Sunday, October 10, 2021

श्रीमद्भागवत पुराण में मन रहस्य

 

भागवत आधारित मन रहस्य 

स्कन्ध संख्या

अध्याय . श्लोक

योग

2

1 .17

01

3

5.30 , 25.15 ,28.10 ,29.20 


04

5

6 .2 + 11.8 + 11.9

03

7

11.33

01

10

1 .42 + 2.36 + 16.42 

03

11

7.8 , 13.13 , 13.25 , 13.34

 22.26, 22.37 , 26.22 , 28.20 

08

योग

मन सम्बंधित इन 20 श्लोकों के भावार्थ आगे मिलेगें ...

20

भागवत 2.1.17

मन को स्थिर करनें हेतु मन का पीछा करते रहने का अभ्यास करना चाहिए ।

2.2.15 : अंत समय में मनको देश - कालमें नहीं रहना चाहिए ।

भागवत स्कन्ध 3 

3.5.30 :मनसे बिषय बोध होता है ।

3.25.15 :बंधन - मोक्ष का माध्यम , मन है ।

3.28.10 :प्राणवायु नियंत्रणसे मन शुद्ध रहता है। 

3.29.20 :राग - द्वेष मुक्त चित्त , प्रभु से जोड़ता है ।


 भागवत स्कन्ध : 5 , 7 और 10 से

5.6.2 :योगी , मनका गुलाम नहीं होता।

5.11.8 :शुद्ध चित्त ,कैवल्य का द्वार होता है ।

5.11.9 :मनकी वृत्तियाँ : 10 इंद्रियाँ , बिषय , अहँकार और 05 प्रकारके कार्य /

7.11.33 :मन बासनाओं का संग्रहालय है ।

10.1.42 : विकारों का पुंज , मन है ।

10.2.36 :मन और वेद वाणी से प्रभुके स्वरूप का अंदाज़ भर लगता है।

10.16.42 : 11 इन्द्रियों सहित 05 बिषय , 05 महाभूत और बुद्धिका केंद्र , चित्त है ।

11.7.8 :अशांत मन एक वस्तु को अनेक रूपों में देखता है ।

11.13.13 :बिषय चिंतन , संसार से बाध कर रखता है ।

11.13.25 : बिषय मनन मनको , बिषयाकार बना देता है ।

11.13.34 :जगत मनका विलास है ।

11.22.26 : कर्म संस्कारो का पुंज , मन है ।

11.22.37 :पूर्व अनुभवों पर मन भौरे की तरफ मंडराता रहता है ।

11.26.22 इन्द्रिय - बिषय संयोग से मन में विकार उठते हैं ।

11.28.20 :मनकी अवस्थाएँ :जाग्रत , स्वप्न  और सुषुप्ति पर निर्मल मन तुरीय अवस्था में होता है जहां इसका एकत्व ब्रह्म से होता है । 

~~◆◆ ॐ◆◆~~

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