Monday, June 21, 2021

अष्टावक्र गीता के 13 मूल मंत्र

 💐 आज अष्टावक्र गीता की यात्रा यहाँ समाप्त हो रही हैं जिसमें हम 6 +7 =13 मूल मन्त्रों से परिचित हो रहे हैं ।

⚛️ अष्टावक्र गीता के 20 अध्यायों में से 298 श्लोकों में से 40 श्लोकों को मूल मंत्र रूप में लिया गया है जिनका सीधा संबंध बुद्धियोग से है ।

👌 इन 40 मूल मंत्रों में से अंतिम 13 को दो स्लाइड्स के माध्यम से आप नीचे देख सकते हैं और उनमें  अपना बसेरा भी बना सकते हैं ।

💐 अब आगे सांख्य दर्शन के 72 सांख्य कारिकाओं से परिचय स्थापित करने का प्रयत्न किया जाएगा । आप सब सादर आमंत्रित हैं । ध्यान रखना होगा की भारतीय अन्य 09 दर्शनों में से  शेष सभीं आस्तिक दर्शनों की रीढ़ की हड्डी , सांख्य दर्शन है जिसके बिना उन्हें ठीक - ठीक तत्त्व से समझना संभव नहीं ।ष्टावक्र



Sunday, June 20, 2021

अष्टावक्र गीता के 10 मूल मंत्र

 अष्टावक्र गीता की यात्रा पूरी हो चुकी है और अंत में 298 श्लोकों मेरे कुछ ऐसे श्लोकों को मूल मंत्र रूप में देखा जा रहा है जिनका सीधा संबंध तत्त्व ज्ञान से है । इस चिंतन - मनन सुअवसर के अंतर्गत 17 श्लोकों के सार पहले दिए जा चुके हैं । अब यहाँ 10 और मूल मंत्र दिए जा रहे हैं ।

# 298 श्लोकों में से लगभग 40 सूत्रों को चुनने के काम में कोई त्रुटि हो सकती है जिसके लिए मैं क्षमा - प्रार्थी हूँ ।

## 40 मूल मन्त्रों में से 17 +10 =27 यहाँ पूरे होते हैं अगले अंक में शेष 6 +7 =13 को देखा जा सकता हैं // ॐ //

👌अब देखें स्लाइड को ⬇️


।। ॐ ।।

Friday, June 18, 2021

अष्टावक्र गीता में हम क्या - क्या देखे ?

 ⚛️ अष्टावक्र गीता के 20 अध्यायों का सार पूरा हो चुका है । आज हम पुनरावृत्ति रूप में संपूर्ण गीता यात्रा में जो कुछ भी देखा गया उनका एक चित्र देख रहे हैं ।

🕉️ आज के बाद 05 और स्लॉड्स दी जाएंगी जिनमें 20 अध्यायों से 40 मूल श्लोकों के रूप में उनका सार दिया जाएगा। ये मूल श्लोक साधना के आधार हैं ।

<> अब स्लाइड को देखते हैं ⬇️



Wednesday, June 16, 2021

अष्टावक्र गीता सार अध्याय : 19

 ★ अष्टावक्र गीता का यह अध्याय : 19 मात्र 08 श्लोकों का है । नीचे दी गयी स्लाइड में आप देख सकते हैं कि विदेह राजा जनक अष्टावक्र से ज्ञान प्राप्ति पर अपनें गुरु का किस भाषा में धन्यवाद कर रहे हैं !

# पहली बात विदेह राजा जनक तत्त्व ज्ञान की करते हैं , आखिर यह तत्त्व ज्ञान क्या है ?

★ प्रकृति - पुरुष या माया - ब्रह्म के स्वरुप को ठीक उस तरह से अनुभव करना जो उनका मूल स्वरुप हैं , तत्त्व -ज्ञान कहलाता है। प्रकृति - पुरुष सांख्य और पतंजलि दर्शन का आधार है और माया - ब्रह्म वेदांत दर्शन का ।

#यहाँ विदेह राजा जनक जो - जो बातें कह रहे हैं उनका सम्बन्ध ऐसे योगी से है जो प्रकृतिलय और विदेहलय की अनुभूति में डूबा हो । साधना की इस स्थिति में ठहरा योगी शुध्द चेतन स्वरुप होता है जो संपूर्ण ब्रह्मांड और ब्रह्माण्ड की संपूर्ण सूचनाओं को ब्रह्म से ब्रह्म में देखता है

 ( वेदांत दर्शनके अनुसार ) 

अब देखते हैं स्लाइड को 👇


Tuesday, June 15, 2021

अष्टावक्र गीता अध्याय : 18 सार श्लोक : 80 - 100 तक

 अष्टावक्र गुट अध्याय : 18 के आखिरी 21 श्लोकों में 12 श्लोक सीधे धीर पुरुष से सम्बंधित हैं । 

◆ धीर पुरुष कौन होता है ? धीर पुरुष समभाव , स्थिर प्रज्ञ और गुणातीत होता है । यह ब्रह्मवित् होता है । सम्प्रज्ञात समाधि की अनुभूति ऐसे योगी की साधना भूमि होती हैं । ऐसे योगी निर्ग्रन्थ योगी कैवल्य के द्वार ओर बसते हैं । धीर पुरुष का ज्ञान अनंत होता है और इनका ब्रह्म से एकत्व स्थापित ही गया होता है । यह स्थिति साधना उच्चतम भूमि होती है ।

अब देखिये निम्न स्लाइड को जहाँ अध्याय : 18 समाप्त होता है। 


Monday, June 14, 2021

अष्टावक्र गीता अध्याय : 18 सार श्लोक : 33 - 79 तक

👌 अष्टावक्र गीता सार श्लोक : 33 - 79 नीचे दो स्लाइड्स के माध्यम से देखा और समझा जा सकता है ।

💐 अष्टावक्र गीता में विदेह राजा जनक और अष्टावक्र के उपदेशों का केंद्र आत्मा - ब्रह्म तथा आत्मा केंद्रित है ।

👍 ध्यान से समझना होगा कि श्रीमद्भगवद्गीता में प्रभु श्री कृष्ण बार - बार आत्मा केंद्रित होने की बात अर्जुन से करते हैं और साथ में कर्म , कर्म योग , ज्ञान और ज्ञान योग और कर्माशय तथा कर्म बंधनों से अनासक्त होने की बात भी करते रहते हैं । प्रभु की इन बातों को सुनने के बाद अर्जुन कहते हैं , हे प्रभु ! आप की इन विभिन्न प्रकार की बातों को सुनने के बाद मेरी बुद्धि भ्रमित हो रही है और मैं यह समझने में असफल हो रहा हूँ की मुझे करना क्या चाहिए ? आगे प्रभु कहते हैं , जब मेरे भांति - भांति के वचनों को सुनने से भ्रमित बुद्धि एक पर स्थिर हो जायेगी तब तुम्हें सत्य का बोध स्वतः हो जाएगा ।

💐 अब आगे > आत्मा पर क्या केंद्रित करना हैं ? इंद्रियों को ? या मन और बुद्धि को या फिर अहँकार को क्योंकि मनुष्य के जीवन के मन , बुद्धि और अहँकार ऑपरेटर हैं और इन्द्रियां मन ऑपरेटर के अंग हैं । 

💐 क्या अंतः करण ( मन + बुद्धि + अहँकार ) को आत्मा के सम्बन्ध में कोई अनुभव है ? यदि नहीं फिर इनको आत्मा  केंद्रित कैसे किया जा सकता है ? 

💐 इस प्रश्न का उत्तर दोनों गीताओं में आपको नहीं मिलेगा । श्रीमद्भागवत पुराण में परीक्षित जी शुकदेव जी से एक प्रश्न करते हैं जो निम्न प्रकार से है 👇

हे प्रभु ! श्रुतियाँ केवल साकार का वर्णन करती हैं लेकिन आप निराकार की बात कर रहे है । ऐसी स्थिति में श्रुतियों के माध्यम से निराकार में कैसे पहुँचा जा सकता है और बिना वहाँ पहुंचे सत्यका बोध होना भी संभव नहीं , फिर हमें क्या करना चाहिए? 

शुकदेव जी कहते हैं , " जब साकार की यात्रा करते - करते अंतःकरण स्थिर हो जाता है , मैं के होने का भाब , अभाव में रूपांतरित हो जाता है तब उस घडी वह साधक निराकार सागर में डूबा होता है । यही वह स्थिति है जहाँ सत्य का बोध होता है और वह साधक ब्रह्मवित् हो गया होता है को देश - काल से अप्रभावित रहता हुआ परम एक रस के आनंद में  होता है।

👌 अष्टावक्र कहते हैं , अभ्यास करने वाला ब्रह्म से नहीं जुड़ सकता और कृष्ण तथा पतंजलि अभ्यास योग को सर्वोपरि रखते हैं । इस बात को आप स्वयं समझने की कोशिश करें।

👌अब उतरते हैं नीचे दी गयी दो स्लाइड्स मे और ढूढते हैं इस प्रश्न के उत्तर को 👇इये आइयेआइये




Sunday, June 13, 2021

अष्टावक्र गीता सार - अध्याय : 18 श्लोक : 1 - 32

 अष्टावक्र गीता और श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय : 18 में एक समानता है ; दोनों सबसे बड़े अध्याय हैं । दोनों गीता के अध्याय : 18 में एक महत्वपूर्ण असमानता भी है ; श्रीमद्भगवद्गीता का अध्याय : 18 आखिरी अध्याय है और श्रोता अर्जुन के प्रश्न से प्रारम्भ होता है जबकि अष्टावक्र गीता अध्याय : 18 में विदेह राजा जनक चुप हैं और पूर्णरूपेण श्रोता हैं ।

🏵️ क्या है , श्रोतापन ? बुद्ध और महाबीर के समय श्रोतापन - माध्यम से एक नहीं अनेक साधक कैवल्य प्राप्त किये थे । जितने भी शास्त्र - पुराण हैं सबके सब श्रुतियाँ हैं ।

💐 श्रोतापन प्राप्ति पर श्रोता और वक्ता दो नहीं रहते , एक हो गए होते हैं । सुननेवाले / सुननेवाली के ह्रदय एवं वक्ता गुरु के हृदय में एकत्व स्थापित हो गया होता है ।  वह जो सुन रहा होता है , वह प्रश्न मुक्त हो चुका होता है , उसके सारे प्रश्न गिर गए होते हैं , उसका अहँकार श्रद्धा और समर्पण में बदल गया होता है और वह गुरु के शब्दों को सुनता नहीं होता , उन्हें पीता रहता है और पीते - पीते वह कब और कैसे समाधि में डूब जाता है , किसी को कोई आभाष नहीं हो पाता लेकिन यह समाधि सम्प्रज्ञात समाधि होती है अर्थात लक्ष्य नहीं एक माध्यम ही है।

👌 धीरे - धीरे समयांतर में सघन श्रोतापन उस साधक को असम्प्रज्ञात समाधि में पहुँचा देता है और इस निर्बीज समाधि से वह संयम में कदम रखता है जो कैवल्य का द्वार खोलता है । पुरुषार्थ मुक्त स्थिति , कैवल्य है जहाँ उसे मोक्ष प्रतीक्षा करता हुआ दिखता है ।

💐 अब आगे  गीता अध्याय : 18 के 32 श्लोकों के सार को दो स्लाइड्स में देखते हैं और समझते हैं - आत्मा से एकत्व स्थापित होने के रहस्यं को 👇


Saturday, June 12, 2021

अष्टावक्र गीता सार अध्याय : 16 - 17

 अष्टावक्र गीता अध्याय : 16 - 17 में कुल 31 श्लोक हैं और हम यहाँ इन श्लोकों का सरल हिंदी भावार्थ देख रहे हैं ।

🌻 अष्टावक्र कह रहे हैं - योग का फल ज्ञान है जो ब्रह्मवित् में रूपांतरित करके समाधि की अनुभूति में डुबो देता है और तब--

💐 उस एक रस का आनंद कैवल्य में पहुंचा कर मोक्ष की ओर इशारा करता है और शब्द रहित भाषा में कहता है , तुम्हारे मनुष्य योनि का एक मात्र लक्ष्य यही था ।

👌 क्या है , यह मोक्ष ! जिसका आकर्षण मनुष्य को रह - रह कर अपनी ओर खींचता रहता है ।

💐 जीवों में मनुष्य मात्र एक ऐसा जीव है जिसके जीवन - पथ के दो केंद्र हैं - भोग और भगवान । अन्य सभीं जीवों का जीवन मार्ग का एक केंद्र है , भोग । उनका जीवन पथ एक वृत्त जैसा है जिसका केंद्र भोग है । मनुष्य का जीवन पथ अंडाकार है जिसके दो केंद्र हैं - भोग और भगवान ।

💐 जब हम भोग में रमते हैं तब भगवान की स्मृति हमें वहां रुकने नहीं देती और जब हमारा रुख परम की ओर होता है तब भोग का सम्मोहन हमें वहां नहीं रुकने देता । इस प्रकार भोग - भगवान और भगवान - भोग के मध्य हम एक पेंडुलम जैसे बने हुए हैं ।

👌 भोग से भागो नहीं , भोग को समझो । समझने का एक मात्र उपाय है भोग - बंधनों के गुणों को ठीक - ठीक समझना । 

🌼 अष्टावक्र गीता के माध्यम से स्वबोध की प्राप्ति भोग की ओर पीठ करा देती है और परम से एक मजबूत सम्बन्ध स्थापित हो जाता है - लेकिन यह कैसे संभव है ? इसके लिए देखें नीचे दी गयी दी स्लाइड्स को।। ॐ ।।


Thursday, June 10, 2021

अष्टावक्र गीता अध्याय : 15

 यहाँ अध्याय : 15 के अंतर्गत 02 स्लाइड्स दी गयी हैं ; पहली स्लाइड में अध्याय : 1से अध्याय : 14 तक में दिए गए कुछ सार सूत्रों की पुनरावृत्ति की गयी है और स्लाइड -  02 में अध्याय : 15 के श्लोकों का सरल हिंदी भाषान्तर के माध्यम से श्लोकों का सार दिया गया है ।

अष्टावक्र जी के गीता का केंद्र है , आत्मा , वे एक ही बात को बार -बार कहते हैं , ऐसा क्यों ? जरा इस प्रश्न ओर गहराई से सोचना !

एक सात्त्विक बिषय का बार - बार और लंबे समय तक मनन करने से मन अभ्यास - योग में स्थिर होने लगता है । बिषय - मनन , मन को बिषयाकार बना देता है  - चाहे वह बिषय सात्त्विक हो या राजस गुण धारी हो या फिर तामस गुण धारी हो । परम से मन को जोड़ने के लिए सात्त्विक विषय - मनन ही एक मात्र माध्यम है ।

संदेह - भ्रम मुक्त मन तबहिं हो सकता है जब बुद्धि स्थिर हो और बुद्धि स्थिर तभी हो सकती है जब अंतःकरण ( मन + बुद्धि + अहँकार ) में सात्त्विक गुण की ऊर्जा वह रही हो और प्रभावी हो।

अब देखते हैं निम्न 02 स्लाइड्स को 👇



Monday, June 7, 2021

अष्टावक्र गीता सार अध्याय : 8 - 11 भाग - 2

 मनुष्य - जीवन की यात्रा एक दरिया जैसी है जो सुख - दुःख दो अपनें किनारों से टकराती हुयी अनंत सागर में पहुंचने की सोच ऊर्जा से पल - पल गुजर रही हैं ।

सुख और दुःख का हर पल होता हमारा अनुभव हमारे कर्मों का फल है । ये फल दो प्रकार के कर्मों के फल हैं ; एक वह  कर्म जिसका सम्बन्ध वर्तमान से है और दूसरा कर्म वह जो संचित कर्म हैं ।

कर्म विभाग और गुण विभाग वैदिक सिद्धान्त मनुष्य जीवन के संचालक ( operator ) हैं जिनके सम्बन्ध में पहले बताता जा चूका है।  इच्छित कर्म फल प्राप्ति हेतु किया गया कर्म मूलतः दुःख की जननी है जिसे  अध्यात्म में भोग कर्म कहते हैं । दूसरा योग कर्म होता है जिसके करने के पीछे कर्म फल की सोच नहीं होती अपितु जो कर्म बंधन मुक्त सहज कर्म होते हैं और जिसे प्रभु श्री कृष्ण की गीता में निष्काम कर्म कहा गया है । अब आगे देखिये अष्टावक्र गीता 👇



Saturday, June 5, 2021

अष्टावक्र गीता अध्याय : 8 - 11भाग - 1

 बल ऋषि अष्टावक्र जी वही कह रहे हैं जो प्रभु श्री कृष्ण श्रीमद्भगवद्गीत में अर्जुन को बताते हैं । बंधन वैराग्य और मुक्ति ये मनुष्य जीवन - यात्रा के रहस्य हैं , कैसे ? जब मन कैसे के बारे में सोचना प्रारम्भ करे तब समझना चाहिए कि यात्रा की दिशा सही है पर ऐसा होना अति कठिन है । बंधन क्या है ? कर्म - बंधन ही भोग बंधन हैं और श्रीमद्भगवद्गीत और भागवत पुराण में आसक्ति , काम , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय , आलस्य और अहँकार को कर्म बंधन बताया गया है । 

श्रीमद्भगवद्गीत अध्याय - 2 श्लोक : 62 - 63 को देखिये --

इन्द्रिय - बिषय संयोग से मन में बिषय के प्रति मनन उठता है जो आसक्ति की जननी है । आसक्ति से कामना उठती है । कामना टूटने पर क्रोध उत्पन्न होता है । क्रोध में बुद्धि संतुलन खो देती है और ऐसा ब्यक्ति पाप कर बैठता है । आगे अध्याय : 3 श्लोक - 34 में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं - बिषय राग - द्वेष की ऊर्जा के श्रोत हैं अर्थात इन्द्रिय - बिषय संयोग से राग - द्वेष की ऊर्जा मिलती है और इस बात की अनभिज्ञता मनुष्य को भोग में आसक्त कर देती है । लेकिन जब इस रहस्य का बोध हो गया होता है तब वही भोग कर्म , योग कर्म बन जाता है और बंधन मुक्त आयाम में वह ब्यक्ति कर्म करता हुआ कर्म - मुक्त रहता है । इस स्थिति को नैष्कर्म्य की स्थिति कहते हैं जो ज्ञान योग की परा निष्ठा है । ज्ञान से वैराग्य और वैराग्य से मुक्ति मिलती है।

अब देखिये अष्टावक्र गीता की निम्न स्लाइड को 👇






Friday, June 4, 2021

अष्टावक्र गीता अध्याय : 7

अष्टावक्र गीता का सातवां अध्याय राजा जनक का अध्याय है ।

पहले बताया जा है कि अध्याय - 1 में राजा जनक अपनें प्रश्न के उत्तर में अष्टावक्र जी के 19 श्लोकों को सुनने के बाद श्रोतापन की सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं और उसके बाद पूरे अष्टावक्र गीता में उनके और अष्टावक्र के वचन सामानांतर एक ही दिशा में यात्रा करते हैं । अष्टावक्र और जनक के श्लोकों में कोई अंतर नहीं दिखता , यह एक अनोखी बात है । 

श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन अंततक प्रश्न करते रहते हैं , उनकी बुद्धि अंततक स्थिर नहीं दिखती क्योंकि स्थिर बुद्धि प्रश्न रहित होती है लेकिन अष्टावक्र गीता में ऐसी बात नहीं , जनक मात्र 19 श्लोक सुनने के बाद स्थिर बुद्धि की स्थिति प्राप्त कर प्रश्न रहित हो जाते हैं ।

अष्टावक्र गीता अध्याय : 7 का केंद्र आत्मा - ब्रह्म हैं । श्रीमद्भगवद्गीत में आत्मा - जीवात्मा के सम्बन्ध में 08 अध्यायों में 26 श्लोक और ब्रह्म के सम्बन्ध में 03 अध्यायों में 09 श्लोक देखे जा सकते हैं । 

आत्मा सम्बंधित अध्याय > 2 , 3 , 6 , 8 , 10 , 13 - 15 हैं 

और ब्रह्म सम्बंधित अध्याय > 9 , 13 और 14 हैं ।

👉अब नीचे दी गयी स्लाइड पर ध्यान केंद्रित करते हैं 👇




Thursday, June 3, 2021

अष्टावक्र गीता सार अध्याय : 3 - 6

 💐 अष्टावक्र गीता अध्याय : 3 - 6 में क्रमशः 14 , 6 , 4 और 4 श्लोक हैं अर्थात कुल 28 श्लोक हैं ।

🌹 यहाँ इन 28 श्लोकों में अष्टावक्र जी अज्ञान , आसक्ति , काम , कामना , ममता आदि कर्म बंधनों के माध्यम से आत्मा और आत्मा बोध से ब्रह्मवित् का परिचय कराते हैं ।

🌷 आत्मा केंद्रित सब में अपने को और अपनें में सब को देखता है अर्थात उसके अंदर और बाहर एक ही आयाम हर पल बना रहता है जिसे समदर्शी - समभाव का आयाम कहते हैं और जिस आयाम में पहुंचने वाला सत्य - बोधी होता है । सत्य - बोधी और ब्रह्मवित् एक दूसरे के संबोधन हैं और तीन गुणों की साम्यावस्था को दर्शाते हैं । तीन गुणों की साम्यावस्था वाले अंतःकरण वाला योगी मायामुक्त होता है । मायामुक्त होना अर्थात कैवल्य की स्थिति की प्राप्ति । यह वह स्थिति है जहाँ साधक का चित्त पूर्ण रिक्त होता है और पारिजात मणि जैसा पारदर्शी और निर्मल होता है । इस स्थिति में भी अभीं संस्कार बचे रहते हैं जो आवागमन से मुक्त नहीं होने देते । लेकिन जब ध्यान , धारणा और समाधि की भूमि और दृढं होती है तब वह साधक संस्कार मुक्त चित्त वाला हो जाता है और उसकी आत्मा देह त्याग कर परम आत्मा में लीन हो जाती है जिसे मोक्ष कहते हैं ।

🌻अब देखते हैं स्लाइड के माध्यम से अष्टावक्र गीता के 04 अध्यायों को 👇




Wednesday, June 2, 2021

अष्टावक्र गीता अध्याय : 2 श्लोक : 18 - 25

 # विदेह राजा जनक के वचन स्पष्ट रूप से इनकी स्व - बोध की झलक दिखा रहे हैं । यहाँ राजा जनक जो कुछ भी बता रहे हैं , उसे सुन कौन रहा है ? अष्टावक्र जी सुन रहे हैं । यहाँ वक्ता शिष्य जनक हैं और श्रोता हैं ,  जनक के हो रहे गुरु बाल ऋषि सिद्ध योगी अष्टावक्र।

गुरु को ढूढ़ा नहीं जा सकता , हाँ लेकिन उसकी तलाश में भागा जा सकता है ।

परमहंस रामकृष्ण जब निराकार साधना सिद्धि के दरवाजे पर दस्खत दे रहे थे तब पंजाब से पैदल चल कर तोतापुरी जी दक्षिणेश्वर पहुंचे । त्रैलंग स्वामी कर्नाटक अपने गाँव के बाहर स्थित श्मसान पर जब तैयार हुए तब भागीरथ स्वामी जी पंजाब से पैदल चल कर वहाँ पहुंचे थे ।

उद्धव राधा को ब्रह्म ज्ञान देने हेतु मथुरा से वृन्दाबन पहुँचते हैं। जब वे राधा जी को कहते हैं कि प्रभु के आदेश पर  ज्ञान योग की दीक्षा देने के लिये मैं यहाँ आया  हूँ , उस समय राधा जी कहती हैं , मुझे ज्ञान - विज्ञान की कोई जरुरत नहीं , हमें योग नहीं चाहिए , कृष्ण का संयोग चाहिए जहाँ .....

कृष्ण राधा और राधा कृष्ण बन जाती है - उद्धव जी आप लौट जाइये और अपने कृष्ण से कहिए कि राधा जहाँ है , आनंद से हैं और वह मात्र इतना चाहती है कि वे अपना दर्शन दें । अब राधा और सब्र नहीं कर पायेगी , कान्हा - वियोग उसे मौत से मिला देगा अतः राधा - कृष्ण वियोग को वे राधा - कान्हा संयोग में बदल दें ।

अब यहाँ देखिये अष्टावक्र गीता में ठीक यही घट रहा है जहाँ जनक अष्टावक्र और अष्टावक्र जनक बन गए हैं । अब देखते हैं निम्न स्लाइड को ⬇️

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Tuesday, June 1, 2021

अष्टावक्र गीता अध्याय : 2 श्लोक : 13 - 17

विदेह मिथिलेश जनक अष्टावक्र के अध्याय : 1 के 19 सूत्रों को सुनते ही जग जाते हैं मानो वे जगने के लिए करवटे बदल रहे हों और एक धीमी आवाज से जग गए हों ।

अष्टावक्र के शिष्य विदेह मिथिलेश राजा जनक के सम्बन्ध में पहले विस्तार से बताया जा चुका है लेकिन स्मृति पटल पर उनकी उपस्थिति में अष्टावक्र गीता के सूत्रों को समझना , एक सहज साधना बन जाती है ।

राजा जनक वर्तमान के मनु जो सातवें मनु हैं ( कुल 14 मनु ब्रह्मा के एक दिन की अवधि में होते हैं ) , उनके जेष्ठ पुत्र इक्ष्वाकु के पुत्र निमि हैं । श्रीमद्भागवत पुराण : 9.13 में इनकी कथा दी गयी है ।

इन्होंने मिथिला पुरी बसाई थी ।  ये एक सिद्ध योगी थे । किसी कारण वश इनको देह छोड़ना पद गया था । उस समय इनका कोई उत्तराधिकारी पैदा नहीं हुआ था । मिथिला के आचार्य ब्राह्मण राजा निमि के उत्तराधिकारी हेतु उनके मृत देह से एक बालक को पैदा किये जिसे विदेह की उपाधि मिली । ये पहले विदेह मिथिलेश हुए ।

अब हम यह समझ कर नीचे दी गयी स्लाइड के श्लोकों को देखें कि ये सूत्र एक ब्रह्मवित् सिद्ध योगी के सूत्र हैं । अध्याय - 2 से अध्याय - 20 के मध्य चाहे राजा जनक के श्लोक हों या फिर बाल ऋषि अष्टावक्रबके सूत्र हों , दोनों ही आत्मा - ब्रह्म केंद्रित हैं । इस गीत में एक बात को बार - बार अलग - अलग ढंग से कहा गया है और इसके पीछे भी राज है । एक की बार - बार पुनरावृत्ति करना , अभ्यास योग कहलाता है और भ्रमणकारी चित्त एक पर केंद्रित हो कर वहीँ शांत हो जाता है। और अब ⏬ इस स्लाइड को देखते हैं ⬇️