Thursday, January 23, 2025

पतंजलि योगसूत्र के अष्टांगयोग का तीसरा अंग आसान


पतंजलि योग दर्शन में अष्टांगयोग 

भाग - 03 आसन

पिछले दो  भागों में पतंजलि योग दर्शन में अष्टांग योग के 08 तत्त्वों की परिभाषाओं तथा प्रारंभिक दो तत्त्वों - यम एवं नियम को देखा गया और अब इस अंक में आसन की साधना को समझते हैं …

महर्षि पतंजलि साधनपाद सूत्र - 46 में कहते हैं ….

स्थिर सुखं आसनम् , अर्थात , शरीर की जिस मुद्रा में बैठने पर शारीरिक - मानसिक स्थिर सुख मिलता हो ,उसे आसन कहते हैं । 

महर्षि पतंजलि की अष्टांगयोग साधना अभ्यास में यम और नियम से आगे आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान और समाधि की साधनाओं में प्रत्याहार से समाधि तक की साधनाएं आसन - साधना पर आधारित होती हैं अतः आसन सिद्धि , अष्टांगयोग साधना की सिद्धि में एक बुनियादी साधना है । 

योग साधना के लिए संध्या बेला उपयुक्त समय होता है । सूर्योदय एवं सूर्यास्त के ठीक पहले का समय , संध्या  बेला है, जहां न दिन होता है और न रात और जहां दिन और रात। साधना किसी जल श्रोत जैसे जलाशय या नदी के तट पर करने से सिद्धि शीघ्र मिलती है।साधना जिस स्थान पर की जाय वहां की भूमि समतल एवं विघ्नमुक्त होनी चाहिए। 

पहले जमीन पर कोई बिछावन बिछा कर सूर्य मुखी हो कर आसान ग्रहण करना चाहिए । बिछावन कुशा की बनीं चटाई या कंबल आदि ही सकते हैं । यदि कुश की चटाई हो तो उसे ऐसे बिछाएं जिससे खुश के नोकीले भाग पूर्वमुखी रहें । साधना में शरीर तनाव मुक्त बने रहना चाहिए। आँखें तीन चौथाई बंद होनी  चाहिए। अपनें शरीर से गज भर से अधिक दूरी पर दृष्टि नहीं होनी चाहिए। 

आसन साधना में उतरने के बाद जब चित्त व्याकुल होने लगे और ऐसा लगने लगे कि उस क्षेत्र की ऊर्जा आपको स्वीकार नहीं कर रही तब आपको उस स्थान को छोड़ कर कहीं कोई और स्थान की तलाश करनी चाहिए। सभीं स्थान सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के क्षेत्र हैं ; जहां नकारात्मक ऊर्जा प्रभावी रहती है वहां साधना करना संभव नहीं और जहां सकारात्मक ऊर्जा प्रभावी रहती है वहां की जा रही साधना शीघ्र फलित होती है । योगाभ्यास किसी जल श्रोत पर करनी चाहिए जैसे कोई नदी या जलाशय। जहां भी योगाभ्यास करें वह स्थान एकांत होना चाहिए । जबतक आसान की सिद्धि नहीं मिलती , प्राणायाम की साधना प्रारंभ नहीं करनी 

चाहिए । आसन अभ्यास में शरीर के बाह्य अंगों एवं आंतरिक अंगों में चल रही घटनाओं पर केंद्रित रखना चाहिए लेकिन उन घटनाओं से प्रभावित नहीं होना चाहिए । श्वास संबंधित बीमार व्यक्ति के लिए पतंजलि अष्टांगयोग का अभ्यास नहीं करना चाहिए । 

आसन सिद्धि मिलने के साथ अष्टांगयोग के अगले अंग प्राणायाम का अभ्यास प्रारंभ करना चाहिए जिसे अगले अंक में देखा जा सकता है । 

।। ॐ ।।

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