Sunday, March 23, 2014

किनारा

* जीवन सरक रहा है और हम किनारे की खोज में उसे देखनें में पूर्ण रूपसे असमर्थ हैं जो हमारा वर्तमान है ।
 * प्रकृति हमें आँखे दी है ,आगे देखनें हेतु लेकिन मनका बसेरा है स्मृतियों में । मन हमारे इन्द्रियोंका नियंत्रक है और इन्द्रियाँ अपनें -अपनें बिषयों की खोज में रहती हैं ।यह बिषय ,मन और इन्द्रिय समीकरण को समझना ही ध्यान या योग कहलाता है ।
 * क्या करोगे ?, मन स्मृतियों में सीमित रहना चाहता है और इन्द्रियाँ खोज रही हैं उस नए को जिसको पा कर वे तृप्त हो सकें लेकिन उनपर मन का नियंत्रण उनको नए तक पहुंचनें नहीं देता।
 * मनुष्य हो ,कोई अन्य जीव नहीं ,सोचो कि ---- 
> इन्द्रियाँ कैसे उस नए की खोज में सक्रीय हो सकें ?
 > मनको कैसे उसके बसेरे (स्मृतियों ) से बाहर निकाला जाय ? > और < 
बिषय से मन तक के अभ्यास योग से समभाव की स्थिति में पहुँचा जाय ,जहाँ बसता है ----- 
< परमानन्द > जिसकी खोज के लिए ही मिला है मनुष्य का 
जीवन । 
~~~ हरे कृष्ण ~~~