Sunday, April 27, 2014

क्या कहूँ ?

1- क्या कहूँ ? किससे कहूँ ? और कैसे कहूँ ? मुह खोलनें से पहले इन प्रश्नों पर विचार करलो वर्ना बाद में पछताना पड़ेगा ।
2- पेड़ से टपका फल और मुह से टपकी बात मे समानता है ।
3- अभीं तक वे आपके अपनें ही थे लेकिन दो बातें आपकी सुनते ही उनका रंग क्यों वदल गया ?
4- आप सोच रखे थे कि वे आपके अभिन्न मित्र हैं लेकिन जब आप उनको बरतना चाहा तो आपकी सोच खरी न निकल सकी और आपको जहाँ खुश होना था , दुखी हो उठे ।
5- प्रभु सबको देख रहा है , यह बात सब जानते हैं पर इसे समझनें वाले दुर्लभ हैं ।
6- जीवन प्रकृति की ओर से रंगीन है उसे और रंगीन बनानें की कोशिस उसकी खूबसूरती को छीन लेता है।
7- देहके दर्द को तो कहा जा सकता है लेकिन दिल के दर्द को किससे और कैसे कहूँ ?
8- दूसरों की कमजोरियों को बता - बता कर जीवन गुजार दी पर अपनी कमजोरियों को किससे और कैसे कहूँ ?
9- औरों से जो मिला उसे तो सबको बता दिया पर अपनों से जो मिला उसे किससे और कैसे बताऊँ ? 10- संसार में सबकुछ कहा जा सकता है ,सबकुछ गाया जा सकता है लेकिन जो प्यार मिलता है उसे कैसे कहा या गाया जा सकता है ?
~~ रे मन कहीं और चल ~~

Saturday, April 26, 2014

जीवन इसका नाम है

1- कुछ ऐसी जीवन की घटनाएँ होती हैं जो रह -रह कर ह्रदय -मंथन करती रहती हैं ; न उनको चैन है और न हमें चैन से रहनें देती , आखिर उनका मुझसे कुछ तो सम्बन्ध होगा ही ।
2 - शरीर में जब अथाह उर्जाका संचार हो रहा होता है तब बिना सोचे कदम उठते रहते हैं और इस स्थिति में उठा हर कदम आपको मुसीबतोंमें उलझा सकता
है ।
3- जीवनमें बश एक कदम भी अगर सही न पडा तो जीवन का रुख ही बदल सकता है और एक हम हैं जो हर कदम गलत रख रहे हैं ।
4- मनुष्य हो और जी रहे हो पशु जैसा ? आखिर इस जीवन से क्या मिलनें वाला है ? कुछ घडी अपनें मूल जीवन में गुजार कर देखो ,क्या पता वहाँ ज्यादा सकून मिले ।
5- सबको अपना बनाना संभव नहीं और वनाया हुआ अपना दों कौड़ी का होता है । अगर किसी को तुम अपना बना लिया है तो उसे कोई और अपना बना लेगा फिर क्या करोगे ? क्योंकि दूसरों का बनना उसका स्वभाव बन चूका है । वह अपना है और रहेगा जो बिनु बनाए बन गया हो ।
6- जबतक ' मेरा ' शब्द है , ' तेरा ' शब्द भी रहेगा और ज्योंही मेरा की जगह उसका ले लेता है , तेराका स्वतः अंत हो जाता है । तेरा और मेरा दोनों उसका सागर में विलीन हो जाते हैं ।
7- कठपुतलियों का खेल देखे हो ? वे आपस में प्यार करते हैं और लड़ते भी हैं लेकिन वे स्वयं कुछ नहीं कर सकते , उनका ओपरेटर कोई और बाहर होता है । हम सब भी कठपुतलियाँ हैं और हम सबका ओपरेटर हम सब के अन्दर ही बैठा है ,मात्र उनमें और हम में इतना सा फर्क है ; उनका ओपरेटर दिखता है और हमें अपनें ओपरेटरको देखनें केलिए ध्यान से गुजरना पड़ता है ।
8- पप्पू कब पापा बन गए , पता न चला और पापा कब दादा बन गए यह भी सोचनें का बिषय है और इसके आगे दादा जी कब और कैसे अपनें से पराये हो गए ,यह भी समझनें की बात है ।है एक पर समयांतर में वह बदलता रहा या देखनें वाला बदलता रहा ,इस पर आप सोचें !
9- वह कौन इंसान है जो प्रभु की ओर पीठ किये जी रहा है ? शायद कोई नहीं है ; ऐसा इन्सान पाना कठिन है जिसके अन्दर प्रभु की सोच न हो ।
10- जीवन का केंद्र दो हो नहीं सकते , इंसान एक केंद्र पर टिकता नहीं और यही कारण है की मनुष्य सम्राट होते हुए भी हसते -हसते रो पड़ता है ।
~~~ रे मन कहीं और चल ~~~

Friday, April 18, 2014

पढो और मनन करो

●● पढो और मनन करो ●●
1- प्रभु ! किसी की नज़र आप पर टिके या न टिके पर आपकी नज़र सब पर समभाव से टिकी होती है । 2-सत्यकी खोज इन्द्रियोंसे प्रारम्भ होती है और इन्द्रियोंकी समझ संदेह आधारित होती है , संदेहको भ्रममें रूपांतरित न होनें देना , ध्यान - मार्ग है , ध्यानमें संदेहको श्रद्धामें रूपांतरित होते देखना ध्यानको पकाता है और ध्यान जब पकता है तब जो दिखता है वह सत्य ही होता है ।
3- जिस घडी तन - मन दोनों प्रभुको समर्पित हो जाते हैं उसी घडी अनन्य भक्तिकी लहर परम गति की ओर चला देती है ।
4- चलना तो है ही , सभीं चल भी रहे हैं , लेकिन ज्यादातर लोग एक जगह पर कदमताल कर रहे हैं और सोचते हैं कि चल रहे हैं ।
5-सभीं जल्दीमें हैं , सबको फ़िक्र है कि इतना सारा काम इस छोटे से समयमें कैसे हो सकेगा क्योंकि जीवन छोटा है और काम अनंत है , आप समझाये हैं कि यह फ़िक्र हमारे जीवन - अवधिको और छोटा कर रही है ।
6- वेश - भूषासे चाहे जो बना लो , लोगों द्वारा चाहे जो उपाधि प्राप्त कर को जैसे जगत गुरु , योगाचार्य  कृपाचार्य या शंकराचार्य लेकिन हृदय रूपांतरण बिना भक्ति - रस पाना संभव नहीं और हृदयका रूपांतरण ही प्रभुका प्रसाद है जो किसी - किसी को मिल पाता है ।
7 - सबकी खोज एक है -सुख की प्राप्ति लेकिन उनमें कितनें सुखमें जी रहे हैं , ज़रा आँख उठा कर देखाना ?
8 - रात को भोजनका पहला कौर उठाते समय ज़रा सोचना कि आज दिन भर आप जो भी किये क्या वह यही दे सकता है ?
9 - यह न सोचो कि लोग आप से प्यार करें ,आप प्यार करनें का अभ्यास करते रहें ।
10 - कुछ करनें की सोच पर कबतक रुके रहोगे , उसे करनें की हिम्मत करो , आज जो आपके खिलाफ हैं ,कल आपके मित्र बन जायेंगे लेकिन यह काम इतना आसान नहीं ।
11 - जिसे पानें केलिए तुम सबकुछ खोना चाह रहे हो क्या वह आपको भी इतना ही चाहता है ,ज़रा सोचना इस बिषय पर ?
12- भोग उर्जाकी ऑंखें जो देखती हैं ,वह भ्रम ही होता है और योगकी आँखों में सत्य समाया हुआ होता है ।
~~~ ॐ ~~~

Tuesday, April 8, 2014

हमें सोचना है

● संसार एक ऐसा मंदिर है जिसकी मूर्तियाँ हर पल बदल रही हैं ।
● संसार एक पाठशाला है जहाँ कर्म एक ऐसा माध्यम है जो भोगमें योगका संगीत सुनाता है और योग परम धामका मार्ग दिखाता है ।
● संसार में मनुष्य से एक कण तक में ऐसा नहीं की संगीत न हो ,पर उस संगीत को कौन सुनना चाहता
है ?
● संसार रिश्तों की जाल है जिसमें फसनें के सभीं आसार हैं लेकिन इन रिश्तों को समझ कर कुछ उस परम रिश्ते में पहुँच जाते हैं जिसकी खोज ही मनुष्य जीवन का उद्देश्य है।
● फूल आपस में अपनें -अपनें परम विचारों का आदान -प्रदान करते रहते हैं लेकिन उनके इस विचारों के आदान -प्रदान को सुनता कौन है ?
● मंदिर में मूर्ति जो देखनें सभीं जाते हैं लेकिन मूर्ति के अन्दर जो है उसे देखनेंका प्रयाश करनें वाले दुर्लभ हैं ।
● ऐसा ब्यक्ति होना संभव नहीं जो चाह रहित हो लेकिन चाह रहित जो हो गया ,वह ब्रह्म वित् होता है । ● क्रोध समय - समय पर अपना रंग एक गिरगिट की भांति बदलता रहता है ,पर इसके इस कुशलता को कौन समझता है ?
● आप लोगों द्वारा क्यों सम्मानित हो रहे हैं ,क्या कभीं इस बिषय पर आप का ध्यान गया है ?
● जब भी हम सूर्य की पहली किरण देखते हैं ,हमारा एक नया जीवन प्रारम्भ होता है लेकिन इस नए जीवन को नए ढंग से जीनें की सोच कितनों में होती है ? ~~ ॐ ~~