Tuesday, March 29, 2011

चन्दन लगाना




चन्दन लगाना



चन्दन लगाना,हिदू परंपरा में एक विशेष स्थान रखता है|


जब भी कोई हिंदू प्रभु को याद करता है तब चन्दन के बिना यह संभव नहीं हो पाता ,

आखिर चन्दन लगाने का राज है , क्या ?

चन्दन लगाने के राज के सम्बन्ध में हम बाद में देखेंगे यहाँ इस सम्बन्ध में निम्न कुछ अहंम

बातों को पहले देखते हैं -----------


[]चन्दन के प्रकार


**चन्दन बृक्ष की लकडी;जो सफ़ेद या मैरून रंग कि हो सकती है

**हल्दी

**दही

**चावल

**जल

**मिटटी

**केसर

**शहद


सूफी परम्परा में लोबान और हिन्दू परपरा में चन्दन दोनों गंध आधारित माध्यम हैं जो

साधना को आगे बढनें में मदद करते हैं |


चन्दन का सम्बन्ध आज्ञा चक्र और सहस्त्रार चक्र से भी है लेकिन इन बातों को हम

आगे चल कर देखेंगे |

चन्दन लगाना एक साश्वत परम्परा है जो मनुष्य के स्मृति को प्रभु कि ओर रखता है |

अगले अंक में हम देखेंगे चन्दन और लोबान सम्बंधित कुछ और बातें



===== ओम ======


Wednesday, March 23, 2011

प्रभु की अनुभूति कैसे हो




प्रभु की अनुभूति कैसे हो?


पहले बताया गया की-------

साधना एक खोज है जिसमें साधक[स्त्री या पुरुष]कुछ खोजता है;जो यह समझते हैं की मै

अमुक को खोज रहा हूँ , वे साधक नहीं हैं वे गुण प्रभावित जिज्ञासु हैं , उनका प्रभु से जुड़ना

भी भोग आधारित ही होता है ; ऐसे लोगों का जीवन भोग - केंद्र के चारों ओर चक्कर

लगाता रहता है और ये लोग प्रभु को भी भोग का एक माध्यम समझते हैं ।

एक बात ध्यान में रखनी होगी की ….....

गीता का प्रभु न तो कुछ देता है और न ही कुछ लेता है------

गीता का प्रभु न तो किसी के पाप कर्मों को ग्रहण करता है न ही पुण्य कर्मों को ।

गीता का प्रभु न तो भावों में है और न ही मन – बुद्धि तक सिमित है ।

गीता का प्रभु उसके साथ है जो …...

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को प्रभु के फैलाव रूप में देखता है और सभी सूचनाएं उसकी ओर इशारा

कर रही हैं - कुछ ऐसा समझता है ।

अर्ध नारीश्वर की मूर्ती के सामनें आप बैठे ; यदि स्त्री हैं तो उस तरफ बैठें

जिधर से शिव दीखते हो

और यदि पुरुष हैं तो उधर बैठें जिधर से पार्वती दिखती हों । साधना मात्रा भाव रहित होनें की

प्रक्रिया है इसके बाद जो होता है वह सब स्वतः घटित होता रहता है ।

इस ध्यान [साधना] में जब कोई साधक स्थिर मन – बुद्धि वाला हो जाता है , द्रष्टा हो जाता है,

तब उसके हार्मोन्स में बदलाव आजाता है , पुरुषत्व की ऊर्जा पुरुष में कम हो उठती है और

नारी में नारीत्व की ऊर्जा कम हो उठती है ; यह बात भावात्मक रूप में नहीं है

यह काम ऊर्जा की केमिस्ट्री है जो साधना में बदलती रहती है ।

कहते हैं परम हंस रामकृष्ण जी साधना के माध्यम से अपनें को पूर्ण रूपेण

स्त्री में बदल दिया था

उनके स्तन भारी हो गए थे और मासिक धर्म भी आनें लगा था यह सब साधनाओं में

नहीं होता मात्र उनमें होता है जिनका आधार तंत्र होता है ।

तंत्र – साधना बिना गुरु खतरनाक हो सकता है

अतः इसे बिना सिद्ध गुरु न अपनाएं तो उत्तम रहेगा ।



===========


Tuesday, March 22, 2011

प्रभु को कैसे खोजें


प्रभु को कैसे खोजें?


प्रभु को पाना संभव है ,

और इसके लिए दो रास्ते हैं ;

एक रास्ता है ---- कोई नर साधना से अपनें अंदर नारी को खोज ले ।

और दूसरा रास्ता है ---- कोई नारी अपने अंदर छिपे नर को साधना के माध्यम से

तलासे ॥

भारत अर्धनारीश्वर के रूप में शिव की आराधना कब से कर रहा है , कुछ कहना संभव नहीं

लेकीन प्राचीनतम खुदाइयों में जो मूर्तियाँ मिली हैं उनमें अर्धनारीश्वर की मूर्ती प्रमुख है ।

शिवलिंगम के रूप में शिव - साधना के प्रमाण सिंध घाटी की सभ्यता की खुदाइयों में मिले हैं

और यह कहा जा सकता है की किसी न किसी रूप में काम के माध्यम से परम सत्य की खोज

का मार्ग अति प्राचीनतम है ।

C. G. Jung बीसवीं शताब्दी के मध्य में बोले -----

हर नारी में नर होता है .....

और ----

हर नर में नारी होती है ॥

जब यह बात लोगों तक पहुंची तो वैज्ञानिक इस बात पर जुट गए की ......

क्या यह संभव है की -----

लिंग परिवर्तन किया जा सके ?

और आज कोई भी नर नारी बन सकता है और कोई भी नारी नर ॥

भारत अर्धनारीश्वर की पूजा में मस्त हैं , वह यह नहीं जाननें की कोशीश किया की -----

अर्धनारीश्वर तंत्र साधना का एक अंग है और मूलतः तंत्र काम - साधना का क्षेत्र है ।

सी जी जुंग भारतीय उपनिषद , गीता और वेदों में रमते थे और उनक संस्कृत भाषा का

बहुत अच्छा ज्ञान था ।

हमारे पुर्बज हमें जो दे गए हैं , चाहे वह शात्र हों या वेद उनकें हमें वह ज्ञान मिल सकते हैं

जो आज पश्चिम में प्रयोगशालाओं से निकल रहे हैं ॥

==== ओम ======




Monday, March 21, 2011

मनुष्य प्रकृति से खेल रहा है

आइन्स्टाइन की गणित कहती है ..........

चिटुकी भर मिटटी के कणों में इतनी ऊर्जा है की यदि उनको विद्दयुत - ऊर्जा में बदलनें का तरिका
विकशित कर लिया जाए तो -----
एक सप्ताह तक एक गाँव में सात घंटे प्रति दिन के हिसाब से बिजली दी जा सकती है ।

बिज्ञान मिटटी से बिजली पैदा करनें का तरिका तो न निकाल पाया लेकीन मिटटी के स्थान पर
युरेनियम को खोज निकाला जो मनुष्य सभ्यता के लिए .........
महा काल है ॥

प्रकृति अपनें ढंग से चल रही है और मनुष्य उसकी चाल में अपनी टाँगे उलझा रहा है ।
प्रकृति फ़ैल रही है और मनुष्य उसके लुफ्त में मस्त न हो कर उसे मापना चाहता है ,
वह सूत्र बनाना चाहता है की , यह किस नियम , कायदा एवं क़ानून के हिसाब से फ़ैल रही है ?
लेकीन मनुष्य के मन - बुद्धि की सीमा है , वह प्रकृति की चाल से आगे नहीं निकल सकता ।

अब कुछ प्रकृति की बातों को देखिये -------
[क] क्या आप जानते हैं की आप जिस पृथ्वी पर रहते हैं वह 108000 किलो मीटर प्रति घंटे की चाल से
अपनी कक्षा में चल रही है ।
क्या मनुष्य द्वारा निर्मित हैं कोई और बस्तु जिसकी रफ़्तार इतनी हो ?

[ख] हमारी गलेक्सी में एक सितारा है जिसका नाम है - ETA जो सूर्य से 5 million times अधिक
रोशनी फेकता है ।

[ग] मरकरी प्लैनेट की चाल है - 1,72,800 km/hr. , क्या आप इसकी कल्पना भी कर सकते हैं ?

मैक्स प्लैंक कहते हैं ..........
इन्शान प्रकृति को अपनी मुट्ठी में कभी बंद नहीं कर सकता ।

===== ॐ =======

Friday, March 18, 2011

जापान जैसा भारत में हुआ होता तो -------

दुनिया को वहाँ के लोग चला रहे हैं लेकीन दुनिया में एक देश है -
भारत जिसको चलानें वाला स्वयं प्रभु हैं ।
यहाँ जो कुछ भी घटना घटती है ,
उसे परमात्मा के ऊपर छोड़ दिया जाता है
और पता नही कैसे सब अपनें आप ठीक को जाता है ॥



भारत आज कल न्यूक्लिअर ऊर्जा से बिद्द्युत पैदा करने के लिए
क्या - क्या नहीं कर रहा , तमाम अडचनों के बाद , महारास्त्र
के रतनागिरी जिले में पश्चिमी समुद्री तट पर एक
न्यूक्लिअर ताप गृह का निर्माण प्रारम्भ ही होने वाला था
की जापान में एक हादसा ऐसा हुआ की सारी दुनिया
हिल गयी लेकीन भारत के लोग आज भी अपनी - अपनी मूंछें ऊपर किये हुए हैं ॥

आकडे कहते हैं :=======

संन 1985 से 2005 के मध्य जैतापुर के इलाके में लगभग 92 अर्थ क्वेक
आ चुके हैं जिनमें सन 1993 में जो क्वेक आया था उसकी तीब्रता लगभग 6.2 थी ।

जैतापुर का इलाका seismic zone 3 category के अन्दर
आता है और हमारे देश के नेता लोग जिनमें
से तीन चौथाई लोगों को भूकंप - विज्ञान का क , ख और ग
का भी पता नहीं है वे लोग इस बात पर अड़े हैं की जब भी
यह ताप घर बनेगा तो जैतापुर में ही बनेगा
और यदि ऐसा न हुआ तो हमारी मूछ नीची हो जायेगी ।

अरे भाई , इतना बड़ा देश है कोई ऎसी जगह
क्यों नहीं देखते जो सिस्मिक जोंन से परे हो ॥

आप ज़रा गूगल मैप पर जीता पुर की लोकेसन को देखें ---------


View Larger Map

क्या ऎसी कोई और जगह नहीं जो सोस्मिक जोने से परे हो ?




आगे प्रभु ही मालिक है








===== ॐ =========

Thursday, March 17, 2011

बहरे और अंधे न बनो

जापान जहां सूर्य सबसे पहले आता है ------
आज वहाँ जो हो रहा है , वह विश्व - युद्ध में भी हुआ था , लेकीन एक फर्क है ;
उस समय अमेरिका वहाँ अर्ध - बिकसित एटम बम्ब डाला था और आज वही अमेरिका लोगों के ऊपर मलहम - पट्टी लगा रहा है ।
विश्व - युद्ध के ठीक पहले जर्मनी में वैज्ञानिकों की एक सभा हुयी थी जिसमें यह तय हो रहा था
की एटम बम्ब बनाया जाए या न बनाया जाए । ओपन हिमर उस समय के महान एटम वैज्ञानिक थे और उस सभा की अध्यक्षता भी वही कर रहे थे । कुछ लोग बनानें के हक में थे और कुछ बिरोध में । सभा कक्ष के बाहर जो चपरासी था उसे किसी अजनवी नें एक पत्र दिया और बोला - ले जा इसे ओपन हिमर साहब को दे आ । जब ओपन हिमर उस पत्र को देखा तो उनकी आँखे खुली की खुली राह गयी , उस पत्र में लिखा था ---- जो तुम लोग सोच रहे हो उसका परिना बहुत भयानक होगा , यह एटम - शक्ति पहले भी मानव सभ्यता को समाप्त कर चुकी है अतः होश में कोई निर्णय लेना । उस आदमी को खोजा गया लेकीन वह आदमी न मिला ।

जापान पर जब अमेरिका एटम बम्ब डाला उसके ठीक पहले अमेरिका में बैज्ञानिकों की सभा में पुनः उसी आदमी का एक पत्र पुनः ओपन हिमर को मिला जो उस समय एटामिक - शोध के चेयरमैन थे । पत्र में वही लिखा था जो पहले वाले पत्र में लिखा था । जो लिखनें वाला था उसका नाम था - फल्कानेगी और इस नाम का ब्यक्ति आज तक कहीं न दिखा , किसी को ।

पत्र में उस ब्यक्ति नें लिखा था ----मैं इस बात का गवाह हूँ जिसनें एटम बोम्ब से मानव सभ्यता को समाप्त होते देखा था , आप लोगों से मैं प्रार्थना करता हूँ की आप लोग सोच समझ कर आगे का कदम उठाना ।

द्वितीय बिश्व युद्ध में जब एटम बम्ब जापान पर डाला गया और लाखों लोग मौत के मुह में पहुँच गए
तब पुनः फल्कानेगी का पत्र ओपन हिमर को मिला और उस में लिखा था ----
अब देख लिया उस एटम बम्ब के परिणाम को , अभी भी वक्त है , ज़रा सोचो .....
वह आदमी तो अमेरिका को न मिल पाया लेकीन उस पत्र के जबाब में ओपन हिमर जी अपनें पद से
त्याग पत्र दे दिया और बोला -----इस जापान की तबाही का महा काल मैं हूँ ॥

आज पुनः विज्ञान का काला जादू अपना रंग दिखाया है और इसकी जिम्मेदारी वैज्ञानिकों की नहीं है ,
संसार की सरकारों की है ।
कहते हैं ---बिना न्यूक्लियर ऊर्जा , हम ऊपर नहीं उठ सकते , जरूरतों को नियंत्रित रखना तो अपनें हाँथ में नहीं और अहंकार किसी को कहीं रुकनें नहीं दे रहा ,
फिर ऐसे में तो वही होगा जो जापान में हुआ आज और कल होगा जैतापुर , भारत में

या कहीं और होगा और एक बात याद रखना ------
यहाँ सब कुछ रहेगा मात्र जीव , जंतु एवं बनस्पतियां न राह पाएंगी कारण .....
मनुष्य का अहंकार नंबर एक बननें का ॥

==== ॐ =====

Wednesday, March 16, 2011

उनकी बात को -----




देख रहे हो .....
सुन भी रहे हो .....
लेकीन .....
आप का अहंकार ....
आप को .....
अंधा और बहरा बना कर रखा है ....
लेकीन क्या हम जो कर रहे हैं , वही एक विकल्प है ?

वैज्ञानिक समुदाय अभी इन बात पर बेहोश है की ......
आज तक जितनी तुशामी घटनाएँ पृथ्वी पर घटित हुयी हैं उनसे ......
दिन छोटा हो रहा है और रातें बढ़ रही हैं ॥

यदि दिन की अवधी इसी तरह घटती रही और रात की अवधी बढती रही तो
क्या ----
कभी ऐसा भी नहीं हो सकता की .....
दिन समाप्त हो जाए और रात ही रात रहे ?

अब आप भूगोल पर एक नज़र डालिए ------
दक्षिण से उत्तर की ओर आप अपनी नज़र बढाते रहें और गूगल - अर्थ पर जो देखे उसे समझते रहें
ऐसा करनें से एक बात तो स्पष्ट नज़र आती है की .....
तुसामी जैसी ऊर्जा समुद्र में दक्षिणी ध्रुव की ओर से आती है
क्योंकि ----
जापान , इंडोनेसिया , मलेसिया , भारतीय दक्षिणी - पूर्वी तट , भारतीय दक्षिणी पश्चिमी तट ,
दक्षिणी अफ्रिका आदि के नक़्शे बताते हैं की .....
इनको कोई काट रहा है और ये पतले होते जा रहे हैं ॥

त्रेता - युग का लंका भी कहीं इसी भू - गोलार्ध में था जो कब और कैसे समाप्त हो गया कुछ पता नहीं ॥
आज जावा , सुमात्रा और बाली में मुस्लिम मान्यता के लोग अधिक हैं लेकीन वहाँ के मुस्लिम
रामलीला का मजा उठाते हैं , ऐसा क्यों है ? यह कोई साधारण बात नहीं , सोचनें की बात है ॥
आज वहाँ के लोग मुस्लिम होते हुए भी हिन्दू देवी - देवताओं के नाम पर अपनें बच्चों का नाम रखते है ,
ऐसा क्यों हैं ? इन सब में जरुर कोई गहरी बात छिपी हुयी है ॥

आखिर प्रकृति क्यों -----
पूरब को पानी से तबाह करती है ----
और ----
पश्चिम को बर्फ से ?

==== ॐ ======

Tuesday, March 15, 2011

वह कौन है जो -------

सब कुछ करनें के बाद भी ….

तनहा बना है ?

वह कोई कसर तो नहीं छोड़ रहा …..

कभी मंदिर का दरवाजा खटखटाता है …..

कभी पेंड पौधों से भी सलाह ले लेता है ….

कभी पशुओं से भी राय लेनें में पीछे नहीं रहता …..

कभी दरगाह भी पहुँचता है ….

कभी दान देता है , कभी दान देता भी है …..

कभी प्यार करता और कभी करवाता भी है …..

कभी पेंड - पौधों में अमृत की तलाश करता है …..

कभी घीया के पानी में कैंसर को ठीक करनें की शक्ति को देखता है ….

कभी योग तो कभी आयुर्वेद को पकडे रहता है ……

कभी इमानदारी का रोब डालता है ……

कभी फैक्टरी लगाता है …..

और जब सब से दिल भर जाता है ……

तब -----

राजनीति को अपनाता है

यह इंसान …..

हर पल अपना खून बदल रहा है और

इसकी इस हरकत को देख कर खुदा भी ….

स्वयम को …….

निराकार बना लिया है //

कहते हैं -----

सत्- युग में प्रभु सब लोगों के साथ ही रहते थे और ……

उस समय परमात्मा शब्द न था ……

क्योंकि -----

जो थे , वे सब के सब परमात्मा ही थे //

===== ओम ======

Monday, March 14, 2011

सुन कर जानो

आप पहले इनको सुनो .......
और फिर ......
इनको जाननें की कोशिश करो .....
और तब .......
जो आनंद आप को मिले ......
उसे ......
अपनों में बाटो

[क] राग में संसार रंगीन दिखता है
और
वैराग्य में ब्रह्म दिखता है ॥

[ख] आसक्ति में वासना
और
बिरक्ति में प्रभु की खुशबू मिलती है ॥


[ग] अहंकार संसार से
और
प्रीति प्रभु से जोड़ कर रखती है ॥

[घ] चाह में संसार एक खिलौना - घर सा दिखता है ......
और
समभाव में प्रभु इस खिलौना - घर का निर्माता दिखता है ॥

[च] संदेह संसार में भोग मार्ग पर चलनें की ऊर्जा देता है ....
और .....
प्रीति की ऊर्जा प्रभु में पहुंचाती है ॥

==== ॐ ========


Sunday, March 13, 2011

यहाँ क्या किसका है ------

क्या यह पृथ्वी मनुष्यों की ही है ?
क्या यहाँ पशु , पंक्षी ,अन्य जीव - जंतु एवं पेड़ - पौधों के लिए कोई स्थान नहीं ?
क्या यहाँ जल - चर के लिए कोई जगह नहीं ?
क्या यहाँ पहाड़ एवं दरियां आजादी के साथ नहीं रह सकते ?
मनुष्य क्या कर रहा है -------
थोड़ी सी जगह में .......
मगरमच्छ , मछलियाँ , घड़ियाल , शेर , चीता , भालू , सब को बसा रखा है और अपनें लिए .....
गगन चुम्बी इमारते एक के बाद एक बनाता जा रहा है और फिर भी बिचारा बेचैन है ।
मनुष्य अपनें घरों को सजानें के लिए ........
बहुमूल्य पेड़ों की नश्ल तक को समाप्त कर डाला -----
मार्बल जहां हैं जैसे राजस्थान के इलाके , वहाँ जहां पहाड़ हुआ करते थे आज झीलें बनती जा रही हैं ....
भू खनन से पृथ्वी की सतह प्रोफाइल बदल रही है फल स्वरुप .....
नदियों एवं नालों के मार्ग बदलते जा रहे हैं और .......
इनका दूर गामी बहुत खराब परिणाम होनें वाला है ।
आज बच्चे कम पैदाकरनें पर जोर है पर ....
प्रति ब्यक्ति अधिक स्कोइर फीट रहनें के लिए जगह की तलाश सब को है ।
शहर अपना दामन फैला रहे हैं ......
गाव धीरे - धीरे सिकुड़ते जा रहे हैं .....
मनुष्य की लम्बाई घट रही है पर चौड़ाई बढ़ रही है ।
समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है

और मनुष्य अपनें मकानों की उचाइयां बढ़ा रहा है ।
मनुष्य सब को मारनें का पूरा - पूरा इंतजाम करता जा रहा है

और ......
स्वयं के लिए अमरत्व की दवा तलाश रहा है ।
प्रकृति भी कम नहीं .......

आये दिन अपना नज़ारा दिखाए बिना उसे कहाँ चैन लेकीन ......
मनुष्य अपनी ज्ञानेन्द्रियों को बंद करके रहनें की अच्छी प्रेक्टिस कर रखी है ।

एक बात ====== सोचना ======
जब भी तुशामी की खबर आती है तब साथ यह भी खबर होती है की .......
इतनें हजार लोग समाप्त हो गए लेकीन ......
ऎसी कोई सूचना नहीं होती की ......
इतने पशु - पंक्षी समाप्त हो गए ,
ऐसा क्यों होता है ?
प्रकृति का कहर उन पर पड़ता है
जो ......
प्रकृति में रहते हुए भी स्वयं को उस से दूर रखते हैं ॥
प्रकृति के साथ रहनें वालों को
तुशामी जैसी घटनाएँ प्रभावित नहीं करती ॥

===== ॐ =====

Wednesday, March 9, 2011

मनुष्य क्या - क्या नहीं कर रहा ?

 

कोई कुत्ता - प्रशिक्षण केंद्र चला रहा है ----

कोई अंतरिक्ष में एलियन को खोज रहा है -----

कोई नयी पृथ्वी को तलाश रहा है ------

कोई अमरत्व की दवा अंतरिक्ष में खोज रहा है ……

कोई सूर्य के अंत की प्रतीक्षा में बैठा है ……

कोई कह रहा है की ………

पृथ्वी से चाँद दूर होता जा रहा है ------

आज जहां भी आप जायेंगे जो भी समाचार देखेंगे सब में एक बात कामन होगी ----

ऎसी बातें मोटे - मोटे अक्षरों में लिखी मिलती है जिसको देखते ही भय की ऊर्जा

तन , मन एवं बुद्धि में भर जाती है //

मनुष्य स्वयं तो काप ही रहा है लेकिन सम्पूर्ण प्रकृति को भी कपानें में कोई कसरनहीं छोड़ना चाहता //

आज सभी भय के आलम में जी रहे हैं और …..

सबको भय के आलम में देखना चाहते हैं //

मनुष्य एक ऐसा जीव बना था जो अन्य जीवों के लिए भगवान सा रहे लेकिन आज

सभी जीव यदि किसी से पूर्ण रूपेण भयभीत हैं तो वह है – इन्शान //

इन्शान को परमात्मा का बोध हो सकता है लेकिन वह अपनें जानवर की प्रबृत्ति को छोड़ना नहीं चाहता //

एक वे भी थे जिनके मुख से निकलता था …….

बसुधैव कुटुम्बकम ….

और ----

एक आज के हम है

 

===== ओम ======

Thursday, March 3, 2011

सभी पूजते हैं , सुनता कोई नहीं

यहाँ सभी पूजक हैं -----
श्रोता कोई नहीं ॥

यहाँ साकार के पूजक सभी हैं ......
साकार रूप में जो प्रभु श्री कृष्ण बोले हैं ----
उसको सुननें वाले हैं भी ?
ऐसा कहना कठीन है ॥

प्रभु श्री कृष्ण साकार रूप में अर्जुन से कहते हैं ------
अर्जुन !
मनुष्य का मूल स्वभाव है , अध्यात्म
स्वभाव : अध्यात्मं उच्यते -- गीता -8.3

कौन इस बात को समझना चाहता है और .....
जिस दिन मनुष्य सभ्यता इस बात को समझेगी उसदिन .....
सत - युग का सूर्योदय होगा इस पृथ्वी पर ॥
लोग समझते हैं, पूजना अति आसान है लेकिन जो ऐसा समझ कर जी रहे उनके लिए
दिन है ही नहीं ।
पूजा में दो साकार मिलकर जहां पहुँचते हैं
वह होता है निराकार ॥
दो साकार क्या हैं ?
एक वह है जो पूजक है ....
और दूसरा साकार वह है ....
जिसकी पूजा की जा रही होती है ॥
जब ----
पूजा करनें वाला अपनें सामनें खडी मूर्ती में स्वयं को घुला देता है .....
जहां पूजा करनें वाला स्वयं के लिए नहीं रहता .....
वहाँ मूर्ती भी उसके लिए तिरोहित हो गयी होती है और .....
जो बच रहता है ....
वह होता है वही जो सदैव रहता है
अर्थात ....
निराकार परम अक्षरं ब्रह्मं ॥
कंप्यूटर विज्ञान में एक तेर्मिनोलोजी है शोर्ट - कट की और ....
मनुष्य
भोग से योग तक .....
काम से राम तक ....
अज्ञान से ज्ञान तक ...
जीवन के सभी मार्गों को शोर्ट - कट से तय करना चाहता है ,
और ----
प्रकृति में कोई शोर्ट - कट है नहीं ॥

पूजा करते - करते ....
कभी- कभी ....
मूर्ति क्या कुछ कहना चाहती है ....
उसे भी सुननें की कोशिश करते रहें ...
यदि ऎसी आदत बन गयी तो .....
प्रभु आप से ज्यादा दूर नहीं ॥

==== ओम ======