Monday, February 28, 2011

कहीं सुख की खोज ही दुःख का कारण तो नहीं ?

सुनिए और देखिये भी ----

यहाँ कौन ऐसा होगा जिसको सुख की तलाश न हो ?
कौन दुखी रहना चाहता है ?
लेकीन देखना यह है की -----
हम जिसको सुख का श्रोत समझते हैं , क्या वह सचमुच सुख का श्रोत है ?
हम सुख पानें की लिए भोग साधनों की नर्सरी तैयार करते हैं , जिसमें .......
अच्छा मकान का होना .....
एक खूबशूरत बीबी का होना ......
भरा - पूरा धन संपत्ति का होना .....
स्वस्थ्य काया का होना .....
समाज में एक अच्छी इज्जत पाना .....
अच्छी अवलाद का होना .....
कुछ इस प्रकार के पौध होते हैं जो होते तो काल्पनिक हैं पर हम उनको काल्पनिक नहीं समझते ।
अब सोचना यह है की जब -----
सब की खोज सुख की है फिर सभी दुखी क्यों दीखते हैं ?
कहीं हमारी सुख की खोज ही दुःख का कारण तो नहीं ?
जी हाँ , पर कैसे ?
गीता कहता है -----
इन्द्रियों के माध्यम से जो सुख मिलाता है ,
वह भोग के समय तो अमृत सा लगता है लेकीन उस अमृत सा
में दुःख का बीज होता है
जो .......
धीरे - धीरे दुःख का पेंड बन कर खडा हो जाता है
और तब ........
हम जिधर भी उसकी छाया में चलते हैं , उसके कांटे चुभते रहते हैं
और ......
यदि इन काँटों की चुभन में होश जागृत हो गया तो हमें वह राज - पथ मिलजाता है
जो सीधे
परम सुख में पहुंचाता है और यदि होश न उठा तो -------
इन्ही काँटों की सेज पर आखिरी श्वाश भरनी पड़ती है
और .......
चोला बदल कर हम पुनः उसी भोग में आते हैं जिसमें आखिरी श्वाश ली थी ॥
क्या इरादा है ?
यदि होश जगाना है तो -------
भोग के सम्मोहन से भागिए नहीं , उसमें जागिये -----
भोग को त्यागिये नहीं भोग को योग में बदलिए ------
और इस प्रकार एक दिन
आप भी .......
राजा जनक की भाँती बिदेह स्थिति में भोग संसार में होते हुए भी योगी / सन्यासी होंगे
और .....
द्वैत्य से परे अद्वैत्य में उस परम आनंद में होंगे .....
जिसको शब्दों में बाधना संभव नहीं ॥

===== ॐ ======

Saturday, February 26, 2011

किसकी बातको ------

आज कौन ऐसा होगा जो परेशान न हो ?

आज सभी किसी न किसी उलझन में उलझे से दिख रहे हैं ,
आखिर बात क्या है ?
पति परेशान है की उसकी पत्नी उसकी कोई बात सुननें को तैयार नहीं ......
पिता परेशान हैं की ------
उनकी बात उनकी बेटी एवं बेटा सुननें को तैयार नहीं ......
अध्यापक परेशान हैं की उनकी बात उनके शिष्य सुननें को तैयार नहीं ....
और ----
पत्नी परेशान है की पतीजी महोदय उनकी हर बात में अपनी टांग लगा देते हैं ....
बेटा और बेटी परेशान है की उनकी बातों को कोई सुननें वाला नहीं .....
विद्यार्थी परेशां हैं की अध्यापक उनकी बातों को अनदेखी करते हैं .....
और -----
जनता परेशान है की सरकार उनके हितों को नहीं देखना चाहती ....
सरकार कहती हैं की मैं क्या करू जनता का सहयोग दिल से नहीं मिल रहा ....
और ----
इंसान खफा है की परमात्मा उसकी जरूरतों को पूरा नहीं करता
और पड़ोसियों की सुनता है ......
सब एक दुसरे को देख रहे हैं -----
लेकीन ......
क्या कभी ऐसा भी होगा की .....
लोग दूसरों को न देख कर स्वयं को देखना प्रारभ करेंगे ?
जिस दिन ऐसा हुआ -----
समझो सब की उलझनें समाप्त होती चली जायेंगी स्वतः ॥
लेकीन वह दिन आयेगा कब ?
वह दिन आयेगा ....
हमारी नौजवान पीढ़ी ले कर आही रही है , कुछ ऐसा समझो ॥

===== ॐ =====

Wednesday, February 23, 2011

यज्ञोपवीतम

क्या है यह यज्ञोपवीतम ?

बनावट
यह कच्चे धागे से बनाया जाता है किसकी लम्बाई 96 चौवा होती है ।
चौवा क्या है ?
अपनें हाँथ की अंगूठे को छोड़ कर अन्य चार उँगलियों को हथेली की तरफ से एक बार देखें ।
अब एक धागा लें और इन चार उँगलियों के चारों ओर लपेटे , एक पूरा चक्कर एक चौवा कह लाता है ।
यज्ञोपावितं जिस धागे से बनाया जाता है वह एक धागा, बाहर से दिखता है
लेकीन उसमें 96 चौवों के तीन धागे होते हैं जिनको मिला कर एक धागा बनाया जाता है ।
इस छानबे चौवों के धागे को पुनः तीन भागों में इस तरह से बाटते हैं की यह कहीं से टूटनें न पाए ।
यज्ञोपावितं बनानें का एक अपना ही ढंग होता है जिसमें तीन अंक प्रमुख होता है ।
यज्ञोपावितं को जब गलें में डालते हैं तब उसकी लम्बाई इतनी होती है
की खडा होनें पर इसका नीचला भाग नाभी को स्पर्श करता है
और यह तब संभव होगा जब धारण करनें वाला स्वयं अपनें
यज्ञोपावितं को अपनी उँगलियों की माप से बनाया हो ।
यज्ञोपवीतम कंधे में ह्रदय को छूता हुआ दाहिनी तरफ को जाता है , इसको पहनें में कुछ बातें
समझनें लायक हैं :-----
** यज्ञोपवीतम की गांठे सदैव ऊपर कंधे पर होनी चाहिए ।
** मल - मूत्र के समय इसे अपनें दाहिनें कान पर रखना चाहिए ।
यज्ञोपवीतं धारण करनें वाले को प्रति दिन गायत्री मंत्र के साथ
सुबह स्नान करने के बाद इसे पवित्र
करते रहना चाहिए ।
यज्ञोपवीतं शरीर में प्रवाहित ऊर्जा को संतुलित करता है और .....
ऊर्जा में विकार तत्वों के आनें को रोकता है ॥

===== ओम =======

Tuesday, February 15, 2011

गंगा - जल को ले कर जाएँ

पांच चीजों को आप ले कर भारत से वापस जाएँ .......
ऎसी बात पिछले अंक में कही गयी थी , यदि आप प्रवाशी भारतीय हैं ॥
इन पांच वस्तुओं में से आज हम ले रहे हैं ----
गंगा - जल को जो .....
गंगोत्री से हरिद्वार के मध्य से लिया गया हो ॥
ऐसा क्यों ?
हिमालय एक परबत ही नहीं है , यह अपनें में अनेक तपश्वियों के निर्विकार उर्जाओं को धारण किये हुए है
जो कालान्तर में हिमालय को अपनी - अपनी साधनाओं का केंद्र बनाया था और ......
आज भी त्रेता - युग से ले कर आज तक के एक नहीं अनेक ऋषि - लोग इस तपोभूमि में हैं जो सामान्य
ब्यक्ति के लिए अदृश्य हैं लेकीन उस ब्यक्ति के लिए अदृश्य नहीं हैं जिसके तन , मन एवं बुद्धि में
बह रही ऊर्जा निर्विकार हो ।
गंगा एक सहज माध्यम हैं जो इस परम पवित्र उर्जा को अपनें में धारण करके गंगोत्री क्षेत्र से बंगाल की
खाड़ी तक की यात्रा मनुष्य के कल्याण के लिए करती हैं ॥
गंगा के क्षेत्र में रहना .....
गंगा जल को ग्रहण करना ......
गंगा में भ्रमण करना .....
यह सब तो एक माध्यम हैं उस ऊर्जा को अपनें में धारण करनें का जो गंगा, प्रसाद रूप में सब को
सम भाव से देना चाहती हैं ।
हरिद्वार से ऊपर के भाग से लिए गए गंगा जल में परम पवित्र ऊर्जा की सघनता बहुत अधिक होतीहै और
हम जैसे भोगी अंत: कर्ण वालो के लिए अधिक प्रभावी रहता है वैसे गंगा जल , गंगा जल है चाहे वह
पटना से लिया गया हो या हरिद्वार से ।
जब आप गंगा जल को अपनें साथ ले जाएँ तो
उसे ऎसी जगह रखें जहां लोगों का आना - जाना कम हो ।
गंगा जल के पात्र को पूर्णिमा की चांदनी में रखें ।
एक वर्ष तक यदि आप ऐसा नियमित रूप से करें तो वह गंगा - जल एक दवा में बदल जाता है ।
इस जल की पांचबूँदें लें , पीली सरसों के तेल में इसे मिलाएं और इसे देह के उस भाग में लेप करें
जहां ला इलाज दर्द रहता हो ।
पंद्रह दिन ऐसा करने से आप को आराम मिलना ही चाहिए ॥
कुछ और बातें अगले अंक में

===== ॐ =====

Sunday, February 13, 2011

भारत से इनको साथ ले जाएँ




यदि आप प्रवासी हैं ,
यदि आप कभी - कभी अपनों से मिलनें के लिए भारत आते हैं ,
तो
आप जाते समय अपनें साथ -----
इनको जरुर ले जाएँ ;

[क] हरिद्वार या ऋषि केश से एक बोतल गंगा जल
[ख] मलयागिरि चन्दन की लकड़ी का एक टुकड़ा
[ग] एक यज्ञोपवितं
[घ] एक बजनें वाली छोटी शंख
और यदि आप सिख - मान्यता के हैं तो -----
श्री अमृतसर साहिब के परम पवित्र सरोवर के जल को लें ॥

पांच चीजों के बारे में एक - एक करके
हम अगले अंकों में देखनें का प्रयाश करेंगे ॥


===== एकओंकार ======

Friday, February 11, 2011

जरुर इस दवा को लें

क्या आप का पाचन - तंत्र कमजोर है ?
क्या आप कब्ज से परेसान हैं ?
क्या आप पेट - वायु से दुखी हैं ?
तो आप जो कर रहे हैं , उसे करते रहें लेकीन .....
उसके साथ इसे भी करें तो कोई हर्ज़ न होगा ॥

गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं -------
आमाशय में चार प्रकार के भोजनों को पचानें वाली ऊर्जा - वैश्वानर , मैं हूँ ॥
वैश्वानर ऊर्जा की सघनता प्राण - अपान वायुओं के अनुपात पर आधारित होता है ॥
यदि प्राण वायु और अपान वायु सम हैं अर्थात बराबर हैं
तब वैश्वानर ऊर्जा की सघनता बहुत अधिक रहती है ।
आप को क्या तकलीफ होगी , यदि आप .....
बस में बैठे हुए ....
रेल गाड़ी में सफ़र करते हुए .....
घर में बैठे हुए ......
दूकान पर बैठे हुए .....
जहां भी हो वही सही ......
केवल एक अभ्यास करते रहें ------
जो श्वास आप ले रहे हैं और जो श्वास छोड़ रहे हैं उन दोनों को बराबर - बराबर रखनें का
अभ्यास करते रहें ,
यह कैसे संभव होगा ?
यह इस प्रकार से संभव है .......
बैठे - बैठे आप अपनें दाहिनें हाँथ के अंगूठे से दाहिनें तरफ की नाक को दबा कर रखें और सामान्य
ढंग से बाएं नाक से श्वास लें और उसी तरफ से श्वास को बाहर भी उसी चाल से निकालें ।
फिर दाहिनें हाँथ के अंगूठे के बगल की उंगली से बायीं ओर की नाक को बंद करें .....
और दाहिनी नाक से ठीक वैसा ही करेंजैसे बायीं नाक से किये थे ॥
इस तरह का अभ्यास तीन फ़ायदा पहुंचाता है ------
[क] पाचन शक्ति मजबूत होती है .....
[ख] फेफड़ों में पानी भरनें की बीमारी सामान्य बीमारियों में से एक है लेकीन यह अभ्यास इस बीमारी से
बचाता है । ऐसे लोग जो धूम्रपान करते हैं उनको यह ध्यान अति उत्तम ध्यान है ।
[ग] गहरी श्वास का अभ्यास मष्तिष्क के अन्दर खून जमानें की बीमारियों से भी सुरक्षा प्रदान करता है ।
यह बात मैं यों ही नहीं लिख रहा ;
अभी - अभी मेरे दिमाक का आपरेसन हुआ हैजो बीमारी बताई गयी है
उसका नाम है - SUB ACUTE SDH
और डाक्टर नोम बिलोंम जैसी गहरी श्वास लेनें की राय दी और इस काम के लिए
मुझे एक छोटा सा खिलौना जैसा यन्त्र भी दिया गया था ।
लगभग नौ माह आपरेसन के बाद अब मैं ठीक हूँ और नोम - बिलोंम कर रहा हूँ ॥

===== ॐ =====

Wednesday, February 9, 2011

ज़रा सुननें का अभ्यास तो करें -----

सुननें से देखनें की ज्योति बढती है

बात तो कुछ टेढ़ी सी दिखती है और आप सोचेंगे की , यह कौन सा विज्ञान है और .....
सुननें - देखनें में क्या सम्बन्ध हो सकता है ?
हमें विज्ञान की राय क्या है यह तो पता नहीं ,
लेकीन मुझे इस बात का जरुर अनुभव है की .....
पांच ज्ञानेन्द्रियों का आपस में गहरा सम्बन्ध है
और ------
जब एक ज्ञानेन्द्रिय कमजोर पड़ती है तो कोई और
उसी अनुपात में और अधिक कार्य कुशलता बढ़ा देती है ॥
आप कभी किसी ऐसे ब्यक्ति के संपर्क में आना जो जन्म से अंधा हो ,
आप देखेंगे की उसकी स्पर्श करके पहचाननें की अद्भुत क्षमता होती है
या ....
उसकी सूंघनें की क्षमता अत्याधीक तेज होती है ।
एक और बात -----
आप कभी आँख बंद करके बैठना , जैसे ध्यान में बैठते हैं .......
आप पायेंगे की आप का मन अति तीब्र गति से भाग रहा होगा , ऐसा क्यों होता है ?
बहुत ही आसान बात है , आप यदि कोई गाड़ी चला रहे हो तो ध्यान देना .....
एक गियर हो -----
एक्सीलरेटर की एक ही सेटिंग हो .....
और गाड़ी में यदि पचास लोग हो .....
तब गाड़ी जिस स्पीड से चल रही होती है तब
और .....
जब सवारियों की संख्या बीस हो जाए तब .....
उसकी स्पीड एक दम बढ़ जाती है , अर्थात .....
लोड गाड़ी के स्पीड को प्रभावित करता है ,
सक्रीय ज्ञानेन्द्रियाँ मन पर लोड का काम करती हैं , जब लोड कम है
तब सोचनें की चाल बढ़ जाती है और जब लोड बढ़ता है तब , सोच कमजोर पड़ती जाती है ।
सुननें वाला कभी सोच नहीं सकता और ....
सोचेनें वाला कभी सोच नहीं सकता ।
श्रोतापंन से प्रभु को पाना अति आसान है
और ...
संदेह को आधार बना कर जो चलते हैं वे जितना चलते हैं प्रभु भी उतना और दूर हो जाता है ।
बुद्धि मार्ग से बहुत कम लोग परम की यात्रा कर पाते हैं लेकीन ...
ऐसे लोगों की संख्या बहुत अधिक है जो सुन - सुन कर परम ग्यानी हुए हैं ॥

===== ॐ ======

Tuesday, February 8, 2011

इस देश की आवाज को

परम पवित्र भूमि -------
सत - युग से आज तक क्यों .......
सिसक रही है ?

कोई यहाँ की परम्पराओं को देखनें यहाँ आता है ........
कोई योग के आकर्षण में यहाँ आता है ......
कोई यहाँ के लोगों की धार्मिक श्रद्धा को देखनें के लिए यहाँ आता है ......
कोई यहाँ के गरीब लोगों को देखनें के लिए आता है .....
.कोई भिखारियों को देखनें के लिए यहाँ आता है ......
कोई इंजीनियर खोजनें के लिए यहाँ आता है ......
कोई खूबशूरत महिलाओं को देखनें के लिए यहाँ आता है .....
कोई यहाँ की भौगोलिक सुन्दरता को देखनें के लिए यहाँ आता है .....
लेकीन -----
साधू पुरुषों के उद्धार के लिए -------
अधर्म को समाप्त करनें के लिए -----
धर्म की स्थापना के लिए ------
पापियों को समाप्त करनें के लिए ----
प्रत्येक युग में प्रभु को भी यहाँ ......
निराकार रूप से साकार रूप में आना पड़ता है ॥

क्या कारण है की ----
भारत भूमि जो स्वर्ग जैसी है वहाँ पाप के बढनें की गति बहुत तेज है और .....
क्यों धर्म इतना कमजोर है की अधर्म जब चाहे तब इसे दबा लेता है ?

जितने अवतार भारत भूमि पर हुए हैं उतने अवतार पृथ्वी के
किसी और भाग में नहीं हुए , इसका भी तो कोई
कारण होगा ही ॥

हमें और आप को यहाँ सोचना है की ......
भारत भूमि पर हम सब क्यों अवतरित हुए हैं ?
हमें यह खोजना है की ......
हम हैं कौन ?
और इसकी पूरी जानकारी मिलती है .....
====== गीता में ========

Sunday, February 6, 2011

इनको क्या दिखता है ?




** प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन को गीता में theory of relativity का मूल तत्त्व मिला ----
** सी जी जुंग को उपनिषद् में परम मनोविज्ञान मिला ----
** ओपेन्हीमर को गीता में महाकाल के रूप में उनको
अपनी शक्ल दिखी उस समय जब जापान में
आणविक धमाके से सब कुछ तबाह हो गया था ----
** Schrodinger को माया के रूप में ब्रह्माण्ड का वह
primeval atom दिखा जिस से ब्रह्माण्ड है ----
** सर्फाती को गीता - उपनिषद् के प्रकाश के रूप में ब्रह्माण्ड की सभी सूचनाएं दिखी क्यों की
इस नोबल पुरष्कार बिजेता का कहना है की ......
जो कुछ भी है वह प्रकाश का ही रूपांतरण है
और गीता में श्री कृष्ण कहते हैं .......
सभी प्रकाशीय बस्तुओं में प्रकाश उत्पन्न करनें की ऊर्जा , मैं हूँ -----

अब आप सोचिये की -----
गीता ....
उपनिषद् .........
ऋग्वेद .........
जैसे ज्ञान के केन्द्रों में .....
भारतीय वैज्ञानिकों को क्या दिखा ?

===== ॐ =====

Thursday, February 3, 2011

क्या और कैसे देखा होगा ?

गीता में अर्जुन और संजय
अध्याय - 11 में
प्रभु श्री कृष्ण के अब्यय - ऐश्वर्य स्वरूपों में ....

प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन क्यों कहते हैं .......
गीता में जो cosmological - knowledge उपलब्ध है ,
वैसा ज्ञान कहीं और नहीं मिलता ।

प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन बीसवीं सताब्दी के प्रारम्भ में कहा ......
हमारे गलेक्सी के केंद्र में एक बहुत बड़ा ब्लैक - होल है
जो आग की लपटें निकाल रहा है और ----- आगे देखिये .....
गीता अध्याय - 11 में अर्जुन प्रभु से उनके अब्यय रूपों को देखनें के लिए कहते हैं ;
अब्यय रूप का अर्थ है
वह जिसको शब्दों में बाधना कुछ कठिन होता हो और जो इन्द्रियों की पकड़ से परे हो ।
प्रभु अर्जुन को वह ऊर्जा देते हैं जिस से अर्जुन प्रभु के अब्यय रूपों को देख सके ।
अर्जुन जो कुछ भी देखा उसका एक अंश ऐसा भी है -------
पृथ्वी से आकाश तक ब्याप्त सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में प्रभु ही प्रभु हैं और ......
उनके मुख से विशाल अग्नि की लपटें निकल रहीं और जिनमे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड घिरा हुआ है ।

आइन्स्टाइन को हमारे गलेक्सी के नाभि केंद्र में जो
ब्लैक होल बीसवीं सताब्दी के प्रारम्भ में दिखा उसे विज्ञान
सौ साल बाद देख पाया और अब से पांच हजार साल पहल प्रभु
ऎसी कौन सी ज्योति अर्जुन को दिए जिस से अर्जुन प्रभु के ब्लैक होल
स्वरुप को देख कर धन्य हो उठे ,इतना ही नहीं .....
संजय को भी प्रभु का यह रूप दिखा था क्योंकि ......
उनके पास वेदव्यास द्वारा ऎसी ऊर्जा मिली थी ॥
अर्जुन तो घबडा रहे हैं लेकीन संजय प्रभु के
अब्यय रूपों में ऐसे मस्त हैं जैसे भवरा फूलों में मस्त रहता है ।
आज विज्ञान की अपनी भाषा है .....
आज विक्यान की सोच लोगों में है ....
आज लोगों में वैज्ञानिक भाव हैं ....
लेकीन पांच हजार साल पूर्व क्या रहा होगा ?

कुछ पढ़िए ....
और ज्यादा सोचिये ...
सोच - सोच में एक घड़ी ऎसी भी आएगी
जब आप सोच से परे होंगे
और अपनी ही सोच के द्रष्टा होंगे ॥

==== ॐ ======