Sunday, October 31, 2010

एक दिन .......

बिना सोचे आ ही गया ------

एक दिन अकेले में मैं बैठा था , न जाने कैसे एक सुमधुर आवाज मेरे दिल में उठी ,
मैं तो सुन कर चारों तरफ देखनें लगा , मानो कोई अपना ही बोल रहा है ।
आवाज थी ------
पंडितजी ! जो लोगों को बाट रहे हो , उसका एक अंश भी यदि अपनें पास रख लेते तो तुझे कोई
गिला- सिकवा न होता ।
लोगों को जो तुम कहते हो , वह कितना सच है और कितना झूठ , क्या कभी सोचे हो ?
क्यों लोगों को वह बताते हो जिसका तेरे को कोई अनुभव नहीं है ?
कभी बैठ कर क्या सोचते भी हो की तुम क्या कर रहे हो ?
क्यों पीतल की अंगूठी को चमका कर सोनें की बना रहे हो ?
क्या ऐसा कर पाओगे भी ? और यदि कामयाब
भी हो गए तो क्या होगा ?
लोगों के सामनें यदि स्वयं को साफ़ करना संभव नहीं , तो अकेले में ही सही कभी- कबार जो कबाड़ अन्दर
संग्रह करते रहते हो उनको साफ़ कर दिया करो ॥
मुझे ऐसा लगा जैसे मैं अभी - अभी नीद से जगा हूँ और मेरी आँखें उलझी हुयी हैं ।
मेरे में करेंट सी बह उठी और मैं चल पडा किसी निर्जन स्थान की खोज में ।
अभी कुछ ही दूर चला हुआ हूंगा की
पुनः उसी स्वर में आवाज आयी -
अच्छा ! अब सूनी जगह की तलाश की आड़ में भाग रहे हो , भागो जितना भागना है ,
मैं तेरा साथ नहीं छोडनें वाला ।
अरे भाई ! बाहर एकांत खोज कर क्या करोगे ?
अन्दर ही एकांत क्यों नहीं बनानें का प्रयत्न करते ।
फिर कहाँ जाना था , चल पड़े उलटे पैर घर को
और कोशीश शुरू करदी अन्तः कर्ण को एकांत के रंग में
रंगनें की ॥
आप कब शुरू करनें वाले हैं ?

=== आओं मिल कर करते हैं ======

Friday, October 29, 2010

वह दिन दूर नहीं .........

जब सब सुनेंगे और .....
देखगे भी

विज्ञान कहता है - अब से लगभग 200 million साल पहले पृथ्वी का वर्तमान स्वरुप बना जब की इसका
निर्माण लगभग 4.5 billion वर्ष पूर्व में हो चुका था , लेकीन यह आग का गोला रूप में थी ॥
तब से आज तक पृथ्वी की सभी सूचनाएं एवं पृथ्वी भी स्वयं धीरे - धीरे किसी न किसी प्रक्रिया
के तहत समुद्र में जा रहीं हैं । समुद्र एक तरह से वह स्थान है जहां पृथ्वी से ठोस , द्रव आदि पहुँचते
रहते हैं
अर्थात समुद्र पृथ्वी का रिसाइकल बिन जैसा है ।

पृथ्वी का एक चौथाई भाग पर संसार है जहां जड़ - चेतन हैं और तीन चौथाई भाग समुद्र के पास है ॥
समुद्र का अस्तित्व तब तक है जब तक इसका स्तर नीचा है , जो धीरे - धीरे उचा हो रहा है क्योंकि
प्रथ्वी की सभी सुचनाये एवं स्वयं पृथ्वी भी धीरे - धीरे समुद्र में जा रहे हैं , समुद्र का स्तर उंचा हो रहा
है और पृथ्वी का स्तर नीचा हो रहा है ।
यदि गणित से देखें तो वह दिन आने ही वाला है जब ......
लोग सुनेंगे ही नहीं अपितु ......
देखेंगे भी ॥
जिस समय न हिम गिरी होगा ......
न उत्तुंग शिखर होगी ......
और न वह देखनें वाला होगा ॥
काश वह दिन एकाएक आता तो हम भी देखते और मनुष्य यह देख लेता की .....
जैसी करनी .....
वैसी भरनी ॥

===== कैसा होगा वह नज़ारा ====

Thursday, October 28, 2010

जो जीता नहीं वही गाता है -----

बहुत पहले मैं लिखा था -----

जो जिसमें जिया हो और उसे गाया हो , वह है ऋषि , और .....
जो बिना जीये गाया हो , वह भी किसी चाय की दूकान पर ,
वह है आज का कवी ॥

ऐसे लोग गायत्री का अर्थ करते हैं जिनके होठो पर पल भर के लिए भी गायत्री कभी नहीं आई ॥
जो गायत्री का सम्मोहित अर्थ कर रहे हैं ज़रा उनके जीवन को देखना ॥
शायद ही कोई ऐसा हो - दार्शनिक , जो कबीर के दोहों पर अपना मत न दिया हो , लेकीन
यह भी सत्य है की , उनमें से कोई भी एक दिन भी कबीर जैसा जीवन नहीं जिया होगा ।
हमनें किसी दार्शनिक का प्रवचन पढ़ा था , वे कबीर की बात ----
निंदक नियरे राखिये ...... पर अपना बिचार प्रकट किया था , प्यारा तर्क था ,
मन के मनोरंजन के लिए
उत्तम था लेकीन उसमें आत्मा न था , था वह निर्जीव क्योंकि ......
लिखनें वाले दार्शनिक का जीवन कबीर से कोसों दूर था , यह मैं स्वयं देखा हूँ ॥
कबित और नानक एक समय में थे । नानक पंजाब में थे जहां सूफियों की उर्जा थी
और कबीर थे -
काशी में जहां पांच निर्वाण प्राप्त योगियों की आत्माएं हर पल रही हैं जो .....
साधकों का मार्ग दर्शन करती हैं ॥
कबीर जी कभी नानक के बारे में नहीं बोला और -----
नानकजी कभी कबीरजी के बारे में नहीं बोला ---
बोलना क्या था , वे दोनों एक के दो रूप जो थे ॥
कहते हैं .....
एक बार कबीर जी के पास तीन दिन नानकजी रुके रहे , अपनी पूरी की यात्रा के दौरान , भक्तों को
यह आशा थी की दोनों की बातों को सुनेगे लेकीन ऐसा मौक़ा न मिला ।
नानक जी चौथे दिन उठे कबीर जी को देखा , दोनों की आँखें भर आई और नानक जी आगे चल पड़े ।
कबीर के चेलों ने पूछा - गुरूजी क्या बात थी , आप लोग कुछ बात - चित नहीं की ?
कबीर जी बोले - बावले ! जो उनको कहना था कहा , जो मुझे कहना था मैं कहा , दोनों एक दूसरे की बात
को सूना भी , यदि तू न सुन पाया तो मैं क्या करूँ ?
बोलना , लिखना एक कला है जिस से ----
मनुष्य के जीवन में नहीं झांका जा सकता ॥
पहले बनो , फिर गाओ ......
पहले जीवो , फिर लिखो .....

===== एक बार फिर ======

Wednesday, October 27, 2010

परात्मा सुनता भी है

यह मेरा अपना अनुभव है -------

मेरे दो बेटे हैं : दोनों में दस साल से भी कुछ अधिक का अंतर होगा ।
बड़ा बेटा जब पढ़ लिया और नौकरी में लग गया तब छोटा अभी बहुत छोटा था ।
मेरी उम्र आगे बढ़ रही थी और यही चिंता थी की मेरे बाद इस बच्चे का क्या होगा ?
मैं प्रभु से यही कहा करता ........
हे प्रभु ! इस बच्चे को मैं अपनें बड़े बेटे की तरह अपने पैरों पर खडा देखना चाहता हूँ ,
उसके बाद यहाँ
मृत्यु लोक में मेरा कोई काम नहीं ,
तूं बेशक मुझे अपनें पास बुला लेना ॥
यह बात मैं एक बार रोजाना कहता था और यह बात है भी लगभग तेरह - चौदह साल पहले की ,
उस समय मेरा छोटा बेटा था - पांचवी कक्षा में ॥
अभी - अभी मई में मेरा बेटा इंजीनियरिंग करके एक अच्छी कंपनी में लगा था, शायद दो एक माह का
की तनख्वाह मिली होगी , वह गया था पुणे ट्रेनिंग के लिए और मैं बीमार हो गया , ऐसा बीमार की
हमें पता भी न चला की मैं बीमार हूँ । मेरा बड़ा बेटा चाइना में है और उनदिनों यूरोप टूर पर था ।
घर पर कोई न था , मैं दो दिनों से ब्लॉग भी न लिख पाया था
लेकीन ऐसा नहीं लगता था की मैं बीमार हूँ ॥
मेरी एक मित्र हैं , गीता मोती के ब्लागों को पढती थी , जब दो दिन से ब्लॉग न दिखे तो वे बोली ---
बेटा [ हमारे छोटे बेटे से , जो उन दिनों पुणे में उनके पास ही रुका हुआ था ] !
ज़रा फोन करके अपनें पिताजी का पता तो करो , कहीं वे ....... ॥
जब बेटा विडिओ कान्फेरेंसिंग में मुझे देखा तो रो पडा लेकीन मेरे को तब भी पता न चला की मैं
बीमार हूँ ॥
इन दो दिनों में मैं अपनें को बहुत आनंदित मह्शूश कर रहा था । बेटा भागा - भागा आया और ले गया
पुणे जहां मेरे ब्रेन का दो बार आपरेसन हुआ और अब मैं कुछ - कुछ ठीक हो रहा हूँ ॥
जब गीता पढ़ना था तो पढ़ा नही और अब पढ़ रहाहूं जब की अन्दर इतनी सघन ऊर्जा नहीं रही ॥
लोग कहते हैं -- प्रभु को किसनें देखा , मैं अपनें बेटों और उस महिला के रूप में जिसनें मुझे मृत्यु के
मुख से निकाला , निराकार प्रभु को साकार रूपों में देखा ॥
प्रभु हर वक़्त सब की बातों को सुनता रहता है , यह मेरा अपना अनुभव है ॥
सब के जीवन में मौक़ा मिलता है , निराकार को साकार रूप में देखनें को .....
कोई देख कर भूल जाता है , जैसे मैं , और
कोई इसे अपनें सत मार्ग के रूप में देखता हुआ प्रभु में लीं हो जाता है ॥

===== ऐसा भी घटित होता है =======

Tuesday, October 26, 2010

आखिर ऐसा क्यों ?

प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन कहते हैं :-----

देखते तो सभी हैं जिनके पास आँखें हैं लेकीन ........
देखी गयी सूचनाओं पर ह्रदय से सोचनें वाले न के बराबर हैं ॥
बीसवी शताब्दी में विज्ञान को एक नए रंग में रंगने वाले वैज्ञानिक की बातें ऎसी हैं जैसे :-----
कोई स्थिर - प्रज्ञ बोल रहा हो ॥

मेरी शिक्षा काशी और प्रयाग में हुयी थी , काशी में जहां मैं था ------
उसके सामनें गंगा और उस पार काशी नरेश का महल दिखता था ।
बाएं तरफ थोड़ी दूरी पर अस्सी घाट और दाहिनी ओर काशी विश्वविद्यालय था ।
मेरे चारों ओर मठ थे और गंगा के किनारे सुबह - सुबह साधुओं के मुलाक़ात होती ही रहती थी ।
मुझे भी शौक था सूर्योदय के पहले गंगा - स्नान करनें का ।
मैं साधुओं से प्रायः पूछा करता था ----------
[क] आप का प्यारा कौन है , उत्तर में .......
# कोई अपनें गुरु का नाम लेता था ,
# कोई राम भक्त होता था ,
# कोई कृष्ण भक्त होता था और ....
# कोई शिव भक्त ॥
मेरा उनसे दूसरा प्रश्न होता था -----
क्या आप का प्यारा आप को आपके स्वप्नों में भी दिखता है ,
सीनें पर हाँथ रख कर बताना ?
आज तक कोई ऐसा न मिला जिसका उत्तर - हाँ हो ॥
हम जिससे बहुत प्यार करते हैं
उसे स्वप्न में क्यों नहीं देख पाते ?
सीधी सी बात है -----
जब उस स्तर का प्यार हो तब न ॥
आज से आप प्रयोग करना प्रारम्भ कर दें -
अपनें प्यारे को अपनें स्वप्न में लानें के लिए और ---
यह अभ्यास आप को परम प्यारे से मिला सकता है ॥

==== ऐसा करो तो सही ======

Sunday, October 24, 2010

सब की खोज जारी है , लेकीन किसकी ?

सडक के किनारे खड़े हो कर भागते हुए लोगों को देखो --------
सब भाग रहे हैं मानो सब को पता है की वक़्त बहुत ही कम है .....
सब के माथे से पसीना चू रहा है , लेकीन कोइफिक्र नहीं ......
आखिर सब की खोज किसकी है ?

एक गोदी के बच्चेको ले कर किसी माल में पहुँचिये तो सही -----
बच्चा पुरे माल को अपनें मुट्ठी में बंद करना चाहता है ........
एक को लेता है , देखता है , कुछ पल के लिए और फेक कर दूसरे को पकड़ लेता है , और ......
यह क्रम चलता रहता है , आप थक जाते हैं , अपनें साथी को बच्चे को पकड़ा कर फटा फट बाहर
निकल कर एक सिगरेट सुलगा लेते हैं , लेकीन -----
कभी यह नहीं सोचते की यह बच्चा ऐसा क्यों कर रहा होता है ?
सिगरेट को माध्यम बना कर कुछ पल काटना , स्वयं को धोखा देना ही है ,
स्थिति में कोई परिवर्तन तो होता नहीं ।

आये दिन बाजार में नए माडल के नए डीजाइन के .......
वस्त्र , ज्वेलरी , जूते , जूतियाँ , मोबाईल , लेपटोप , हैण्ड बैग ,
सब कुछ नए - नए आकार - प्रकार में
आ रहे हैं और जा रहे हैं लेकीन ------
क्या आप तृप्त हैं ?
क्या आप यह कहनें की स्थिति में हैं -----
बश , अब बहुत हो गया , अब और नहीं चाहिए ?
लोग पंथ चलाये हैं की .........
भोगते रहो और होश बनाते रहो , एक दिन निर्वाण मिलही जाएगा - ऐसे लोग
अच्छी भीड़ इकट्ठी कर लेते हैं ,
सभी नवयुवक - नवयुवतियां आकर्षित होती हैं लेकीन होता क्या है ?
आज भोग की रफ़्तार इतनी तेज है की लोग इसमें कही ऐसे खो जा रहे है
जैसे समुन्दर में सरसों का बीज ।
आप भी देखते ही होंगे -----
आज- कल ध्यान के नाम पर बिना टैक्स कितना ब्यापार हो रहा है ?

गोदी में जब हम थे , तब से आज तक संसार के भोग को अपनें मुट्ठी में बंद कर रहे हैं ,
लेकीन ----
क्या कर पाए , हमें स्वयं से पूछना चाहिए ?
भोग से ------
बुद्ध और महाबीर निर्वाण प्राप्त किये ......
भोग से -----
राजा जनक , विदेह कहलाये लेकीन उन लोगों के बाद , कितनें
बुद्ध , महाबीर और जनक बन पाए ?

चालीश वर्ष तक वह ऊर्जा होती है जो ----
प्रभु तक पहुंचा सकती है , बशर्ते इस समय में ,

हमें यह मालूम हो की हमारा रुख किधर को है ।
इस उम्र में यदि बवंडर की तरफ उड़ते रहे तो ,

अंत समय में पछताने के अलावा कुछ न बचेगा ॥

==== कुछ तो सोचो , सुनों =====

Friday, October 22, 2010

सुन न पाया की .......


सुन न पाया था .....
उसके पैरों की आहात को
वह आयी , कैसे आई ?
और कैसे गई ,
कुछ समझ न पाया था ।

वह एक नहीं दो हैं ;
एक चौबीस घंटों में कमसे कम एक बार आगाह करनें आती ही है ,
और .....
एक जीवन में एक बात आती है और .....
ले जाती है उसे ....
जिस से हम हैं ,
लोग ऐसा समझते हैं ।
एक को हम नीद के नाम से जानते हैं , और .....
दूसरी को मौत कहते हैं ।
जो अपने नीद के पैरो की आवाज को सुन सकता है , वह .....
मौत की आहात को भी पकड़ सकता है ।
वह जो नीद को आते देख सकता है , वह कभी स्वप्न नहीं देखता ....
जो देखता है वह सत ही होता है ॥
बीसवी सताब्दी के मध्य में स्वामी योगा नन्द जी महाराज , अमेरिका में अम्बैसी के कार्यक्रम में थे ।
कुछ समय लोगों को आध्यात्म के सम्बन्ध में बताया और .....
एकाएक रुक गए , और बोले ----
आप लोग जा सकते हैं , अब मेरा बुलावा आ गया है .....
मुझे जाना ही होगा , आप सब -----
मुझे क्षमा करें , रुकना , मेरे बश में नहीं है ॥
लोग समझ न पाए लेकीन वे अपनी मौत के बारे में कह रहे थे ॥
ऐसे लोग अपनें को शीशे की तरह रखते हैं जिनसे ......
जो निकलता है , वह ....
परा प्रकाश ही होता है ॥
धन्य हैं ऐसे योगी ॥

====== एक बार कोशीश तो करें =======

ऐसा क्यों होता है ?


जब आप पूजा में बैठे हो तब देखना --------

[क] पंडितजी क्यों इतनी जल्दी में हैं ,
क्यों राजधानी गाड़ी की तरह मन्त्रों को भगा रहे हैं ?
[ख] फिर अपनें को देखना --------
क्यों वहाँ - वहाँ खुजली होती है जहां - जहां पहले कभी नहीं हुयी होती ?
[ग] बात - बात पर गुस्सा क्यों आता रहता है जब तक पूजा चल रहा होता है ?
घर में जब कभी कोई धार्मिक कार्य क्रम चाल चल रहा होता है , तब घर के लोगों में
अस्थिरता देखी जाती है , क्यों ?
जहां धार्मिक अनुष्ठान हो रहा होता है ,
वहाँ मन कहता है , भाग लो , यह जगह तेरे लिए उचित नहीं ।
मन भोग की ओर चलाना चाहता है , मन गुणों का गुलाम है , धार्मिक अनुष्ठान प्रभु की ओर
चलाते हैं । मन कभी मरना नहीं चाहता ,
प्रभु के मार्ग पर चलनें वाले का मन पूर्ण शांत रहता है ।
मन को रस है राग में , भय में , क्रोध में , मोह में
जहां उसका साथी होता है - अहंकार ।
गुण , मन और अहंकार - ये तीन तत्त्व ..........
मनुष्य को पशु बना कर रखते हैं ॥
मन जिधर चलाये ठीक उसके बिपरीत चलो ,
यही मन साधना है ॥

===== मन के साथ रहो =======

Thursday, October 21, 2010

अब किधर चले ?


जीवन को पढने के लिए ........
रोशनी नहीं , होश चाहिए ॥

दुसरे के जीवन में झाकनें से पूर्व ......
अपनें जीवन की किताब को पढ़ लेना चाहिए ॥

पढनें के लिए लाइब्रेरी जाना जरुरी नहीं .....
अपनें अन्दर जाना जरुरी है ॥

दूसरे आप को अपनाएं .............
पहले दूसरों को आप अपनानें का अभ्यास करें ॥

दूसरों के ऊपर थूकनें से पूर्व ........
अपनें बदन का निरिक्षण कर लेना चाहिए ॥

निराकार को देखनें से पूर्व ........
साकारों को अपनें दिल में बसानें की कोशिश करें ॥

===== छोटी - छोटी बातें .... ======

Wednesday, October 20, 2010

यहाँ कैसे चलें ?


प्रभु हमें दो पैर दिए हुए हैं ,
एक जब आगे चलता है तो दूसरा उसे देखता रहता है ।
ऐसा कौन होगा जो चलता न हो ?
ऐसा कौन हो सकता है
जो यह समझता हो की -----
जब एक पैर आगे निकलता है तो दूसरा उसे देखता रहता है ?
आगे निकला पैर जिस दिशा में निकला है , आगे , वह यह सुनिश्चित करता है की .....
जीवन - धारा का रुख क्या है ?
धार के साथ बहनें वाला पत्थर ,
एक दिन शिव लिंगम बन कर किसी मंदिर में पहुँच जाता है
और धार के साथ संघर्ष करता हुआ पत्थर .....
रेत बन कर दरिया के तह में बैठ जाता है ।
जीवन संघर्ष का क्षेत्र नहीं है , यह परम आनंद का बाग़ जैसा है ,
जिसमें कोई परम आनंद को
अपनें में रखे घूम रहा है ।
जीवन को यदि उस परम आनंद को समर्पित करके जो जीता है ....
वह इस संसार का द्रष्टा बन कर स्वयं भी परमानंद हो जाता है ॥
क्या पता कल क्या हो क्या न हो ......
क्या पता कल के लिए जो सोचा ,
वह करनें के लिए मौक़ा मिले या न मिले ......
क्या पता कल जिस से मिलना है ,
उस से मिल पायें या न मिल पायें .....
क्या पता कल हम रहें या न रहें ,
तो क्यों न .....
अभी इस घड़ी उसमें बिताएं
जो .....
कल भी था ....
आज भी है ....
कल भी रहेगा ...
और तब भी रहेगा , जब ....
उसे देखनें वाला कोई न होगा ----
उसे समझनें वाला कोई न होगा ॥

===== हर पल उसमें गुजरे ======

Tuesday, October 19, 2010

Prof. Einstein and .........

Prof. Einstein और गुरुवार रबिन्द्रनाथ टैगोरे

दोनों लगभग समकालीन ------
दोनों का निवास प्रकृति .........
दोनों गांधीजी के प्रेमी ,
और ......
** जब गुरुवार आखिरी श्वास भर रहे थे , तब एक उनका प्रेमी बोला ।
आप लगभग 6000 कबितायें गाया ,
प्रभु की याद में , अब जब जा रहे हो तो प्रभु को याद कर लो , क्या पता आवागमन से मुक्ति मिल जाए ।
गुरुवार अपनी आँखे खोली , दो बूंद आंसू के टपके और गंभीर भाव में बोले , तू क्या कह रहा है ?
मैं तो
प्रभु से कह रहा था , हे प्रभु , मुझे तुरंत वापस भेजना , मैं इस पृथ्वी की खूबशुरती से बिदा
नहीं लेना चाहता ।
गुरुवार दूसरी जो बात कही , वह है - मैं अभी तक तो गाया ही नहीं , अभी तो ताल बैठा रहा था ,
अब, जब कुछ गा सकता था तो बुलावा आगया , चलो फिर यदि आया तो उसे गाऊँगा
जिसे गाना चाहता हूँ ।

** आइन्स्टाइन जब आखिरी श्वास बार रहे थे तब लोग पूछे , यदि आप को दुबारा
जन्म लेना पडा तो क्या बनाना चाहेंगे ? आइन्स्टाइन कहते हैं ,
वैज्ञानिक से अच्छा होगा यदि मैं एक नलका ठीक करनेवाले के रूप में पुनः पैदा होऊं ।
एक कबी और एक वैज्ञानिक -----
एक कितना उदास है अपनें जीवन से , और .....
दूसरा इतना खुश है की , वह तुरंत वापस आना चाहता है , इस पृथ्वी की खूबसूरती में ।
एक प्रकृति को फार्मूला में बाधता रहा है
और .....
दूसरा प्रकृति जैसी है , उसे वैसे स्वीकार कर जी रहा है , और संतुष्ट है ।
आइन्स्टाइन जन्म से [ संन 1979] मृत्यु तक [ 1955] तक उस एक फार्मूला की तलाश में रहे ......
जिसके आधार पर प्रभु ब्रह्माण्ड की रचना की है , जो समझ पाए , उसे लिख नहीं पाए
और जो लिखा , उस से
उनको संतोष न मिला , यही है जीवन का रहस्य ॥
एक कबी और एक वैज्ञानिक , दोनों अपनें -अपने क्षेत्र में नोबल पुरष्कार के बिजेता और दोनों
अपनें - अपनें कार्यों में शिखर पर , आखिर वे लोग क्या बताना चाहते थे , जिसको बोल नहीं पाए ?
आप यदि कबी हैं तो गुरुवार के उस राज को खोंजे , और .....
यदि वैज्ञानिक हैं तो उस सूत्र को खोंजे जिसकी खोज आइन्स्टाइन की थी ॥

==== कुछ तो देखो , सुनों ======

Monday, October 18, 2010

गंगा की धार ..............


गंगा किधर से किधर को बह रही हैं ?

आप को हसी तो आ ही रही होगी , इस बात को सुन कर की ------
गंगा गंगोत्री से गंगा सागर की ओर बह रही हैं .....
या फिर -----
गंगा सागर से गंगोत्री की ओर ॥

आये दिन अखबारों में पिछले चालीस सालों से देखा जा रहा है की ----------
भारत एक विकासशील देश है .......
यहाँ की डेमोक्रेसी संसार की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी है ॥

भारत अविकसित देश से विकासशील देश बना है ....
या फिर .....
विकसित से विकासशील देश बना है ? इस बात पर आप सोचना ।

मानव सभ्यता का इतिहास गवाह है की ------
लगभग इशापुर्व [ हजारों वर्ष ] से भारत में ......
आर्य लोग आये -----
टर्की से लोग आये ----
यूनान से लोग आये ----
पुर्तगाल से लोग यहाँ आये ......
फ्रांस से लोग यहाँ आये ......
चीन से लोग यहाँ आये .....
मंगोल से लोग यहाँ आये .....
कज़किस्थान की ओर से मुग़ल यहाँ आये ......
अंग्रेज लोग यहाँ से आकर्षित हुए .......
आखिर क्यों ?
यदि यह देश अविकसित था तो लोग यहाँ क्या करनें आते थे ?
क्या भिखारी के घर लुटेरे लोग जाते हैं , या फिर साहूकार के घर ?
यदि हम विकसित से विकासशील देश के रहनें वाले हैं तो हमें शर्म आनी चाहिए , और
यदि हम अविकसित से विकासशील देश के रहनें वाले हैं तो हम मुर्ख हैं , क्योंकि -----
ऐसा ठीक वैसा है जैसे कोई कहे ......
गंगा , गंगा सागर से हिमालत की ओर बहती हैं ॥

=== आप की बुद्धि क्या कहती है ? ======

Sunday, October 17, 2010

ऐसा क्यों है ?


आज हम कुछ और सोचते हैं ,
आप मेरे साथ हैं , यह देख कर खुशी होती है ॥
[क] यूरोप , अमेरिका , जापान , चीन , भारत के सभी कुत्तों को अगर एक जगह इक्कठा
कर दिया जाए तो .......
* उनकी भाषा एक होगी , वहाँ ट्रांसलेटर की जरूरत नहीं पड़ती ।
* वहाँ मेनू की कोई समस्या नही आती ।
* वहां कोई ऎसी समस्या नहीं दिखती जहां पत्रकारों की भीड़ इक्कठी हो सके ।

लेकीन जब इन्शान इकट्ठे होते हैं तब क्या जो होता है , वह किसी से छिपा है ?
[ख] जो लोग अपनें घर , परिवार , समाज से भागे हुए हैं , जिनको अपनें राह का
नक्शा नहीं मालूम
वे ....
स्वर्ग - नरक का नक्शा बना कर उसका ब्यापार चला रहे हैं ,
यह ब्यापार
आज - कल खूब चल रहा है ।
[ग] जो लोग दूसरों की पीठ पर स्वयं लदे हुए हैं , कभी अपनी कमाई से
एक लुंगी तक नहीं खरीदा , वे
मल्टी नेसनल कंपनी के मालिक को ब्यापार - सूत्र दे रहे हैं , वह भी पांच सितारा होटल में ।
[घ] जो कभी गायत्री मंत्र का जाप नहीं किया , वे गायत्री का अर्थ लगा रहे हैं और
लोग वाह - वाह कर रहे हैं ।
गायत्री का जो अर्थ कर रहा है उसके बारे में मैं तो कुछ नहीं कहता लेकीन जो तालिया पीट रहे हैं , वे
महा मुर्ख जरूर हैं ।
गायत्री का कोई अर्थ नहीं है , यह एक मार्ग है जिस पर जो चलता है -------
* वह पहले अपने मन - बुद्धि के उस पार पहुंचता है .....
* फिर वह कब और कैसे अनंत में डूब जाता है , कुछ कहा नहीं जा सकता ।
[च] जिनका कोई बच्चा नहीं , कभी फीस भरनें की लाइन में खड़े नहीं हुए ,
जो कभी बीजली का बील भरनें के लिए
लाइन में खड़े नहीं हुए , जो दो रुपये का बैगन नही खरीदा , वे ........
जीनें की राह दिखा रहे हैं ॥

यहाँ जो नहीं है ,
इन्द्रियों की सीमा में ----
मन की सीमा में -------
बुद्धि की सीमा में -----
उसके ब्यापार पर कोई टैक्स नहीं है ,
जबकी मल्टी मिलियन डालर का ब्यापार चल रहा है ॥
वह जो सब के लिए एक सामान सब जगह हर पल मौजूद है , लोग ......
उसे भी बेच रहे हैं , है न कमाल की बात ॥

===== हमें पहले अपनें को देखना है , फिर ...... =========

Saturday, October 16, 2010

अपनें जीवन को कौन जी रहा है और ...... ?


अपनें जीवन को कौन जी रहा है
और .....
कौन ढो रहा है ?

आप संसार में अच्छी तरह झांकें , बहुत मजा आयेगा , यहाँ तीन तरह के लोग दीखते हैं :
[क] कुछेक अपनें जीवन को जी रहे हैं -----
[ख] कुछ अपनें जीवन को अपनी पीठ पर ढो रहे हैं -------
और कुछ ......
[ग] अपनें जीवन को किसी और के पीठ पर लादकर साथ साथ मुस्कुराते हुए
मटक - मटक कर चलते हैं ....

मनुष्य के अलावां अन्य सभी जीव अपनें - अपने जीवन को जीते हैं लेकीन मनुष्य क्या कर रहा है ,
यह बात आप स्वयं देखें ।
एक आदमी अपनी तीन - तीन तस्वीरें साथ ले कर चलता है :
[क] एक वह तस्वीर है , जैसा वह है -----
[ख] एक वह तस्वीर है जैसा लोग उसको समझते हैं ----
और ......
[ग] तीसरी वह तस्वीर है , जैसा वह सोचता है की लोग उसे जानें ।

इस प्रकार मनुष्य अपनी तीन - तीन तस्वीरों के साथ स्वयं भ्रमित रहता है
और ....
कभी ऐसा पल नहीं आता जबकि उसके माथे का पसीना सूखता हो ,
बिचारा ! आदमी ------
दिन को रात समझ कर जीनें वाला .........
रात को दिन समझ कर जीनें वाला ........
सत को असत बना कर जीनें वाला ........
असत को सत बना कर जीनें वाला .......
क्या कभी चैन से जी सकता है ?

==== ॐ ======

Friday, October 15, 2010

वह दर्द भरी कराह , आज भी गूँज रही है


पिछले अंक में आप नें देखा :------
एक भारतीय माँ अपनें पुत्र की याद में कैसे सिसक रही थी ,
अब आगे ---------
अब चुनाव के दिन गुजरे कई दिन हो चुके हैं , उधर लोगों का आना जाना न के बराबर ही है ।
कभी - कभी एक - दो ट्रेक्टर जरूर गुजर जाते होंगे ,
लेकीन उस गंजे झोपड़े की ओर किसकी नजर
मुडती है ?

एक दिन एक नौजवान फकीर उस रास्ते से हो कर गाँव की ओर जा रहा था ,
अभी कुछ ही कदम आगे गया होगा ,
एकदम पीछे वापिस आगया , उस झोपड़े की ओर , मानो जैसे कोई चुम्बक
उसे वापिस खीच लिया हो ।
फकीर उस झोपड़े में झाँक ही रहा था की
एक आवाज सुनाई पड़ी ......
बेटा ! तूनें इतना इन्तजार कराया ? चलो देर सबेर ही सही , ठीक समय पर आया है ।
फकीर तो घबडा गया और चारों ओर देखनें लगा की आवाज कहाँ से आ रही है ?
जब कहीं कोई न दिखा तो पुनः वह फकीर झोपड़े में झाँकने लगा , अन्दर तो कुछ दिख नही रहा था ।
फकीर हिम्मत कर के अन्दर प्रवेश किया
और देखा -------
एक अस्सी साल की झुकी हुई औरत , होगा उसका लगभग बीस - पच्चीस किलो वजन , एक कम्बल में
सिमटी पड़ी थी । ऐसा लग रहा था मानो कई दिनों से उसनें खाना तो दूर रहा पानी भी न देख पाई थी ।
फकीर की आँखें भर आई थी ।
फकीर वहाँ से उस पास वाले गाँव में जा कर सारी दास्ताँ वहाँ के लोगों को सुनाई ।
लोग उस बुजुर्ग महिला
को प्यार से माँ कहते थे , सभी लोग उस झोपड़े के पास आये और देखनें लगे
की अभी श्वास चल रही है या ...... ।
वह तो रात में ही अपना दम तोड़ चुकी थी ।
फकीर जब उस आवाज की बात लोगों को बताई तो लोग दंग रह गए और फकीर को बताया की ......
आप जैसा इनका भी बेटा था , वह आवाज कही और से नहीं आ रही थी , वह ,
उसकी आत्मा की थी ॥

==== ऐसा भी घटित होता है =====

Thursday, October 14, 2010

उस दर्द को कौन सुना होगा ?


गाँव के बाहर ठीक उस मोड़ पर जहां से सडक घुमती है , गाँव की ओर ,
एक झोपड़ी है जिसकी हालत
बता रही है की उस में रहनें वाला या रहनें वाली कैसे होंगे / कैसी होगी ।

उस झोपड़ी में एक लगभग 80 वर्ष की महिला रहती हैं जिनको कई दिनों से
कोई देखा न था ।
चुनाव का आलम है , सडक पर आनें - जानें वालों की कोई कमी नहीं ,
लोग पान का पीच उस झोपड़े पर
थूकते तो हैं लेकीन कोई नहीं देखता की इस टूटे - फूटे गंजे झोपड़े में कोई रहता भी है ।

मध्य रात्री में जब आवागमन रुक सा जाता है , सन्नाटा छा जाता है
तब उस झोपड़े से
एक दर्द भरी अति धीमी
आवाज निकलती तो है , लेकीन उस आवाज को वहाँ कौन
सुननें वाला है ?
यह कराह उस औरत की है जो उस गाँव की एक इतिहास की
किताब सी है ।
पांच दिन हो गए होंगे , उस बुजुर्ग
महिला को कोई देखा भी न था की वह कहाँ है ? आज से

पच्चास साल पहले
उसी झोपड़े में एक उसका
बेटा भी रहता था जो बड़ा हो कर फ़ौज में भर्ती हो गया था ।
कश्मीर में उग्रबादियों से संघर्ष करते हुए एक दिन
वह वतन के लिए शहीद हो गया था , उस दिन से आज तक उसकी माँ
उस झोपड़े में
अपनें बेटे की याद में
सिसक रही है और आंशू टपका रही है ,
लेकीन .....
क्या कोई उसकी सिसकन को सुना होगा ?

===== यह भी एक जीवन है =========

Tuesday, October 12, 2010

कोई आ रहा है तो -------


यहाँ कौन सुन रहा है ------
यहाँ कौन देख रहा है ----
यहाँ कोई आरहा है तो -----
यहाँ से कोई जा रहा है ॥

जीवों में मनुष्य एक मात्र ऐसा जीव है .......
जिसके जीनें के लिए , उसका अपना - अपना ------
संविधान है ......
धर्म शास्त्र है , लेकीन क्यों ?, लेकीन
अन्य जीव जिसमें जीते हैं ,
वह -----
उनका संविधान हैं ......
उनके धर्म शास्त्र हैं ,
पर क्या .....
मनुष्य अपनें - अपनें धर्म शास्त्रों एवं संविधानों के अनुकूल जीता है ? यदि जीता होता
तो ..........
यहाँ अदालतें न होती -----
यहाँ वकील न होते , जिनके पास ऐसे नेत्र हैं की ---
भारत में बैठे , अमेरिका में देख लेते हैं ।
उनके पास ऎसी बुद्धि है की वे ......
सच को झूठ , एवं .....
झूठ को सच बना देते हैं ,
क्या किसी अन्य जीवों में वकील होते हैं ?

सुबह उठिए और बाहर एक नजर डालिए --------
किसी के दरवाजे पर ......
नाच चल रहा है -----
किसी के दरवाजे पर मातम छाया हुआ है ,
क्यों की ......
किसी के घर कोई नया मेहमान आने वाला है ,
तो .....
किसी के घर से कोई सदस्य अपनी परम यात्रा पर जा चुका है ॥
हिन्दू लोग जब कोई परिवार का सदस्य बढनें वाला होता है तब कहते हैं -----
मेहमान आनें वाला है , यहाँ मेहमान शब्द को आप देखना ,
और वही मेहमान जब आखिरी यात्रा पर निकलता है
तब ----
घर में रोना प्रारम्भ हो जाता है , ऐसा क्यों ?
मेहमान का अर्थ है ------
जो आज हो और किसी भी समय प्रस्थान कर दे , लेकीन जब वह अपनी परम यात्रा पर
निकलता है तब .......
हम उसे आंशुओं से बिदा करते हैं ,
ऐसा क्यों ?
वह जो जहां से आया था [ अब्यक्त से आया था ] और वहीं जा रहा है [ अब्यक्त को जा रहा है ]
तब तो ....
हमें उसकी बिदाई को एक जश्न की तरह मनाना चाहिए लेकीन -----
हम क्यों ऐसा नहीं करते ?

===== जीवन एक अवसर है , इसे हाँथ से निकलनें न दें =====

Monday, October 11, 2010

तूं और मैं के बीच की दूरी क्या होगी ?


ऐसा कौन होगा जो इन दो शब्दों को दिन में कई बार न प्रयोग करता हो ,
लेकीन क्या ------
कोई यह भी सोचता होगा की ......
इन दो शब्दों के मध्य का फासला क्या होगा ?

जिस दिन और जिस घड़ी यह सोच अन्दर भरती है , उस दिन और उस घड़ी वह ब्यक्ति -----
वह नहीं रह जाता , वह रूपांतरित होनें लगता है
और ........

* उसका अहंकार पिघल कर श्रद्धा में बहनें अगता है ------
* उसके अन्दर की काम - ऊर्जा का रुख राम की ओर हो जाता है -----
* कामना , क्रोध , लोभ का अभाव हो जाता है ------
* मोह , भय एवं आलस्य कपूर की भाँती उड़ गए होते हैं ...
और .....
# उस का रुख परमात्मा की ओर और पीठ संसार की ओर हो जाती है ।
# वह ब्रह्माण्ड के कण - कण में राम देखनें लगता है ।
# उसका मैं , तूं में बिलीन हो गया होता है ।

==== चलना तो पड़ेगा ही ======

Sunday, October 10, 2010

यहाँ हम क्या कुछ कर रहे हैं ?


प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन कह रहे हैं :-------
ऐसे बहुत कम लोग हैं जो ........
* अपनी आँखों से देखते हैं और ------
* अपने ह्रदय से समझते हैं ॥

बीसवीं शताब्दी का एक महान वैज्ञानिक कुछ ऐसे बोल रहा है जैसे उपनिषद् का ऋषि बोल रहा हो ,
लेकीन यह सत्य है की .........
यहाँ कोई नहीं देखता , सब अंधे हैं और
सब झूठे हैं ॥
आप ज़रा दूर नहीं अपनें ही घर में देखना की क्या - क्या आप चला रहे हैं जैसे -------
[क] दादा पोते से झूठ बोल रहा है ......
[ख] दादी अपनें पोती से झूठ बोल रही है ......
बहू अपनी सास से झूठ बोल रही है ......
और सास अपने पति से झूठ बोल रही है , आखिर क्यों ....... ?
झूठ बोलनें का अभ्यास हो रहा है , बड़े - बूढ़े अपनी आगे आनें वाली पीढी को झूठे संसार में टिके रहनें
का अभ्यास करा कर तसल्ली करना चाहते हैं की उनकी औलाद सब से ऊपर का झूठा होगा ॥

परमात्मा जब सब को बना लिया तब सोचा की अब एक ऐसे जीवधारी को बनाते हैं जो .......
सीमा रहित बुद्धि वाला हो .......
जो भोग से मुझ तक की यात्रा करनें में सक्षम हो ......
जो ब्रह्माण्ड का नक्शा बना सके और ----
उसमें सफ़र कर सके , लेकीन .......
ऐसा जीव बना तो जरूर पर प्रभु को स्वयं निराकार होना पडा ------
वह , जो भोग से भगवान् तक ....
अज्ञान से ज्ञान तक ......
जन्म से मृत्यु तक ......
राग से वैराग्य तक के मार्ग पर चल सकता हो , मनुष्य है ,
लेकीन -----
मनुष्य क्या कर रहा है ......
क्या देख रहा है .......
क्या सुनता है ......क्या समझता है ,
इस बात पर -----
आप सोचना ॥

==== हम अपने आर्ग पर कांटे बिछा रहे हैं =======

Friday, October 8, 2010

हम अंधे बहरे हो रहे हैं


यह बात मैं नहीं , वैज्ञानिक कह रहे हैं --------
वैज्ञानिक कह रहे हैं ........
बिल्ली ----
चूहे -------
एवं अन्य जीव - जंतु के पास पांच ज्ञानेन्द्रियों की जो क्षमताएं ......
प्रकृति से मिली हुयी हैं , वह शत प्रतिशत वैसी की वैसी हैं ,
लेकीन मनुष्य 1200 में से मात्र 400 अर्थात केवल एक तिहाई क्षमता वाला है ।
प्रकृति मनुष्यों के ज्ञानेन्द्रियों की क्षमताएं अन्य जीवों से लगभग तीन गुना अधिक दिया है ,
लेकीन मनुष्य क्यों इन क्षमताओं को खोता जा रहा है ?
मनुष्य के अन्दर कहीं न कहीं कुछ ऐसा है की .....
वह यह सोचता रहता है की ...
मैं परमात्मा हूँ , लेकीन अपनें अन्दर परमात्मा की खोज की लहर
किसी - किसी में उठती है और जिनमें उठती है .....
वे परमात्मा तुल्य हो ही जाते हैं ॥
मनुष्य का अहंकार उसे ........
जानवर बना रहा है -----
बिशैला बना रहा है ------
ऊपर देखनें नहीं देता , जबकी ......
अंतरिक्ष की यात्रा करता जरूर है , पर ......
उसकी सोच उतनी उंची नहीं हो पाती जितनी उंची उसकी ....
उड़ान होती है ॥

==== ज़रा सोचना =====

Wednesday, October 6, 2010

यक़ीनन वह सब की सुनता है


उसकी कोई नहीं लेकीन ......
वह सब की सुनता है ।

वेदों का निचोड़ ----
उपनिषदों के सूत्र ....
गीता के श्लोक ......
कुरान शरीफ की आकाश में गूंजती आयातों की धुनें ------
अमृतसर हर मंदर साहिब के अन्दर श्री ग्रन्थ साबिद के शब्द ------
बायबिल की पंक्तियाँ .......
सब के सब यही कहते हैं ......
वह सब की सुनता है ॥
हम सब मोबाईल इस्तेमाल करते हैं लेकीन मोबाईल उनकी आवाज सुनकर हमें कहता है .....
लो सरजी , आप के मित्र आप से बातें करना चाहते हैं ,
यह कैसे संभव होता है ?
आवाज को इलेक्ट्रो मैग्नेटिक तरंगों में बदल कर एक दूसरे जगह भेजते हैं और वहाँ
स्थित उन तरंगो को पकडनें वाला यदि मोबाईल है तो वह -----
* पहले उन तरंगों को पकड़ता है .....
* फिर उन तरंगों को हमारी भाषा में बदल कर हमें देता है ।
मोबाईल की भाँती यदि हम प्रभु की तरंगों को पकडनें में कामयाब हो सकें तो ......
हमारा जीवन बदल सकता है .....
मनुष्य जो दिन - प्रतिदिन इंसान से जानवर बनता जा रहा है ,
वह योगी बन सकता है .....
आज वैज्ञानिक जो नयी पृथ्वी की तलाश कर रहें हैं , उसकी कोई जरुरत ही न होगी ........
और इस पृथ्वी को हम वैसे रखनें में सफल हो सकेंगे जैसा प्रभु हमें दिया था ॥

====== और जीवन बदल सकता है ======

Tuesday, October 5, 2010

सत बचन को


एक छोटी सी कहानी जो सत की ओर हमारे दिल को खींचती है ---------------
एक पथिक , थका - मादा एक पेंड के नीचे सुस्ता रहा था , उसे नीद लग गयी ,
वह सो गया और नीद में स्वप्न देख रहा है .........
की वह स्वर्ग में पहुच गया है जहां बहुत बड़ा जलसा मनाया जा रहा है ।
पथिक भय के मारे किसी झाड़ी में छिप कर जलसे का नजारा देख रहा है और मन ही मन सोच रहा है
की वापिस चल कर लोगों को बताउगा की स्वर्ग में
मैनें जलसा देखा है ।

स्वर्ग - जलसे में झांकियां निकल रही हैं , जिनमे पहली झांकी योगाचार्य बाबा राम देवजी महाराज की है
जिस में करोड़ों लोग कपाल भारती का प्रदर्शन करते हुए आगे बढ़ रहे हैं ।
इसके बाद एक के बाद एक झांकिया निकल रही हैं । जब सारी झांकियां निकल गयी तब वह पथिक सोचा , क्यों न
झाड से बाहर निकल कर देखलें की इधर और क्या - क्या है ?
ज्यों ही वह बाहर निकला एक लगभग सौ साल का
बूढा एक दुबले - पतले घोड़े पर सवार हो कर धीरे - धीरे वहाँ से गुजर रहा था ,
उस पथिकनें सोचा , क्यों न इस से इस जलसे के बारे में जान लें ।
वह पथिक पूछा , बाबा ! इधर आप क्या कर रहें हैं इस भीड़ में , जा कर आराम करो,
क्या पता इतनी भीड़ के चपेटे में कहीं फस गए तो क्या होगा ?
और कृपया यह भी बताएं की आज यहाँ क्या हो रहा है ?
वह बूढा संन्यासी बोला , बेटा ! आज लोग यहाँ परात्मा का जन्म दिन मना रहे हैं ।
वह पथिक पुनः पूछा , बाबा !
परमात्मा कहाँ हैं ? बाबा मुस्कुराकर बोले , परमात्मा तो मैं ही हूँ ।

जैसे परमात्मा के जन्म दिन के अवसर पर परमात्मा सबके पीछे रहते हैं वैसे असत के पीछे सत रहता है
और इस कारण से इस युग को कलि युग कहते हैं ॥
कलि युग में राम , कृष्ण , हनुमान , शंकर की तस्बीरें लोगों के घरों से गायब हो गयी
और उनकी जगह ले लिया
आज के बाबाओं की तस्बीरोंनें ॥

कौन सुनता है , सत वचन को .......
कौन देखना चाहता है , सत पुरुष को .....

====== ऐसा ही चल रहा है ======

Monday, October 4, 2010

इनके दर्द को .......


[क] पंख कटे पंछी की दर्द को -----
[ख] बेसहारा अनाथ छोटे से बच्चे की दर्द को -----
[ग] बेसहारा एक बुजुर्क की दर्द को जो वह अपनें झोपड़े में कराहता रहता है -----
[घ] एक नाविक की दर्द को जिसकी एक छोटी सी नाव अभीं- अभीं डूबी है -----
[च] उस माँ की जिसका नवजात शिशु अभी - अभीं दम तोड़ा हो -------


ऎसी अनेक घटनाएँ हम रोजाना देखते हैं , लेकीन ------
इन पर हमारी आँखें , हमारे कान और हमारी सम्बेदाना क्यों नहीं टिकती ?

क्या हम इंसान से पत्थर हो चुके हैं , या .....
क्या हमारी इन्द्रियाँ एवं ह्रदय अपना रुख बदल चुके हैं ॥

===== कुछ तो सोचो ======

Sunday, October 3, 2010

उनकी आवाज को


जिसनें भी उनकी आवाज सुनी ........
संसार के लिए उसकी अपनी आवाज बंद हो गयी .....
वह न कुछ बताना चाहता है ...........
वह न कुछ सुनना चाहता है ॥
जब जीवन तनहाई से भरा हो तो -----
मौत भी तन्हाई में आती है ॥
सुनना और बोलना सभी चाहते हैं लेकीन ......
मन - बुद्धि सुनना और बोलना एक साथ नहीं कर पाते .....
मन - बुद्धि एक साथ दो को नहीं पकड़ पाते और मनुष्य हमेशा दो में जीना चाहता है ......
मनुष्य का जीवन एक को छोडनें , दुसरे को पकडनें में सरकता चला जाता है .....
मनुष्य अपनी मुट्ठी कभी खोलना नहीं चाहता , क्यों की -----
उसे भ्रम हैं की ......
उसनें जो अपनें मुट्ठी में बंद कर रखा है , वह कहीं निकल न जाए ॥
मनुष्य छोड़ - पकड़ की इस गति में अपना जीवन सरकाता चला जाता है और .....
जब आखिरी दिन आजाता है
तब , वह ......
अकेले में अपनी बंद मुट्ठी खोल कर देखता है , की चलो देखतो लें की इसमें हमनें जीवन भर क्या भरा है ?
जब देखता है तब ------
मुट्ठी तो खाली दिखती है , और .........
आँखों से टपकते हैं - दो चार बूंदे ही - आशू के
और फिर हमेशा के लिए .....
आँखें बंद हो जाती हैं ॥
यहाँ किसी को कुछ नहीं मिलता , जो मिलता सा दिखता है , वह है मात्र एक भ्रम ॥
मनुष्य जब तक प्रभु से नहीं भरता , तब तक खालीपन से ही अतृप्त रहता है , और जो ....
प्रभु से भर गया , उसमें कुछ और को रखनें की .....
जगह ही कहाँ बचती है ?

====== अपनें को रिक्त करो =======

Friday, October 1, 2010

उनकी बात


त्रेता युग में श्री राम अवतरित हुए , उपदेश देनें के लिए नहीं ........
द्वापर में श्री कृष्ण आये , मात्र गीता - उपदेश के लिए नहीं ...........

श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं अर्थात वह
जो कर के दिखाए की -------
एक पुत्र कैसा होना चाहिए .....
एक पति कैसा होना चाहिए .....
एक राजा कैसा होना चाहिए .....
एक भाई कैसा होना चाहिये ......
और एक इंसान को कैसा होना चाहिए ?

श्री कृष्ण यह दिखाए की ........
प्रेमी की मर्यादा क्या है ?
पुत्र की मर्यादा क्या है ?
मित्र की मर्यादा क्या है ?
और एक सांख्य - योगी को क्या करना चाहिए ?

हिन्दुओ के दो अवतार एक अयोध्या के राज महल में ,
सरयू नदी के किनारे और दूसरा ------
जमुना नदी के किनारे मथुरा में असुर राजा के महल में बनें कारागार में ॥
एक अपनी पहचान दिखाया , सागर के अन्दर एक द्वीप पर युद्ध
करके और दुसरे ------
अरब सागर के तट से आ कर हिमालय की घाटी में कुरुक्षेत्र में एक
परिवार के दो भाइयों के मध्य हो रहे
युद्ध में एक द्रष्टा के रूप में अपनें ही मित्र अर्जुन के सारथी के रूप में , अपनी सांख्य - योगी की पहचान को
दिखाया ।
आप श्री राम के मुह को देखिये और श्री कृष्ण के मुह को ,
एक लगते हैं जैसे कभी हसे ही न हों और
एक लगते हैं जैसे
हसी के प्रतिमूर्ति हों ।
भारत में दो अवतार और दोनों का सम्बन्ध युद्ध से रहा है और भारत
एक ऐसा देश है जिसको
गुलामी का सबसे अधिक अनुभव है । हम युद्ध नहीं करते ,
हमारे भगवान् युद्ध के लिए ही
अवतरित होते रहे हैं , कैसा है यह बिरोधाभाष ?
कहते हैं श्री राम की अयोध्या सरयू में जल समाधी ले कर अपने को
समाप्त कर दिया था और ------
द्वारका अरब सागर में जल समाधि ले कर अपनें को समाप्त करदिया था ,
आखिर इन दोनों पवित्र तीर्थों
को क्या हुआ की दोनों जल समाधी ले लिए , कुछ तो हुआ ही होगा ?
ऐसे तीर्थ जहां श्री राम और श्री कृष्ण जैसे अवतार रहे हों , वह तीर्थ
जल समाधि ले कर अपनें
को समाप्त किये हों ,
बात कुछ खटकती जरूर है ।
बात बहुत ही सीधी है ---------
यहाँ के लोग जो पानी पीते है वह अहंकार का शरबत है , यहाँ के लोग
ह्रदय से झुकना नहीं चाहते ,
समर्पण की ऊर्जा यहाँ के लोगों में नहीं बह पाती , यहाँ के लोग
अपनें सभी द्वारों को बंद करके
रखते हैं की कही कोई अच्छी बात
किसी द्वार से अन्दर न प्रवेश कर सके ।
गीता , उपनिषद् समर्पण का उपदेश देते हैं , भक्ति - योग का प्रारंभ भारत में हुआ ,
लेकीन यहाँ के ऋषि जब देखिये श्राप ही देते रहे हैं ,
श्राप देनें की ऊर्जा अहंकार की ऊर्जा है ॥ ऋषि और अहंकार , दोनों एक दुसरे में निवास
करते हों , बात एक दम बिपरीत हैं ।
यहाँ श्री राम , श्री कृष्ण जैसे अवतार आते रहते हैं , हमें रूपांतरित करनें के लिए
लेकीन हम उनको ही
अमनें जैसा बनानें का प्रयत्न करते रहे हैं ।
कौन सुनता है , उनकी बात को ?

===== श्री राम =====