सांख्य दर्शन से परिचय
भारतीय षड् दर्शनों का संकेत उपनिषदों में भी मिलता है । सांख्य , योग , न्याय , वैषेशिक , मीमांसा और वेदांत - ये 06 षड् दर्शन हैं । इनमें सांख्य और मीमांसा निरिश्वरबादी दर्शन हैं।
प्रत्यक्ष , अनुमान , उपमान और शब्द ये 04 प्रमाण सामान्यतः सभीं दर्शनों को मान्य हैं । मीमांसा इन 04 प्रमाणों के साथ अर्थापत्ति और अनुपलब्धि प्रमाणों को भी मानता
है।
प्रमाण विचार , सृष्टि मीमांसा , पुनर्जन्म , आचार , योग और मोक्ष साधन षड् दर्शनों के सामान्य विषय हैं ।
ब्रह्मसूत्र वेदांत का मूल ग्रन्थ है जिसमें अन्य दर्शनों का खंडन किया गया है। ब्रह्मसूत्र का प्राचीनतम भाष्य आदि शंकराचार्य का है ।
5वीं शताब्दी में ईश्वर कृष्ण द्वारा रचित सांख्यकारिका वर्तमान में सांख्य दर्शन के एक मात्र प्रमाणित संदर्भ हैं जिसमे कुल मात्र 72 कारिकाये हैं । इन 72 करिकाओ में अंतिम 04 कारिकाये बाद में जोड़ी गयी सी दिखती हैं । सांख्य दर्शन निरिश्वरबादी द्वैत्यवाद है जिसमें आत्मा ,जीवात्मा , ब्रह्म , माया और ईश्वर संबंधित कोई संदर्भ नहीं हैं ।
सांख्य में प्रकृति - पुरुष दो सनातन स्वतंत्र तत्त्वों की मान्यता है । प्रकृति जड़ है एवं जगत् के होने का कारण है। तीन गुणों की साम्यावस्थ को मूल प्रकृति कहते हैं । पुरुष शुद्ध चेतन है जो न तो कारण है और न ही कार्य है । प्रकृति और पुरुष संयोग से सृष्टि रचना हुई है ।
पतंजलियोग दर्शन का तत्त्व मीमांसा , सांख्य दर्शन है । सांख्य सिद्धांत देता है और पतंजलि इन सिद्धांतों के आधार पर योग विकसित करते हैं । पतंजलि योग सूत्र में 195 सूत्र हैं ।
आचार्य ईश्वर कृष्ण द्वारा आर्या छन्द में रचित 72 सांख्य कारिकाओं में से प्रारंभिक दो कारिकाओं को यहां देखते हैं ।
सांख्य कारिका - 1
दुःख त्रय अभिघात् जिज्ञासा तद् अपघातक हेतौ
दृष्टे स अपार्था च एकान्त अत्यंत अभावत्
तीन प्रकारके दुःख हैं । इन दुःखों से अछूता रहने की जिज्ञासा उत्पन्न होनी स्वाभाविक है । उपलब्ध साधनों से इन दुःखों से पूर्ण रूप से मुक्त होना संभव नहीं क्योंकि उपलब्ध साधन दुःखों को अस्थायी रूप से मुक्त कराते हैं ।
कारिका - 2
द्रष्टवत् अनुश्रविक स ह्य विशुद्धि क्षय अतिशय युक्त
तत् विपरित श्रेयां व्यक्त अव्यक्तज्ञ विज्ञानात्
अनुश्रविक उपाय ( दुःख निवारण हेतु वैदिक उपाय जैसे यज्ञ आदि करना ) भी दृश्य उपायों (अन्य उपलब्ध उपायों ) की भाँति हैं । ये वैदिक उपाय अविशुद्धि क्षय - अतिशय दोष से युक्त हैं । अतः तीन प्रकार के दुखों की निवृत्ति अव्यक्त ( प्रकृति ) और ज्ञ ( पुरुष ) का विज्ञान रूपी उपाय श्रेयस्कर हैं - अर्थात प्रकृति - पुरुष का विवेक ज्ञान ही दुखों को निर्मूल करने में सक्षम है ।
~~ ॐ ~~
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