अष्टावक्र गुट अध्याय : 18 के आखिरी 21 श्लोकों में 12 श्लोक सीधे धीर पुरुष से सम्बंधित हैं ।
◆ धीर पुरुष कौन होता है ? धीर पुरुष समभाव , स्थिर प्रज्ञ और गुणातीत होता है । यह ब्रह्मवित् होता है । सम्प्रज्ञात समाधि की अनुभूति ऐसे योगी की साधना भूमि होती हैं । ऐसे योगी निर्ग्रन्थ योगी कैवल्य के द्वार ओर बसते हैं । धीर पुरुष का ज्ञान अनंत होता है और इनका ब्रह्म से एकत्व स्थापित ही गया होता है । यह स्थिति साधना उच्चतम भूमि होती है ।
अब देखिये निम्न स्लाइड को जहाँ अध्याय : 18 समाप्त होता है।
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