Monday, January 6, 2025

पतंजलि योगसूत्र कैवल्य पाद सूत्र - 23


कैवल्य पाद सूत्र :23 प्रकृति - पुरुष और चित्त

दृष्टदृश्योपरक्तम् चित्तम्  सर्व अर्थम् 

“ पुरुष और प्रकृति से रंगा हुआ चित्त सभीं अर्थों  वाला भासता है “

अब ऊपर के सूत्र को समझते हैं कि  कैसे प्रकृति का कार्य चित्त पुरुष एवं प्रकृति के प्रभाव में सभी अर्थों वाला भासता है ⤵️

तीन गुणों की साम्यावस्था , मूल प्रकृति है जो पुरुष प्रकाश से विकृत हो उठती है और इसके कार्य रूप में बुद्धि , अहंकार , मन , 10 इंद्रियां , 5 तन्मात्र और तन्मात्रो के 5 कार्य रूप में 5 महाभूतों की निष्पति होती है ।

 मूल प्रकृति और पुरुष को छोड़ शेष 23 तत्त्वों में प्रथम तीन तत्त्व 

(बुद्धि , अहंकार और मन ) के समूह को सांख्य दर्शन में चित्त कहते हैं । प्रकृति एवं पुरुष की संयोग भूमि , चित्त है। पुरुष चित्त केंद्रित रहते हुए प्रकृति के 23 तत्त्वों के माध्यम से त्रिगुणी संसार का अनुभव प्राप्त करता रहता है ।

प्रकृति जड़ है और इसके 23 तत्त्व भी जड़ ही हैं जिन्हें स्वयं का भी पता नहीं होता लेकिन चित्त केंद्रित चेतन पुरुष के प्रभाव में प्रकृति से उत्पन्न 23 तत्त्व चेतन जैसा व्यवहार करते हैं। प्रकृति एवं उसके 23 तत्त्व पुरुष को संसार को समझने में सहयोग देते हैं । जब पुरुष को  संसार में व्याप्त त्रिगुणी भोग का यथार्थ अनुभव मिल जाता है तब उसे भोग से वैराग्य हो जाता है और वह अपने मूल स्वरूप को यथार्थ समझने लगता है । पुरुष का भोग से वैराग्य हो जाना , उसे कैवल्य में पहुंचाता है । 

वैराग्य और कैवल्य के मध्य की योग यात्रा में पुरुष के ऊपर चढ़ा हुआ त्रिगुणी प्रकृति का रंग उतर जाता है और वह प्रकृति एवं स्वयं को शुद्ध रूप में जानते हुए कैवल्य प्राप्त करता है ।

 प्रकृति को जब यह बोध हो जाता है कि पुरुष मुझे देख लिया है तब उसके 23 तत्त्वों का  अपने -,अपनें कारणों में लय हो जाता है और अंततः बुद्धि का लय मूल प्रकृति में हो जाता है । इस प्रकार सनातन , निष्क्रिय एवं जड़ मूल प्रकृति जान प्राप्ति से 07 प्रकार के भावों

(अज्ञान, वैराग्य ,अवैराग्य , धर्म , अधर्म , ऐश्वर्य , अनैश्वर्य )

 से मुक्त हो कर अपने मूल स्वरूप में स्थित हो जाती है। सनातन , निष्क्रिय एवं शुद्ध चेतन पुरुष अपने स्वरूप में स्थिर हो जाता है । 

जबतक पुरुष को कैवल्य नहीं मिलता सुक्ष्म शरीर ( बुद्धि , अहंकार। 11 इंद्रियां और  05 तन्मात्र ) के माध्यम से प्रकृति आवागमन में रहती है । पुनर्जन्म को आवागमन कहते हैं ।

सांख्य दर्शन प्रकृति - पुरुष केंद्रित द्वैत्यबादी दर्शन है। 

।। ॐ ।।