बिषय 

श्लोक

बिषय

श्लोक योग

1- 4

ब्रह्म और सृष्टि रचना

04

5+10

● गुण - आत्मा सम्बन्ध और गुण समीकरण 

02

6 - 9

11 - 20

सात्त्विक , राजस और तामस गुण

14

21 

अर्जुन का प्रश्न : 

गुणातीत योगी की पहचान क्या है ?

01

22 - 27

गुणातीत योगी की पहचान

06

योग 


27


  गीता अध्याय : 14 

हिंदी भाषान्तर


श्लोक : 1

प्रभु श्री कह रहे हैं -

👉  ज्ञानोंमें अति उत्तम परम् ज्ञानको फिर कहूँगा , जिसको जानकर सब मुनि लोग इस संसारसे मुक्त होकर , परम् सिद्धिको प्राप्त हो गए हैं ।

 अब आगे देखते हैं कि वह परम् ज्ञान क्या है ?


श्लोक : 2

इदम् ज्ञानं उपाश्रित्य मम  साधर्म्यम्  आगताः ।

सर्गे अपि न उपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च ।।

👉 इस ज्ञान प्राप्ति से मोक्ष मिलता है और इस ज्ञान प्राप्त योगी प्रलय काल में व्याकुल भी नहीं होता ।

श्लोक : 3 + 4 सृष्टि रचना 

मन योनि : महत् ब्रह्म तस्मिन् गर्भम् दधामि अहम् 

संभवतः सार्वभूतानाम् ततः भवति भारत ।

 ब्रह्म गर्भ धारण करने की योनि हैं , मैं उस योनि में सभीं भूतों के बीज को गर्भ रूप में स्थापित करता हूँ जिससे सभीं भूतों की उत्पत्ति होती है ।

श्लोक : 5 तीन गुण और जीवात्मा..

प्रकृति मूलक 03 गुण अव्यय देही को देह में बाध कर रखते हैं ।


श्लोक : 6 सात्त्विक गुण 

👉 सात्त्विक से अंतःकरण निर्मल - निर्विकार रहता है और यह गुण सुख से जोड़े रखता है 


श्लोक : 7 राजस गुण

👉 राग , रूप , तृष्णा तथा आसक्ति , इसके मूल तत्त्व हैं , 

यह जीवात्मा को कर्म - फल से बाँधता है ।


श्लोक : 8 तामस गुण 

👉 इस गन का मूल तत्त्व अज्ञान जनित मोह है । यह गुण जीवात्मा को प्रमाद , आलस्य और निद्रा से बाँधता है ।


श्लोक :9 तीनों गुण

👉 सत्व गुण सुख से , रजो गुण कर्म से और तमों गुण प्रमाद से जोड़ता है । प्रमाद में ज्ञान को अज्ञान ढक लेता है ।


श्लोक : 10  गुण समीकरण

एक गुण अन्य दो गुणों को दबाकर , प्रभावी होता है ।

श्लोक : 11 सात्त्विक गुण 

👉 जिस समय देह के सभीं द्वारों में प्रकाश -  ज्ञान की ऊर्जा ब ह रही होती है , उस समय , वह ब्यक्ति  सात्त्विक गुण में होता है ।

यहाँ गीता : 5.13 देखें 👇

👉 मन से सभीं कर्मोंका  के त्यागी के देह में स्थित देही  09 द्वारों वाले उसके देह में सुख से रहता है ।

श्लोक : 12 राजस गुण

👉 लोभ , प्रवृत्ति , अशांति , स्पृहा , राजस गुण के तत्त्व हैं ।

श्लोक : 13  तमोगुण

👉 अज्ञान , अप्रवृत्ति , प्रमाद , मोह आदि , तमोगुण के तत्त्व हैं ।


श्लोक : 14  सतगुणी की गति

👉 उत्तम कर्म करने वाले सतगुणी निर्मल लोकों को प्राप्त होता है

श्लोक : 15 राजस - तामस गुण धारी की गति

👉 राजस गुण धारी कर्म - आसक्त मनुष्यों के कुल में जन्म पाता है और  तामस गुणधारी मूढ़ योनि में जन्म लेता है जैसे कीट - पशु आदि।

( यहाँ गीता : 14.18 को भी देखें ) 


श्लोक : 16 सात्त्विक - राजस कर्मों के फल

# सात्त्विक गुण - कर्म फल : सुख , ज्ञान - वैराग्य 

# राजस गुण - कर्म फल : दुःख 

◆ तामस गुण कर्म -  फल : अज्ञान

श्लोक : 17 तीन  गुणों की वृत्तियां 

सात्त्विक से ज्ञान , राजस से लोभ और तामस से प्रमाद - मोह एवं अज्ञान होता है ।



श्लोक : 18 तीन गुण और गति

यहाँ गीता श्लोक 14.14  - 14 . 15 को भी देखें …

श्लोक : 14.18 > जो सत्व गुण में देह त्यागते हैं  उन्हें ऊर्ध्वलोकों में जगह मिलती है , जो राजस  गुण में देह त्यागते हैं वे मध्य में अर्थात मनुष्यलोक में जगह पाते हैं और जो तामस गुण में देह त्यागते हैं वे अधो गति जैसे  किट , पशु आदि नीच योनियों में ( नरक ) पहुँचते हैं ।


श्लोक : 19 द्रष्टा ( पुरुष ) 

जिस समय तीन गुण करता  दिखने लगते  हैं और गुणों से परे परम् का बोध हो जाता है , उस समय उस साधक को प्रभु भाव प्राप्त हो जाता है ।


श्लोक : 20  देही ( आत्मा )

➡️जो गुणातीत हो जाता है , वह जन्म , मृत्यु , जरा और दुखों से मुक्त परमानंद को प्राप्त करता है ।


श्लोक : 21अर्जुन का प्रश्न : 14

➡️ इन तीन गुणों से अतीत पुरुष किन - किन लक्षणों से युक्त होता है , और किस प्रकार के आचरणों वाला होता है तथा गुणातीत कैसे बना जाता है ?

श्लोक : 22

➡️ हे अर्जुन ! जो सत्त्वगुण के कार्य रूप प्रकाश , और रजो गुण के कार्य रूप प्रवृत्ति तथा तामस गुण के कार्य रूप मोह को भी न प्रवित्त होने पर द्वेष करता है और निवृत्त होने पर उनकी आकांक्षा करता है..

श्लोक : 23

जो उदासीन भाव में स्थित हुआ गुणों की वृत्तियों से विचलित नहीं होता , जो यह समझता है कि गुण ही गुणों को वरत रहे हैं , ऐसा सोच कर एकी भाव से प्रभु केंद्रित रहता है , कभीं विचलित नहीं होता ...

श्लोक : 24

जो सुख - दुःख में समभाव रहता है , जिसे मिट्टी , स्वर्ण  एक समान दिखता है , जो ज्ञानी , प्रिय - अप्रिय को एक समान देखता है  और जो निंदा - स्तुति में भी समभाव रहता है ...

श्लोक : 25

जो मान -अपमान मे सम रहता हो , जिसके लिए मित्र - वैरी एक समान दिखते हों जो सर्वारम्भ परित्यागी है , वह गुणातीत होता है।


श्लोक : 26

जो अव्यभिचारी भक्तियोग के द्वारा मुझे भजता है , वह गुणातीत , ब्रह्म को प्राप्त होता है ।


श्लोक : 27

श्लोक रचना ⤵️

◆ ब्राह्मण : ( ब्रह्म ) हि ( क्योंकि )  प्रतिष्ठा ( आश्रय ) अहम् अमृतस्य ( अमृत का )  अव्ययस्य ( अव्ययका ) 

च ।

◆ शाश्वतस्य ( शाश्वत का )  च धर्मस्य ( धर्मका )  सुखस्य ( सुख का ) एकान्तिकस्य (अखंड एक रस का ) च ।।

श्लोक भावार्थ ⤵️

अव्यय ब्रह्मका , अमृतका , शाश्वत धर्मका अखंड एक रसका आश्रय , मैं हूँ ।

~~◆◆ ॐ ◆◆~~

No comments: