Thursday, June 10, 2021

अष्टावक्र गीता अध्याय : 15

 यहाँ अध्याय : 15 के अंतर्गत 02 स्लाइड्स दी गयी हैं ; पहली स्लाइड में अध्याय : 1से अध्याय : 14 तक में दिए गए कुछ सार सूत्रों की पुनरावृत्ति की गयी है और स्लाइड -  02 में अध्याय : 15 के श्लोकों का सरल हिंदी भाषान्तर के माध्यम से श्लोकों का सार दिया गया है ।

अष्टावक्र जी के गीता का केंद्र है , आत्मा , वे एक ही बात को बार -बार कहते हैं , ऐसा क्यों ? जरा इस प्रश्न ओर गहराई से सोचना !

एक सात्त्विक बिषय का बार - बार और लंबे समय तक मनन करने से मन अभ्यास - योग में स्थिर होने लगता है । बिषय - मनन , मन को बिषयाकार बना देता है  - चाहे वह बिषय सात्त्विक हो या राजस गुण धारी हो या फिर तामस गुण धारी हो । परम से मन को जोड़ने के लिए सात्त्विक विषय - मनन ही एक मात्र माध्यम है ।

संदेह - भ्रम मुक्त मन तबहिं हो सकता है जब बुद्धि स्थिर हो और बुद्धि स्थिर तभी हो सकती है जब अंतःकरण ( मन + बुद्धि + अहँकार ) में सात्त्विक गुण की ऊर्जा वह रही हो और प्रभावी हो।

अब देखते हैं निम्न 02 स्लाइड्स को 👇



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