* वह जो इस संसारको समझनेंके चक्कर में उलझा ,वह समझ तो पाया नहीं ,पर इसमें उलझता चला गया और जब यहाँ से बिदा लेनें का वक़्त आया तब बंद हो रही आँखों को ज़रा हिला भर पाया और दो बूँद आँसू धीरे से टपक पड़ी ; इन आँसुओं के माध्यम से वह शांत हो रहा ब्यक्ति जो कहना था , कह दिया , चाहे वहाँ इकट्ठे लोग समझे हों या न समझे हों ।
* यह संसार अनंत है , इसमें स्थित सूचनायें अनंत हैं और इसको जो ऊर्जा चला रही है , वह भी अनंत है फिर इस अनंत से अनंत में स्थित अनंत संसार को क्या समझोगे ?
* झरनें की लम्बाई , चौड़ाई ,गहराई और इसकी आवाज को जो मापनेके चक्कर में पड़ते हैं वे उससे निकल रही ओंकार-नाद से वंचित रह जाते हैं जो अविरल दिन -रात उससे निकल रही है पर जो इसके किनारे बैठ कर इस पर केन्द्रित होनें में सफल हो जाते
हैं ,वे एक ओंकार की ऊर्जा से भर जाते हैं और उसे पा लेते हैं जिसे पानेंके लिए साधकको कई जन्म लेनें पड़ जाते हैं ।
* प्यारे ! देनें वालेनें कोई कमी न दी , उसका खजाना कभीं खाली नहीं होता लेकिन उसके खजानें की ओर हाँथ बढानें लायक तो बनना ही पड़ता है जिसके लिए हम तैयार नहीं फिर इस स्थिति में क्या हो सकता है ?
<> दो धड़ी , बस दो घड़ी ही , अकेले एकांत में शान्त मनके आईने में ऊपर बताई गयी बातों को पढना ; एक दिन नहीं , रोज पढना , क्या पता किस दिन , किस घड़ी आपका उससे एकत्व स्थापित हो जाए जो इस संसारका अनाम , निर्माण कर्ता और साक्षी
है ।
~~ ॐ ~~
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