भागवत आधारित मन रहस्य
भागवत 2.1.17
मन को स्थिर करनें हेतु मन का पीछा करते रहने का अभ्यास करना चाहिए ।
2.2.15 : अंत समय में मनको देश - कालमें नहीं रहना चाहिए ।
भागवत स्कन्ध 3
3.5.30 :मनसे बिषय बोध होता है ।
3.25.15 :बंधन - मोक्ष का माध्यम , मन है ।
3.28.10 :प्राणवायु नियंत्रणसे मन शुद्ध रहता है।
3.29.20 :राग - द्वेष मुक्त चित्त , प्रभु से जोड़ता है ।
भागवत स्कन्ध : 5 , 7 और 10 से
5.6.2 :योगी , मनका गुलाम नहीं होता।
5.11.8 :शुद्ध चित्त ,कैवल्य का द्वार होता है ।
5.11.9 :मनकी वृत्तियाँ : 10 इंद्रियाँ , बिषय , अहँकार और 05 प्रकारके कार्य /
7.11.33 :मन बासनाओं का संग्रहालय है ।
10.1.42 : विकारों का पुंज , मन है ।
10.2.36 :मन और वेद वाणी से प्रभुके स्वरूप का अंदाज़ भर लगता है।
10.16.42 : 11 इन्द्रियों सहित 05 बिषय , 05 महाभूत और बुद्धिका केंद्र , चित्त है ।
11.7.8 :अशांत मन एक वस्तु को अनेक रूपों में देखता है ।
11.13.13 :बिषय चिंतन , संसार से बाध कर रखता है ।
11.13.25 : बिषय मनन मनको , बिषयाकार बना देता है ।
11.13.34 :जगत मनका विलास है ।
11.22.26 : कर्म संस्कारो का पुंज , मन है ।
11.22.37 :पूर्व अनुभवों पर मन भौरे की तरफ मंडराता रहता है ।
11.26.22 इन्द्रिय - बिषय संयोग से मन में विकार उठते हैं ।
11.28.20 :मनकी अवस्थाएँ :जाग्रत , स्वप्न और सुषुप्ति पर निर्मल मन तुरीय अवस्था में होता है जहां इसका एकत्व ब्रह्म से होता है ।
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