सांख्य में चित्त - मन क्या हैं ?
# कारिका : 21, 22 > सृष्टि रचना
प्रकृति +पुरुष संयोग से 23 तत्त्वों की उत्पत्ति होती है (महत् , अहँकार , मन , 10 इन्द्रियां , 5 तन्मात्र , 5 महाभूत )
➡️प्रकृति से महत् , महत् से अहँकार , अहँकार से मन +10 इन्द्रियां + 5 तन्मात्र और तन्मात्रों से उनके अपनें - अपनें महाभूतों की उत्पत्ति होती है
कारिका : 29 - 35
# 13 करण हैं जिनमें महत् + मन +अहँकार को अंतःकरण और शेष 10 इंद्रियों को बाह्य करण कहते हैं ।
➡️ अंतःकरण को स्वामी ( द्वारि ) और 10 बाह्य करण को द्वार कहते हैं ।
➡️ 13 करणों में 12 करण महत् ( बुद्धि ) नियंत्रित हैं ।
कारिका : 3 +22
➡️ तीन गुणों की साम्यावस्था , अविकृति मूल प्रकृति है जो अनादि सनातन , जड़ , प्रसवधर्मी तथा कार्य नहीं कारण है ।
➡️ पुरुष निष्क्रिय , शुद्ध चेतन और ज्ञान - ऊर्जा का श्रोत है ।
कारिका : 24 +25
अहँकार : अभिमान ही अहँकार है ।
➡️ सात्त्विक , राजस और तामस 03 प्रकार के अहँकार हैं ।
➡️ 11 इन्द्रियां और 05 तन्मात्र अहँकार से उत्पन्न होते हैं ।
➡️ 11 इन्द्रियां सात्त्विक अहँकार से हैं , 05 तन्मात्र तामस अहँकार से हैं और राजस अहँकार दोनों की केवल मदद करता है ।
कारिका : 29 + भागवत : 3.26.14
अंतःकरण क्या है ?
मन , बुद्धि और अहँकार को अंतःकरण कहते हैं। अंतःकरण की असामान्य वृत्तियॉ निम्न हैं ⬇️
मन का संकल्प , बुद्धि का ज्ञान और अहँकार का अभिमान /
★ कारिका : 28 में बतायी गयी 10 इंद्रियों की वृत्तियॉं भी असामान्य हैं जो निम्न हैं ⬇️
तन्मात्र और पञ्च ज्ञान इंद्रियों की वृत्तियॉं ⬇️
रूप - रंग , शब्द , श्वाद , गंध और स्पर्श संवेदना
प्राण , अपान , व्यान , उदान और समान रूपी वृत्तियॉं सामान्य वृत्तियॉं हैं ।
कारिका : 30
अंतःकरण क्रमशः
● जब अंतःकरण के साथ कोई एक इंद्रिय जुड़ती है तब वह चतुष्टय कहलाती है ।
● दृश्य बिषयों में इन चारों की वृत्ति कभीं एक साथ तो कभीं क्रमशः भी होती है ।
● अदृश्य बिषयों में अंतःकरण की इंद्रिय पूर्वक ही वृत्ति होती है जैसे अदृश्य रूप के चितन में चक्षु पूर्वका ही वृत्ति होगी । अदृश्य गंध की अनुभूति घ्राण पूर्वक ही होगी , आदि - आदि ।
कारिका - 31
अंतःकरण क्रमशः
◆ मन , बुद्धि और अहँकार परस्पर एक दूसरे के अभिप्राय से अपनी - अपनी वृत्तियॉं को जानते हैं ।
◆ इन सभी वृत्तियॉं का पुरुषार्थ ( मोक्ष ) ही उद्देश्य होता है ।
● ये करण (करण के लिए अगली कारिका देखें ) स्वयं प्रवृत्त होते हैं , किसी और से नियंत्रित नहीं होते ।
कारिका : 32
13 करण हैं ; 11 इन्द्रियाँ +मन +बुद्धि
लेना - देना , धारण करना , ज्ञान देना , करण के कार्य हैं ।
# कर्म इन्द्रियां ग्रहण - धारण दोनों कार्य करती हैं ।
# ज्ञान इन्द्रियाँ केवल ज्ञान देती हैं ।
कारिका : 33 : अंतःकरण क्रमशः
1- बाह्य करण : 10 इन्द्रियाँ
2 - अंतः करण : मन , बुद्धि , अहँकार
● बाह्य करण केवल वर्तमान काल के बिषयों को ग्रहण करते हैं
◆ अंतःकरण तीनों कालों के बिषयों को ग्रहण करते हैं।
कारिका : 35 :अंतःकरण
● कारिका - 32 में 13 करण बताये गए।
● कारिका - 33 में तीन अंतः करण और 10 बाह्य करण बताये गए ।
● अंतःकरण को स्वामी ( द्वारि ) और 10 बाह्य करण को द्वार कहते हैं ।
◆अंतः करण स्वेच्छा से अलग - अलग बिषय ग्रहण करते हैं ।
◆ मन एवं अहँकार के सहयोग से बुद्धि तीनों कालों के बिषयों पर गहरा चिंतन करती है।
<> श्रीमद्भागवत पुराण : 3.26 में कपिल - देवहूति वार्ता के अंतर्गत अंतःकरण की निम्न वृत्तियाँ बतायी गयी हैं ⬇️
संकल्प , निश्चय , चिंता और अभिमान
कारिका : 35 - 37 करण
● 11 इन्द्रियाँ और अहँकार बुद्धि को समर्पित हैं अर्थात बुद्धि से नियंत्रित हैं और एक दूसरे से भिन्न गुण वाले होते हैं ।
●पुरुष के सभीं उपभोग की व्यवस्था बुद्धि करती है।
कारिका : 46 - 47
बुद्धि (प्रत्यय ) सर्ग निरुपण
● बुद्धि के प्रमुख 04 प्रकार ..
विपर्यय + अशक्ति + तुष्टि + सिद्धि
1 - विपर्यय : यह 05 प्रकार की है ।
2 - अशक्ति : यह 28 प्रकार की है ।
3 - तुष्टि : यह 09 प्रकार की है ।
4 - सिद्धि : यह 08 प्रकार की है ।
★ कुल मिला कर 50 प्रकार की बुद्धि होती है।
~~◆◆ ॐ ◆◆~~ 11 अक्टूबर
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