Saturday, October 29, 2022
सांख्य दर्शन का कार्य , कारण और करण सिद्धान्त सृष्टि उत्पत्ति का मूल सिद्धांत भी है
सांख्य दर्शन में कार्य और कारण और करण सिद्धांत
सर्ग ( संसार की उत्पत्ति ) का रहस्य है
कार्य , कारण और करण को मिट्टी से निर्मित घड़े के उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है । यहाँ घड़े के होने में मिट्टी कार्य और कारण दोनों है और घड़ा मिट्टी का कार्य है । जो पैदा करे उसे कारण और जो पैदा हो , उसे उस कारण का कार्य कहते हैं । कारण दो प्रकार के हैं ; निमित्त और उपादान ; मिट्टी के घडे के निर्माण के लिए मिट्टी और घड़ा बनानेवाला कुम्हाड दो प्रमुख तत्त्व हैं। इन दो में कुम्हाड निमित्त कारण है और मिट्टी उपादान कारण है । अब करण को विस्तार से समझते हैं 👇
सांख्य में करण : करण का शब्दार्थ है , कर्ता अर्थात करनेवाला , क्रिया का आश्रय या माध्यम । सांख्य दर्शन में निम्न 25 तत्त्व हैं जिनसे सृष्टि रचना है और उनमें 12 करण हैं ।
पुरुष , प्रकृति एवं प्रकृति के कार्य रूप में बुद्धि ( महत् ), अहंकार , मन , 05 ज्ञान इन्द्रियाँ , 05 कर्म इन्द्रियाँ , 05 तन्मात्र और तन्मात्रों के कार्य रूप में 05 महाभूत , सांख्य दर्शन के ये 25 तत्त्व हैं ।
इन 25 तत्त्वों में बुद्धि ,अहंकार , मन और 10 इंद्रियों को करण कहते हैं तथा 13 करणों में बुद्धि , अहंकार और मन को अंतः करण और शेष 10 इंद्रियों को बाह्य करण कहते हैं। 13 करणों में बुद्धि और अहंकार कार्य - कारण भी हैं तथा 10 इन्द्रियाँ केवल कार्य हैं ।
👌 करण के निम्न तीन कार्य 👇
1 - आहरण (लेना या ग्रहण करना )
2 - धारण करना
3 - प्रकाशित करना ( ज्ञान देना )
💮05 कर्म इन्द्रियाँ ग्रहण एवं धारण दोनों करती हैं
💮05 ज्ञान इंद्रियाँ केवल प्रकाशित करती हैं ।
💐 इन 05 कर्म इन्द्रियों एवं ज्ञान इन्द्रियों के अपनें - अपनें कार्य हैं और ये कार्य ऊपर व्यक्त 03 भागों ( आहरण , धारण और प्रकाशित करना ) में विभक्त हैं ।
👉मन , बुद्धि और अहंकार परस्पर एक दूसरे के अभिप्राय से अपनीं - अपनीं वृत्तियों को जानते हैं ।
👉मन , बुद्धि और अहंकार की सभी वृत्तियों का पुरुषार्थ ( मोक्ष ) ही उद्देश्य है । करण स्वयं ही प्रवृत्त होते हैं , किसी से नियंत्रित होकर नहीं प्रवृत्त होते ।
💐 बाह्य करण केवल वर्तमान काल के बिषयों को ग्रहण करते हैं जबकि अंतःकरण ( बुद्धि ,मन और अहंकार (तीनों कालों के बिषयों को ग्रहण करते हैं ।
🐦 05 कर्म इन्द्रियों में वाक् इन्द्रिय का केवल शब्द बिषय है , शेष 04 कर्म इन्द्रियाँ , पांच बिषयों ( शब्द , स्पर्श , रूप , रस , गंध ) वाली है ।
उदाहरण देखिए 👉 जैसे हाँथ एक घड़े को ग्रहण करता है जिसमें सभीं 05 बिषय हो सकते हैं और पैर सभीं 05 बिषयों से युक्त पृथ्वी पर चलता है ।
💐 13 करणों ( बुद्धि + अहँकार + मन + 10 इंद्रियाँ ) में अंतःकरण ( बुद्धि , अहंकार और मन ) द्वारि (स्वामी ) हैं और अन्य 10 ( 10 इन्द्रियाँ ) द्वार हैं क्योंकि मन - अहंकार से युक्त बुद्धि तीनों कालों के बिषयों का अवगाहन
( गहरा चिंतन ) करती है ।
💐 तीनों अंतःकरण स्वेच्छा से अगल - अलग द्वारों ( 10 इन्द्रियों ) से अलग - अलग बिषय ग्रहण करते हैं ।
💐 सभीं इंद्रियाँ तथा अहंकार दीपक की भांति हैं और एक दूसरे से भिन्न गुण वाले हैं । जैसे दीपक अपनी परिधि में स्थित सभीं बिषयों को प्रकाशित करता है वैसे 12 करण ( 11 इंद्रियां + अहंकार ) सम्पूर्ण पुरुषार्थ ( धर्म + अर्थ + काम + मोक्ष ) को प्रकाशित करके बुद्धि को समर्पित करते हैं ।
💐 पुरुष के सभीं उपभोग की व्यवस्था बुद्धि करती है और वही बुद्धि प्रधान
( प्रकृति ) और पुरुष के सूक्ष्म भेद को विशेष रूप से जानती है ।
【यहाँ ध्यान रखना होगा कि पुरुष - प्रकाश के प्रभाव में प्रकृति की साम्यावस्था विकृत होती है और बुद्धि ( महत् ) पहले तत्त्व के रूप में उत्पन्न होती है /
05 महाभूत सात्त्विक गुण के प्रभाव में शांत स्वरूप और सुख स्वरूप में होते हैं ।
🐥 पञ्च महाभूत राजस गुण के प्रभाव में घोर ( दुःख ) स्वरुप में होते हैं ।
🐔 पञ्च महाभूत तामस गुण के प्रभाव में मूढ़ भाव स्वरूप में होते हैं ।
【 ध्यान रखना होगा कि तीन गुण पञ्च भूतों के स्वभाव को परिवर्तित करते रहते हैं और ये तीन गुण हमारे देह में हर पल बदल रहे हैं । एक गुण अन्य दो को दबा कर प्रभावी होता है 】
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