Wednesday, October 5, 2011

यहाँ कौन खुश है और कौन दुखी

आज कितनें लोग खुश हैं? ,उनमें कितनें कल दुखी हो जायेंगे?और आज जितनें ओग दुखी हैं उनमे कल कितनें खुश थे? ,इस बात पर कुछ सोचना कठिन सा है लेकिन हम औरों को न देख कर स्वयं को देखें,इस कसौटी पर,तब हो सकता हमें कुछ रहस्य,जिनका सीधा सम्बन्ध हमारी खुशियों एवं दुखों से है,हमें दिखनें लगें/इस सम्बन्ध में दो बातों को हमें स्वयं के सम्बन्ध में देखना होगा-----

कितना लंबा है हमारा भूत काल?अपने भविष्य की कितनी लम्बाई हम देख रहे हैं?जब इन दो बातों पर हम चलते हैं और जब इन दो बातों के प्रति हम होश से भर जाते हैं तब हमारे सामनें एक मुस्कुराता हुआ वर्तमान होता है जहाँ न गम होता है और न खुशी/

गुजरे दिनों की कुछ मीठी और कुछ खट्टी यादों का भार हमारे पीठ पर लदा हुआ है जो कभी सरक कर नीचे की ओर आ जाता है , तब हमें कुछ चैन मिल जाता है और हम पुनः उसे नीचे नहीं गिरनें देते तुरंत उसे ऊपर चढ़ा लेते हैं और माथे पर आ रहे पसीनें को पोछ – पोछ कर आगे चलते रहते

हैं /

यदि इस घडी से पूर्व की कोई स्मृति मन में आये तो उसे अंदर प्रवेश न करनें दें चाहे वह खुशी की स्मृति हो या दुःख की , यह पहला कदम है अपनें वर्तमान को आनंद से भरे रखनें के लिए / दूसरी बात इस सम्बन्ध में है , भविष्य की सोच ; जब भी मन भविष्य की लम्बाई – चौड़ाई मापना प्रारम्भ करे उसे वहीं रोको और जहां पहले था उसी जगह ला कर उसको देखते रहें / गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं , अर्जुन मन जहां - जहां जाता हो उसे वहाँ - वहा से खीच कर मेरे ऊपर केंद्रित करनें का अभ्यास – योग तुमको परम शांति में पहुंचा सकता है जहां मैं ही मैं हूँ और कोई नहीं [ देखिये गीता श्लोक – 6.26 ] / जिस मन में प्रभु को बसाना ही प्रभु को पाना है और प्रभु का अर्थ है , वह आयाम जहां न भूत की स्मृति रहती है और जहां न भविष्य के सोच की हवा चलती है एवं जिसको परमानंद कहते हैं /

आनंदमय वर्तमान वहाँ है -----

जहां न भूत की स्मृति है

और

जहां न भविष्य की फ़िक्र

लेकिन जहां जो है

वह है प्रभु की स्मृति//


=====ओम=====


3 comments:

रविकर said...

खूबसूरत |
सादर नमन ||

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

Atul Shrivastava said...

सुंदर अभिव्‍यक्ति।
बेहतर प्रस्‍तुतिकरण।