प्रश्न – 09
श्लोक – 10.12 से 10.18 तक
अर्जुन कहते हैं ------
आप परम ब्रह्म हैं , परम धाम हैं और परम पवित्र हैं । नारद , असित , देवल एवं व्यास जैसे ऋषि आप को सनातन , दिव्य पुरुष आदि देव , अजन्मा और सर्वव्यापी कहते हैं और आप स्वयं भी मुझसे ऐसी ही बात करते
हैं । आप की बातों को मैं सत्य भी मानता हूं । आप के लीलामय स्वरूप को न देवता और न दानव जानते हैं ।
हे देवो के देव , भूतेश , भूतों को उत्पन्न करने वाले आप स्वयं से स्वयं को जानते हैं । आप ही अपनी विभूतियों को व्यक्त करने में समर्थ हैं ।
हे योगेश्वर ! मैं किस प्रकार निरंतर आप का चिंतन करता हुआ आप को जानूं ? और किन भावों में आप मेरे द्वारा चिंतन करने योग्य हैं ?
हे जनार्दन ! आप अपने योग और विभूतियों को विस्तार पूर्वक कहिए क्योंकि आप के वचनों को सुनने के लिए मेरे अंदर जिज्ञासा यथावत बनी रहती है ।
प्रभु श्री कृष्ण का उत्तर
श्लोक – 10.19 से 10.42 तक [ कुल 23 सूत्र ]
यहां प्रभु अपनें 23 श्लोकों में 81 विभूतियों को बताए हैं और कहते हैं ⤵️
# सभीं भूतों के दिल में आत्मा रूप में मैं धडकता हूँ [सूत्र 10.20 ] ।
# मैं जीवों के जीवन का आदि मध्य एवं अंत हूँ /
# विष्णु , सूर्य , चन्द्रमा मैं हूँ /
# इन्द्रियों में मन एवं चेतना [ सूत्र – 10.22 ] मैं हूँ / # शिव , कुबेर , अग्नि , समुद्र , एक ओंकार , जप , हिमालय , कपिल मुनि , नारद , राजा , कामदेव . वरुण देव , यमराज , काल , वायु , गंगा और श्री राम , मैं हूँ ।
# सृष्टि का आदि मध्य और अंत मैं हूं ।
# अध्यात्म विद्या , वाद , समासों में द्वंद्व समास , महाकाल , मृत्यु , उत्पत्ति का हेतु , स्त्रियों में कीर्ति , श्री , वाक , स्मृति , मेधा , धृति और क्षमा मैं हूं ।
# गायन करने योग्य श्रुतियों में बृहत्साम , गायत्री छंद ( भागवत : 2.6.1 में 7 प्रकार के छंद बताए गए हैं - गायत्री , त्रिष्टुप् , अनुष्टुप्, उष्णिक्, वृहती ,
पड़्क्ति और जगती ) , मार्गशीर्ष महीना और वसंत ऋतु , मैं हूं ।
# जुआ , प्रभावशालियों में प्रभाव , विजय , निश्चय करने की ऊर्जा और सात्त्विक भाव , मैं हूं ।
# वासुदेव , धनंजय , वेदव्यास , शुक्राचार्य , , मौन , और तत्त्वज्ञान , मैं हूं ।
~ ~ॐ~~
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