गीता में अर्जुन और संजय
अध्याय - 11 में
प्रभु श्री कृष्ण के अब्यय - ऐश्वर्य स्वरूपों में ....
प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन क्यों कहते हैं .......
गीता में जो cosmological - knowledge उपलब्ध है ,
वैसा ज्ञान कहीं और नहीं मिलता ।
प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन बीसवीं सताब्दी के प्रारम्भ में कहा ......
हमारे गलेक्सी के केंद्र में एक बहुत बड़ा ब्लैक - होल है
जो आग की लपटें निकाल रहा है और ----- आगे देखिये .....
गीता अध्याय - 11 में अर्जुन प्रभु से उनके अब्यय रूपों को देखनें के लिए कहते हैं ;
अब्यय रूप का अर्थ है
वह जिसको शब्दों में बाधना कुछ कठिन होता हो और जो इन्द्रियों की पकड़ से परे हो ।
प्रभु अर्जुन को वह ऊर्जा देते हैं जिस से अर्जुन प्रभु के अब्यय रूपों को देख सके ।
अर्जुन जो कुछ भी देखा उसका एक अंश ऐसा भी है -------
पृथ्वी से आकाश तक ब्याप्त सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में प्रभु ही प्रभु हैं और ......
उनके मुख से विशाल अग्नि की लपटें निकल रहीं और जिनमे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड घिरा हुआ है ।
आइन्स्टाइन को हमारे गलेक्सी के नाभि केंद्र में जो
ब्लैक होल बीसवीं सताब्दी के प्रारम्भ में दिखा उसे विज्ञान
सौ साल बाद देख पाया और अब से पांच हजार साल पहल प्रभु
ऎसी कौन सी ज्योति अर्जुन को दिए जिस से अर्जुन प्रभु के ब्लैक होल
स्वरुप को देख कर धन्य हो उठे ,इतना ही नहीं .....
संजय को भी प्रभु का यह रूप दिखा था क्योंकि ......
उनके पास वेदव्यास द्वारा ऎसी ऊर्जा मिली थी ॥
अर्जुन तो घबडा रहे हैं लेकीन संजय प्रभु के
अब्यय रूपों में ऐसे मस्त हैं जैसे भवरा फूलों में मस्त रहता है ।
आज विज्ञान की अपनी भाषा है .....
आज विक्यान की सोच लोगों में है ....
आज लोगों में वैज्ञानिक भाव हैं ....
लेकीन पांच हजार साल पूर्व क्या रहा होगा ?
कुछ पढ़िए ....
और ज्यादा सोचिये ...
सोच - सोच में एक घड़ी ऎसी भी आएगी
जब आप सोच से परे होंगे
और अपनी ही सोच के द्रष्टा होंगे ॥
==== ॐ ======
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