Wednesday, September 28, 2011

धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्रे




धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र ------








गीता के प्रारंभिक सूत्र का एक अंश मात्र है धर्म क्षेत्रे कुरुक्षेत्रे और आज हम महाभारत – युद्ध स्थल कुरुक्षेत्र के सम्बन्ध में कुछ सोचते जा रहे हैं / गीता पर भाष्य लिखनें वाले एक नहीं अनेक हैं औरसभीं लोग गीता में अपनें को देखनें का प्रयाश न करते हुए स्वयं में गीता को देखा है और जो जैसा है वह गीता के सूत्रों का वैसा भाव समझा है / जबतक हम जैसे हैं वैसे प्रकृति को देखते रहेंगे तबतक प्रकृति हमसे दूर रहेगी ही और जब प्रकृति जैसी है वैसी हम देखेंगे तब हम वह न होंगे जो अभीं हैं उस समय हम संदेह रहित होंगे और परम सत्य में द्रष्टा रूप में परम आनंद में होंगे /








दिल्ली से लगभग 160 किलो मीटर दूर नेसनल हाई वे - 01 परकरनाल एवं अम्बालाके मध्य पीपली नामक स्थान से बाएं हाँथ की ओर एक सड़क जाती है जो आगे जा कर कुरुक्षेत्र के बीचोबीच से गुजरती है / प्राचीनतम बौद्ध शास्त्रअंगुतारा निकाय [ Anguttara Nikaya ] में 16 महाजन पदोंकी बात कही गयी है और उनमें एक हैकुरु महाजनपद / कुरु महाजनपद की राजधानी आज के मेरठ से लगभग 37 किलो मीटर दूरहस्तिनापुरमें हुआ करती थी / महाजन पद का अर्थ है महाराज्य / कुरु महाजनपद तीन भागों में बिभाक्त था ; कुरु राष्ट्र , कुरु जंगल और कुरुक्षेत्र / हरियाणा में हिसार , कुरुक्षेत्र एवं उत्तर प्रदेश में मेरठ [ हस्तिनापुर ] को मिलानें से एक त्रिभुज की आकृति बनती है और एस क्षेत्र कोकुरु - राज्यके नाम से इतिहास कार लोग जानते हैं /








गंगा एवं यमुना के मध्य का भाग कुरु - राष्ट्र हुआ करता था , यमुना एवं सरस्वती नदियों के मध्य का भाग दो भागों में बिभक्त था - करू जंगल एवं कुरुक्षेत्र / कुरुक्षेत्र महाभारत के समय कोई बस्ती न थी यह एक क्षेत्र था और इस क्षेत्र का केन्द्र थास्थानेश्वर [ थानेश्वर ] जोहर्षबर्धन की राजधानीहुआ करती थी / वेदों में कुरुक्षेत्र को स्वर्ग में रहनें वालों के तीर्थ के रूप में देखा गया है और थानेश्वर को 51 शक्तिपीठों में एक शक्ति पीठ के रूप में बताया गया है /








// अगले अंक में कुछ और बातें होंगी //








======ओम===========


Saturday, September 24, 2011

आप की खोज किसकी हो सकती है

मनुष्य क्या चाहता है?

मनुष्य हर पल नया देखना चाहता है,हर पल नया सुनना चाहता है,हर पल नये को स्पर्श करना चाहता है,हर पल नये की संगति करना चाहता है,हमेशा नया घर चाहता है,नयी कार चाहता है,नये-नये धर्म गुरुओं को देखना चाहता है,नये-नये सपनें देखना चाहता है,नये-नये तीर्थ देखना चाहता है,नये-नये संगीत सुनना चाहता है और नये-नये कार – बाइक आदि को अपनें पास रखना चाहता है/मनुष्य नये की खोज में स्वयं बूढा हो रहा है,इसकी फ़िक्र उसे नहीं होती/आज जो है उसमें मनुष्य को रस नहीं मिलता वह सोचता है कल जो आएगा उसमें कुछ और रस होगा और यह उसकी सोच विज्ञान में उसे बनाए तो रखती है लेकिन उसे स्वयं से दूर रखती है,उससे उसका आज छीन लेती है और स्वयं से दूर रहना ही तनहाई है/


प्रकृति में जितनें भी प्रकार के जीव हैं उनमें वैज्ञानिक सबसे अधिक तनहा जीव है ; वह वैज्ञानिक हो नहीं सकता जबतक उसमें तनहाई न भरी हो / प्रो आइन्स्टाइनसे किसी ब्यक्ति नें पूछा , यदि मृत्यु के बाद दूसरा जन्म होता हो तो आप अगले जन्म में क्या बनना पसंद करेंगे ? आइन्स्टाइन तुरंत बोल पड़े , कमसे कम वैज्ञानिक तो मैं बनना नहीं चाहूँगा , वैज्ञानिक बननें से तो बेहतर होगा यदि मैं घरों में पानी के नलकों को ठीक करनें वाला मेकैनिक बन जाऊं / क्यों इतना बड़ा वैज्ञानिक इतना तनहा जीवन जी रहा है ? कामना दुस्पुर होती है , यह बातबुद्ध कहते हैं / दुस्पुर का अर्थ है वह जो कभीं तृप्तता को स्पर्श न करती हो / कामना विज्ञान का गर्भ है और कामना तनहाई का पिजड़ा भी है / पिजड़े में कैद पंछी कभी तनहाई से मुक्त नहीं हो सकता और बिना तनहाई मन – बुद्धि में वैज्ञानिक विचार आ नहीं सकते /

आधुनिक विज्ञान का जनकसर आइजक न्यूटनका जन्म उनके पिता के देहांत के तीन माह बाद हुआ/ जब वे तीन साल के हुए तब उनकी मां अपना ब्याह रचा लिया और न्यूटन अनाथ हो गए/

आप सोच सकते हैं कि इतना तनहा बच्चा किस प्रकार का मनोविज्ञान अपनें में रखा होगा ? स्कूल से निकाले गए और तनहाई में जब एक सेव के पेड़ के नीचे बैठे अपने विचारों में खोये रहे तब ऊपर से एक सेव उनके सामनें आ टपका / सेव के तपकनें की आवाज उनके लिए ब्रह्म की आवाज बन गयी और उनका तनहा मन एवं तनहाई से भारी हुयी बुद्धि की ऊर्जा एकाएक रूपांतरित हो उठी और वे गुरुत्वा कर्षण का वह सिद्धांत दिया जो आज तक किसी वैज्ञानिक से बदला न जा सका /


बहुत कम ऐसे लोग होंगे जो तनहाई से प्रभावित न होते हों लेकिन ऐसे भी बहुत कम लोग हैं जिनको उनकी तनहाई उनको ऐतिहासिक पुरुष बना दिया/आप भी जब उदास हों तो अपनी उदासी को परम को पकडनें का साधन बना लेना,क्या पता यही आप की तनहाई आप को पूर्ण रूप से तृप्त कर दे//


=====ओम=====


Tuesday, September 20, 2011

भक्तों का आना


सोचै सोच न होवहीं


जो सोची लाख बार ….


नानक जी साहिब कह रहे हैं,चाहे लख बार सोचो लेकिन जब तक सोच मन – बुद्धि में है उसकी


[ मालिक ] की सोच उस मन – बुद्धि में नहीं आ सकती और अब आगे ----------




नानाक जी साहिब जब 19 साल के हुए तब इनका ब्याह हो गया और 30 साल की उम्र में इनको परम का बोध हुआ / श्री नानकजी साहिब एक अद्भुत योगी थे जिनको इतनी कम उम्र में ज्ञान की प्राप्ति


हुयी / श्री नानकजी साहिब मात्र दो बातें बार – बार कहते हैं जो इस प्रकार हैं ------


नाम जपो [ Naaam Japo ]


कीरत करो [ Kirat Karo ]


क्या है नाम उसका ?


उसका क्या नाम है ? वह कहाँ रहता है ? वह कैसा है ? उसकी आवाज कैसी है ? उसका रंग कैसा है ? ऐसे एक नहीं अनेक प्रश्न हैं जिनका कोई उत्तर नहीं और वह जो उत्तर पा लेता है वह चुप हो जाता है क्योंकि उसे ब्यक्त कौन कर सकता है ? श्री नानक जी साहिब कहते हैं , एक ओंकार सत् नाम अर्थात


ओंकार का जप करना ही उसके नाम का जप करना है /


हमारे सामनें सब कुछ घटित होता रहता है और हम अपनी ज्ञानेन्द्रियों को बंद करके रखते हैं फिर क्या होनें वाला है,अब देखिये इनको-------




  • मीरा जब २० साल की थी तब कबीर जी देह छोड़ गए थे



  • कबीरजी साहिब जब 29 साल के हुए तब नानक जी साहिब का जन्म हुआ



  • कबीरजी साहिब के जन्म के 10 साल बाद रबिदास जी साहिब पैदा हुए



  • श्री नानक जी साहिब के देह छोडनें के08साल बाद मीरा चल बसी



  • मीरा के जानें के ठीक एक साल बाद रसखान जी आये


आप इन सभीं बातों पर सोचें क्योंकि ------


सोचै सोचि न होवहीं


जो सोची लख बार


आप सोचते रहिये लेकिन भोग सोच में डूबे रहनें से जो मिलेगा वह क्षणिक सुख तो दे सकता है लेकिन परम सुख यदि आप चाहते हैं तो उस परम की सोच में डूबें जिसको श्री नानक जी साहिब कहते हैं ------


एक ओंकार सत् नाम




=====ओम=====




Saturday, September 17, 2011

कामना एक माध्यम है


सोचै सोच न होवई-----


जो सोची लख बार----




परम गुरु श्री नानकजी साहिब कह रहे हैं-----


सोचै सोच न होवई , जो सोचि लख बार


अर्थात


जबतक मन में सोच भरी है तबतक उसकी सोच उस मन में नहीं उभड़ सकती और -----


गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं-------


भोग – भगवान की ऊर्जा एक मन में एक साथ नहीं होती //




हाँ एक परा भक्त हैं जिनको सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक के फैलाव रूप में उस से एवं उसमें दिखता


रहता है,जो संसार की सभीं सूचनाओं में प्रभु के अलावा और कुछ देखता ही नहीं और दूसरे हैं पूर्णावतार श्री कृष्ण जो एक साख्य – परम योगी के रूप में गीता में हैं//


सोच क्या है ? क्या सोच कामना का एक और नाम तो नहीं ? कामना राजस गुण का एक मूल तत्त्व है और प्रकृति के तीन गुण ; सात्त्विक , राजस एवं तामस मनुष्य को तीन मार्ग के रूप में उपलब्ध हैं जिनमें से किसी एक को पकड़ कर वह परम में पहुँच सकता है लेकिन वह जिसकी यात्रा में कहीं रुकावट न आनें पाए //


वह जिसकी अनुभूति हो रही होती है अनुभूति करता उसे तो स्वीकारता है लेकिन जब वह उसे बताना चाहता है जिसको उसकी अनुभूति नहीं हुयी होती तब वह वहाँ चूक जाता है और अपनी अनभूति को शब्दों के माध्यम से उस तरह ब्यक्त नहीं कर पाता जैसी उसक अनुभूति हुयी होती है//यहाँ सभीं


संत,महापुरुष,आंशिक अवतार एवं पूर्णावतार श्री कृष्ण सभीं असफल हो कर गए हैं,संसार में जो भी सत्य को ब्यक्त करना चाहा वह फेल हुआ क्योंकि सत्य चेतना की अनुभूति है उसे मन – बुद्धि स्तर पर नहीं समझा जा सकता/


आदि गुरु श्री नानकजी साहिब कह रहे हैं -----


पहले अपनें मन को रिक्त करो,कैसे रिक्त करो?इस प्रश्न के सन्दर्भ में गुरु जी साहिब कहते हैं---


पंचा का गुरु एक धियानुअर्थात मनुष्य का एक गुरु है,ध्यान और कोई नहीं अर्थात ध्यान के माध्यम से अपनें मन – को रिक्त करो और जब मन रिक्त हो जाता है तब सत्य स्वयं उस रिक्त मन में भर जाता है//ध्यान मन के बंद द्वार को खोलता हैऔर जब द्वार खुल जाता है तब उस मन से भोग की सोच स्वतः बाहर निकल जाती है और जो बच रहता है वह और कुछ नहीं परम सत्य


ही होता है//




=====ओम=======


Tuesday, September 13, 2011

अपने गम को दिशा दो

किसके खोनें का डर है?

क्या उसका जो अपना है ही नहीं ?

क्या उसका जो कभीं पराया हुआ ही नहीं ?

अब ज़रा सोचना------

वह जिसको हम अपना समझ रखे हैं, कितना अपना है?

और कबतक अपना रहेगा?

क्या मकान अपना है?क्या यह परिवार अपना है?क्या यह भोग अपना है जिसको हमनें अपनें पसीनें से सीच कर ऐसा बनाया है?


हमारे पड़ोस में एक मित्र थे चार दिन पहले गुजर गए आज उनकी अस्थियां इकट्ठी करने गए थे /

अस्थियों का कलश ले कर उनका बेटा जो अभी - अभी जवानी में कदम रखा है , सीधे अपनें घर में घुस आया , लोग उसे ऐसे बाहर भगानें लगे जैसे कोई अनजाना कुत्ता घर में आ गया हो / जोर – जोर से जब आवाज मैं सूना भागा - भागा अंदर गया , देखनें की क्या हो गया ? , क्योंकि मैं उस बच्चे को अंदर जाते देखा नहीं था / जब मैं अंदर पहुंचा तब असलियत का पता चला और असलियत को जाननें के बाद बहुत दुःख हुआ /


मैं उनको बचपन से जानता हूँ , मेरा और उनका बचपन साथ – साथ एक ही गली में गुजरा था / मैं यह भी जानता हूँ कि उस ब्यक्ति नें घर बनानें , परिवार को खडा करनें में कोई कसर न छोडी थी और तीन लड़कियों के बाद यह बच्चा पैदा हुआ था और अपनें पिता से बहुत प्यार था उसे / क्या हो गया यदि वह अपनें पिता की अस्थियों को घर के अंदर ले गया ? कल तक वही उस घर एवं उस परिवार का मालिक हुआ करता था , रात - दिन पसीना बहा कर यह घर तैयार किया था , यदि कुछ समय के लिए वह नहीं उसकी हड्डियां घर में पहुँच गयी तो कौन सी आफत आ गयी ? कल तक सभीं उसके इशारे पर चलते थे और आज वह उस परिवार एवं उस घर के लिए अशुभ हो गया , कैसी हैं ऎसी दो कौडी की हमारी मान्यताएं ? किसने बनायी होंगी ऎसी बेबुनियादी मान्यताओं को ? आज ढेर सारे प्रश्न हम सब के सामनें हैं और इसके पहले की हम भी अपनें घर के लिए अशुभ बन बैठे , हमें सोचना चाहिए कि ------------

यहाँ कौन है अपना ? हम क्यों न अपनों में उस अपनें को तलाशना शुरू करें जो तब भी अपना था जब कोई अपना न था , आज भी अपना है और कल भी वहीं एक मात्र अपना रहेगा भी //

कुछ समय संसार में तैरो …..

कुछ समय संसार के माझी को पहचाननें में भी लगाओ …..


====ओम====


Thursday, September 8, 2011

कल आज और कल


कल आज और कल इनमें सिमटा हुआ यह मिटटी का पुतला इतना तनहा क्यों दिखता है?

वह जो नियम बनाता है,

वह जो राह बनाता है,

वह जो उस राह पर चलता है वही इतनी तनहाई में क्यों रहता है?

मनुष्य भोग के नये - नये साधन खोज रहा है , और कोई जीव नहीं ऐसा कर रहा , मनुष्य योग के नये - नये ढंग तलाश रहा है और कोई जीव ऐसा नहीं कर रहा , मनुष्य ऐसे - ऐसे योग दे रहा है जिसकी कल्पना तक बाबा गोरख नाथ एवं पतांजलि नहीं किये होगें और कोई जीव ऐसा नहीं कर

रहा , योग से ब्रह्म तक की यात्रा के एक नहीं अनेक उपाय दिखा रहा है और कोई जीव ऐसा नहीं कर रहा लेकिन फिरभी तनहाई की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि सभी उपाय विफल हो रहे हैं /

मनुष्यों का समुदाय एक ऐसा समुदाय है जहां भक्त – भगवान और दोनों के मध्य एक धर्म – गुरु होता है जबकी अन्य जीवों में उनके और परमात्मा के मध्य कोई और नहीं होता , क्या पता परमात्मा भी रहता है या नहीं और यदि रहता भी हो तो उनको इसका इल्म नहीं होता होगा / सृष्टि प्रारम्भ होने के बाद कुछ समय तक सभीं जीव जीनें की राह खोज नहीं रहे थे बना रहे थे और जब राह बन गयी तब से आज तक सभीं जीव उस अपनी - अपनी राह पर चल रहे हैंलेकिन मनुष्य क्या कर रहा है ?

मनुष्य संदेह के उजाले में जीता है और-------

संदेह के अँधेरे में मरता है//

संदेह ही जिसके जीवन की ऊर्जा हो वह कभी हंस नहीं सकता,वह तनहा ही रहेगा//

अब आगे ======

आज गुजरे हुए कल का प्रतिबिम्ब है …..

और----

आज आनें वाले कल की बुनियाँद है …...

आज के जीवन में गुजरे हुए कल को देख कर अपनी गलतियों को सुधारों जिससे आप के कल की बुनियाँद संदेह पर नहीं हकीकत पर रहे //

सच्चाई से भागो नहीं यह आप को कहीं भी चैन से नहीं रहनें देगी ----

सच्चाई को स्वीकारो //


=====ओम======


Sunday, September 4, 2011

वहा से यहाँ तक भाग एक

कितनें प्यारे दिन थे-----

मुझे अपना वह दिन तो याद नहीं लेकिन -------

गोदी में जब कोई बच्चा उठाता हूँ तब सोचता हूँ------

हो न हो मेरे भी प्रारंभिक दिन कुछ ऐसे ही रहे हों//


गोदी किसी की और बच्चे को छेडने वाले कोई और , आते जाते सभीं गोदी के बच्चे से अपना दिल बहलाते हैं / आप जब पूरी तरह उदासी में हो तो कहीं और नहीं किसी गोदी के बच्चे को ढूढें जबकि उदासी एकांत में ले जाना चाहती है / उदासी में ब्यक्ति सिकुड़ता है , रोशनी नहीं अँधेरा चाहता है , कमरे के एक कोर्नर में रहना पसंद करता है , वह चाहता है जहां वह है वहाँ और कोई न रहे लेकिन कहीं न कहीं अन्तः करण में किसी तलाश की एक किरण रहती जरुर है , कौन है वह ?


गोदी के बच्चे के ये सुहानें दिन कब और कैसे सरक जाते हैं कुछ पता नहीं और अब वही बच्चा अपनें दादा - दादी या माँ - पिता की उंगली पकड़ कर गलियों में दिखनें लगता है / आप कभी उस बच्चे को देखना , प्यार से देखना जिसकी उंगली पकड़ कर कोई चला रहा हो / बच्चा ठीक उनके आदेशों के बिपरीत चलना चाहता है जो उसे चला रहे होते हैं / बच्चे का यह बिरोधी भावना लगती तो बहुत सुहानी है लेकिन यह बच्चे की मनोबृत्ति आगे चल कर समाज की दिशा को बदल देती है /


इसके आगे अगले अंक में क्रमश:


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