गीता तत्त्वम् परिचय
गीता तत्त्वम् में आप को दो बातें मिलेंगी ; पहली बात
गीता - तत्त्वों जैसे आसक्ति , कामना , काम , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य , वैराग्य , अज्ञान , ज्ञान , प्रकृति , पुरुष , जीवात्मा , आत्मा , ब्रह्म , माया और ईश्वर आदि से परिचय होगा और दूसरी बात गीता के सभीं 700 श्लोकों में तैरने का अभ्यास होगा /
गीता तत्त्वम् आप को कर्ता - भाव से सम - भाव में पहुंचा कर माया का द्रष्टा बनानें की ऊर्जा से भरता है ।
सम - भाव योगी गीता तत्त्ववित् होता है , जिसके तन , मन एवं बुद्धि में ब्रह्म - ऊर्जा प्रवाहित होती रहती है ।
तत्त्ववित् के देह के सभीं नौ द्वार सात्त्विक गुण की किरण से प्रकाशित होते हैं / गीता - तत्त्वम् में गीता के उन सूत्रों से आप मिलनें जा रहे हैं जिनकी उर्जा में मनुष्य कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को एक ब्रह्म के फैलाव रूप में देखता है ।
गीता प्रेमियों से मिलना प्रभु का प्रसाद जैसा है लेकिन यह प्रसाद उन्हीं को मिल पाता है जिनके मन में वितृष्णा की ऊर्जा बह रही होती है ।
वे धन्यभागी होते हैं जिनको गीता प्रेमी मिलते हैं /
गीता किसी को कुछ देता नहीं एक ऎसी ऊर्जा प्रवाहित करता है जिसमें मनुष्य स्वयं को समझ कर स्वयं के हृदय में प्रभु को देखनें लगता है /
गीता में कुल 700 श्लोक हैं जिनमें 657 श्लोक प्रभु श्री कृष्ण एवं अर्जुन के हैं जिनमें प्रभु के कुल 574 एवं अर्जुन के 83 श्लोक हैं । संजय के 43 एवं धृतराष्ट्र का 01 श्लोक है ।
गीता महाभारत युद्ध का द्वार है और द्वार पर कोई इतना नहीं बोल सकता जितना प्रभु श्री कृष्ण गीता में बोले हैं , गीता के इस रहस्य को ध्यान का विषय बनाया जाना चाहिए ।
ध्यान रहे ! गीता को अपनें पास रखना बहुत आसान है ,गीता को पढना कुछ कठिन है और गीता मार्ग पर चलना अति कठिन क्योंकि गीता की यात्रा तलवार की धार की यात्रा है /
मनुष्य का ऐसा मनोविज्ञान है की वह अपनी बंद मुट्ठी को खोलना नहीं चाहता लेकिन अपनें बंद मुट्ठी में कुछ और रखना जरूर चाहता है जो संभव नहीं हो सकता ।
मनुष्य कुछ छोडनें को तैयार नहीं और सब को ग्रहण करनें की उसकी चाह उसे पल भर कहीं रुकनें नहीं देती / मनुष्य मरना नहीं चाहता , अमर रहना चाहता है । मनुष्य में अमरत्व की सोच के कारण उसकी कामनाएं अनंत हैं । कामना आगे - आगे चलती है और मनुष्य उसके पीछे - पीछे ।
श्रीमद्भागवत पुराण में शुकदेव जी परीक्षित को कहते
हैं , सांसारिक भोगी मनुष्य का दिन धन कमाने की हाय - हाय में निकल जाता है और रात्रि आगमन पर उसे स्त्री प्रसंग की सोच अपनें में डूबो कर रखती है । इस प्रकार काम , कामना , क्रोध , लोभ , मोह ,भय और अहंकार की लहरों के चक्रवात में फसा मनुष्य बेहोशी के आलम में एक दिन इसी चक्रवातीय क्षेत्र के किसी नुक्कड़ पर दम तोड़ जाता है और दम तोड़ते - तोड़ते भी राम से न जुड कर काम से ही जुड़ा होता है । क्या आप इस सत्य से अवगत हैं कि मन से राग और मन से ही वैराग्य की यात्रा है लेकिन मन देह में स्वाधिष्ठान एवं मणिपुर चक्रों से ऊपर उठ नहीँ पाता जिसके फलस्वरूप मनुष्य का जन्म काम केंद्रित होता है और उसकी मृत्यु के समय भी उसका मन काम बिषय केंद्रित ही रहता है । मन के दो धर्म हैं , ब्युत्थान और निरोध ; ब्युत्थन धर्म में मन भोग तत्त्वों में भ्रमण करता रहता है जैसा ऊपर बताया गया और योग साधना जैसे - जैसे पकने लगती है , मन ब्युत्थ धर्म को त्याग कर निरोध धर्मइन आ जाता जाता है । मन की यह अवस्था अति खंडित न हो तो सीधे कैवल्य में पहुंचा देती है ।
श्रीमद्भगवद्गीता में अभ्यास से काम ऊर्जा , श्री कृष्ण ऊर्जा में और अहँकार श्रद्धा में रूपांतरित होता रहता
है । जैसे - जैसे अभ्यास गहराता जाता है , अंतःकरण श्रीकृष्ण भावामृत से भरता जाता है और योग प्रेमी धीरे - धीरे वैराग्य के आनंद में डूबने लगता है । पतंजलि योग दर्शन में चित्त शांत करने के 09 उपाय बताए गए हैं जिनमें प्रमुख अभ्यास - वैराग्य उपाय है ।
गीता अध्याय - 6 में अर्जुन कहते हैं , प्रभु !आप जो समभाव योग मुझे बता रहे हैं , मैं अपने मन की अस्थिरता के कारण उसे नहीं समझ पा रहा । आप कृपया मुझे वह बात बताए जिससे मेरा मन शांत हो सके और मैं आपके द्वारा दिए जा रहे समभाव प्राप्ति के ज्ञान को पकड़ सकूं । प्रभु कहते हैं , अर्जुन ! यह अभ्यास - वैराग्य से संभव हो सकता है ।
गीता भोग से योग , योग से संन्यास , संन्यास में वैराग्य , वैराग्य में ज्ञान और ज्ञान माध्यम से आत्मा में परमात्मा की अनुभूति से गुजार कर कैवल्य की यात्रा कराता है /
बुद्ध कहा करते थे , यदि कोई अपनीं श्वास को प्रति दिन मात्र एक घंटा देखनें का अभ्यास करे तो उसे एक दिन इस योग के माध्यम से निर्वाण मिल सकता है और गीता में बुद्ध की विपत्सना - ध्यान से ले कर तिब्बती लामाओं में प्रचलित बारडो ध्यान तक की अनेक विधियां है ।
गीता एक सत् मार्ग है जो ⏬
# बिषय से इंद्रिय
# इन्द्रियों से मन
# मन से बुद्धि
# बुद्धि से प्रज्ञा
प्रज्ञा से चेतना
चेतना में जीवात्मा
जीवात्मा में आत्मा
आत्मा के माध्यम से ब्रह्म की इन्द्रियातीत अनुभूति होती है और गीता ⤵️
# माया के माध्यम से ब्रह्म की अनुभूति कराता है तथा
# माया का द्रष्टा बना कर संसार को ब्रह्म के फैलाव के रूप में दिखता है एवं स्वाध्याय माध्यम से परम से एकत्व स्थापित कराता है ।
गीता तत्त्वम् के अगले अंक में कुछ और गीता आधारित ध्यान श्लोकों को देखा जा सकेगा ।
~~ ॐ ~~
No comments:
Post a Comment