अष्टावक्र गीता अध्याय : 16 - 17 में कुल 31 श्लोक हैं और हम यहाँ इन श्लोकों का सरल हिंदी भावार्थ देख रहे हैं ।
🌻 अष्टावक्र कह रहे हैं - योग का फल ज्ञान है जो ब्रह्मवित् में रूपांतरित करके समाधि की अनुभूति में डुबो देता है और तब--
💐 उस एक रस का आनंद कैवल्य में पहुंचा कर मोक्ष की ओर इशारा करता है और शब्द रहित भाषा में कहता है , तुम्हारे मनुष्य योनि का एक मात्र लक्ष्य यही था ।
👌 क्या है , यह मोक्ष ! जिसका आकर्षण मनुष्य को रह - रह कर अपनी ओर खींचता रहता है ।
💐 जीवों में मनुष्य मात्र एक ऐसा जीव है जिसके जीवन - पथ के दो केंद्र हैं - भोग और भगवान । अन्य सभीं जीवों का जीवन मार्ग का एक केंद्र है , भोग । उनका जीवन पथ एक वृत्त जैसा है जिसका केंद्र भोग है । मनुष्य का जीवन पथ अंडाकार है जिसके दो केंद्र हैं - भोग और भगवान ।
💐 जब हम भोग में रमते हैं तब भगवान की स्मृति हमें वहां रुकने नहीं देती और जब हमारा रुख परम की ओर होता है तब भोग का सम्मोहन हमें वहां नहीं रुकने देता । इस प्रकार भोग - भगवान और भगवान - भोग के मध्य हम एक पेंडुलम जैसे बने हुए हैं ।
👌 भोग से भागो नहीं , भोग को समझो । समझने का एक मात्र उपाय है भोग - बंधनों के गुणों को ठीक - ठीक समझना ।
🌼 अष्टावक्र गीता के माध्यम से स्वबोध की प्राप्ति भोग की ओर पीठ करा देती है और परम से एक मजबूत सम्बन्ध स्थापित हो जाता है - लेकिन यह कैसे संभव है ? इसके लिए देखें नीचे दी गयी दी स्लाइड्स को।। ॐ ।।
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