Saturday, February 26, 2022
पतंजलि योग दर्शन का उपादान कारण सांख्य दर्शन है
पतंजलि योग दर्शन का उपादान कारण
सांख्य दर्शन है 👇
सांख्य दर्शन अगर न होता तो पतंजलि योग दर्शन का होना संभव न होता । सांख्य , पतंजलि योग दर्शन का प्राण है , ऐसा कहना अनुचित न होगा ।
सांख्य दर्शन की बुनियादी बातें
हम सब तीन प्रकार के दुखों से पीड़ित हैं। स्व निर्मित दुःख , दैवी दुःख और अन्य जीवों के मिलने वाला दुःख , ये दुःख की तीन श्रेणियाँ हैं । हम सब इन दुःखों से मुक्त होने के जिज्ञासु भी हैं । दुःखों से मुक्ति केवल तत्त्व ज्ञान से संभव है । तत्त्व ज्ञान के अतिरिक्त भी उपाय हैं , लेकिन उनसे क्षणिक दुःख दूर होते हैं। अन्य उपायों से दुःख दूर हो तो जाते हैं पर इन दुखों के बीज बचे रह जाते हैं, फलस्वरूप कुछ समय बाद वे पुनः अनुकूल परिस्थिति पाते ही अंकुरित होने लगते हैं । तत्त्व ज्ञान से दुखों के बीज नष्ट हो जाते हैं अतः तत्त्व ज्ञानी परमानंद में बसा हुआ होता है ।
अब प्रश्न उठता है कि तत्त्व ज्ञान क्या है ?
हम प्रकृति - पुरूष से हैं और प्रकृति और पुरुष का बोध , तत्त्व ज्ञान है ।
प्रकृति और पुरुष क्या हैं ? (आगे फोटो में देखे )
पूरी सृष्टि प्रकृति - पुरुष संयोग से है । प्रकृति और पुरुष का संयोग एक अंधे और एक लंगड़े ( पंगु ) , का संयोग है । प्रकृति अंधी है और पुरुष पंगु है । प्रकृति पुरुष के लिए है । प्रकृति , पुरुष की ऊर्जा प्राप्त करते ही विकृत हो उठती है और उससे 23 तत्त्वों ( बुद्धि , अहंकार , मन , 10 इन्द्रियाँ , पांच तन्मात्र और पांच महाभूत ) की उत्पत्ति होती है । इन 23 तत्त्वों के योग से हम सब हैं । उपनिषदों का नेति - नेति सिद्धांत , अष्टावक्र का और रमन महर्षि का मैं कौन हूँ ? का बोध , वेदांत का ब्रह्म ज्ञान आदि - आदि सभीं अलग - अलग ढंगों से स्व बोध कराते हैं और स्व बोध ही मैं कौन हूँ का उत्तर है ।
यह सांख्य का परोक्ष ज्ञान प्रत्यक्ष ज्ञान कैसे बने ? इस प्रश्न के लिए महर्षि पतंजलि योग की पूरी गणित देते हैं ।
जहाँ सांख्य की यात्रा पूरी होती है , वहाँ सामने महर्षि पतंजलि दिखने लगते हैं । महर्षि पतंजलि अपनें योग दर्शन के 04 पादों में विभक्त 195 सूत्रों के माध्यम से सांख्य साधक की उंगली पकड़ कर आगे की यात्रा पर ले जाते हैं ।
महर्षि पतंजलि प्रारम्भ में दुःख की बात नहीं कहते हैं , आगे चल कर क्लेषों की बात अवश्य करते हैं । पतंजलि योग अनुशासन की गणित में कहते हैं । पतंजलि योग अनुशासन को स्लॉइड में अंत में दिखाया गया है । सांख्य में प्रकृति - पुरुष संयोग से पहला तत्त्व महत्
( बुद्धि ) उत्पन्न होता है , बुद्धि से अहँकार और अहँकार से मन एवं 10 इन्द्रियों की उत्पत्ति होती हैं । बुद्धि , अहँकार और मन के समूह को पतंजलि चित्त कहते हैं । पतंजलि आगे कहते हैं , तुम पहले चित्त की वृत्तियों को समझो , उन्हें अभ्यास - वैराग्य से नियंत्रित करो और अष्टांगयोग का अभ्यास करो । जब चित्त की वृत्तियां क्षीण होती हैं तब वैराग्य मिलता है और वैराग्य से समाधि मिलती है । समाधि अष्टांगयोग का आखिरी अंग है (समाधि के सम्बन्ध में अलग से अगले लेखों में देखा जा सकेगा )। ध्यान , धारणा और समाधि जब एक साथ घटित होती है तो उसे संयम सिद्धि कहते हैं । संयम सिद्धि से सिद्धियां मिलती हैं जो साधना मार्ग की रुकावटें हैं । जब सिद्धि प्राप्त योगी सिद्धियों की रुकावटों से अप्रभावित रहते हुए अपनीं संस्कार की साधना में लीन रहने लगता है तब सम्प्रज्ञात समाधि के आगे असम्प्रज्ञात समाधि में पहुंचता है । असम्प्रज्ञात समाधि सिद्धि से धर्ममेघ समाधि में पहुंचता है । यहां से कैवल्य की ऊर्जा में वह साधक पूर्ण परमानन्द की लहरों में होशयुक्त अवस्था में बहने लगता है । इस प्रकार कैवल्य सिद्धि में जब देह त्यागता है तब वह आवागमन से मुक्त हो गया होता है जिसे मोक्ष कहते हैं । मोक्ष को सभीं भारतीय दर्शन मानते हैं । सार रूप में सांख्य दर्शन और पतंजलि दर्शन के पारस्परिक सम्बन्ध को यहाँ देखा गया अब आगे के अंकों में कुछ और रहस्यों को देखा जा सकेगा ।
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