Wednesday, December 15, 2021

गीता अध्याय 17 - 18 की एक झलक

 


एक  झलक ⬇️

गीता अध्याय : 17 का सार ⤵️

● श्रद्धा गुणों के आधार पर 03 प्रकार की है ।

★ सात्त्विक ,राजस और तामस गुण धारी क्रमशः 

देव , यक्ष और भूत - प्रेतों की पूजा करते हैं ।

● शरीर , मन और वाणी से तप किया जाता है

# गुण आधारित निम्न 03 - 03 प्रकार के होते हैं⤵️

तप , भोजन , यज्ञ और दान ।

★ वेदान्तियों की यज्ञ , दान और तप की सभीं क्रियाएं ॐ से प्रारम्भ होती हैं ।

~~◆◆ॐ ◆◆~~


एक  झलक ⬇️

गीता अध्याय - 18 सार 

गुण आधारित त्याग 03 प्रकार के हैं । 

● यज्ञ , तप और दान कर्मों का त्याग नहीं करना चाहिए ।

अर्जुन अपनें आखिरी प्रश्न ( श्लोक : 18.1 ) में संन्यास और त्याग को पृथक - पृथक जानना चाहते हैं ।

◆ कर्म त्याग , कर्म , ज्ञान , कर्म - करता , बुद्धि , धृतिका और सुख , ये सभीं तीन प्रकार के हैं । 

◆ ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , शूद्र के कर्म अलग - अलग हैं।

🌷 पल भरके लिए भी पूर्ण कर्म त्याग संभव नहीं । 

🌷  बिषय - इन्द्रिय संयोग से मिले  सुखका परिणाम बिष जैसा होता है । 

🌷 आसक्ति रहित कर्म से नैष्कर्म्य - सिद्धि मिलती है जो ज्ञानयोग की परानिष्ठा है । 

🌷 तीन लोकोंमें ऐसा कोई सत्त्व नहीं जो गुणोंसे अछूता हो।

🐧 मन , वाणी और शरीर कर्म के श्रोत हैं । 

🌷 काम्य कर्मों का त्याग , कर्म सन्न्यास है । पूर्ण रूपेण कर्म त्याग संभव नहीं ।

~~◆◆ॐ◆◆~~

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