गंगा रहस्य ⤵️
ऋग्वेद और गंगा
👉 ऋग्वेद का जन्म स्थान सप्त सिंधु क्षेत्र माना जाता है और इसकी भाषा संस्कृत न हो कर ऋग्वेदी भाषा है जिसका सम्बन्ध ईरानी भाषा से रहा होगा । सप्त सिंधु की भौगोलिक स्थिति का कोई पता नहीं लेकिन इस क्षेत्र का संबंध ईरान के पूर्वी भाग , अफगानिस्तान और सिंध घाटी की सभ्यता से रहा होगा ।
👉 ऋग्वेदकी सर्व पवित्र नदी सरस्वती है ।
👉ऋग्वेद में गंगा शब्द एक बार और यमुना शब्द 03 बार आया है ।
👉 ऋग्वेदमें चावल या धान ( paddy ) शब्द नहीं है जबकि गंगा क्षेत्र कृषि दृष्टि से चावल प्रधान क्षेत्र है। इस बातसे यह स्पष्ट होता है कि ऋग्वेद काल के ऋषियों का फैलाव सप्त सिंधु क्षेत्र तक सिमित रहा होगा ।
श्रीमद्भागवत पुराण आधारित गंगा रहस्य
संदर्भ > भागवत स्कंध : 3 + 5 + 6 + 8 + 9
● प्रलय के समय जब पृथ्वी जलमग्न थी उस समय ब्रह्मा जी अपने पुत्र पहले मनु को प्रजा वृद्धि हेतु आदेश देते हैं । मनु जी कहते हैं , पिता श्री ! आपके आदेश का पालन करना मेरा धर्म है लेकिन प्रजा रहेगी कहाँ ? प्रजा के निवास के लिए पृथ्वी चाहिए। आदि मनु की बात पर ब्रह्मा जी सोच ही रहे थे कि उनकी नाशिका से शिशु वाराह की उत्पत्ति हुई । यह प्रभु हरि का दूसरा अवतार था और उस समय पृथ्वी रसातल में हिरण्याक्ष के अधीन थी ।
◆ वाराह अवतार में प्रभु श्री हरि हिरण्याक्ष का बध कर के पृथ्वी को रसातल से ऊपर ले आये थे।
● जिस स्थान पर प्रभु वाराह पृथ्वी को रसातल से ऊपर ले कर आये थे वह स्थान वर्हिष्मती है जो ब्रह्मावर्त की राजधानी हुआ करती थी ।
वर्हिष्मती यमुनातट पर स्थित थी और वहाँ से गंगा , यमुना तथा सरस्वती पूर्व मुखी हो कर बहती थी । यहाँ ध्यान रहे कि गंगा - यमुना के मध्य का क्षेत्र ब्रह्मावर्त कहलाता था ।
◆ वर्हिष्मती प्रजापति की कन्या थी जिनका व्याह पहले मनु के बड़े पुत्र प्रियव्रत से हुआ था और इनके नाम पर ब्रह्मावर्त की राजधानी का नाम वर्हिष्मती रखा गया था (भागवत : 5.1. 24 ) ।
● नर्वदा नदी के तट पर स्थित है , भृगु कच्छ
( भागवत पुराण : 8.18.21 )
◆ भृगु कच्छ पर जब भृगु बंशी शुक्राचार्य जी हिरण्यकशिपु पुत्र प्रह्लाद के पौत्र राजा बलि का अश्वमेध यज्ञ करा रहे थे , उस समय वामन अवतार प्रभु श्री हरि ( 15 वां अवतार ) बलि से दान मांगने के लिए वहाँ पधारे थे । हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष भाई थे ।
● पहले चतुर्युग के त्रेतायुग के प्रारम्भ में देवताओं और असुरों का भयंकर युद्ध भी नर्वदा तट पर ही हुआ था
(भाग. 6 . 10 ) /
गंगा का ब्रह्माण्ड से परे से ब्रह्मा पुरी में पदार्पण और 04 धाराओं में विभक्त हो जाना⬇️
भृगु कच्छ बलि की यज्ञशालामें यज्ञमूर्ति भगवान श्री वामन (प्रभु विष्णु का 15 वां अवतार ) राजा बलि से केवल 03 कदम भूमि मांगी थी ।
★ जब प्रभु तीन कदम में पहला कदम उठाया तब उनका यह कदम इतना बड़ा रहा कि पैर ब्रह्माण्ड से भी बाहर निकल गया था , वहाँ एकत्रित लोग इस आश्चर्य को देखते ही रह गए । वामन भगवान के बाएं पैर के अंगूठे के नाखून से ब्रह्माण्डकटाह का ऊपर का भाग फट गया और ब्रह्माण्ड से परे से इस छिद्र से एक जल - धारा निकल पड़ी जो वामन भगवान के चरण को स्पर्श करती हुई आगे बढ़ी। प्रभु चरण स्पर्श के कारण इस जल धारा का नाम भगवत्पदी पड़ा ।
यहाँ से यह जल धारा हजारों युग बीतने पर स्वर्गके शिरोभागमें स्थित ध्रुवलोक में पहुँची जिसे विष्णुपद भी कहते हैं ।
यहाँ निम्न स्लॉइड में ध्रुवलोक से पृथ्वी लोक तक की स्थिति को देखें और गंगा की यात्रा को समझें ⤵️
स्लाइड - 01👆
अब आगे ⬇️
नीचे स्लाइड - 02 को देखें
★ ध्रुव लोक से गंगा सात द्वीपों के केंद्र जम्बू द्वीप के केंद्र में स्थित इलावृत्त वर्ष के मध्य में स्थित मेरु पर्वत की उच्च शिखर पर स्थित ( ब्रह्मा जी की पूरी ) सुवर्णमयी ब्रह्मपुरी में पहुँची । गंगा यहाँ निम्न 04 भागों में विभक्त हो गयी । उत्तर दिशा में भद्रा , दक्षिण दिशा में अलकनंदा , पूर्वी दिशा में सीता और पश्चिमी दिशा में चक्षु नाम से बहने लगी । आगे इनके सम्बन्ध में देखें ⬇️
स्लाइड - 02👆
( आगे चल कर इलावृत्त वर्ष और मेरु पर्वत की स्थिति को जम्बू द्वीप के भूगोल के अंतर्गत देखेंगे )
अब ऊपर दी गयी स्लाइड के आधार पर मेरु पर्वत पर गंगा की 04 धाराओं को समझते हैं ⤵️
1 - मेरु पर्वत से उत्तर दिशा की ओर
गंगा की जो धारा बहती है उसे भद्रा की संज्ञा दी गयी ⤵️
( देखें स्लॉइड - 02 + 03 )⤵️
भद्रा जम्बू द्वीप के इलावृत्त वर्ष के केंद्र में स्थित मेरु पर्वत के उत्तर में बहती हुई क्रमशः नील पर्वत , रम्यक वर्ष , श्वेत पर्वत , हिरण्यवर्ष और श्रृंगवान पर्वत को पार करती हुई कुरु वर्ष को सीचती हुई उत्तरी सागर से जा मिलती हैं । यहां व्यक्त कुरु वर्ष आज का साइबेरियन उत्तरी कोस्टल क्षेत्र हो सकता है । कुरु के संबंध में आगे बताया जायेगा ।
स्लाइड - 03
गंगा की मेरु से उत्तर दिशा में बहने वाली भद्रा धारा👆
अब आगे
2 - मेरु के दक्षिण दिशा की ओर गंगा की बहने वाली धारा को अलकनंदा नाम दिया गया ।
( देखें स्लॉइड - 02 + 04 ⬇️ )
अलकनंदा क्रमशः निधन पर्वत , हरिवर्ष , हेमकूट पर्वत , किम्पुरुष वर्ष से होती हुई हिमालय पर्वत को पार करती हुई भारत वर्ष को सीचती हुई दक्षिणी सागर से जा मिलती हैं ।
स्लाइड - 0 4⬆️
मेरु पर्वत से दक्षिण दिशा में बहने वाली गंगा की अलकनंदा धारा
अब आगे
3 - मेरुके पूर्व दिशा की ओर बहने वाली धारा को सीता गंगा नाम मिला ।
सीता क्रमशः गंधमादन पर्वत से होती हुई भद्राश्व वर्ष को सीचती हुई पूर्वी सागर से जा मिलती हैं ।
( देखे स्लाइड 02 + 05 ⤵️)
स्लाइड - 05👆
मेरु पर्वत के पूर्व - पश्चिम में बहने वाली क्रमशः सीता और चक्षु धाराएँ
4 - मेरु के पश्चिम दिशा की ओर बहने वाली गंगा की धारा को चक्षु नाम मिला जो क्रमशः
माल्यवान पर्वत शिखर से होती हुई केतुमान वर्ष को सीचती हुई पश्चिमी सागर से जा मिलती हैं ।
(देखे ऊपर दी गयी स्लाइड 02 + 05 ⬆)
अभीं तक गंगा रहस्य के अंतर्गत जो देखा गया उनमें जम्बू द्वीप को समझने की जिज्ञासा उठनी स्वाभाविक सी है अतः आगे हम 07 द्वीपों और 07 सागरों के सम्बन्ध में देखते हैं ⤵️
अब आगे ⬇️
07 द्वीप और 07 सागर⬇️
(देखें स्लॉइड - 06 ⤵)
जम्बू द्वीप में इलावृत्त वर्ष और उसके मध्य स्थित मेरु पर्वत , मेरु के ऊपर स्थित ब्रह्मा की पूरी तथा ब्रह्मा पूरी में गंगा जी के पदार्पण को समझने के लिए द्वीपों का भूगोल और द्वीपों के भूगोल में जम्बू द्वीप के भूगोल को समझना होगा । अतः इस संदर्भ में पहले द्वीपों के भूगोल में जम्बू द्वीप को देखते हैं और इसके बाद जम्बू द्वीप में इलावृत्त वर्ष एवं मेरु पर्वत की स्थिति को भी देखेंगे ।
श्रीमद्भागवत पुराण स्कन्ध - 5 में 07 सागरों और 07 द्वीपों में स्थित को स्लॉइड - 06 में दिखाया गया है , जहाँ केंद्र में स्थित जम्बू द्वीप को समझा जा सकता है । भारत वर्ष जम्बू द्वीप का एक देश है ।
स्लाइड - 06👆
( 1 ) जम्बू द्वीप सभीं द्वीपों का केंद्र है । जम्बू द्वीप के केंद्र में मेरु पर्वत है जिसके ऊपर ब्रह्मा एवं इंद्रादि 08 दिग्पालों की पुरियाँ हैं । यह द्वीप बाहर से चारो तरफ से खारे पानी के सागर से घिरा हुआ है । खारे सागर के बाहर गोलाई में चारो तरफ फैला ( 2 ) प्लक्ष द्वीप है जो ईख रस वाले सागर से घिरा हुआ है । ईख रस वाले सागर के बाहर चारो तरफ फैला ( 3 )आल्मलि द्वीप है जो चारो तरफ से मदिरा सागर से घिरा हुआ है । मदिरा सागर के पार (4 ) कुश द्वीप है जो घी सागर से घिरा हुआ है । घी सागर के उस पार ( 5 ) कौंच द्वीप है जो दूध - सागर से घिरा हुआ है ।
दूध सागर को ही क्षीर सागर कहते हैं । यह सागर पुराणों का केंद्र है । दूध सागर के बाद ( 6 ) शाक द्वीप है जो मट्ठे वाले सागर से घिरा हुआ है । मट्ठे वाले सागर पार ( 7 ) पुष्कर द्वीप है जो मीठे पानी से घिरा हुआ
है । ध्यान रहे कि स्वायंभुव मनु के पुत्र प्रियव्रत पृथ्वी को 07 द्वीपों में विभक्त किये थे । अब द्वीपों के क्षेत्रफल को समझते हैं , जिसे नीचे टेबल में दिखाया गया है ।
जम्बू द्वीप का दुगुना प्लक्ष द्वीप है , प्लक्ष के दोगुने क्षेत्र वाला शाल्मलि है , उस प्रकार द्वीपों का क्षेत्रफल 1 : 2 के अनुपात में आगे बढ़ता है । सबसे छोटा द्वीप जम्बू द्वीप है जिसमें गंगा और भारत वर्ष है ।
नीचे द्वीपों के क्षेत्रफलों के आनुपातिक सम्बन्ध में 1 , 2 , 2 , 4 , 5 , 6 और 7 संख्याओं को समझ लें⬇️
1- जम्बू 2 - प्लक्ष 3 - आल्मलि 4 - कुश 5 - कौंच 6 - शाक 7 - पुष्क
स्वायंभुव मनु पुत्र प्रियव्रत के पुत्र आग्नीध्र के निम्न 09 पुत्र हुए 👇
1 - नाभि , 2 - किम्पुरुष , 3 - हरिवर्ष , 4 - इलावृत्त , 5 - रम्यक , 6 - हिरण्मय ,7 - कुरु , 8 - भद्राश्व और 9 - केतुमान ।
सबका ब्याह मेरु की 09 पुत्रियों से हुआ और इनके नाम पर जम्बू द्वीप में 09 वर्ष बने । अजनाभ खंड ( आज का भारत वर्ष ) के राजा नाभि बने । शेष 08 वर्षों का नाम प्रियव्रत के शेष 08 पुत्रों के नाम पर रखा गया ।
☸ नाभि के पुत्र ऋषभ देव जी
अभीं तक भारत वर्ष अजनाभ खंड था । ऋषभ जी के पुत्र भरत हुए जिनके नाम पर अजनाभ खंड भारत वर्ष बना । ऋषभ देव के 100 पुत्र थे , जिनमें पहले 10 निम्न हैं ⬇️
1 - भरत , 2 - कुशावर्त , 3 - इलावर्त , 4 - ब्रह्मावर्त , 5 - मलय , 6 - केतु , 7 - भद्रसेन , 8 - इंद्रस्पुक ,
9 - विदर्भ , 10 - कीकट
भागवत स्कन्ध - 9 में बताया गया है कि …
सातवे मनु अर्थात वर्तमानके मनु श्राद्धदेव जी के पुत्र सुद्युम्न मेरु की तराई में शिकार खेलने गए और स्त्री में रूपांतरित हो गए क्योंकि वह शिव - पार्वती क्षेत्र है जहाँ शिव के अलावा और कोई पुरुष नहीं रह सकता ।
यदि कोई चला भी गया तो वह स्त्री बन जाता है ।
स्त्री रूप में सुद्युम्न इला नाम से जाने गए और इनसे तथा चन्द्रमा के पुत्र बुध से पुरुरवा पैदा हुए जिनसे चंद्र बंश प्रारम्भ हुआ । पुरुरवा त्रेता युग में थे ।
07 द्वीपों को समझने के बाद अब आगे जम्बू द्वीप के भूगोल को समझते हैं जिसमें भारत वर्ष और गंगा जी हैं ⤵️
अब आगे 👇
जम्बू द्वीप का भूगोल
अब जम्बू द्वीप का भूगोल समझते हैं जिससे गंगा , मेरु पर्वत और हिमालय के सम्बन्ध को समझा जा सके⤵️
स्लाइड - 07👆
ऊपर की स्लाइड - 07 को ध्यान से देखें । यहाँ जम्मू द्वीप के केंद्र में शिव क्षेत्र इलावृत्त वर्ष है जिसके केंद्र में मेरु पर्वत है । इस मेरु पर्वत की उच्चतम शिखर पर ब्रह्मा का निवास है जहाँ ध्रुव लोक से गंगा उतरती हैं ।
( ध्रुव लोक के लिए देखें स्लॉइड - 01 जो प्रारम्भ में दी गयी है )
मेरु पर्वत और इलावृत्त वर्ष के दक्षिण में दो पर्वतों
(निषध - हेमकूट ) और दो वर्षों ( हरि वर्ष - किम्पुरुष वर्ष ) के बाद हिमालय पर्वत आता है और हिमालय के दक्षिण में भारत वर्ष है ।
🌷जम्बू द्वीप के पूरे भूगोल का सार निम्न प्रकार से है
( ऊपर दी गयी स्लाइड - 06 + स्लॉइड - 07 को एक साथ देखें )⤵️
➡ जम्बू द्वीप चारो तरफ से खारे पानी के सागर से घिरा हुआ है ( स्लॉइड - 06 )
➡ जम्बू द्वीप में 09 वर्ष हैं । केंद्र में इलावृत वर्ष हैं । इसके केंद्र में मेरु पर्वत है । यह वर्ष शिव - पार्वती का निवास स्थान है । इस देश में शिव के अलावा और कोई पुरुष नहीं रह सकता । अगर कोई पुरुष भूल से भी इस क्षेत्र में पहुँच जाय तो तत्क्षण वह स्त्री में रूपांतरित हो जाता है , जैसा पहले बताया गया है । अब देखते है सम्राट कुरु को क्योकि गंगा की उत्तरी धारा भद्रा धारा कुरु वर्ष को सीचती हुयी उत्तरी सागर से जा मिलती हैं जैसा स्लाइड - 02 में दिखाया गया है ।
अब आगे
▶▶ सम्राट कुरु कौन थे ?
भागवत में दो कुरु राजाओं की चर्चा मिलती है । आइये ! इन दो कुरु राजाओं से परिचित होते हैं ⬇
✡ पहले कुरु
संदर्भ > भागवत : 5.3 + 5.4
पहले कुरु पहले मनु स्वायंभुव मनु (एक कल्प में 14 मनु होते हैं और एक कल्प = 4.32 billion वर्ष । वर्तमान के मनु सातवें मनु हैं ) के प्रपौत्र थे । स्वायंभुव मनु के पुत्र प्रियव्रत एवं विश्वकर्मा पुत्री बर्हिष्मती से 10 पुत्र हुए जिनमें आग्नीध्र बड़े थे । आग्नीध्र के निम्न 09 पुत्र हुए 👇
1- नाभि , 2 - किंपुरुष , 3 - हरिवर्ष , 4- इलावृत्त 5 - रम्यक , 6 - हिरण्मय , 7 - कुरु , 8 - भद्राश्व , 9 - केतुमान ।
👉 नाभि और मेरु पर्वत की पुत्री मेरु देवी के पुत्र ऋषभ देव जी हैं जो जैन परंपरा में पहले तोर्थंकर हैं ।
ऋषभ जी और इन्द्र कन्या जयंती से 100 पुत्र हुए जिनमें पहले 10 निम्न प्रकार हैं ⤵️
1 - भरत , 2 - कुशावर्त , 3 - इलावृत्त , 4 - ब्रह्मावर्त , 5 - मलय , 6 - केतु , 7 - भद्रसेन , 8 - इन्द्रस्पूक् ,
9 - विदर्भ , 10 - कीकट । इन 10 में भरत सम्राट बने , 09 राजकुमार हुए और शेष 90 में 09 भगवद्भक्त बन कर भागवत धर्म प्रचारक बन गए और 81 ब्राह्मण हो गए । ब्राह्मण का अर्थ है नैष्टिक ब्रह्मचारी ऋषि ।
⚛ दूसरे कुरु 👇
संदर्भ > भाग . 9.14 - 9.24
▶ब्रह्मा पुत्र ऋषि अत्रि के पुत्र चंद्रमा तथा चंद्रमा के पुत्र बुध हुए । बुध के पुत्र पुरुरवा और उर्बशी से 06 पुत्र हुए जिनमें आयु बड़े थे । आयु के पौत्र ययाति हुए । ययाति की दो पत्नियाँ थी ; दैत्यराज बृषपर्वा पुत्री शर्मनिष्ठा और शुक्राचार्य पुत्री देवयानि । देवयानि से 02 पुत्र यदु और पूरू हुए ।
➡️ पूरू बंश में आगे 15 वे दुष्यन्त हुए । दुष्यन्त और विश्वामित्र पुत्री शकुन्तला से भरत हुए ; ये दूसरे भरत हैं , पहले भरत ऋषभ जी के बड़े पुत्र थे जिनके नाम पर अजनाभ खंड का नाम भारत वर्ष पड़ा । दुष्यन्त पुत्र भरत से आगे 04 थे हस्ती हुए । हस्ती से आगे 04 थे कुरु थे ; जिनके नाम पर कुरुक्षेत्र है । कुरु बंश में कुरु से आगे 15 वें हुए शंतनु हैं । कुरु के पिता संवरण थे और माँ सूर्य कन्या तपती थी ।
शंतनु और गंगा से देवव्रत ( भीष्म पितामह ) और केवट पुत्री सत्यवती से दो पुत्र हुए । दोनों पुत्र बिना औलाद मौत के शिकार हो गए । चित्रांगद गन्धर्व द्वारा मारे गए और विचित्र वीर्य की भी मौत हो गयी थी । इनकी पत्नियाँ काशी राज की पुत्रियाँ थीं । व्यास जी ब्याहपूर्व सत्यवती और पराशर ऋषि के पुत्र हैं । पराशर वशिष्ठ ऋषि के पौत्र हैं । सत्यवती वेदव्यास की माँ थी अतः उनकी आज्ञा पर वेदव्यास दोनों विधवाओं से क्रमशः अंधे धृत राष्ट्र और पाण्डु को जन्म दिए तथा दोनों पत्नियों के दासी से विदुर को पैदा किये ।
पाण्डु की दो पत्नियाँ कुंती और माद्री थी । निम्न प्रकार कुंती से 04 पुत्र और माद्री से 02 पुत्र हुए ।
▶ विवाह पूर्व कुंती और सूर्य से पैदा हुए कर्ण ।
▶कुंती और धर्म से युधिष्ठिर पैदा हुये
▶कुंती और वायु से भीम पैदा हुए
▶कुंती और इन्द्र से अर्जुन पैदा हुए
▶माद्री और अश्विनी कुमारों से
नकुल - सहदेव पैदा हुए ।
⏭ अर्जुन के पौत्र परीक्षितके बाद 06 वे बंशज हुए नेमिचक्र । इनके समय में गंगा हस्तिनापुर को बहा ले गयी थी । नेमिचक्र कौशांबी में जा बसे जो यमुना के तट पर प्रयाग के पास है । कौशांबी बुद्ध का प्रिय क्षेत्र था जहाँ वे कई बार आये थे । बुद्ध के समय कौशाम्बी यह एक प्रमुख व्यावसायिक कस्बा हुआ करता था ।।
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अब आगे
अलकनंदा की हिमालय से गंगा सागर तक की भारत - यात्रा 👇
गंगा की अलकनंदा नाम से मेरु पर्वत से दक्षिण दिशा की यात्रा में क्रमशः निषध पर्वत , हरि वर्ष , हेमकूट पर्वत और किम्पुरुष वर्ष , हिमालय पर्वत आते हैं । हिमालय को पार करके अलकनंदा भारत वर्ष में प्रवेश करती हैं ।
इसे स्लाइड - 03 में पहले दिखाया जा चुका है लेकिन सुविधा के लिए स्लाइड - 4 को दुबारा यहाँ दिया जा रहा है ⬇️
स्लाइड - 0 4⬆️( दुबारा दिया गया है )
🌷 अब हिमालय से आगे की गंगा (अलकनंदा ) की यात्रा को यहाँ दिखाने का प्रयास किया जा रहा है । आगे चल कर आप देखेंगे कि देव प्रयाग के बाद अलकनंदा , मन्दाकिनी और भागीरथी मिल कर गंगा नाम से जानी जाने लगती हैं लेकिन भागवत में गंगा ब्रह्मा पूरी में चार भागों में विभक्त हो जाती हैं और उसके बाद भारत में बहने वाली गंगा की धारा को अलकनंदा नाम दिया गया है । ध्रुवलोक से ब्रह्मा पूरी तक गंगा हैं और ब्रह्मा पूरी से आगे हिन्द महासागर तक भागवत के आधार पर अलकनंदा हैं । यहाँ देखिये निम्न स्लॉइड - 8 को⤵️
स्लाइड - 08👆
अब आगे
गंगोत्री
( देखें स्लाइड्स : 9 +10 +11 को )
गंगा नदी की प्रधान शाखा भागीरथी है जो गढ़वाल में हिमालय के गौमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद(GURUKUL) से निकलती हैं।[5] गंगा के इस उद्गम स्थल की ऊँचाई 3140 मीटर है। यहाँ गंगा जी को समर्पित एक मंदिर है। गंगोत्री तीर्थ, शहर से 19 कि॰मी॰ उत्तर की ओर 3,892 मी॰ (12,770 फीट) की ऊँचाई पर इस हिमनद का मुख है। यह हिमनद 25 कि॰मी॰ लंबा व 4 कि॰मी॰ चौड़ा और लगभग 40 मीटर ऊँचा है। इसी ग्लेशियर से भागीरथी एक छोटे से गुफानुमा मुख पर अवतरित होती हैं। इसका जल स्रोत 5,000 मीटर ऊँचाई पर स्थित एक घाटी है। इस घाटी का मूल पश्चिमी ढलान की संतोपंथ की चोटियों में है। गौमुख के रास्ते में 3,600 मीटर ऊँचे चिरबासा ग्राम से विशाल गौमुख हिमनद के दर्शन होते हैं। समुद्र तल से 3415 मीटर ऊँचाई पर उत्तर काशी से 100 किलो मीटर दूर स्थित है , गंगोत्री । गंगा मंदिर 3040 मीटर उचाई पर बना है। मंदिर निर्माण 18 वीं शताब्दी का है ।
यात्रा का समय : मई से अक्टूबर तक का है।
दीपावली के दिन मंदिर बंद होता है और अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुलता है ।
स्लाइड - 09👆
स्लाइड - 10👆
स्लाइड - 11👆
भागीरथी , मन्दाकिनी और अलकनंदा का संगम
देव प्रयाग ⤵️
स्लाइड - 12👆
अलकनंदा और बद्री विशाल ⬇️
स्लाइड - 13👆
परम पवित्र ब्रह्म क्षेत्र यमुनोत्री , गंगोत्री , बद्री विशाल , केदार नाथ ⤵️🌷
स्लाइड - 14👆
(ऊपर स्लाइडस 12 ,13 और 14 को समझते हैं )
यहाँ जो दिया जा रहा है यह भागवत आधारित नहीं है । निम्न सूचनाएं उपलब्ध अन्य साधनों से एकत्रित की गयी हैं ⤵️
स्लॉइड - 12
अलकनंदा अपनी तीन सहायक नदियाँ ; पीली गंगा , नंदाकिनी और पिण्डार के साथ मन्दाकिनी से मिलकर कुछ और यात्रा कर के गंगोत्री से आ रही भागीरथी से देव प्रयाग में मिल रही हैं । मन्दाकिनी केदारनाथ के चरण धोती हुयी आगे उत्तर से दक्षिण दिशा में बहती हुई देव प्रयाग से कुछ पहले अलकनंदा से मिलती हैं । अलकनंदा और मन्दाकिनी मिल कर आगे देव प्रयाग में भागीरथी से जा मिलती हैं और देव प्रयाग से आगे बहने वाली धारा को गंगा नाम दिया गया है ।
स्लाइड - 13
स्लॉइड - 13 में बद्री विशाल और अलकनंदा के सम्बन्ध को दिखाने का प्रयास किया गया है ।
श्रीमद्भगवत पुराण में बद्री विशाल का नाम 08 बार निम्न स्कन्धों में आया है ⬇️
स्कन्ध - 2.7 , 3.4 , 4.12 , 5.4 , 10.10 , 10.87 , 11.29 , 12.8
स्लाइड - 14
इस स्लॉइड में यमुनोत्री , गंगोत्री , अलकनंदा ,मन्दाकिनी , भागीरथी , बद्री विशाल , केदार नाथ , देव प्रयाग और जोशी मठ के ऊर्जा क्षेत्र को दिखाने का प्रयास किया गया है ।
ऐसे लोग धन्य होते हैं जिनको इस क्षेत्र में होने का शुभ अवसर मिलता है ।
जब प्रभु श्री कृष्ण और बलराम जी सांदीपनि मुनि के उज्जैन आश्रम में दीक्षा ले रहे थे तब सांदीपनि मुनि इन्हें आकाश मार्ग से बद्री विशाल दर्शनार्थ ले गए थे । वापसी में मथुरा मंडल में यमुना के तट पर स्थित ब्रह्मा पुत्र महर्षि गर्गाचार्य जी के भी दर्शन किये थे ।
आज भी स्लाइड - 14 में दिखाए गए ऊर्जा क्षेत्र में अदृश्य रूप में सिद्ध योगी रहते हैं जो काल से अप्रभावित हैं और श्रद्धावान योगरूढ़ खोजियों को योग की उच्च भूमियाँ में पहुंचने में उनकी मदद करते रहते हैं ।
अब आगे ⤵️
गंगा - यमुना तंत्र 👇
स्लाइड - 15👆
( यहाँ गंगा - यमुना और उनकी सहायक नदियों के तंत्र को दिखाने का प्रयास किया गया है । यह youtube से लिया गया नक्शा है )
गंगा की लंबाई 2525 किलो मीटर मानी गयी है । यह लंबाई गंगोत्री से गंगा सागर तक की है ।
गंगा भारत वर्ष और बंगाल देश से गुजरती हैं । भारत वर्ष में उत्तराखंड , उत्तर प्रदेश , बिहार , झारखण्ड और पश्चिमी बंगाल प्रदेशों को सींचती हुयी बंगाल की खाड़ी से जा मिलती हैं ।
वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि गंगा स्वतः स्वक्ष रहने वाली नदी है। इसके पानी में Bacteriophage virus है जो हानिकारक बैक्टीरिया को ख़त्म कर देता है ।
अब आगे
गंगा का बंगला देश होती हुई बंगाल की खाड़ी में हिन्द महासागर में विलीन होना ⬇️
स्लाइड - 16👆
बंगला देश में गंगा पद्मा नाम से जानी जाती हैं औरब्रह्मपुत्र को जमुना कहते हैं । इस प्रकार पद्मा , जमुना और मेघना सुन्दर बन डेल्टा का निर्माण करती हैं जो दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा है ।
स्लाइड - 17👆
अब आगे
सब तीर्थ बार - बार , गंगा सागर एक बार ⏬
स्लाइड - 18👆
गंगा सागर कोलकाता से 150 कि॰मी॰ (८०मील) दक्षिण में एक द्वीप है । यह भारत के अधिकार क्षेत्र में आता है और पश्चिम बंगाल सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण में है । इस द्वीप का कुल क्षेत्रफल 300 वर्ग कि॰मी॰ है। इसमें ४३ गांव हैं, जिनकी जनसंख्या 160 ,000 है।
यहाँ एक मंदिर भी है जो कपिल मुनि के प्राचीन आश्रम स्थल पर बना है। श्रद्धालु कपिल मुनि के मंदिर में पूजा अर्चना भी करते हैं। कपिल मुनि पहले मन्वंतर में थे और इस समय सातवां मन्वंतर चल रहा है ।
गणना के आधार पर लगभग 0.308 मिलियन वर्ष का एक मन्वंतर होता है । ऐसा भी हो सकता है कि उस समय तक हिन्द सागर में स्थित गंगा सागर , सागर के तट पर रहा हो ! यहाँ प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर लाखों हिन्दू श्रद्धालुओं का आगमन होता है ।
यह द्वीप रॉयल बंगाल टाइगर का प्राकृतिक आवास है तथा मैन्ग्रोव का जंगल भी हैं ।
मैंग्रोववृक्ष
स्लाइड - 19👆
मैंग्रोव (Mangrove) ऐसे वृक्ष होते हैं जो खारे पानी या अर्ध-खारे पानी में पाए जाते हैं। अक्सर यह ऐसे तटीय क्षेत्रों में होते हैं जहाँ कोई नदी किसी सागर में बह रही होती है, जिस से जल में मीठे पानी और खारे पानी का मिश्रण होता है।
इनकी जड़ों के फैलाव को देखें और सोचें कि प्रकृति किस प्रकार इन्हें भोजन आपूर्ति के लिए विकसित करती है । इनकी जड़ें नाना प्रकार के समुद्री जीवों को शरण देती हैं और जीवों द्वारा बाहर निकाले गए मल को वृक्ष के खुराक रूप में उन्हें देती रहती हैं ।
पहले बताया जा चुका है कि सम्राट भगीरथ गंगा को ब्रह्मा पूरी से गंगा सागर अपने 60 , 000 पितरों को मुक्ति दिलाने हेतु ले आये थे । अब सम्राट भगीरथ के संबंध में देखते हैं ।
अब आगे
गंगा और सम्राट भगीरथ 👇
प्रभु श्री राम के पूर्वज सम्राट भगीरथ के कुल का संक्षिप्त विवरण यहां निम्न स्लाइड में दिया गया है । सम्राट भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न हो कर माँ गंगा मेरु पर्वत के उच्चतम शिखर पर स्थित सुवर्ण पूरी (ब्रह्मा जी की पूरी ) से हिमालय से होती हुई भारत वर्ष में पदार्पण करती हैं ।
यहाँ ध्यान में रखना होगा कि श्रीमद्भागवत पुराण के आधार पर ब्रह्माण्ड से परे से ध्रुवलोक होती हुई गंगा मेरु पर्वत की उच्चतम शिखर पर पहुंचने तक गंगा रहती हैं । मेरु से दक्षिण दिशा में इनकी जो धारा बहती है उसे अलकनंदा नाम से जाना जाता है । गंगा की अलकनंदा धारा को हम सब आज गंगा शब्द से जानते हैं । इस संदर्भ ने कुछ और रहस्य , आगे चल कर देखा जाएगा ।
स्लाइड - 20👆
🌷 भगवान श्री राम के कुल का संक्षिप्त विवरण
ब्रह्मा पुत्र ऋषि मरीचि के बड़े पुत्र इक्ष्वाकु के पुत्र विकुक्षि के कुल में सम्राट हरिश्चन्द्र 25 वें बंशज हैं जो सम्राट त्रिशंकु के पुत्र हैं । सम्राट सगर विकुक्षि के बाद 33 वें बंशज हैं , सम्राट दशरथ 58 वें बंशज हैं और प्रभु श्री राम 59 वें ।
सम्राट सगर अपनें गुरु ऋषि और्व के आदेश पर अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किये और यज्ञ का घोडा छोड़ा गया । उस घोड़े को इंद्र चुरा लिए । घोड़े को खोजने हेतु सम्राट सगर - सुमति के 60 , 000 पुत्रों को भेजा गया । सारी पृथ्वी छान मारने के बाद भी जब घोडा नहीं मिला तब क्रोध में आये ये 60 , 000 राजकुमार पृथ्वी को खोदने लगे और सागर का निर्माण कर डाले । पृथ्वी की खुदाई करते - करते जब वे उत्तर - पूर्व दिशा में पहुंचे तो वहां आँखे बंद किये ध्यान में लीन कपिल मुनि जी दिखे और उनके सामने वह अश्वमेधी घोडा भी दिखा । राज कुमार कपिल मुनि को नहीं जानते थे और भ्रम बश यह समझ बैठे की यह ऋषि ही घोड़े को बाँध रखा है । राजकुमार लोग कपिल मुनि पर क्रोधात् आक्रमण करने ही वाले थे कि इतने में मुनि का ध्यान टूट गया और 60 ,000 राज कुमार वहीँ भष्म हो गए ।
दादा सम्राट सगर की आज्ञा मान कर अंशुमान्
(सगर की दूसरी पत्नी के पौत्र )अपनें पिता के 60,000 सौतेले भाइयों को खोजते हुए कपिल मुनि के आश्रम जा पहुंचे। अंशुमान बहुत ज्ञानी थे और कपिल मुनि की के ऊर्जा क्षेत्र में आते ही समझ गए की ये कोई साधारण मुनि नहीं अतः वे उनकी स्तुति करने लगे । कपिल मुनि प्रसन्न हो कर बोले , तुम्हारे भष्म हुए 60 , 000 परिवार जनों की मुक्ति केवल गंगा जल से हो सकती है अतः तुम गंगा जी को यहाँ ले आने के लिए तप करो ।
अंशुमान् तप तो किये लेकिन सिद्धि प्राप्त करने से पूर्व ही उन्हें देह त्यागनी पड़ गयी । उनके बाद उनका पुत्र दिलीप तप करने लगे लेकिन उन्हें भी सिद्धि न मिल पाई और उनकी भी मृत्यु हो गयी । इसके बाद दिलीप के पुत्र भगीरथ तप पर बैठे और उन्हें तप - सिद्धि मिली और गंगा के दर्शन हुए ।
यहाँ गहरा मनन करना चाहिए कि ⤵️
सम्राट सगर की दूसरी पत्नी केशनी परिवार की तीन पीढ़ियों की तपस्या के फल स्वरुप गंगा का आगमन ब्रह्मा पूरी से भारत वर्ष भूमि पर हो सका है ।
गंगा जी ब्रह्मपुरी से भारतवर्ष में उतरने से पूर्व सम्राट भगीरथ से कुछ प्रश्न पूछती हैं जो निम्न प्रकार हैं ⤵️
अब आगे ⤵️
✡ सम्राट भगीरथ और गंगा संबाद
गंगा जी भगीरथ को कहती हैं कि मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूँ लेकिन निम्न दो कारणों से पृथ्वी पर नहीं जाना चाहती ⬇️
⚛️ पहला कारण यह यह है कि पृथ्वी पर मेरे वेग को धारण करने वाला कोई नहीं और इस स्थिति में मैं सीधे पाताल में चली जाऊंगी , पृथ्वी पर अपने वेग के कारण रुक नहीं सकती ।
☸️ दूसरा कारण यह है कि लोग अपनें - अपनें पापों को मुझ में धोएंगे लेकिन मैं पापों को कहाँ धोउंगी ?
सम्राट भगीरथ कहते हैं …
💐 माँ ! आप चिंतित न होयें , आपके वेग को शिव जी धारण करेंगे और दूसरी समस्या का यह हल है कि जो लोग संसार से उपरत हैं , जो ब्रह्म ज्ञानी हैं और जो परा वैरागी हैं उनके स्पर्श मात्र से आपके अंदर एकत्रित सारा पाप धुल जाया करेगा और आप की पवित्रता यथावत बनी रहेगी ।
🌷 इस प्रकार गंगा जी पृथ्वी पर उतरने के लिए भगीरथ का अनुरोध स्वीकार करती हैं । भगीरथ तप करके गंगा के वेग को धारण करने के लिए शिव जी को भी प्रसन्न कर लेते हैं । सम्राट भगीरथ आगे - आगे अपनें रथ से चले और उनके पीछे माँ गंगा जी चल पड़ी । उत्तर - पूर्व दिशा में स्थित कपिल आश्रम था जहाँ भगीरथ के परिवार के 60 , 000 राज कुमारों के जलने के बाद अवशेष पड़े थे । माँ उन्हें अपने स्पर्श से मुक्त कर दिया और वे राजकुमार स्वर्ग चले गए ।
💐 आज वही स्थान गंगा सागर तीर्थ नाम से जाना जाता है।
💐 ध्यान रहे की यही वे 60 , 000 राजकुमार हैं जो घोडा न मिलने पर क्रोध में आ कर पृथ्वी के चारों तरफ खुदाई करके सागर बना दिया था ।
अब कपिल मुनि के संबंध में कुछ बातें👇
अब आगे
कपिल मुनि कौन थे ?
श्रीमद्भगवद्गीता श्लोक : 19.26 में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं > सिद्धानाम् कपिलः मुनिः अस्मि
श्रीमद्भागवत पुराण में कपिल मुनि को प्रभु श्री का पांचवाँ अवतार बताया गया है ।
👌 भागवत पुराण स्कंध : 2.7 , 3.3 , 3.21 , 3.25 , 4.1 , 4.19 ,
8.1 , 10.78 और 11.4 में कपिल के संबंध में देखा जा सकता है ।
👉 कपिल मुनि ब्रह्मा जी की छाया से उत्पन्न कर्मद ऋषि के पुत्र थे । कपिल मुनि का व्याह पहले मनु की कन्या देवहूति से हुआ था ।
कपिल जी का आश्रम विंदुसर में था जो पांच पवित्र सरोवरो में से एक है । विंदुसर अहमदाबाद - उदयपुर मार्ग पर अहमदाबाद से 130 किलो मीटर दूरी पर स्थित है ।
💐 05 दिव्य सरोवरों और विंदुसर कि गूगल आधारित भौगोलिक स्थिति को आगे एक स्लाइड के माध्यम से दिखाया गया है ।
विन्दुसर तीन तरफ से सरस्वती नदी से घिरा हुआ सरोवर हुआ करता था और सरस्वती - जल से हर समय परिपूर्ण रहता था।
पञ्च पवित्र सरोवर और विंदुसर की भौगोलिक स्थिति
स्लाइड - 21👆
~~◆ ॐ ◆◆◆~~
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