Monday, September 22, 2014

प्यारे ! यह संसार है ---

* प्यारे यह संसार है , इसे समझनें के चक्कर में न उलझना , इसे प्यार से देखते रहो और भाव रहित स्थिति में मस्त रहो । 
* वह जो इस संसारको समझनेंके चक्कर में उलझा ,वह समझ तो पाया नहीं ,पर इसमें उलझता चला गया और जब यहाँ से बिदा लेनें का वक़्त आया तब बंद हो रही आँखों को ज़रा हिला भर पाया और दो बूँद आँसू धीरे से टपक पड़ी ; इन आँसुओं के माध्यम से वह शांत हो रहा ब्यक्ति जो कहना था , कह दिया , चाहे वहाँ इकट्ठे लोग समझे हों या न समझे हों ।
 * यह संसार अनंत है , इसमें स्थित सूचनायें अनंत हैं और इसको जो ऊर्जा चला रही है , वह भी अनंत है फिर इस अनंत से अनंत में स्थित अनंत संसार को क्या समझोगे ?
 * झरनें की लम्बाई , चौड़ाई ,गहराई और इसकी आवाज को जो मापनेके चक्कर में पड़ते हैं वे उससे निकल रही ओंकार-नाद से वंचित रह जाते हैं जो अविरल दिन -रात उससे निकल रही है पर जो इसके किनारे बैठ कर इस पर केन्द्रित होनें में सफल हो जाते
 हैं ,वे एक ओंकार की ऊर्जा से भर जाते हैं और उसे पा लेते हैं जिसे पानेंके लिए साधकको कई जन्म लेनें पड़ जाते हैं । 
* प्यारे ! देनें वालेनें कोई कमी न दी , उसका खजाना कभीं खाली नहीं होता लेकिन उसके खजानें की ओर हाँथ बढानें लायक तो बनना ही पड़ता है जिसके लिए हम तैयार नहीं फिर इस स्थिति में क्या हो सकता है ? 
<> दो धड़ी , बस दो घड़ी ही , अकेले एकांत में शान्त मनके आईने में ऊपर बताई गयी बातों को पढना ; एक दिन नहीं , रोज पढना , क्या पता किस दिन , किस घड़ी आपका उससे एकत्व स्थापित हो जाए जो इस संसारका अनाम , निर्माण कर्ता और साक्षी है । 
~~ ॐ ~~

Sunday, September 14, 2014

जो जानते हो , वह क्या कम है ?

● भागनें की क्या जरुरत है ? जो आपके पास है , क्या आप उसका भरपूर प्रयोग कर चुके हैं ? क्या वह आपकी मदद करनें में समर्थ नहीं कि आप और की तलाश में भाग रहे हैं ? ठहरिये 
जरा  ! कोई जल्दी नहीं , आराम से अकेले एकांत में बैठ कर इस बिषय पर मनन करें , क्या पता यह आपका मनन आपको कुछ ऐसी औषधि दे सके जो आपको हर पलकी भागा दौड़ी के रहस्यको स्पष्ट कर सके तथा शांति - रसका आनंद दिला सके । 
● आपकी तनहाई आपको न उधर जानें दे रही न इधर रुकने दे
 रही , आखिर आप इस तनहाई से डरते क्यों हैं ? क्यों , इसकी हवा लगते ही आपके शरीर में कम्पन पैदा होने लगता है ? आप इसकी एक झलक पाते ही क्यों सिकुड़नें लगते हैं ? 
क्या है , आपकी मजबूरी ? 
जब आप शांत मन में इन प्रश्नोंके उत्तरको खोजेंगे तब आप उस आयाम में पहुँच सकते हैं जहाँ आपका मन - बुद्धि तंत्र प्रश्न रहित परम स्थिरता में आपको परम शून्यताका रस पिला सकते हैं और उसी रस की खोज आपकी तनहाईका कारण भी है । 
● आज आप जिस जाल में उलझे हुए हैं , उसका निर्माण कर्ता भी तो आप ही हैं , क्या निर्माणके समय यह बात नहीं समझ में आई थी कि यह जाल एक दिन आपके गले की फास बन जायेगी ? अभीं भी आप इस जालको समझ सकते हैं और जिस घडी इसकी समझ की उर्जा आप में प्रवाहित होनें लगेगी , आप देखनें लगेगें कि यह जाल जो आपको उलझा रखी है वह मात्र एक आपका 
भ्रम था । 
 ● है न यह कमाल का बिषय कि काम ,कामना , क्रोध , लोभ , मोह ,भय , आलस्य और अहँकार रहित जीवनका होना हमारी कल्पना से बाहरका बिषय है ? हम यह मान बैठे हैं कि इन तत्त्वोंके बिना जीवनमें कोई रस नहीं और बात भी सही दिखती है । लेकिन क्या ऐसा संभव नहीं कि ऊपर बताये कर्म - तत्त्वों या भोग -तत्त्वों की गुलामी के बिना जीवन हो ? जीवन में कर्म तत्त्व तो रहेंगे ही लेकिन आपको उनका गुलाम नहीं बनाना है , वे आपके इशारे पर सक्रीय होते रहें , कोशिश करके देखो तो सही । 
 * प्रभु श्री कृष्ण गीतामें अपनें लगभग 575 श्लोकोंके माध्यम से अर्जुनको क्या ज्ञान देते हैं ? 
 * उनके ज्ञानका केंद्र यही तो है कि यह युद्ध एक अवसर है जिसमें तुम कर्म -तत्त्वों की गुलामी को समझ कर उनका द्रष्टा बन कर युद्ध करते -करते उस आयाम नें पहुँच सकते हो , जिस आयाम में मैं हूँ और इस प्रकार तुम मुझ जैसा बन सकते हो ।
 <> भोग -तत्त्व जीवनमें कांटे नहीं हैं , ये माध्यम हैं जो परम सत्य तक पहुँचा सकते हैं ।
 # अर्जुन और प्रभु कृष्ण में क्या अंतर है ?
 * प्रभु कर्म तत्त्वों के द्रष्टा हैं
 * और *
 * अर्जुन उनका गुलाम * 
~~ ॐ ~~

Thursday, September 11, 2014

जीवन एक परम प्रसाद है

* सच्चाई से भागना मनुष्यका स्वभाव बन गया है । 
 * सच्चाई से तुम भाग सकते हो लेकिन क्या तुम्हें पता है कि सच्चाई हमेशा तुमसे चिपकी रहती है , उसे अलग करना असंभव है ?
 * सच्चाई से भागना एक भ्रम है यह भ्रम आप के जीवनको धीरे - धीरे पीता चला जाता है और अंततः आप आम की गुठली बन कर तन्हाई में शरण लेते हो। 
* चाहे अपनें को जितना छिपा लो लेकिन लोगों को तुम्हारी असलियतका पता आज नहीं हो कल लग ही जाएगा ।
 * लोग तुम्हारी असलियत जानते तो हैं पर तुम्हारे सामने अपनें को अनभिज्ञ सा दिखाते हैं और जब तुम वहाँ से चले जाते हो तब उनके चहरे देखनें लायक होते हैं । 
<>सच्चाई से भागो नहीं उसे समझो । 
<> सच्चाई से आँख से आँख मिलानें की उर्जा पैदा करो ।
 <> सच्चाई के सामनें खडा होनें की ताकत पैदा करो।
 <> जिस दिन सच्चाई के साथ रहनें लगोगे , लोग धीरे - धीरे अपनीं नजरिया बदलनें लगेंगे और आप उनके प्यारे हो जाओगे । <> जीवन एक परम निर्मल सत्य है , उसकी निर्मलता आप के हांथों में है ।
 ~~ ॐ ~~

Sunday, September 7, 2014

यह क्या है , उनका दुःख मेरे लिए सुख है ?

* संसार में कौन सुखी है और कौन दुखी ?
आप इसे अपनें बुद्धि -योगका बिषय बना सकते हैं । * बुद्धके ध्यानका मूल बिषय था दुःख की सत्यता और उन्हें सात साल लग गए दुःख को समझनें में ।
* ऐसे कितनें हो सकते हैं जो अपनें दुःखका कारण स्वयंको मानते हों ? ऐसा हजारों - लाखों में कोई एकाध मुश्किल से मिलेगा । ज्यादातर लोग अपनें दुःखका कारण दूसरों को बनाते हैं ।
* भोग - तत्त्वों की रस्सियाँ जितनी मजबूत होती है ,वह ब्यक्ति उतना ही गहरा दुखी रहता है ।
* कामना ,मोह ,राग - द्वेष , क्रोध , लोभ और अहंकार - ये सात भोगके मूल तत्त्व हैं ।
* भोगकी रस्सियों से बधा ब्यक्ति पूरी तरह से न तो भोग से जुड़ पाता है और न योगकी ओर रुख कर पाता है ; बिचारा ! भोग और भगवानके मध्य एक पेंडुलम सा लटकता रहता है ।
* दुःख से भागो नहीं , दुःखको समझो ।
* दुःख की दवा जबतक बाहर खोजते रहोगे , दुखी रहोगे ।
* आपके दुःखका वैद्य कोई और नहीं , आप स्वयं हैं , इस बात को समझो ।
~~ ॐ ~~

Saturday, September 6, 2014

कैसे और किससे कहूँ ?

* लग गए पूरे 50 साल से भी कुछ अधिक , इस बात को समझनें में कि आखिर हमें यह मनुष्य-जीवन किस लिए मिला ? <> हर मनुष्यका शरीर तीर्थ है <> 
> और <
 <> हर मनुष्य तीर्थंक <>
 * इस बातको समझनें में हमारा तो सारा जीवन गुजर सा गया लेकिन हो सकता है आप इसे चंद घंटों में ध्यानके माध्यम से समझ सकें । 
* मैं जब अपनें जीवनको देखता हूँ तो स्वयंको एक वेहिकल (vehicle )जैसा पाता हूँ । 
* वह जो इस वेहिकल को ठीक से अपनाया , वह एक दिन पहुँच गया अपनें गन्तब्य पर और जो इसे ठीक से नहीं अपनाया ,वह क्या ख़ाक पहुँचेगा । 
* आज तक मुझे तीन लोग अपनाए और आज तीनों प्रभुके आशीर्वाद से अपनें -अपनें गन्तब्य पर पहुँच चुके हैं । 
* अकेलापन भी मजे का आयाम है जहाँ कुछ नहीं होता ,उनके लिए जो बाहर से देखते हैं और जो अकेलेपनसे मैत्री साध लिया
 है ,उसे उसके अकेलेपन में सब कुछ दिखता रहता है । 
● अकेलेपनकी मौनता एक ओंकारसे मिला सकती है। 
~~ ॐ ~~