गीता तत्त्वम् भाग - 7
भारतीय दर्शनों में रहस्यों का रहस्य
गुण विभाग और कर्म विभाग
द्वारका का मंदिर
श्रीमद्भागवत पुराण :11.24 में बताया गया है की ब्रह्म दृश्य - दृष्टा में विभक्त सा भाषता है । दृश्य को त्रिगुणी प्रकृति एवं दृष्टा को पुरुष कहते हैं ।
त्रिगुणी प्रकृति को माया कहा गया है । माया से माया में सभिन दृश्य वर्ग हैं , थे और आगे भी होते रहेंगे । ऋग्वेद का गुण विभाग और कर्म विभाग रहस्य उस जीव कण ( life particle) की ओर इशारा करता है जिसे आज का वैज्ञानिक खोज रहा है । अब आगे गीता के 35 श्लोकों के भावार्थ से गुण अलकेमी को समझते हैं ⬇️
अब इस संदर्भ में पहले गीता के निम्न 08 श्लोकों को समझते हैं ⤵️
7.12 , 7.14 , 7.15 , 13.20 , 18.40 , 14.5 , 14.10 , 13.22
गीता – 7.12
तीन गुण एवं उनके भाव प्रभु से हैं पर प्रभु में वे भाव एवं उनके गुण नहीं हैं
गीता – 7.14
तीन गुणों से माया है , मायामुक्त होना कठिन है
गीता – 7.15
माया का गुलाम आसुरी स्वभाव का होता है
गीता – 13.20
प्रकृति - पुरुष अनादि हैं , विकार प्रकृति से हैं
गीता – 18.40
गुणों से अछूता कुछ नहीं सभीं गुण प्रभावित हैं
गीता - 14.5
तीन गुण आत्मा को देह में रोक कर रखते हैं
गीता – 14.10
तीन गुणों का एक हर पल बदलता समीकरण होता है जो स्वभाव का निर्माण करता है , स्वभाव से कर्म होता है
गीता – 13.22
देह में स्थित पुरुष परमात्मा ही है । उपद्रष्टा ( साक्षी ) एवं अनुमन्ता ( देनेवाला )/होने के कारण सबका धारण - पोषण करता तथा भोक्ता है । पुरुष महेश्वर एवं परमात्मा है
अब आगे निम्न 05 गीता श्लोकों को देखते हैं
3.5, 3.27, 3.33, 14.19, 14.23
🌷तीन गुणों से निर्मित समीकरण से स्वभाव बनता है , स्वभाव से कर्म होता है और कर्ता भाव अहंकार की छाया है /
गुणों के प्रकार एवं लक्षण
गुण तीन प्रकार के हैं और गुणों के आधार पर श्रद्धा , भोजन , यज्ञ , तपस्या , दान , त्याग , ज्ञान , कर्म ,
कर्म - कर्ता , बुद्धि , धृतिका और सुख सब तीन प्रकार के होते हैं । गीता अध्याय – 17 एवं 18 में यही बात बताई गयी हैं / गीता में प्रभु कहते हैं , कर्म एवं स्वभाव के आधार पर चार प्रकार की वर्ण ब्यवस्था मैंने की है ।
सात्त्विक गुण
यहां देखिये गीता के निम्न श्लोकों को 5.13,14.6,14.9,14.11,14.14,18.20,14.16,14.17
सात्त्विक गुण
गीता – 5.13
मन से जो साधक कर्म त्याग में उतरता है उसका आत्मा नौ द्वारों के देह में निर्विकार रहता है /
गीता – 14.11
सात्त्विक गुण धारी के देह के नौ द्वार ज्ञान से प्रकाशित होते हैं /
गीता – 14.6
सत् प्रकाश सात्त्विक गुण से है
गीता – 14.9
परम सुख सात्त्विक गुण से मिलता है
गीता – 14.14
सात्त्विक गुण में मौत में उतरनें वाका उच्च लोकों में पहुँचता है
गीता – 18.20
सात्त्विक गुण धारी सब में एक अब्यय को देखता है
गीता – 14.16
पुण्य कर्म सात्त्विक गुण से होते हैं
गीता – 14.17
सात्त्विक गुण से ज्ञान मिलता है
राजस गुण
यहाँ देखिये गीता के इन श्लोकों को > 14.7,14.12,14.15,18.21,14.9,14.16,14.17
गीता – 14.7
कामना - तृष्णा से राजसगुण पहचाना जाता है
गीता – 14.12
लोभ – स्पृहा राजस गुण के तत्त्व हैं
गीता – 14.15
राजस गुण धारी भोगी परिवार में जन्म लेता है
गीता – 18.21
सभीं जीवों को जो अलग – अलग देखता है , राजस गुण धारी होता है
गीता – 14.9
राजस गुण में मनुष्य कर्म का गुलाम बनता है
गीता – 14.16
रजोगुण का फल दुःख होता है
गीता – 14.17
लोभ राजस गुण का तत्त्व है
तामस – गुण
यहां देखिये गीता के निम्न श्लोकों को 14.8,14.13,14.15,18.22,14.9,14.16,14.17
गीता – 14.8
अज्ञान तामस गुण से आता है
गीता – 14.13
प्रमाद , जड़ता ,मोह तामस गुण की निशानी हैं
गीता – 14.15
तामस गुण वाले का अगला जन्म पशु योनी में होता है
गीता – 18.22
कर्म को छोटा समझ कर उस से दूर रहना तामस गुण के कारण होता है
गीता : 14.9
सात्त्विक गुण से सुख की अनुभूति होती है, रजो गुण कर्म से बाधता हैऔर तमो गुण से अज्ञान का सम्मोहन ज्ञान को ढक लेता है ।
गीता :14.16 -14.17
सात्त्विक का निर्मल फल मिलता है लेकिन राजस गुण में हुए कर्म से दुःख मिलता है तथा राजस हूं में हुए कर्म का फल अज्ञान है ।
सात्त्विक गुण ज्ञान में रखता है , राजस गुण लोभ में रखता है और तामस गुण मोह - प्रमाद में रखता है।
आइन्स्टाइन जीवन भर उस सूत्र को खोजते रहे जिसके अनुसार यह संसार चल रहा है लेकिन पा न सके जबकि गीता - उपनिषद में उनकी पूरी श्रद्धा थी , हो सकता है गीता अध्याय – 14 में गुण समीकरण उनको न दिखा हो /
आइन्स्टाइन कहते हैं , जब मैं गीता पढता हूँ तो मुझे ऐसा प्रतीत होता है की ब्रह्माण्ड विज्ञान जितना स्पष्ट गीता में दिया गया है शायद ही इतनी स्पष्टता कहीं और हो /
जिस दिन विज्ञान गीता के गुण समीकरण पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा शायद वह दिन विज्ञान का एक नया दिन होगा //
गुण विभाग और कर्म विभाग ऋग्वेद का विषय है जिसे गीता में दिया गया है ।
गीता का विज्ञान कहता है ----
तीन गुणों का एक माध्यम सर्वत्र है जो प्रभु से है और जिसे वेदांत में माया कहते हैं और सांख्य / पतंजलि योग दर्शनों में जिसे मूल प्रकृति कहते हैं । माया से माया में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड है और ब्रह्माण्ड में नाना प्रकार की सूचनाएं हैं / सभीं सूचनाओं में तीन गुणों की कुछ – कुछ मात्राएँ रहती हैं जो हर पल बदलती रहती हैं / गुणों के आपसी परिवर्तन के कारण मनुष्य कर्म करता है और कर्म के अनुकूल उसे सुख – दुःख से गुजरना पड़ता है / तीन गुण मनुष्य के देह में आत्मा को रोक कर रखते हैं /
~~ॐ~~
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