पिछले अंक में समाधि पाद सूत्र : 1 - 4 तक के सार को देखा गया जहाँ महर्षि पतंजलि कहते हैं , " पुरुष प्रकृति से जुड़ते ही चित्त स्वरूपाकार हो जाता है । जब चित की वृत्तियॉ क्षीण हो जाती हैं तब चित्त अपने मूल स्वरूप में लौट आता है ।
अब आगे सूत्र : 5 - 11 में महर्षि जो बताने जा रहे हैं , उसे आप भी देखे ⤵️
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