Thursday, August 29, 2013

कभी कभी

●● कभीं कभीं ●●
1- संसारमें स्वकी और स्वमें प्रभु की खोज जीवनका केंद्र होना चाहिए ।
2 - संसारमें जिसे देखो चाहे वह गृहस्थ हो या
योगी , सबका रुख एक तरफ है , है न कमालका बिषय ; सभीं हर पल एक ही ओर देख रहे हैं और वह आजका परम है भोग ।
3 -प्रभु तो कोरे कागज़ जैसा जीवन दिया था , उसको रंगीन बनाते - बनाते हमनें उसे क्या बना दिया ?
4 - जीवन भर हम दूसरोंमें उसकी अच्छाई को भी बुराईकी शक्लमें देखते रहते और अपना खून जलाते रहे ,एक बार , केवल एक बार अकेलेमें ही सही , अपनें अन्दर हमें खोजना चाहिए की क्या हमारे अन्दर कोई खोट नहीं ।
5 -कितना ताज्जुब दिखता है की एक नोबेल पुरष्कार विजेताकी आलोचना 50 % अंक प्राप्त करता बड़े प्यारसे करता है , उसे पता नहीं कि वह क्या कर रहा है , बिचारा ....।
6 - नकली फूलको लोग इतनें प्यारसे अपनें ख़ास कमरेमें रखते हैं कि उनको शायद स्वप्नमें भी असली फूल की स्मृति नही आती होगी , लेकिन नकली असली कैसे बन सकता है ?
7 - इस समय लोग अन्दरसे सिकुड़ते जा रहे हैं , उन्हें भय है , कहीं मेरी असलियत लोगोंके सामनें न आ जाए और बाहर से फैलते जा रहे हैं जैसा दिखना चाहते हैं जिससे कोई उनके अन्दर न झाँक सके ।
8 - दूसरेकी रोशनीमें कबतक चलोगे , एक दिन वह अपनीं रोशनी वापिस खीच लेगा फिर क्या करोगे ?
9 - क्यों ऐसी स्थिति पैदा कर रहे हो कि आगे चलना तो कठिन हो रहा है लेकिन पीछे लौटना भी संभव न हो सके ।
10 - प्यार जीने का सहज परम माध्य सबको एक सार मिला हुआ है लेकिन हम उसका भी ब्यापार करनें लगे और वह प्यार ब्यापार की वस्तु बनकर भी घट नहीं रहा ।
~~~ ॐ ~~~

Saturday, August 24, 2013

आस्था

आस्था
● आस्था जब टूटती है तब वह ब्यक्ति भी टूट जाता है लेकिन यह स्थिति मनुष्यको रूपांतरित कर सकती है ।
● कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय और अहंकार रहित टपकती आंसूकी बुँदे मनुष्यको परममें डुबो कर रखती है जिसे कोई हिला नहीं सकता ।
● जो हम कहते हैं , यदि वैसे करें भी तो अपनें को तृप्त रख सकते हैं ।
● जैसा हम करते हैं , यदि वैसा ही बन जाएँ तो हमारी सभीं समस्याएं समाप्त हो सकती हैं।
● अपनें और पराये का भाव यदि समाप्त हो जाए तो सिद्धि मिलनी कठिन नहीं ।
● कामना और अहंकार चलाते नहीं , घुमाते रहेते हैं । ● भोगसे भगवान की यात्रा ज्यादा लम्बी नहीं , लेकिन मनुष्यके कई जन्म लगजाते हैं ।
● श्वास ध्यानमें जब नासिका से बाहर निकलती श्वास पूर्ण रूपसे दिखनें लगे तो वह ध्यान पूर्णता की ओर जा रहा होता है ।
°°° ॐ °°°

Tuesday, August 20, 2013

क्या करोगे सोचके

क्या करोगे सोचके ? देखना जरा अपनें जीवन की किताबके कुछ पन्नोंको जिनको आप कभीं नहीं
देखा :----
1- जीवनकी कुछ एक ऐसी घटनाएँ होती हैं जिनको जितना सोचोगे वे उतनी और जटिल हो जाती जाती
हैं ।
2- मन स्तर पर आप कुछ भी बन जाएँ लेकिन आपका मूल स्वभाव ठीक समय पर आपको अपनें प्रतिकूल न जाने देगा ।
3- कुछ ऐसे होते हैं जिनकी जगह आपके जीवनमें न के बराबर रही होती है लेकिन समय आनें पर वे आपके बहुत करीब आजाते हैं , आपकी मदद करते हैं और अपनें , दूर खड़े हो कर आपकी बजबूरीको और नंगा देखनेंके अवसरका इन्तजार करते होते हैं ।
4- जीवनमें जिनको हम पकड़ने केलिए , हम अपनी पूरी ऊर्जा लगा रखी थी , उनसे दूरी बढती गयी , ऐसे अनुभव रह - रह कर आपको चुभते रहते हैं । 5- क्या खोजा और क्या पाया ।
6- जो हम अपनें जीवनमें न कर सके , उसे अपनें पुत्रसे करवाना चाहते हैं और वहाँ भी हमें मायूसी ही मिलती है क्योंकि यहाँ जो आता है उसके पास उसका अपना संचित धन होता है और वह उसी केंद्र पर घूमता है ।
7- घरकी ऊब बाहर भगाती है और बाहर लोगोंका ब्यवहार पुनः घरमें कैद कर देता है । 8- दूसरों जैसे बनते - बनते हम स्वयंको भूल जाते है और हाँथ कुछ नहीं लगता ।
°°° ॐ °°°

Sunday, August 4, 2013

दो पल ही सही जरा सोचना


  • कौन छोट है , कौन बड़ा है , यह सोच कहाँ से उठती है ?
  • कौन सुन्दर है , कौन कुरूप है , यह सोच कहाँ से उठती है ?
  • कौन अपना है , कौन पराया है  , यह सोच कहाँ से उठती है ?
  • अनुभवहीन ब्यक्तिकि ज्ञान की बातें रस रहित होती हैं , क्यों ?
  • कहते हैं नानक दुखिया सब संसार , लेकिन मौत के नाम पर सभीं सिकुड़ते हैं , क्यों ?
  • हम अपनें दुःख का कारण और को क्यों बनाते हैं ?
  • सभीं परेशान है स्वयं से नहीं औरों से , क्यों ?
  • आज नहीं तो कल ही सही कुछ पानें कि उम्मीद हमें एक दूसरे से जोड़ कर रखती है , क्यों ?
  • कामना टूटते ही क्रोध क्यों उठता है ?
  • कामना का अंत क्यों नहीं है ?
  • दुःख में सभीं सिकुड़ते हैं और सुख में फैलते ते हैं , क्यों ?

===== ओम्  =====