प्रश्न – 01
श्लोक – 2.54
स्थिर प्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव
स्थितधीः किम् प्रभाषेत किम् आसीत व्रजेत किम् भावार्थ
समाधि में स्थित [ समाधिस्थ ] स्थिर प्रज्ञ की भाषा कैसी होती है ? वह कैसे बोलता है ? वह कैसे बैठता है ? और कैसे चलता है ?
अर्जुन का प्रश्न समाधि शब्द से शुरू हो रहा है । समाधि पतंजलि अष्टांगयोग साधना का आठवां अंग है। समाधि की स्थिति में चित्त किसी सात्त्विक स्थूल या सूक्ष्म
आलंबन अर्थात आलंबन के शब्द , अर्थ और ज्ञान में से किसी एक पर शुन्यावस्था में होता है ।
इस प्रश्न से संबंधित तीन बातें हैं …
पहली बात > यहां सोचना होगा कि क्या अर्जुन समाधि को समझते भी हैं ? यदि नहीं समझते फिर इसके मध्यम से प्रश्न कैसे उठा रहे हैं ?
दूसरी बात > यदि अर्जुन समाधि को समझते होते तो समाधि में स्थित स्थिर प्रज्ञ की पहचान नहीं पूछते ।
तीसरी बात > प्रश्न से यह स्पष्ट है कि समाधि अनुभूति वाला स्थिर प्रज्ञ होता है ।
अब यहां दी गई तीन बातों के आधार पर आगे चलते हैं।
अर्जुन का यह पहला प्रश्न गीता श्लोक : 2.54 के मध्यम से उठ रहा है । इस प्रश्न के उठने के पहले की स्थिति को पहले जान लेते हैं । उत्तर के संबंध में आगे देखेंगे ।
गीता श्लोक : 1.1 से 2.53 तक में कुल 100 श्लोक हैं जिनमें श्लोक 1.1 हस्तिनापुर सम्राट धृतराष्ट्र का है जिसके माध्यम से अपनें सारथी संजय से कुरुक्षेत्र युद्ध क्षेत्र में घट रही घटनाओं को जानने की जिज्ञासा व्यक्त करते हैं । इसके बाद संजय और अर्जुन के 27 - 27 श्लोक हैं तथा प्रभु श्री कृष्ण के 45 श्लोक हैं ।
ध्यान में रखना होगा कि गीता अध्याय - 2 में अर्जुन श्री कृष्ण के श्लोक 11 से श्लोक 53 तक ( 43 श्लोको ) को सुनने के बाद यह प्रश्न उठा रहे हैं । अब यहां सोचना होगा कि प्रभु श्री कृष्ण के इन 43 श्लोकों में ऐसी कौन सी बात अर्जुन को मिली है जिससे उनके अंदर यह प्रश्न उठ रहा है । आइए ! चलते हैं प्रभु श्री के 43 श्लोकों में।
गीता अध्याय : 2 श्लोक : 11 से श्लोक : 53 तक के सार को यहां देखते हैं ⤵️
🌷 प्रभु श्री पंडित की परिभाषा देते हैं , कहते हैं , समभाव में रहने वाला , सुख - दुःख से अछूता रहने वाला पंडित होता है
🌷 धीर पुरुष जन्म - मृत्यु से नहीं घबड़ाते
🌷 इंद्रिय - विषय संयोग से मिलने वाला सुख - दुःख अनित्य हैं अतः उन्हें सहन करना चाहिए
🌷 नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः
🌷 गीता श्लोक : 2.18 से 2.30 तक आत्मा से संबंधित हैं
गीता श्लोक : 2.31 से 2.52 तक का सार
🌄 युद्ध करने के लिए उत्साहित कर रहे हैं
🌄 निश्चयात्मिका और अनिश्चयात्मिका अर्थात स्थिर बुद्धि और अस्थिर बुद्धि ही बुद्धि के दो प्रकार हैं । कर्मयोग बुद्धि स्थिर रहती है ।
🌄 वेद कर्म फल प्रशंसक हैं लेकिन तुम वेद के ऐसे वचनों से ऊपर उठ कर कर्म फल की चाह न रखते हुए कर्म करो
🌄 ब्रह्मवित् का वेदों से नाम मात्र का संबंध रह जाता है
🌄 कर्म करना सबका अधिकार है लेकिन इस कर्म के फल की सोच रखने का किसी को अधिकार नहीं
🌷 बुद्धि योग से कर्म योग निम्न श्रेणी का है । अतः तुम सम बुद्धि के साथ आगे बढ़ो ।
# श्लोक : 2.49 से 2. 51 तक समभाव से संबंधित हैं
🌷 जब मोह दलदल से तेरी बुद्धि बाहर निकल जाएगी तब तुम्हें वैराग्य हो जाएगा
अब गीता श्लोक : 2.53 को देखते जिसमें समाधि शब्द अर्जुन को मिला है और इसके आधार पर उनके अंदर प्रश्न उठ रहा है⤵️
श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला ।
समाधौ अचला बुद्धिः तदा योगम्
अवाप्स्यसि ।।
~~ गीता : 2.53 ~~
प्रभु कह रहे हैं …..
मेरे भाँति - भाँति के वचनों को सुनने के बाद जब तेरी बुद्धि निश्चल - अचल समाधिस्थ हो जाएगी तब तूँ योगारूढ़ हो जाएगा ।
यहां अर्जुन को निश्चल अचल बुद्धि और समाधि शब्द मिल गए जिसे अपना प्रश्न बना लिया । अर्जुन प्रभु के उपदेश को श्रोता के रूप में नहीं सुन रहे , उनके शब्दों में युद्ध से बचने के उपाय ढूढते हैं ।
इस श्लोक को सुनने के बाद ही अर्जुन पूछ रहे हैं कि समाधिस्थ स्थिर प्रज्ञ की पहचान क्या है ? क्या अर्जुन समाधि रहस्य से परिचित भी हैं ?
आप अर्जुन के प्रश्न को आप बार – बार पढ़ें , क्या यह प्रश्न स्वाभाविक प्रश्न है ? या अर्जुन स्थिर प्रज्ञ को जानते हुए प्रश्न कर रहे हैं ?
प्रभु श्री कृष्ण का उत्तर
श्लोक – 2.55 से 2.72 तक : 18 श्लोक
प्रभु स्थिर प्रज्ञ को स्पष्ट करते हुए कह रहे हैं ⤵️
स्थिर प्रज्ञ वह है
# जिसकी इन्द्रियाँ शांत हों
# मन शांत हो
# निश्चयात्मिका बुद्धि हो अर्थात बुद्धि स्थिर और निर्मल हो और जिसमें वितृष्णा का भाव भरा हो
अब श्लोक : 2.55 से श्लोक : 2.72 तक को भी देखते हैं जिनका सार ऊपर दिया जा चुका है
# कामना मुक्त आत्मा से आत्मा स्थिर संतुष्ट स्थिर प्रज्ञ रहता है
# सुख -दुःख से अछूता , राग , भय और क्रोध रहित स्थिर प्रज्ञ होता है
# समभाव में स्थिर प्रज्ञ रहता है
# स्थिर प्रज्ञ का अपनें इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण रहता है
# आसक्ति मुक्त स्थिर प्रज्ञ होता है
# विषय मनन से आसक्ति उठती है , आसक्ति से कामना उठती है और कामना टूटने के भय में क्रोध उपजता है जो सर्व नाश कर देता है
# जिसकी इंद्रियां नियंत्रित नहीं , जिसका मन शांत नही , उसकी अनिश्चयात्मिका बुद्धि होती है
# मन से इंद्रियों का नियंत्रण , बुद्धि से मन का नियंत्रण होना चाहिए ।
# भोगी के लिए भोग दिन की भांति होता है जिसमें वह जागता रहता है और योग उसके लिए रात्रि जैसा होता है जिसमें वह सोता रहता है । योगी की स्थिति भोगी की स्थिति से ठीक विपरीत की होती है ।
# कामना , ममता और अहंकार अशांति के तत्त्व हैं
# ब्रह्म से जिसका एकत्व स्थापित हो जाता है वह ब्रह्मानंद में होता है
~~ ॐ ~~
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