Saturday, October 29, 2011

समयातीत समय को कैसा समझता होगा


घडी की खोज भारत की नहीं


भारत किसी भी खोज में रूचि नहीं दिखाई


भारत मात्र एक की खोज करता रहा जो आज भी खोज का बिषय बना हुआ है


भारत जिसकी खोज कर रहा था आज पश्चिम भी उसकी खोजमें जुटा हुआ है


भारत उस परम की खोज में सब कुछ खो दिया


भारत सब कुछ खो कर भी खुश है लेकिन जिनके पास सबकुछ है वे ---- ?


वे भारत की ओर झांकते रहते हैं , आखिर क्यों ?


आज शायद ही कोई ऐसा मिले जिसके पास किसी न किसी रूप में घडी न हो


सभीं मोबाइल में घडी है


यदि कोई किसी ऐसे लोक से आये जहां के लोग घडी को जानते तो हों लेकिन अभीं देखा न हो तो यहाँ के लोगों का घडी के प्रति लगाव को देख कर उनको कैसा लगेगा?उनके दिमाक में कुछ ऎसी बात आयेगी कि देखते हैं यहाँ के लोगों को और यह भी देखते हैं की ये लोग कितनें समय के पावंद हैं?


अब आप सोचो----


आप कितनें समय के पावंद हैं ?


यहाँ के लोग समय के कितनें पावंद हैं ?


बस अड्डों पर, रेलवे स्टेसनों पर एवं एयर पोर्टों पर जगह – जगह घडीयाँ लटकती आप देख सकते हैं लेकिन वहाँ जो बस, रेलवे और वायुयान चलते हैं वे समय के कितनें पावंद हैं?




घडी की खोज करनेवाला किस मनोविज्ञान का रहा होगा ?


वह जिसका मन एवं बुद्धि पूर्ण रूप से अस्थिर रहा होगा , वह घडी का निर्माण किया होगा /


वह जिसको ब्लड – प्रेसर का मर्ज रहा होगा , वह घडी बनाया होगा /


वह जिसकी उम्र बहुत कम रही होगी वह घडी बनाया होगा /


घडी बनानें वाला कभीं भी स्थिर मन वाला नही हो सकता /


शिवपुरी बाबा महारानी विक्टोरिया के यहाँ इंग्लैंड में मेहमान थे,जार्ज बर्नार्ड शा भी उनसे मिलनें वहा आये थे/शिवपुरी बाबा एक घंटे बाद आये और लोग उनका अभिवादन किया/जार्ज बाबा से पहला प्रश्न पूछा,क्या कारण है की साधू-महात्मा समय के पावंद नहीं होते?बाबा बोले,हो सकता है,लेकिन इस बात को जो आप कह रहे हैं उसे वह समझता होगा जो समय का गुलाम होता होगा लेकिन वह जो समयातीत में रहता है उसे क्या पता कब रात हुयी और कब दिन हुआ?




=====ओम्=======




Tuesday, October 25, 2011

क्या अब्यक्त अमावस्या जैसा ही है

दीपों का त्यौहार आखिर आ ही गया

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सभीं सूचनाओं में परम ऊर्जा का संचार हो,मैं तो प्रभु से यही मांगता हूँ/

कहते हैं , भगवान महाबीर एक ऐसे महान आत्मा हैं जो अमावस्या के दिन पैदा हुए , अमावस्या को उनको ज्ञान मिला और अमावस्या को वे अपना शरीर त्यागे अर्थात महाबीर का सबकुछ अँधेरे में घटित हुआ और इनके बिपरीत बुद्ध का जन्म हुआ पूर्णिमा की रात में ज्ञान की प्राप्ति हुयी पूर्णिमा की रात में और अपना शरीर त्यागा पूर्णिमा की रात में / महाबीर और बुद्ध लगभग समकालीन थे , लगभग इन दोनों का कार्य – क्षेत्र भी काशी से नालंदा के मध्य रहा लेकिन दोनों दो नदियों की भांति समानांतर बहते रहे कभी उनमें टकराव न हुआ /

दीपावली पांच रातों का त्यौहार है,कुछ इस प्रकार-------

पहला दिन – धन त्रयोदसी

दूसरा दिन – नरकासुर चतुर्दसी

तीसरा दिन – अमावस्या , लक्ष्मी पूजन [ मुख्य रात ]

चौथा दिन – एक्कम , गोबर्धन पूजा

पांचवा दिन – यम द्वितीया

दीपावली हार साल हम मनाते हैं क्या कभी कोई ऎसी बात भी हमारे अंदर उठती है जो तन , मन एवं ह्रदय में एक अलग उर्जा का प्रवाह उत्पन्न करती हो ? जी नहीं , त्यौहार आते हैं और जाते हैं और हम मुर्दे की भांति पड़े रहते हैं / त्यौहार क्या करेंगे ? यहाँ तो स्वयं अवतार लेते हैं प्रभु , फिर भी हम जैसे हैं वैसे ही बनें रहते हैं / श्री राम समुद्र पार तक की यात्रा किये और रावण को मारा लेकन उनके साथ कितने मनुष्य थे ? कहते हैं , मनुष्य का मष्तिष्क पशु - पंछी के मष्तिष्क से अधिक विकसित होता है लेकिनत्रेता - युग में श्री राम को पहचाननें वाले इन्शान न थे , पशु - पंछी ही थे /

धन त्रयोदसी धन पूजन के लिए है , नरकासुर चतुर्दसी श्री कृष्ण - नरकासुर के युद्ध की याद दिलाती है , अमावस्या महाबीर के तप की स्मृति को ताजी करती है औरगोबर्धन पूजा में इन्द्र का अहंकार किस प्रकार पीघल कर श्रद्धा में रूपांतरित हुआ , इस बात कि याद दिलाती हैऔर आखिरी है यम द्वितीया जो यह याद दिलाता है कि चाहे जो भी करो लेकिन एक दिन यम के पास तो जाना ही होगा //

अमावस्या के बात पूर्णिमा भी आती है

रात के बाद दिन भी आता है

दुःख के बाद सुख भी आता ही है

फिर क्या घबडाना , जो आया उसे स्वीकारो और जो आनें वाला है उसे आनें दो //

All informations are in time- space four dimensional frame where time coordinate indicates the various changes and every one should be conscious enough to understand the ULTIMATE REALITY .


====== ओम् =====


Friday, October 21, 2011

इसे भी समझो



प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन का कहना है------



बहुत कम लोग ऐसे हैं जो अपनी इंद्रियों से देखी गयी घटना या बस्तु को अपनें दिल से समझते हैं /







  • सभीं लोग नंबर एक अपनें को समझते हैं बिना कुछ किये/





  • बहुत कम लोग नंबर एक बननें के लिए कोशीश करते हैं/





  • पीछे घूम – घूम कर देखनें वाला कभीं नंबर एक नहीं आ सकता





  • नंबर एक वह नहीं होता है जो लोगों की नक़ल करके अपनें को नम्बर एक समझता हो/





  • नंबर एक रहनें वाला कभीं यह सोच कर आगे कदम नहीं बढाता कि लोग क्या कहेंगे/





  • नंबर एक वह होता है जो जो कर रहा होता है उसमें उसकी पूरी श्रद्धा-लगन होती है/





  • नंबर एक के साथ रहनें से ऐसा लगनें लगता है कि यह ब्यक्ति स्वयं तो कुछ करता नहीं,लगता है कि जैसे कोई शक्ति इससे यह सब करा रही हो /





  • नंबर एक वह होता है जिसकी नज़र किसी और पर नहीं अपनी ऊपर होती है/





  • नबर एक कभीं परवाह नहीं करता कि लोग उसके बारे में क्या कह रहे हैं/



Prof. Einstein की जब Theory of relativity विज्ञान जगत के सामनें आयी तब एक सौ लोग उनके बिरोध में खड़े हो गए और गणित को उनके खिलाफ ढालनें लगे , किसी पत्रकार नें उनसे पूछा , आप बोलते क्यों नहीं चुप क्यों रहते हैं , उनका जबाब क्यों नहीं देते ?



Einsteinकहते हैं--------



यदि मैं गलत हूँ तो सौ लोगों को इक्कठे होने की क्या जरुरत , एक ही काफी होता ? ऐसे लोग होते हैं जो नंबर एक होते हैं , देखिये इनके vision को , कितना पारदर्शी है ?







  • नंबर एक बननें की कोशीश करना,बुरा नहीं,कोशीश सब को करनी ही चाहिए लेकिन-----





  • किसी की टांग में अपनी टांग लड़ा कर किसी को नीचे नहीं गिराना चाहिए …...





  • नंबर एक बननें की कोशीश में कहीं अहंकार की छाया नहीं पड़नी चाहिए ….





  • कभीं कोई गहरी चाह नहीं ऎसी होनी चाहिए जिसके प्रभाव में मनुष्य इंसानियत को भूल बैठे



वह हर पल हर घडी नंबर एक है----



जिसकी मन-बुद्धि में प्रभु बसते हों






======= ओम्============





Monday, October 17, 2011

कुछ तो सोचो

कहते हैं-------

पारस अगर लोहे को छू दे तो वह लोहा लोहा नहीं रह जाता , सोना हो जाता है / पारस नाम के बहुत से लोग हैं लेकिन वह पारस पत्थर आज तक किसी को न मिला जो लोहे को सोनें में रूपांतरित कर देता है , आखिर यह बात आयी कहाँ से होगी ?

कहते हैं-----

अन्गुलीमाला एक खूंखार लुटेरा था जो बुद्ध को छूते ही स्वयं योगी बन गया था और एक हैं गीता के अर्जुन जिनको स्वयं प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं कि मैं प्रभु हूँ , तूं मुझे सार्पित हो जा , तेरा इसी में कल्याण है लेकिन अर्जुन यह भी नहीं कहते कि आप प्रभु नहीं हैं और उनकी शरण में आना भी नहीं चाहते और अर्जुन को समझानें में प्रभु को गीता में 574 श्लोकों को बोलते हैं पर इनका कोई असर अर्जुन पर अंत तक नहीं पड़ता /

एक बात------

पारस लोहे को तो सोना बना देता है लेकिन अगर उसके पास एक टोकरा गोबर रख दिया जाए तो क्या गोबर भी सोना बन जायेगा ? हीं पारस केवल लोहे को सोना बनाता है / लोग कहते हैं , अमुक योगी बहुत प्रभावी है लेकिन मुझे तो कोई असर पड़ा नहीं , मैं कैसे कह दूं कि वह बहुत प्रभावी है ? लोग आये दिन गुर ु बदल रहे हैं कभीं ऋषि राज तो कभीं परमानंद , आये दिन नये - नये धर्म गुरु दिखनें लगे हैं जैसे धर्म गुरुओं की बारिश हो गयी हो / आज आप जहाँ जाएँ , जिस धर्म से जुडी संस्था में जाएँ लंबी - लंबी कतारें लगी हैं लोगों की , लागत है इस पृथ्वी पर अब संभवतः सर्वत्र धर्म ही धर्म है लेकिन क्या ऐसा है भी ? बहुत ही गंभीर बात है कि अब भारत में अमेरिका से धर्म गुरु आ रहे

हैं , लोगों को देसी धर्म गुरु अब नहीं भा रहे , हैं न मजे की बात ?

आप जहां भी दिल आये वहाँ जाएँ लेकिन इतनी सी बात को अपनीं बुद्धि के किसी कार्नर में जरुर रख लें कि ------------------

यह तो पता नहीं की आप जहां जिस गुरु के पास जा रहे हैं वह पारस है या नहीं लेकिन आप यह तो देख ही सकते हैं कि--------------

आप क्या लोहा है या फिर …......

गोबर गणेश हैं//

दूसरों को हम परखना चाहते हैं लेकिन स्वयं को ?



============ओम्===========


Thursday, October 13, 2011

मौत क्या है

यात्रा- 01

रुकनें में कोई खुशी नहीं

जानें का गम होता है नहीं

मन कहता फिर कहाँ चले ?

मैं कहता जहां कोई नहीं / / रहनें में … ...


कहीं दूर गगन में बस लेंगे

अब यहाँ तो रहना मुश्किल है

अपनों के संग तो रह ही लिए

अब उसके संग भी रहना है // कहीं दूर … ...





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यात्रा- 02


साधना के बारह मूल मन्त्र


  • सत्य की अनुभूति उस से हमें नहीं हो सकती जो हमारे पास है जैसे तन,मन एवं बुद्धि//

  • सत्य तब दिखनें लगता है जब तन मन एवं बुद्धि की उर्जा रूपांतरित होजाती है//


  • लोगों को तो खूब देखा अब अपनें को भी कुछ घडी देखते हैं//

  • अभीं तक परायों को अपना बना रखा था अब दिखा कि वे सभीं पराये थे//

  • कामना टूटनें पर क्रोध एवं दुःख दो में से कोई एक होता है//

  • जितनी गहरी कामना होगी उतना गहरा दुःख या क्रोध होगा,उसके टूटनें से//

  • दुःख मिले या सुख जो भी मिले उसे प्रभु का प्रसाद समझ कर अपनी झोल में रखो//

  • दुःख की साधना से सीधे प्रभु मिलता है और सुख की साधना अति कठीन साधना होती है//

  • हम जिसको सुख कहते हैं वह ऐसा फल होता है जिसका बीज दुःख होता है//

  • हम सुख – दुःख शब्दों में भ्रमित रहते हैं,ऐसा क्यों?

  • भ्रम अज्ञान की छाया होता है और अज्ञान गुण तत्त्वों के प्रभाव से उपजता है//

  • दुःख की यात्रा वहाँ पहुंचाती है जहां करूणानिधि रहते हैं//




======= ओम =======




यात्रा- 03

वे धन्य हैं जिनका ह्रदय प्रभु से परिपूर्ण है

वे धन्य हैं जिनके दिल में जो है वह सब प्रभु का ही है

वे धन्य हैं जिनको यहाँ कोई नहीं पहचानता

लेकिन ऐसे दिर्लभ को------

वह पहचानता है जो सबका मालिक है//



जो औरों को समझता है वह बुद्धिमान कहला सकता है

और

जो स्वयं को समझता है वह ज्ञानी होता है//


बुद्धि स्तर की समझ में संदेह की पूरी गुंजाइश होती है

लेकिन

ज्ञान से उपजी समझ में संदेह के लिए कोई जगह नहीं होती//




जीवन में मौत के अनुभव के लिए बहुत से मौके मिलते हैं

लेकिन

बहुत कम लोग ऐसे मौकों को समझ पाते हैं//



जन्म का अनुभव तो कहीं स्मृति में दबा हुआ है जिसको हम नहीं जानते और जीवन का दूसरा किनारा है मौत का जो कब आयेगी,कहाँ आएगी और कैसे आयेगी आज तक कोई नहीं जान पाया चाहे वह बुद्ध पुरुष रहा हो या पूर्ण भोगी/जीवन में बहुत बार हम ऐसे अनुभवों से गुजरते हैं जो मूत के अनुभव से ज्यादा दूर के नहीं होते लेकिन ऐसे अनुभवों के समय हम भय में होनें के नाते उनको समझ नहीं पाते और यह हमारी भूल हमें चैन से मरनें नहीं देती//




प्रभु के दरबार में कुछ छिपा न पाओगे और वहाँ कोई तुमसे पूछेगा भी नहीं कि ऐसा क्यों किया?



जीवन में भागते रहना लगभग सब का स्वभाव बन गया है,जो भाग रहे हैं उनमें शायद ही कोई यह समझता हो की वह क्यों भाग रहा है और जी घडी यह सोच उठती है उसी घडी भाग का अंत आ जाता है/हम भाग रहे हैं औरों को समझनें के लिए और समझ नहीं पाते जो समझते हैं वह आगे चल कर झूठा निकलता है और तब बहुत दुःख होता है/जितना श्रम हम करते हैं औरों को समझनें ले लिए उसका एक अंश मात्र भी यदि हम स्वयं को समझनें में श्रम करें तो हमस्वयं को समझ सकते हैं और जो स्वयं को समझता है वह प्रभु को भी समझता है/


यात्रा- 04


क्या आप जानते हैं-------------

  • मीरा20साल की थी जब कबीरजी साहिब देह त्याग गए

  • नानकजी साहिब जब पैदा हुए उस समय कबीरजी साहिब29साल के थे

  • नानक जी साहिब के जन्म से ठीक19साल बाद रवि दासजी साहिब का जन्म हुआ

  • नानक जी के देह छोडनें के08साल बादमीरा देह को त्यागा

  • मीरा के देह त्याग केएक साल बाद रसखान जी का आना हुआ

आज मनुष्य के मनोविज्ञान में नकारात्मन ऊर्जा बह रही है;जो है उसे गलत बनाओ और जो नहीं है उसका स्वप्न देखो/जो सरकार है वह निकम्मी है,जो नहीं है वह प्यारी होगी लेकिन जिस घडी वह आती है उसी घडी से उसकी कब्र हम खोदनें लगते हैं और किसी न कीसी तरह हम सब मिला कर उसे जीते जी कब्र में ढकेलदेते हैं,शुक्र है कि ऊपर मिटटी डालना भूल जाते हैं और वही सर्कार पुनः कुछ समय भाद आ जाती है और यह क्रम सम्पूर्ण संसार में चल रहा है/





यात्रा- 05



रिक्त मन प्रभु को बसाता है

रिक्त मन मंदिर है

रिक्त मन में परम कमल खिलता है

रिक्त मन स्वयं का असली रूप दिखाता है



यात्रा- 06


एक गाँव में एक बूढा अकेले एक झोपड़े में रहता था,कई दिनों से वह बाहर न दिखा तब बस्ती के लोग उसके झोपड़े में पहुंचे और देखा कि वह तो बिचारा बीमार था और था अकेला/सभीं लोग उसकी मदद करना चाहते थे,कोई पानी की गिलास ले कर आगे आता तो कोई अपनें घर से भोजन ले कर आया लेकिन वह कुछ खाया-पीया नहीं बश लोगों को हाँथ जोड़ कर अभिवादन जरुर किया और धीरे से बोला, “आप लोग कुछ समय के लिए बाहर जाएँ एक हमारे खास मेहमान आये हैं जिनका मैं इन्तजार कर रहा था,फिर आप लोग आ जाना,यह झोपडा तो आप सबका ही है" /सभीं लोग एक दूसरे को देखते हुए एक के बाद एक बाहर जानें लगे और चंद मिनटों में झोपडा खाली हो गया/बाहर रहे होंगे लगभग10 – 12लोग,सभीं आपस में बातें कर रहे थे कि भाई वह खास ब्यक्ति कौन हो सकता है,अब तो अंदर कोई दिखता भी नहीं?गाँव के मुखिया जी बोले,पिछले पचास साल से मैं देख रहा हूँ,आज तक तो कोई आया नहीं लेकिन ताजुब की बात है,आखिर वह खास ब्यक्ति कौन हो सकता है?जो लोग बाहर थे उनमें से एक आदमी झोपसे से कान लगा कर अंदर की आवाज को सुन रहा था/अंदर से आवाज आ रही थी जैसे कोई दो लोग धीरे-धीरे बातें कर रहे हों,उस ब्यक्ति नें इशारा किया की चुप रहो,जिससे अंदर चल रही वार्ता को मैं ठीक से सुन सकूं/अब सबको यकींन हो गया,कोई न कोई अंदर जरुर है और सभीं चुप हो गए/झोपसे आ रही आवाज में उस बीमार ब्यक्ति के रो-रो कर बातें करनें की आवाज आ रही थी,वह रो-रो कर कह रहा था,तुम इतनें दिन लगा दिए आनें में मैं तो सालों से तेरा इन्तजार कर रहा था,मुझे यह नहीं मालूम था कि तुम इतनें निर्दयी हो,चलो अच्छा हुआ आ तो गए मैं तो सोच बैठा था कि तुम आओगे ही नहीं/धीरे-धीरे अंदर झोपड़े में उस बीमार ब्यक्ति की आ रही आवाज बंद हो गयी और लगभग दस मिनट तक जब कोई आवाज न आयी तो वह आदमी जो कान लगा कर अंदर की बात को सुन रहा था भाग कर प्रधान जी के पास आ कर बोला,प्रधान जी आप अंदर जाएँ अबतो आवाज भी आनी बंद हो गयी है और ऐसा लग रहा है,जैसे अंदर कोई है ही नहीं/प्रधानजी भागे-भागे अंदर गए और जोर से आवाज लगाईं,आ जाओ सभीं यह बूढा तो अब नहीं रहा/अंदर जा कर लोग देखे,वह बीमार नीचे जमीन पर पड़ा है और एक दम ठंढा हो चुका है/

अब आप सोचिये वह उसका खास मेहमान कौन रहा होगा जो उसके अखीरी क्षणों में उसके पास आया था और वह उसे पहचान कर बोला,अरे!तुम आगये? ,मैं तो कितनें दिनों से तेरा इन्तजार कर रहा था,चलो कोई बात नहीं जब आ ही गए हो तो तेरे साथ चलना ही होगा/वह कोई साकार न था वह थीमौत----------//

वह जो मृत्यु के समय मौत को देख कर उसे पहचान लेता है वह ब्यक्ति सीधे परमधाम पहुंचता है/


=====ओम्--------


Sunday, October 9, 2011

भोला चरवाहा क्या सोच रहा है

एक भेड़ों का चरवाहा अपनें संस्मरण में लिखा है----------

मैं हर समय पहाड़ों पर अपनी भेड़ों के साथ रहा करता था और आये दिन साधुओं से मेरी मुलाकात हुआ करती थी , यह बात मेरे जवानी की है / मैं साधुओं से प्रायः पूछा करता , आप लोग यहाँ क्या करते हैं , मैं तो अपनी भेड़ों के खातिर यहाँ हूँ लेकिन आप लोग ? सभीं लोगों का प्रायः एक सा ही उत्तर होता , मैं परमात्मा को यहाँ खोजनें आया हूँ /


चरवाहा आगे लिखता है , एक दिन की बाते , मैं एक पहाडी पर एक भेद के बच्चे के साथ बैठा हुआ उस से कुछ बातें कर रहा था कि इतनें में एक साधू वहाँ आ पहुंचे और बोले , बेटा तुम किस से बातें कर रहा है ? मैं बोला , मेरे पास यह बच्चा है इस से बातें कर रहा हूँ / साधू महाराज वहीं बैठ गए और मुझ से बातें करें लगे / मैं उनसे कहा , महाराज मैं एक बात कहूँ आप नाराज तो नहीं होंगे ? साधु महाराज बोले , नहीं पूछ , नाराज क्या होना , तूं तो बच्चा है / मैं उनसे पूछा , मैं बहुत छोटा था तबसे इन पहाड़ों पर रह रहा हूँ अपनी भेड़ों के साथ लेकिन कभीं एक भी भेद मुझसे गुम न हुयी

आज तक / मुझे यह नहीं पता चल रहा कि यहाँ जितनें भी साधु हैं सबका परमात्मा खोया हुआ है और सभीं उसे खोज रहे हैं , क्यों आप लोगों का परमात्मा खो जाता है ? मुझसे यदि एक भी भेड गुम हो जाए तो मेरा पाप मुझे घर से निकाल देगा , मुझे लगता है आप सबके सब घर से नीकाले हुए लोग हैं और आप लोग परमात्मा को यहाँ खोज रहे हैं , हैं न ऎसी बात ? वह साधू महाराज हसने लगे और चल पड़े , आज मैं समझता हूँ कि मैं उस समय कितना भोला था //


लोग प्रभु को खोज रहे हैं

और

प्रभु ऐसे बंदे को तलाश रहाहै जिसमें भक्ति भाव ऊपर से बह रहा हो //

भक्त का प्रभु कभीं नहीं खोता,वह प्रभु में जीता है और प्रभु में मर ता है//

प्रभु भी खोज रहा है उस चरवाहे जैसे भोले लोगों को//


=======ओम्===============


Wednesday, October 5, 2011

यहाँ कौन खुश है और कौन दुखी

आज कितनें लोग खुश हैं? ,उनमें कितनें कल दुखी हो जायेंगे?और आज जितनें ओग दुखी हैं उनमे कल कितनें खुश थे? ,इस बात पर कुछ सोचना कठिन सा है लेकिन हम औरों को न देख कर स्वयं को देखें,इस कसौटी पर,तब हो सकता हमें कुछ रहस्य,जिनका सीधा सम्बन्ध हमारी खुशियों एवं दुखों से है,हमें दिखनें लगें/इस सम्बन्ध में दो बातों को हमें स्वयं के सम्बन्ध में देखना होगा-----

कितना लंबा है हमारा भूत काल?अपने भविष्य की कितनी लम्बाई हम देख रहे हैं?जब इन दो बातों पर हम चलते हैं और जब इन दो बातों के प्रति हम होश से भर जाते हैं तब हमारे सामनें एक मुस्कुराता हुआ वर्तमान होता है जहाँ न गम होता है और न खुशी/

गुजरे दिनों की कुछ मीठी और कुछ खट्टी यादों का भार हमारे पीठ पर लदा हुआ है जो कभी सरक कर नीचे की ओर आ जाता है , तब हमें कुछ चैन मिल जाता है और हम पुनः उसे नीचे नहीं गिरनें देते तुरंत उसे ऊपर चढ़ा लेते हैं और माथे पर आ रहे पसीनें को पोछ – पोछ कर आगे चलते रहते

हैं /

यदि इस घडी से पूर्व की कोई स्मृति मन में आये तो उसे अंदर प्रवेश न करनें दें चाहे वह खुशी की स्मृति हो या दुःख की , यह पहला कदम है अपनें वर्तमान को आनंद से भरे रखनें के लिए / दूसरी बात इस सम्बन्ध में है , भविष्य की सोच ; जब भी मन भविष्य की लम्बाई – चौड़ाई मापना प्रारम्भ करे उसे वहीं रोको और जहां पहले था उसी जगह ला कर उसको देखते रहें / गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं , अर्जुन मन जहां - जहां जाता हो उसे वहाँ - वहा से खीच कर मेरे ऊपर केंद्रित करनें का अभ्यास – योग तुमको परम शांति में पहुंचा सकता है जहां मैं ही मैं हूँ और कोई नहीं [ देखिये गीता श्लोक – 6.26 ] / जिस मन में प्रभु को बसाना ही प्रभु को पाना है और प्रभु का अर्थ है , वह आयाम जहां न भूत की स्मृति रहती है और जहां न भविष्य के सोच की हवा चलती है एवं जिसको परमानंद कहते हैं /

आनंदमय वर्तमान वहाँ है -----

जहां न भूत की स्मृति है

और

जहां न भविष्य की फ़िक्र

लेकिन जहां जो है

वह है प्रभु की स्मृति//


=====ओम=====


Saturday, October 1, 2011

कौन है अपना और कौन है पराया

कौन है अपना और कौन है पराया

जब हम चाहें किसी को अपना बना लेते हैं और जब चाहें किसी अपनें को पराया करार दे देते हैं आखिर कौन है अपना और कौन है पराया?अपनें अंदर वह कौन है जो अपना-पराया की सोच पैदा करता है?

अभीं जिसको हम अपना बना रखे हैं वह आगे चल कर पराया हो जाता है और अभीं जिसको हम पराया समझ रखे हैं वह आगे चल कर अपना निकलता है , आखिर यह क्या है माजरा ?

कभीं-कभी ऐसा लगता है कि-------

वह जिसको हम अभीं अपना समझ रहे हैं वह पराया होनें का इन्तजार कर रहा है और अभीं जो अपना पराया है वह अपना होनें का इन्तजार कर रहा है , ज़रा दौडाओ अपनें दिमाक को इस बिषय पर /

यहाँ कोई पराया नहीं और कोई अपना नहीं , यहाँ सब का अपना - अपना स्पेस है और समय के आधार पर सबका स्पेस बदलता रहता है / जब हम दो किसी घडी एक स्पेस में होते हैं तब ऐसा लगनें लगता है कि हम एक दूसरे के अपनें हैं और जब समय हमारे स्पेस को बदल देता है तब वही हम अपनें एक दूसरे के पराये हो जाते हैं और यह क्रम चलता रहता है और हम अपनें - पराये की चक्की में पिसते रहते हैं / अपनें - पराये का भ्रम मन की सविकार ऊर्जा है जो मन को स्थिर होनें नहीं देती / यहाँ विज्ञान की दृष्टि में एक सब एटामिक कण से सूर्य जैसे विशाल ग्रह जैसे सभीं के अपनें - अपनें स्पेस हैं और मनुष्यों में सब के अपनें - अपने स्पेस हैं /

ध्यान एक ऐसा माध्यम है जो एक निश्चित गहराई में पहुंचनें पर ऐसे स्पेस में पहुंचाता है जहां अपने - पराये की सोच नहीं रहती वहाँ जो भी दिखता है सब अपना ही होता है / सहज ध्यान क्या है ? चलते - फिरते परायों में अपने को खोजो और अकेले में जब हो तब अपनें में परायों को तलाशो , यह है सहज ध्यान जो उस आयाम में पहुंचाता है जहाँ कोई पराया नहीं होता और संपूर्ण ब्रह्माण्ड एक के फैलाव स्वरुप दिखता है और जहां मात्र वर्तमान होता है न भूत की स्मृति आती है न भविष्य की स्मृति दिखती है //


=====ओम======