पतंजलि योग दर्शन में अष्टांगयोग
भाग - 01
अष्टांगयोग संबंधित पतंजलि के सूत्र …..
1.साधनपाद सूत्र : 30 , 32 , 35 - 46 , 49 - 54 योग > 20
2.विभूतिपाद के सूत्र : 1 - 3 योग > 03
कुल सूत्र > 23
इस अंक में महर्षि पतंजलि योगसूत्र दर्शन में अष्टांगयोग साधना के 08 अंगों की परिभाषाओं से हम परिचित हो रहे हैं और अगले अंक में इन अंगों की परिभाषाओं पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।
यम , नियम , आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान और समाधि , अष्टांगयोग के 08 अंग हैं । निरंतर बिना किसी रुकावट इन 08 तत्त्वों की साधना सिद्धि से साधक को स्व बोध होता है जिससे वह समझने लगता है कि मैं कौन हूं ? , कहां से आया हूं ? क्यों आया हूं ? और इस प्रकार वह अविद्या से मुक्त हो , ज्ञान माध्यम से कैवल्य प्राप्त करता है ।
सांख्य दर्शन में तीन प्रकार के दुःखों से अछूता रहने के लिए एक मात्र उपाय तत्व ज्ञान है और सांख्य दर्शन , पतंजलि योग दर्शन का आधार है। पुरुष प्रकाश से विकृत हुई मूल प्रकृति से उत्पन्न 23 तत्त्वों एवं मूल प्रकृति - पुरुष का बोध ही तत्त्व ज्ञान है।
अब अष्टांगयोग के 08 अंगों की परिभाषाओं को देखते हैं ….
1 - यम (साधनपाद : 30 , 35 - 39 )
अहिंसा , सत्य , अस्तेय , ब्रह्मचर्य , अपरिग्रह , ये यम के 05 अंग हैं । यम अंगों का अपनें दैनिक जीवन में अभ्यास करना होता है ।
2 - नियम (साधनपाद सूत्र : 32 , 40 - 45 )
शौच संतोष तपः स्वाध्याय
ईश्वर प्रणिधानानि नियमाः
शौच , संतोष , तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान, ये पांच नियम के अंग हैं । इन नियम केअंगों का पालन अपनें दैनिक जीवन में पालन करना होता है ।
3 - आसन (साधनपाद सूत्र - 46 )
स्थिर सुखं आसनम् "
जिस मुद्रा में बैठने पर शारीरिक और मानसिक स्थिर सुख मिलता हो , उसे आसान कहते हैं ।
4 - प्राणायाम (पतंजलि साधनपाद सूत्र - 49 )
तस्मिन् सति श्वास प्रश्वास गति विच्छेद प्राणायाम
आसन की सिद्धि में स्वास एवं प्रश्वास का स्वयं रुक जाना और चित्त का देश - काल के प्रभाव से मुक्त हो जाना , प्राणायाम है ।
5 - प्रत्याहार (पतंजलि साधनपाद सूत्र - 54 )
स्व विषय असंप्रयोगे चित्त स्वरूप अनुकार इव इन्द्रियाणाम्
प्रत्याहार: ।।
आसन एवं प्राणायाम सिद्धि मिलने पर पञ्च ज्ञान इंद्रियां विषय मुखी न रह कर चित्त मुखी हो जाती हैं अर्थात इंद्रियों का रुख उल्टा हो जाता है जिसे कबीर दास कहते हैं कि अपनें पुतलियों को उल्टा कर दो ।
आसन ,प्राणायाम और प्रत्याहार की सिद्धि मिल जाने पर चित्त राजस एवं तामस गुणों की वृत्तियों से मुक्त हो कर सात्त्विक गुण की वृत्तियों से परिपूर्ण रहने लगता है ।
6 - धारणा (विभूति पाद सूत्र : 1 )
<> देश बंध: चित्तस्य , धारणा <>
किसी सात्त्विक आलंबन से चित्त को बाध कर रखने का अभ्यास , धारणा है ।
7 - ध्यान (विभूति पाद सूत्र : 2 )
<> तत्र , प्रत्यय , एकतानता , ध्यानम् <>
धारणा का लंबे समय तक बने रहना , ध्यान कहलाता है ।
8 - समाधि (विभूति पाद सूत्र : 3 )
<> तत् एव अर्थ मात्र निर्भासं स्वरुपशून्यम् इव समाधि < >
ध्यान में जब आलंबन का स्वरूप क्रमशः सूक्ष्म होते - होते लगभग शून्य हो जाता है और केवल अर्थ मात्र निर्भासित रहता है , तब इस अस्वस्थ को संप्रज्ञात या सविकल्प समाधि कहते हैं ।
यहां ध्यान रखा होगा कि आलंबन के तीन अंग होते हैं - शब्द , अर्थ और ज्ञान । शब्द स्थूल आलंबन है जिसका संबंध 05 ज्ञान इंद्रियों से है । उसी आलंबन की अर्थ रूप में सूक्ष्म अवस्था का संबंध , मन से होता है और उसी आलंबन के अति सूक्ष्म ज्ञान रूपी अवस्था का संबंध बुद्धि से होता है ।
## ॐ ##
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