गीता आधारित मन रहस्य
गीता श्लोक : 3.6 + श्लोक - 3.7
●हठात् इन्द्रिय नियोजन , मनको बिषय - मननसे नहीं रोक सकता ।
● इन्द्रिय नियोजन मनसे होना चाहिए ।
गीता श्लोक : 3.40
इंद्रियाँ , मन और बुद्धि पर काम ( Sex )का
सम्मोहन रहता है ।
गीता श्लोक : 5.13
अंतःकरण (मन , बुद्धि , अहँकार और चित्त )
जिसका निर्मल है , वह 09 द्वारों वाले शरीर में सुखसे रहता है ।
गीता श्लोक : 6.6
मन सहित इंद्रियाँ जिसकी नियोजित हैं , वह स्वयं का मित्र है ।
श्लोक : 6.10 - 6.21 12 श्लोको का सार
👌यहाँ मन शांत के लिए एक ध्यान विधि दी जा रही है…
●मन सहित जब इंद्रियाँ नियोजित हो जाय तब उस आशा - संग्रह मुक्त योगी को एकांत में प्रभुसे एकत्व स्थापित करना चाहिए ।
ध्यान विधि 👇
◆ शुद्ध समतल भूमि पर कुश या मृगचर्म का बिछावन बिछा कर ..
> उस पर किसी आसान में बैठ कर ,मन एकाग्र करने का अभ्यास करना चाहिए …
【 1】 शरीर , सिर और गर्दन तनाव रहित एक सीधी रेखा में स्थिर रखें ...
【 2 】 नासिका के अग्र भाग पर दृष्टि एकाग्र करने का अभ्यास करें..
सावधानियाँ
इस अभ्यासमें , सामान्य भोजन लेना चाहिए , उपवास रखना वर्जित है और सम्यक निद्रा लेनी चाहिए ।
◆ जैसे वायु रहित स्थान में दीपक की ज्योति स्थिर रहती है , वैसे योगारूढ़ योगी का मन स्थिर रहता है।
गीता श्लोक 6.26 - 6.27
👉मनका पीछा करते रहो , वह जहाँ - जहाँ जाय , उसे वहाँ - वहाँ से प्रभुके विग्रह पर लौटा ले आना चाहिए ।
👉 राजस गुण , ब्रह्म - खोज मार्गी के लिए एक बड़ी रुकावट है।
गीता श्लोक : 6.35 - 6.37
●चंचल मन , अभ्यास - वैराग्यसे बश में होता है ।
● शांत मन वाला , योगमें होता है ।
अर्जुन पूछते हैं , श्रद्धावान पर अनियमित योगीका अंत कालमें जब मन विचलित हो जाता है , तब उसे कौन सी योनि मिलती है ।
इस बिषय पर गीतामें दो बातें बताई गई हैं : बैराग्य में पहुंचे योगीका योग जब खंडित होता है तब वह
स्वर्ग न जा कर किसी योगी कुल मे जन्म लेता है और पिछले जन्म की साधना जहाँ खंडित हुई होती है , वह उसे वहाँ से पुनः आगे बढ़ाता है ।
● ऐसे योगी जो वैराग्यवस्था तक नहीं पहुंच पाते , उनका योग खंडित हो जाता है और वे देह त्याग कर जाते हैं , वे श्रीमानों के कुल में जन्म न ले कर स्वर्ग जाते हैं और अपना भोग पूरा करते हैं । जब उनके भोग की अवधि समाप्त हो जाती है तब वे पुनः जन्म लेते हैं और प्रारम्भ से साधना करते हैं ।
गीता श्लोक : 7.4
अपरा प्रकृति के 08 तत्त्व हैं >पंच महाभूत , बुद्धि , अहंकार और मन...
गीता श्लोक : 8.5 - 8.6
●अंत समयकी गहरी सोच उस मनुष्यके जीवात्मा को उसकी सोचके अनुसार यथा उचित योनि में ले जाती है ।
● जब जीवात्मा देह त्यागता है तब उसके संग
मन सहित 05 ज्ञान इंद्रियाँ भी होती हैं । मन और ज्ञान इन्द्रियों के समूह को
लिंग शरीर ( cosmic body ) या सूक्ष्म शरीर कहते हैं ; यहाँ देखिये भागवत : 11.22।
गीता श्लोक : 10.22
इन्द्रियों में मन और चेतना मैं हूँ ।
गीता श्लोक : 13.5 - 13.6
क्षेत्र की रचना : 05 महाभूत , 05 बिषय , 10 इंद्रियाँ , अहँकार , बुद्धि , विकार , सभीं द्वैत्य भाव , धृतिका और मन एवं चेतना ।
गीता श्लोक : 15.8
जैसे वायु गंध को अपनें साथ ले जाता है वैसे जीवात्मा देह त्याग के समय अपनें साथ मन सहित 05 ज्ञान इन्द्रियों को भी ले जाता है ।। यहाँ गीता श्लोक : 8.5 + 8.6 को भी देखें ।।
// ॐ //
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