समाधिपाद सूत्र : 1 , 2 , 3 और सूत्र : 4
का हिंदी भाषान्तर ⤵️
सूत्र निम्न प्रकार हैं …
ऊपर दिए गए सूत्रों का सरल हिंदी भाषा में भाषान्तर ⬇️
" योग अनुशासन है जिसके अभ्यास से चित्त की वृत्तियों का निरोध होता है । चित्त वृत्ति निरोध से चित्ताकार पुरुष अपनें मूल स्वरूप में स्थित हो जाता है अन्यथा पुरुष चित्त वृत्ति स्वरूपाकार ही रहता है "
ऊपर दिए गए सूत्रों का हिंदी भाषान्तर में योग , अनुशासन , चित्त की वृत्तियां , चित्त वृत्ति निरोध , चित्त का चित्ताकार स्वरूप और चित्त का मूल स्वरूप विषयों को बिना समझे , सूत्रों को ठीक - ठीक समझना संभव नहीं अतः इन शब्दों को पहले समझते हैं …
अनुशासन का अर्थ है , ऐसी जीवन पद्धति जो पहले से प्रयोग में हो । चित्त की 05 वृत्तियां
( प्रमाण , विपर्यय, विकल्प , निद्रा और स्मृति ) हैं ।
चित्त के दो धर्म हैं - व्युत्थान और निरोध । व्युत्थान में वृत्तियां ऊपर नीचे होती रहती हैं और निरोध में वृत्तियां शांत रहती हैं । चित्त धर्म का व्युत्थान से निरोध में बदल जाना , योग साधना का फल है । निरोध धर्म पर चित्त का टिक जाना समाधि में पहुंचाता है । जब प्रकृति -पुरुष संयोग होता है जब मूल प्रकृति के विकृत होने से 23 तत्त्वों की निष्पत्ति होती है ( बुद्धि , अहंकार , 11 इंद्रियां , 05 तन्मात्र और 05 महभूत ) । बुद्धि , अहंकार और मन के समूह को चित्त कहते हैं
( सांख्य दर्शन में ) और इस समूह को अंतःकरण भी कहते हैं । प्रकृति अचेतन और जड़ है अतः इसके 23 कार्य भी जड़ और अचेतन होते हैं । शुद्ध चेतन पुरुष , प्रकृति -पुरुष संयोग के बाद चित्ताकार हो जाता है और चित्त माध्यम से संसार को देखता है । मूल प्रकृति तीन गुणों की साम्यावस्था को कहते हैं , चित्त का मूल स्वरूप निर्गुण एवं शुद्ध चेतन है और चित्ताकार पुरुष का स्वरूप त्रिगुणी एवं अचेतन का है लेकिन उसे अपनें मूलस्वरूप का बोध बना रहता है ।आगे समाधि पाद सूत्र - 12 में महर्षि कह रहे हैं …
" अभ्यास वैराग्याभ्यां तन्निरोध: " अर्थात अभ्यास - वैराग्यसे चित्त वृत्तियों का निरोध होता है ।
~~ ॐ ~~
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